30 मई को उत्तराखंड के टिहरी जिले के नैनबाग क्षेत्र में 9 वर्षीय बालिका के साथ गाँव के ही एक व्यक्ति द्वारा बलात्कार किए जाने की घटना सामने आई. इस मामले में पुलिस और अस्पताल का पीड़िता के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया भी चर्चा का विषय बना.सवर्ण पुरुष द्वारा दलित बालिका के साथ दुष्कर्म के आरोप ने इस मामले को और संवेदनशील बना दिया. इस मामले में भाकपा(माले) की ओर से देहारादून के सरकारी अस्पताल में पीड़िता और उसकी माँ से मैंने तथा वर्गीश बमोला ने मुलाक़ात की.
9 वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार जैसा दुष्कर्म सुनने में ही बहुत बुरा लगता है पर पीड़ित बच्ची को देख कर तो दिल धक्क रह जाता है.एक नन्ही सी जान और ऐसी दरिंदगी का शिकार बनी ! आखिर ये कैसे लोग हैं,जिन्हें छोटी अबोध बालिकाओं को देख कर, उनके प्रति स्नेह नहीं उमड़ता बल्कि इनकी यौन कुंठा और घृणा,उन्हें छोटी बच्चियों के प्रति ऐसा वहशी आचरण की ओर धकेलती है ?
घटना के दिन बच्ची के माँ-बाप खेती और मजदूरी करने के लिए अगल-बगल गए हुए थे. आरोपी बच्ची को बुला कर ले गया और फिर अपनी दुकान के अंदर,दरिंदगी को अंजाम दिया. दुष्कर्म के बाद आरोपी ने बच्ची को धमकी दी कि वह उसे जान से मार डालेगा. इस कारण बच्ची आसानी से अपनी माँ को भी अपने साथ हुई घटना को बताने को तैयार नहीं हुई. बच्ची की माँ ने बताया कि जब उन्होंने बच्ची को आश्वस्त किया कि वे किसी को नहीं बताएँगी,तभी बच्ची ने अपने साथ हुए अपराध को अपनी माँ को बताया.
इस प्रकरण में सबसे साहसपूर्ण स्टैंड बच्ची की माँ का रहा. वे बताती हैं कि जैसे ही घटना की चर्चा हुई,वैसे ही गाँव के लोगों ने इस परिवार को मामले को रफा-दफा करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया. वे बताती हैं कि उनसे कहा गया कि उनका परिवार जो सलूक चाहे आरोपी से वह गाँव की पंचायत करेगी पर वो मामले को बाहर न ले जाएँ. यहाँ तक कि उन्हें दस लाख रुपये का प्रलोभन भी दिया गया. लेकिन वे इस बात पर अड़ी रही कि उन्हें अपनी बच्ची की चिंता है और वे उसके लिए लड़ेंगी. वे आरोप लगाती हैं कि एक तरफ ये लोग उन पर समझौते के लिए दबाव बना रहे थे और दूसरी तरफ उन्ही लोगों ने आरोपी को पैसा दे कर गाँव से भगा दिया गया.
इस मामले में पहले पहल बच्ची को दून अस्पताल में कुछ घंटे रख कर ही डिस्चार्ज कर दिया गया. फिर आरोपी और पीड़िता को एक ही वाहन में बैठा कर पुलिस,पीड़िता को मजिस्ट्रेट के सामने बयान करवाने के लिए ले गयी. इस मामले में गढ़वाल क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक का वह बयान खासा चर्चा का विषय बना,जिसमें उन्होंने कहा पुलिस की जीप पहाड़ नहीं चढ़ती,इसलिए पीड़िता और अपराधी को निजी वाहन में भेज दिया. इस पूरे प्रकरण में पीड़िता के पक्ष में सक्रीय जिला पंचायत सदस्य अमेन्द्र बिष्ट कहते हैं कि अपराधी और पीड़िता को एक ही वाहन में भेजने के साथ ही तत्कालीन पुलिस क्षेत्राधिकारी(सी.ओ.) उत्तम सिंह जिमिवाल अपनी सरकारी स्कॉर्पियो में अकेले बैठ कर गए.
बाद में इस मामले के तूल पकड़ने पर उक्त सी.ओ का तबदला कर दिया गया. इंटेलिजेंस के एक कार्मिक ने अस्पताल के बाहर इस लेखक से कहा कि “हुआ तो यह गलत और इसकी सजा जरूर मिलेगी.” पर फिलवक्त तो सिर्फ तबदला हुआ है,वह भी पहाड़ से मैदानी इलाके में. उत्तराखंड में पहाड़ से मैदानी इलाके में तबादले को कार्मिक इनाम समझते हैं,सजा नहीं.
अपराधी के साथ बैठा कर बयान के लिए ले जाये जाने पर बच्ची अत्याधिक आक्रांत हो गयी. बच्ची की माँ कहती हैं कि वह इस कदर घबरा गयी कि उसने वाहन में कपड़ों में ही मल-मूत्र कर दिया. उसका पूरा शरीर बुखार से तपने लगा. बच्ची की माँ तो यह भी आरोप लगाती हैं कि आरोपी,वाहन में बच्ची को इशारों के जरिये भयभीत करता रहा. ऐसे में उसके बयान तो नहीं हो सके और उसे पुनः अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा.
जिला पंचायत सदस्य अमेन्द्र बिष्ट का आरोप है कि पुनः अस्पताल लाये जाने पर पहले बच्ची का इलाज कर चुकी डाक्टर और दून अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक का व्यवहार बहुत ही संवेदनहीन था. वे कहते हैं कि जहां देहरादून की एस.पी. सिटी बच्ची को उत्साहित करने की कोशिश कर रही थी,वहीं डाक्टरों का रुख संवेदनहीन बना रहा.बच्ची की माँ कहती हैं कि घटना ने बच्ची को भावनात्मक रूप से इस कदर तोड़ दिया था कि कई बार तो वह,उनसे(माँ से) भी कुछ बोलने के बजाय चादर में मुंह छुपा कर रोती रहती थी.
बच्ची की माँ ने इस प्रकरण से जुड़ा एक वाकया बताया जो पीड़ित और आरोपी की मनोदशा को स्पष्ट करता है. वे कहती हैं कि जब गाड़ी एक मंदिर के सामने से गुजरी तो बच्ची ने 2 रुपये मांगे. माँ के पूछने पर उसने बताया कि उसने मन्नत मांगी थी कि यदि वह बच जाएगी तो भगवान को दो रुपये चढ़ाएगी. दूसरी तरफ आरोपी जब बच्ची के साथ दुष्कर्म कर रहा था तो उसने बच्ची को कहा कि तू पुकार ले,जिसे पुकारना है,तेरी मदद को कोई शक्ति नहीं आएगी. भगवान का भय या विश्वास सिर्फ पीड़ितों को ही है और यह विश्वास भी उनके किसी काम नहीं आता. अपराधी तो अतिआश्वस्त हैं कि कोई शक्ति उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती !
बच्ची की माँ से जब परिवार के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे पति-पत्नी और तीन बच्चे हैं. सबसे बड़ी यह बच्ची है,फिर दो बेटे हैं. बच्ची की माँ से उनकी उम्र पूछने पर उन्होंने बताया-26 साल. साथ ही वे बताती हैं कि उनकी शादी को 11 वर्ष हो चुके हैं. यह विडम्बना ही है कि कानूनी बंदिश के बावजूद बेहद कम उम्र की बच्चियों की शादियाँ हो ही रही हैं. कानून तो दुराचार-दुष्कर्म के विरुद्ध भी पर्याप्त हैं पर स्थिति तो भयावह है.
नैनबाग के क्षेत्र में इस घटना से कुछ ही दिन पहले एक दलित युवक की विवाह समारोह में कुर्सी पर बैठने के झगड़े में हत्या हो गयी थी. फिर छोटी बच्ची के साथ दुराचार की यह घटना हुई. उत्तराखंड के बारे में आम तौर पर यह माना जाता है कि यहाँ जातीय भेदभाव कम है या कुछ लोग तो दावा करते हैं कि वह,है ही नहीं. हालांकि यह मान्यता जातीय पदाक्रम में तथाकथित ऊपरी स्थानों पर मौजूद लोगों में ही अधिक है.
घटना के संदर्भ में इस इलाके के कुछ लोगों से यह सवाल किया गया कि क्या इस क्षेत्र में जातीय भेदभाव की भावना बहुत तीखी है ? नैनबाग क्षेत्र के एक उद्यमी व्यक्ति से अन्य संदर्भों में हुई मुलाक़ात में यह सवाल पूछा तो वे जातीय भेदभाव से साफ इंकार करते हैं. वे कहते हैं-दो-एक घटनाएँ हो गयी,अन्यथा यहाँ तो लोग मिल जुल कर रहते हैं. जिला पंचायत सदस्य अमेन्द्र बिष्ट कहते हैं कि जब इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं तो कैसे कहा जा सकता है कि जातीय भेदभाव नहीं है.
इस क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जबर सिंह वर्मा, बीते 8-10 साल की घटनाओं के उदाहरण समेत बताते हैं कि जातीय भेदभाव तो बेहद क्रूर और अमानवीय रूप में मौजूद है. वे बताते हैं कि 7-8 साल पहले मसूरी से लगे इलाके में एक गाँव में स्कूल में दलित महिला को भोजनमाता नियुक्त किया गया तो उस इलाके के लोग बड़ी तादाद में उसे हटवाने आ गए. बच्चों ने 5-6 दिन तक स्कूल में खाना नहीं खाया. जबर सिंह वर्मा कहते हैं कि वे उस समय अमर उजाला में काम करते थे और उन्होंने इस मामले को अखबार के जरिये उठाया भी था.वे और भी कई घटनाओं का उदाहरण देते हैं जो जातीय भेदभाव के क्रूर रूप को प्रकट करती हैं.
वर्मा कहते हैं कि अंधविश्वास और जातिवाद बहुत विकृत रूप से पहाड़ों में मौजूद है. जबर सिंह वर्मा और उनकी बात का जिक्र इसलिए भी समीचीन है क्यूंकि इस मामले और इससे पहले शादी में कुर्सी पर बैठने पर युवक को पीट कर मार डालने की घटना को सक्रियता पूर्वक उन्होंने उठाया.
इस प्रकरण में राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने आज तक एक भी शब्द बोलने की जहमत नहीं उठाई. हाँ, सरकार के कुछ मंत्री और विधायक जरूर पीड़ित परिवार से मिले थे.
जब हम अस्पताल में बच्ची और उसके परिवार से मिलने गये तो वह घटना के दंश से उबरने का प्रयास करती नजर आई. बाल सुलभ प्रवृत्ति के अनुरूप ही एक महिला पुलिस कर्मी के मोबाइल पर वह गेम खेल रही थी. 10 जून को मजिस्ट्रेट के सामने 164 सी.आर.पी.सी. के तहत पीड़ित बच्ची के बयान हो चुके हैं और वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुकी है.
बच्चियों,युवतियों,महिलाओं को यौन अपराधियों के हमले से बचाना और जातीय भेदभाव से मुक्ति अभी भी हमारे समाज के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं.