साहित्य-संस्कृति किसान के क्रमिक दरिद्रीकरण की शोक गाथा है ‘गोदान’गोपाल प्रधानJuly 25, 2019December 9, 2019 by गोपाल प्रधानJuly 25, 2019December 9, 201913535 सन 1935 में लिखे होने के बावजूद प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ को पढ़ते हुए आज भी लगता है जैसे इसी समय के ग्रामीण जीवन की...