तबले पर अँगुलियों के रख-रखाव और बोलों को निकालने के अपने अलग-अलग तरीकों के कारण ही घरानों में भिन्नता है।
बनारस घराना की नींव पंडित राम सहाय जी ने डाली। लखनऊ के खलीफा उस्ताद मौदू खाँ से बारह वर्ष तबला सीखने के बाद राम सहाय जी बनारस लौटे और बनारस घराने की बुनियाद डाली। बनारस आकर पंडित राम सहाय जी ने बहुत सारी बंदिशों को बनाया। बनारस घराना तकरीबन 200 साल पुराना घराना है। बनारस घराना न सिर्फ वादन बल्कि नृत्य और गायन के लिए भी बहुत मशहूर है।
बनारस की जो तबला बजाने की शैली है वो पूरबी शैली है वो खुले हांथों की है। इस शैली के अंतर्गत लखनऊ, फर्रुखाबाद और बनारस घराने आते हैं.
पूरबी शैली में थाप का प्रयोग होता है जिससे आवाज़ में और गूँज पैदा होती है. बेस का इस्तेमाल जिसे बायां कहा जाता है पर खुले हाथों से थपकी ली जाती है.
इस शैली में उँगलियों के साथ-साथ पंजे का भी इस्तेमाल होता है इसीलिए इसे खुला बाज भी कहते हैं. स्याही का इस्तेमाल ज्यादा होता है. इसमें पाँचों उँगलियों का प्रयोग होता है. कारण ये कि लखनऊ में नृत्य के साथ पखावज (खुले हाथों का वाद्य है) की संगति होती थी और तबला यहाँ आया तो पखावज का प्रभाव उसपर पड़ा तो वो खुले हाथों से बजाया जाने लगा.
बनारस घराने में सियाही का उपयोग ज्यादा होता है। इसलिए इस घराने के तबले को शुद्ध माना जाता है। साथ ही वादक सियाही को अपनी तरफ रखकर बजाता है। लौ (सियाह और चांटी के बीच का भाग) का इस्तेमाल किया जाता है। बनारस घराने में तेटे अनामिका और मध्यमा से बजता है।
उठान बनारस घराने की विशेषता है। अन्य घरानों में पहले पेशकार बजता है लेकिन बनारस घराने में पहले उठान फिर पेशकार इसके बाद क़ायदा बजता है। उठान में बंदिश नहीं होती है। उठान के बाद बनारस घराने में भी पेशकार बजता है लेकिन यहाँ इसे अवचार भी कहते हैं।
उठान के अलावा फ़र्द सिर्फ और सिर्फ बनारस घराने में बजाया जाता है। श्रृंगार और वीर रस फ़र्द की पहचान है। फ़र्द को एक्कड़ भी कहते हैं। पंडित बैजनाथ प्रसाद मिश्र ‘बैजू महाराज’ फ़र्द के विशेषज्ञ थे।
परण बनारस घराने की देन है। परण में श्लोक या स्तुति को बजाया जाता है जिसे श्लोक परण या स्तुति परण कहते हैं। पंडित किशन जी महाराज लय के अलावा परण के विशेषज्ञ थे।
जैसे पंजाब का ठेका मशहूर है वैसे ही बनारस घराने का भी अपना ठेका है। गत हर घराने में बजता है लेकिन बनारस घराने में जानना गत भी बजता है। इस वक्त बनारस और पंजाब घराने सबसे मशहूर घराने हैं।
इस घराने के मशहूर तबला वादकों में पंडित बैजनाथ प्रसाद मिश्र ‘बैजू महाराज’, पंडित दरगाही मिश्र ‘बिक्कू जी’, पंडित अनोखेलाल मिश्र (पंडित अनोखेलाल जी ना धीन धीना के लिए विश्वविख्यात थे।)। पंडित यदुनन्दन जी, पंडित कंठे महाराज, पंडित सामता प्रसाद जी (गुदई महाराज), पंडित किशन जी (पंडित कंठे महाराज जी के भतीजे) महाराज उस्ताद अता हुसैन, उस्ताद राजा मियां, उस्ताद नज्जू मियां हैं।