चौरी चौरा विद्रोह की बरसी पर विशेष
(भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन की अभूतपूर्व घटना चौरी चौरा विद्रोह की आज बरसी है. 4 फ़रवरी 1922 को स्वयंसेवकों का जुलूस डुमरी खुर्द गांव से चौरी चौरा थाना के लिए चला था . थाने पर पुलिस ने स्वयंसेवकों पर लाठीचार्ज किया और गोली चलायी. इसके बाद क्रांतिकारियों ने ने थाना जला दिया था जिसमें 23 पुलिस कर्मी मारे गए. चौरी चौरा विद्रोह के 19 क्रांतिवीरों को फांसी हुई. गरीबों का खून चूस रहे देशी सामंतों और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ चौरी चौरा विद्रोह पर कथाकार सुभाष कुशवाहा की महत्वपूर्ण किताब ‘चौरी चौरा विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन ’ का एक अध्याय हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं जो 4 फ़रवरी की सुबह जुलूस रवाना होने के पहले डुमरी खुर्द गांव में हुई सभा के बारे में है. सं )
13 जनवरी, 1922 को डुमरी खुर्द में मंडल कार्यालय की स्थापना के बाद, दूसरी बार 4 फरवरी, 1922 को डुमरी खुर्द में एक बार फिर सभा का आयोजन किया गया था । इस दूसरी सभा का मकसद ब्रिटिश सत्ता को सीधे-सीधे चुनौती देना दिख रहा था । 4 फरवरी के दिन डुमरी खुर्द की प्रातःकालीन सभा में जुटने वाली संभावित भीड़ के मद्देनजर व्यापक तैयारियां की गई थीं । डुमरी खुर्द मंडल कार्यालय के पदाधिकारी और चौरी चौरा किसान विद्रोह में शामिल सक्रिय स्वयंसेवक, शिकारी द्वारा सेशन कोर्ट में बतौर सरकारी गवाह दिए बयान के अनुसार प्रातःकालीन डुमरी सभा के लिए लाल मुहम्मद दिशा निर्देश दे रहा था । तैयारी की पहली कड़ी में 3 झंडे तैयार कर लिए गए थे । लाल मुहम्मद और पहाड़ी भर जलपान हेतु गुड़ इकट्ठा करने की जिम्मेदारी निभा रहे थे । इनके अलावा बहुत सारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक घर-घर से गुड़ मांग कर जमा कर रहे थे, जिनमें शिकारी, बिहारी पासी, साधो सैंथवार, नकछेद कहार (अभियुक्त नहीं) और नजर अली मुख्य थे । सूरज उगने के कुछ समय बाद, शिकारी के दरवाजे पर 2 टोकरियों में गुड़ इकट्ठा किया गया था जिसे सभा की कार्यवाही शुरू होने के पूर्व, बिहारी पासी के घर के सामने स्थित खलिहान पर भेज दिया गया ।
खलिहान की खाली जमीन पर ही सभा का आयोजन किया गया था । नेताओं (आॅफीसरों) को पहनाने के लिए माला बनाने के वास्ते फूल जुटाये गए थे। कुल 15 या 16 मालाएं बनाई गयीं । ये सारे काम 7 से 8 बजे सुुबह तक कर लिए गए थे । जब सुबह 8 बजे के लगभग 500 से 600 स्वयंसेवक जमा हो चुके थे तभी मलांव का पंडित (जगत नारायण पाण्डेय उर्फ जगतू पंडित) और बाबू संत बख्श सिंह का कर्मचारी शंकर दयाल राय वहां पहुंचे । शंकर दयाल घोड़े पर आया था । दोनों को लाल मुहम्मद ने बैठाया और मालाएं पहर्नाइं । शंकर दयाल के बारे में बहुत लोग सोच रहे थे कि वह अहिरौली (डुमरी खुर्द से 15 कि.मी. दूर) का बाबू है परन्तु शिकारी ने उन्हें पहचान लिया था कि वह बाबू संत बख्श सिंह का कर्मचारी है । शिकारी के अनुसार डुमरी खुर्द सभा में एक सन्यासी भी आया था जिसके हाथों में एक चिमटा था । शायद वह पड़री का रहने वाला था लेकिन बाद में उस सन्यासी की वास्तविक स्थिति की जानकारी न हो सकी । लाल मुहम्मद ने उसे भी माला पहनाई।
इसके बाद मुण्डेरा के रामरूप बरई, डुमरी खुर्द के शिकारी, नजर अली, राजधानी के अब्दुल्ला उर्फ सुखई, रामपुरवा ( या रामनगर, चैरा थाने से दूरी लगभग 4 कि.मी.) के श्याम सुन्दर मिश्र, चैरा के लाल मुहम्मद, इन्द्रजीत कोइरी (फरार अभियुक्त ) को एक-दूसरे ने माला पहनाई । शंकर दयाल ने स्वयंसेवकों के नेताओं से पूछा कि यह सभा किसलिए बुलाई गई है और कहां जाने का कार्यक्रम है । नजर अली ने उन्हें बताया कि हम थाना जा रहे हैं । यह सुनकर मलांव का पंडित उठा और भाषण देते हुए कहा कि गांधी जी का निर्देश है कि हमारा आंदोलन शांतिपूर्वक और अहिंसक तरीके से चलना चाहिए । अभी-अभी थाने पर सशस्त्र पुलिस बल पहुंचा है। अगर हम वहां जाएंगे तो खून-खराबा होगा और हम सभी मारे जाएंगे । इसलिए हमें अपने घरों को चले जाना चाहिए । हम बंदूक और तोप की मार नहीं झेल पाएंगे। यह सुनकर नजर अली ने स्वयंसेवकों से कहा कि यह गुप्तचर है । यह हमारा आदमी होता तो मुण्डेरा बाजार में जब हमारे 3 साथी पीटे जा रहे थे तो इसे हंसने के बजाय रोना चाहिए था । स्वयंसेवकों ने पंडित की बात पर ध्यान नहीं दिया और ताली बजानी शुरू कर दी थी ।
सभा की शुरूआत में ही मलांव का पंडित और बाबू संत बख्श सिंह के मुण्डेरा बाजार के ठेकेदार शंकर दयाल राय का वहां पहुंचना इस बात में कोई संदेह नहीं छोड़ता कि स्थानीय जमींदार पूरी तरह से सजग थे और वस्तुस्थिति पर नजर रखे हुए थे तथा दरोगा को डुमरी खुर्द सभा की पल-पल की जानकारी दे रहे थे । उन्होंने इस कड़ी में पहला प्रयास तो यही किया कि अपने आदमियों को सभा स्थल पर भेज कर, विद्रोही किसानों को डरा-धमका कर, साथ ही साथ आने वाले परिणामों का भय दिखा कर, सभा को विसर्जित कर दिया जाए । मलांव के पंडित ने सभा स्थल पर जिस सशस्त्र पुलिस बल के पहुंचने की बात बताई थी, वह 1 फरवरी को मुण्डेरा बाजार में स्वयंसेवकों द्वारा 4 फरवरी को ज्यादा संख्या में आ कर, ‘देख लेने’ की धमकी के मद्देनजर बुलाई गई थी । इसके लिए बाबू संत बख्श सिंह ने अपने आदमियों को जिलाधिकारी, गोरखपुर के पास भेज कर बाजार की सुरक्षा के लिए पुलिस बल की मांग की थी । उनकी मांग के फलस्वरूप ही गोरखपुर पुलिस लाइन्स से पुलिस बल की एक टुकड़ी 4 फरवरी को सुबह 9 बजे, कुल 8 सशस्त्र जवानों के साथ चौरी चौरा रेलवे स्टेशन पर पहुंच चुकी थी ।
परिपक्व अब्दुल्ला ने तत्काल मलांव के पंडित, जगत नारायण पाण्डेय और शंकर दयाल के आने का मकसद समझ लिया था । उसने पंडित को जासूस बताते हुए उसकी बातों पर ध्यान न देने का सुझाव दिया । श्याम सुन्दर, नजर अली, लाल मुहम्मद ने अब्दुल्ला की बातों का समर्थन किया । स्वयंसेवकों के तेवर देख पंडित और शंकर दयाल वहां से चले गए थे । दरोगा का एक और खास व्यक्ति भेदिया के तौर पर डुमरी खुर्द सभा में गया था जिसका नाम भवानी प्रसाद तिवारी था और वह पोखरभिंडा का रहने वाला था।
इस बीच दूर-दराज के गांवों से बुलाये गए स्वयंसेवकों का आना जारी था । सभा स्थल पर स्वयंसेवकों के बैठने के लिए बोरे बिछा दिए गए थे । सभा में आने वाले स्वयंसेवक होशियारी का परिचय दे रहे थे । वे छोटे-छोटे समूहों में, लगभग छः-छः के समूह में बंटकर तयशुदा स्थान पर पहुंच रहे थे । प्रत्येक गांव के लोग सभा में एक जगह बैठ रहे थे । उन्होंने ‘सेवा समिति, ग्राम….’ का बैज लगा रखा था । प्रत्येक गांव से स्वराज का एक झंडा लाया गया था । सभा स्थल पर बीच में नेता बैठे थे तथा चारों ओर स्वयंसेवक । जलपान के लिए गुड़ की व्यवस्था पहले से की जा चुकी थी । स्वागत के लिए फूलों की मालाएं बनाई गई थीं । डुमरी खुर्द के चौकीदार हरपाल को पहले ही सभा स्थल की निगरानी के लिए दरोगा द्वारा निर्देश दे दिया गया था । वह सभा स्थल पर होने वाली बातचीत पर गौर करता रहा । जब सभा स्थल पर 200-300 के लगभग स्वयंसेवक जुट गए तो उसने भागकर थाने पर खबर पहुंचाई । उसने दरोगा को बताया कि जब उसने डुमरी खुर्द छोड़ा था, तब भी स्वयंसेवकों का आना जारी था ।
सभा स्थल पर सबको गोरखपुर से आने वाले स्वयंसेवकों का इंतजार था, जैसा कि सबद अली और बलदेव कमकर ने लाल मुहम्मद के पत्र को मौलवी सुभानुल्लाह तक पहुंचाने के बाद, लौट कर बताया था कि गोरखपुर से 500 स्वयंसेवक पहुंचेंगे । जब दिन की दोनों गाड़ियां गुजर गईं और स्वयंसेवक नहीं आये तो डुमरी खुर्द में जमा स्वयंसेवको ने सोचा कि किसी अप्रत्याशित कारण से ऐसा हुआ होगा, इसलिए उनकी प्रतीक्षा करने के बजाय जलूस निकालने का काम किया जाना चाहिए ।
गोरखपुर से आने वाले स्वयंसेवकों या नेताओं के आने का प्रचार किए जाने के कारण संत बख्श सिंह का कारिंदा शीतला प्रसाद ने शंकर दयाल राय को रेलवे स्टेशन की निगरानी रखने का निर्देश दिया था । शंकर दयाल राय चौरी चौरा क्षेत्र में बाहरी व्यक्ति था। वह बलिया का रहने वाला था तथा वहां रु 250 राजस्व देने वाला जमींदार भी था। वह गोरखपुर के लिए अनजान नहीं था । वह जिले में 38-39 सालों से रह रहा था। मुण्डेरा बाजार और डिस्ट्रिक बोर्ड में ठेकेदारी का काम करता था और भगवानपुर में रहता था । बाद में खोराबार में रहने लगा और वहीं खेती का काम कराता था तथा गोरखपुर जिले में खेती का वार्षिक लगान रुपए 150 देता था। 4 फरवरी के दिन वह मुण्डेरा बाजार में था । रेलवे स्टेशन से लौटकर वह सीधे डुमरी खुर्द सभा स्थल पर पहुंचा था । जब जलूस भोपा पहुंचा तो उसने एक बार फिर भीड़ को समझाने का प्रयास किया था । जब किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया तो वह रेलवे लाइन के किनारे होता हुआ थाना पहुंचा और दरोगा को भारी भीड़ के आने का समाचार दिया । दरोगा ने उसे तुरंत मुण्डेरा बाजार पहुंच कर बाजार की सुरक्षा पर ध्यान देने का सुझाव दिया ।
सभा की अध्यक्षता नजर अली और लाल मुहम्मद कर रहे थे। सबसे पहले सभा को लाल मुहम्मद ने संबोधित किया था । उसने कहा था कि हम मुण्डेरा बाजार चलेंगे और ताड़ी, शराब, मांस-मछली की बिक्री रोकेंगे । अगर दुकानदार नहीं मानेंगे तो हम जबरदस्ती रोकेंगे ।
शिकारी के अनुसार डुमरी खुर्द सभा में 2 अन्य व्यक्ति भी आये थे । इनमें से एक लगभग 32 वर्ष का नौजवान था जो आंखों पर हरा चश्मा लगा रखा था और बातचीत से मुसलमान लग रहा था । दूसरा युवक उससे कम उम्र का था । वह हिन्दू था या मुसलमान, कहा नहीं जा सकता । हरे चश्मे वाले युवक ने हाथ में लिए कागज के टुकड़े को पढ़ना शुरू किया । फिर वह गाने लगा-‘ हम सब प्रत्येक, 2 साल के लिए जा रहे हैं । ’ स्वयंसेवकों ने इसका अर्थ समझ लिया कि हम 2 साल के लिए कारागार जा रहे हैं । शिकारी ने ऐसा ही पहला बयान 16 मार्च, 1922 को मजिस्ट्रेट के सामने दिया था । उसके अनुसार चश्मा पहना हुआ व्यक्ति अपने गाने में बार-बार मुहम्मद अली और शौकत अली (खिलाफत आंदोलन के राष्ट्रीय नेतागण) का नाम ले रहा था जो उनके कैद में होने के संबंध में था । 13 मार्च, 1922 को अभियुक्त भगवान अहीर ने मजिस्ट्रेट के सामने जो बयान दिया था उसके अनुसार उस समय 2 मुसलमान व्यक्ति चश्मा पहने हुए आये । उन्होंने शौकत अली और मुहम्मद अली के कार्यो का वर्णन करने वाला गाना, गाना शुरू किया । उस गाने को सुनने के बाद सभी लोग क्रोधित हो गए और बोले- आओ, हम सब थाने चलें ।
उसके बाद नजर अली खड़ा हुआ और भाषण देने लगा । उसने स्वयंसेवकों को बताया कि हम लोग एक साथ, एक समूह में सबसे पहले चौरा थाना चलेंगे । हम दरोगा से पूछेंगे कि उसने भगवान अहीर और 2 स्वयंसेवकों को क्यों पीटा ? उसके बाद हम मुण्डेरा बाजार चलेंगे और वहां जहरीली चीजों, मांस और मछली की बिक्री पर रोक लगायेंगे । हमें इन मुद्दों को पक्के तौर पर पूरा करना है और रास्ते में आने वाली हर बाधा का पूरी ताकत के साथ मुकाबला करना है । उसके बाद वह सार्वजनिक रूप से स्वयंसेवकों को शपथ दिलाने लगा । उसने कहा कि जिन्हें अपने परिवार की चिंता है वे चले जाएं । वे हमारा साथ न दें और वे लोग जो थाना पुलिस की गोली से पीछे हटेंगे, अपनी मां-बहन की इज्जत पर बट्टा लगायेंगे । उसने कहा कि जो लोग हमारा साथ देना चाहते हैं, हाथ उठायें । यह सुनकर वहां उपस्थित सभी लोगों ने अपना हाथ उठाया । सभी ने एक स्वर में बोला ‘जय’।9 सभी लोगों ने अंतिम समय तक साथ देने का वादा किया । उसके बाद नजर अली ने कहा कि जो लोग वादे से मुकरेंगे या बीच रास्ते से स्वयंसेवकों को छोड़कर भागेंगे, वे अगर हिन्दू होंगे तो गाय का और मुसलमान होंगे तो सुअर का मांस खाया समझे जाएंगे ।10 शपथ लेने के बाद बिहारी के घर के सामने के खलिहान से प्रस्थान करने के पूर्व स्वयंसेवकों की संख्या 1,000 के लगभग हो चुकी थी ।
डुमरी खुर्द सभा में अली बंधुओं से संदर्भित गाना गाने वाले कौन थे ? क्या वे खिलाफत कमेटी कार्यालय, गोरखपुर से आये थे या आसपास के थे ? रहस्य बना हुआ है । इस संबंध में एक और बयान का जिक्र करना जरूरी लगता है जो मजिस्ट्रेट के समक्ष, भगवान अहीर के बयान के 4 दिन बाद अर्थात 17 मार्च, 1922 को अभियुक्त महावीर पुत्र लालसा सैंथवार ने दिया था-‘दो मुसलमान व्यक्ति वहां आये थे । उनमें से एक ने चश्मा पहन रखा था और दूसरे की दाढ़ी थी । वे वहां आकर गाना गाना शुरू कर दिए । इसके बाद वहां उपस्थित स्वयंसेवक जिनकी संख्या करीब 3,000 पहुंच चुकी थी, उठ खड़े हुए और जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिए-‘महात्मा गांधी की जय ।’
शिकारी, भगवान अहीर और महावीर के उपरोक्त बयानों से यह निष्कर्ष निकलता है कि गाना गाने वाले दोनों व्यक्ति मुसलमान ही थे । दोनों आसपास के नहीं थे इसलिए उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई परन्तु इतना तो तय ही है कि अली बंधुओं के कारागार जाने, उनके कार्यों का वर्णन करने वाला गाना सुनाने वाले व्यक्ति खिलाफत आंदोलन से जुड़े थे । संभव है वे गोरखपुर से आये हों क्योंकि खिलाफत कमेटी मुख्यालय तक डुमरी खुर्द सभा की जानकारी, लाल मुहम्मद के पत्र द्वारा पहुंचा दी गई थी ।
दूसरा विवाद डुमरी खुर्द सभा में उपस्थित स्वयंसेवकों की संख्या का है । डुमरी खुर्द की सभा बुलाने के संबंध में लिखे गए 5 बुलावा पत्रों द्वारा जो तैयारी की गई थी, उससे यह संख्या हजार के लगभग ही रही होगी । उच्च न्यायालय ने भी इस संख्या को 1,000 से 1,500 तक ही आंका है लेकिन आगे चलकर जलूस में भीड़ बढ़ गई थी । उसका कारण यह था कि शनिवार, भोपा और मुण्डेरा बाजार का दिन था । आसपास के बहुत सारे लोग जो बाजार करने आये थे, वे भी उत्सुकतावश, तमाशा देखने के लिए भीड़ का हिस्सा बन चुके थे।
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