जयप्रकाश नारायण
यूरेशिया का क्षेत्र इस समय भीषण साम्राज्यवादी युद्ध का इलाका बना हुआ है ।यूक्रेन पर रूसी बमबारी जारी है। मानवी क्षति से लेकर भौतिक संपदा का भारी नुकसान हो रहा है।
यूक्रेन की धरती बंजर होने के साथ-साथ बमों-बारुदों का गोदाम बनती जा रही है। यूक्रेन में चारों तरफ अफरा-तफरी, विध्वंस का मंजर दिखाई दे रहा है।
विश्व की लुटेरी ताकतें राजनीतिक खेल में मशगूल हैं। जिनको यूक्रेनी नागरिकों सहित विश्व जन-गण और मानवता से कोई मोहब्बत नहीं है।
उदारीकरण के बाद विश्व के नये राष्ट्र-राज्य और उनके शासक आमतौर पर गैर लोकतांत्रिक और दक्षिणपंथी तानाशाह हैं। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन वर्तमान विश्व के तानाशाहों में सबसे ऊपरी स्थान पर विराजमान है।
पुतिन ने रूस में नये तरह की तानाशाही कायम किया है।जो आधुनिक तकनीकी क्रांति और आईटी युग की तानाशाही है। वर्तमान दौर में तकनीकी वैज्ञानिक विकास ने राष्ट्र- राज्यों के कारपोरेट नियंत्रित सरकार को इतना शक्तिशाली बना दिया है, कि वे राष्ट्र को आसानी से बंधक बनाकर फासिस्ट तानाशाही थोप सकते हैं।
रूस के अंदर की लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के बाद पुतिन, मित्र कारपोरेट घरानों के सहयोग से विश्व साम्राज्यवादी केंद्र के अगुआ बनना चाहते हैं। इसलिए आज का रूस सोवियत संघ के दौर के पुराने राज्यों (जो स्वतंत्र राष्ट्र राज्य बन गए हैं) पर अपना नियंत्रण और प्रभुत्व चाहता है।
क्रीमिया और बेलारूस पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के बाद यूक्रेन को रुस अपने प्रभाव में लेना चाहता है। क्योंकि सोवियत संघ से अलग हुए देशों में यूक्रेन सबसे विशाल भू-क्षेत्र और प्राकृतिक संपदा वाला देश है।
यूक्रेन के भौगोलिक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थल पर होने के कारण नाटो की साम्राज्यवादी सरकारें भी यूक्रेन में अपना नियंत्रण और प्रभुत्व चाहती हैं। जिससे वहां से रूस सहित चीन, उत्तर कोरिया और बाद में भारत जैसे देशों को अपने दबाव में ले सकें।
इस साम्राज्यवादी खेल में यूक्रेन के आसपास का इलाका युद्ध क्षेत्र बना हुआ है।
हमारे लिए महत्वपूर्ण बात यह है, कि दुनिया के एक अचर्चित देश में आधारभूत ढांचा इतना विकसित और समृद्ध है, कि भारत के 28 से 30 हजार छात्र चिकित्सा की उच्च शिक्षा के लिए यूक्रेन जाते हैं।
युद्ध के पहले हमें इस बात का तनिक भी आभास नहीं था। एक छोटे से देश में भारतीय मेधा का इतना बड़ा समूह बेहतर जीवन की चाह में जाकर डॉक्टर बनने के लिए संघर्ष कर रहा है।
युद्ध के बादल पिछले कई महीने से मंडरा रहे थे। दुनिया के विभिन्न देशों की तरफ से अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी हो रही थी कि वे यथाशीघ्र यूक्रेन छोड़ दें।
किन अज्ञात कारणों से भारत की मोदी सरकार ने इस दिशा में समय से कदम नहीं उठाया।
अब रूसी हमले के बाद भारतीय छात्रों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं। सम्पूर्ण देश चिंतित है, तनाव में है और छात्रों के परिवार के लोग मानसिक अवसाद तथा पीड़ा से गुजर रहे हैं।
हमारा प्रधानमंत्री संघ-नीत सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। अतीत में जिस तरह से मोदी ने राष्ट्रीय संकट और आपदा के समय कदम उठाये थे, ठीक वही तरीके यूक्रेन संकट के समय में भारतीय छात्रों को वापस लाने के लिए अपनाया जा रहा है ।
हजारों छात्र वहां पड़े माइनस 4 डिग्री तापमान में भूखों मर रहे हैं। मारे जा रहे हैं। अपमानित हो रहे हैं। सरकार और भारतीय समाज से रो-रो कर गुहार लगा रहे हैं, कि हमें बचा लीजिए।
लेकिन हमारे देश का निरंकुश तानाशाह चुनाव में ‘ऑपरेशन गंगा’ का ढोल बजा रहा है। यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के प्रति मोदी सरकार के नजरियों को समझना हो तो संक्षिप्त में हमें मोदी सरकार और संघ के अतीत की कार्यशैली को देखना होगा।
जबसे संघ और भाजपा भारत में एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरना शुरू हुई तब ही से उसके काम करने के तरीके में एक निरंतरता दिखाई देती है ।
नागरिकों के प्रति क्रूरता, नफरत के साथ जटिल राजनीतिक-सामाजिक सवालों के समाधान के लिए अपराधिक दिशा अख्तियार करना संघ की विचारधारा का मूल तत्व है।
वे आज भी गांधी की हत्या के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्थक हैं। यह वह लोग हैं, जो दंगे भड़काने और नरसंहारों में अग्रिम पंक्ति में रहते हैं और राजनीतिक लाभ उठाते रहे हैं।
संघ के लोग समय-समय पर भारत में सैन्य राष्ट्रवाद और पुलिस-राज की वकालत करते हैं। दंगा, नृशंस हत्या, माॅब लिंचिंग, मनुष्य से घृणा के साथ लाशों पर राजनीति का कारोबार का इनका इतिहास रहा है। ऐसे ही माहौल से इन्हें राजनीतिक शक्ति और सत्ता मिलती है।
मोदी की सरकार के सफलता का मंत्र है, “आपदा को अवसर में बदलना।”
आप जानते हैं, गुजरात में भाजपा सरकार की साख गिरने के बाद मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गयी। गोधरा की घटना के बाद मुस्लिमों का भीषण नरसंहार गुजरात में प्रायोजित किया गया। अपने ही नागरिकों की लाशों पर खड़ा होकर गुजरात गौरव और हिंदुत्व की शक्ति का अहसास कराया गया।
हजारों मुस्लिम परिवार घरों, कालोनियों से उजाड़ दिए गये थे। वह रीलीफ कैंपों में रह रहे थे। कैंपों में रह रहे, उजड़े, लुटे लोगों की मदद और सहयोग करने के बजाय इसे एक उपलब्धि के रूप में चिन्हित करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय मोदी जी ने कहा था, कि “ये बच्चा पैदा करने वाले कैंप हैं।” जिन्हें नहीं चलने दिया जा सकता है। यह बड़े होकर आतंकवादी बनेंगे। इस तरह का क्रूर वक्तव्य किसी लोकतांत्रिक देश का जनप्रतिनिधि दे ही नहीं सकता है।
यही नहीं, जो नागरिक उस समय बेसहारा लोगों को मानवीय मदद और सहयोग कर रह रहे थे, उन्हें तरह-तरह से परेशान कर मुकदमों में फंसाया जा रहा था।
उस समय भारत के आम नागरिक अपने इस्लाम और मुसलमान विरोधी भावना के चलते मोदी के इन कारनामों के दूरगामी नुकसान और राष्ट्र के लिए अशुभ संकेतों को पहचान नहीं सके थे।
भारत के लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष और समन्वयवादी नागरिकों के प्रति छुपी हुई घृणा और कारपोरेट पूंजीपति के प्रति मोदी की मोहब्बत उस समय तक खुलकर सामने अभी नहीं आयी थी।
2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर का दंगा, हेमंत करकरे की हत्या, गोविंद पानसरे, नरेंद्र दाभोलकर, कलबुर्गी, गौरी लंकेश की हिंदुत्ववादी गिरोहों द्वारा की गयी हत्या इसकी गवाही दे रही है। इन हत्याओं पर मोदी ने आज तक एक शब्द भी नहीं कहा है।
अल्पसंख्यकों की तो बात ही छोड़िए हिंदू समाज के अंदर के दलितों की हत्याओं, उनकी बहू-बेटियों के साथ बलात्कार, कमजोर वर्गों के उत्पीड़न पर प्रधानमंत्री सहित उनकी सरकार का कोई भी जिम्मेदार मंत्री सहानुभूति का एक शब्द भी नहीं बोला है।
आप दूर मत जाइए पिछले 3 वर्षों में ही भारतीय नागरिकों के साथ महामारी के संकट के समय सरकार की भूमिका पर नजर डालें, तो मोदी सरकार के चाल, चरित्र और जनता के साथ इनके व्यवहार को समझ सकते हैं।
कश्मीर को बरसों से कैद रखा गया है। असम, मिजोरम सीमा पर भाजपाई सरकारें आपस में ही लड़ रही हैं। आदिवासियों की बात छोड़ दीजिए। मोदी द्वारा थोपी गयी नोटबंदी के बाद लाइन में मारे गए सैकड़ों लोगों के लिए उनके पास सहानुभूति के एक शब्द भी नहीं हैं।
महामारी की आड़ लेकर लागू लाॅकडाउन के दौर के दृश्य को देखें तो आपकी आत्मा कांप जाएगी। कैसे अप्रैल में लाखों लोग सड़कों पर लड़कों-बच्चों के साथ मानव निर्मित त्रासदी का दंश भोगते हुए अंतहीन यात्रा पर निकल पड़े थे। सैकड़ों लोग मारे गए। पुलिस प्रशासन की बर्बर यातना और दर्द की अनंत गाथाएं उनके अंदर अभी भी मौजूद हैं।
लेकिन मोदी ने आज तक अपने क्रूर फैसले पर अफसोस या दुख के एक शब्द भी नहीं कहे।
भाजपा आई टी सेल के प्रशिक्षित संघ कार्यकर्ता उस समय भी मजदूरों को ही दोषी ठहराने में लगे रहे।
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में पूरा देश असहाय हालत में पड़ा था। लोग मर रहे थे।लाशों के लिए श्मशान और कब्रिस्तान छोटे पड़ गये। लोग गंगा जैसी नदियों में लाशें बहाने लगे।अस्पताल, डॉक्टर, ऑक्सीजन के लिए चौतरफा हाहाकार मचा था।
लेकिन अपनी आपराधिक लापरवाही पर केंद्र और राज्य सरकारों ने आज तक अफसोस का एक शब्द भी नहीं कहा। न ही महामारी में मारे गये नागरिकों के परिवारों से माफी मांगी। उल्टे बेशर्मी से डींग हांकते हुए विश्व के सबसे बेहतरीन प्रबंधन का दावा कर रहे हैं।
जनता पर आने वाले सभी प्राकृतिक और मानवीय संकट में मोदी सरकार अनुपस्थित रहती है। आज यूक्रेन संकट के समय भी यही हो रहा है। अपने नागरिकों और छात्रों के लिए सरकार के प्रयास पूर्णतया नाकारा और असंवेदनशील रहे हैं।
हमारे छात्र मर रहे हैं। उनके भेजे हुए वीडियो देखकर कोई भी सामान्य नागरिक भी द्रवित हो जाएगा और मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो जाएगा। लेकिन बेशर्म भाजपा सरकार के प्रधान चुनावी रैलियों में ‘ऑपरेशन गंगा’ का पतंग उड़ा रहे हैं। बेशर्मी और क्रूरता की हद है।
मोदी जी इस हद तक आत्ममुग्ध और दंभ में डूबे हैं, कि वह भारत के पराक्रम की चर्चा करने से नहीं चूक रहे। वह कह रहे हैं, कि हमारी सामर्थ्य दुनिया में बढ़ रही है और हम एक-एक भारतीय नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकाल रहे हैं।
आज ही विशाखा नामक एक छात्रा ने जो कहा है, उसे सुनकर हमारे देश की सरकार को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। लेकिन शर्म तो इनको कभी आती ही नहीं।
मोदी जी आत्म निरीक्षण करने के लिए तैयार ही नहीं है । छात्रा कह रही है, कि हम कई-कई सौ किलोमीटर चलकर सीमा पर पहुंचे हैं। आप इसे कैसे इवेक्युएशन कर रहे हैं। आपकी हिम्मत कैसे हो रही है।
हम अपना पैसा खर्च कर रहे हैं। विकट परिस्थिति का मुकाबला करते हुए हम सीमाओं पर पहुंचे हैं। हम फ्लाइट का पैसा दे रहे हैं। और आप इस तरह से देश को बरगला रहे हैं।
झूठ बोलना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। वह बार-बार कह रही है, प्रधानमंत्री जी यह सब कहना बंद करिए। निकालने वाला शब्द आप मत बोलिए ।
यूक्रेन में कोई भी भारतीय दूतावास का अधिकारी, कर्मचारी सही राय देने के लिए तैयार नहीं है। उनसे छात्र सलाह मांगते हैं, तो सही जवाब नहीं दिया जाता है। अगर छात्र अपनी समस्या कहता है, तो उत्तर दिया जाता है कि इससे ज्यादा हम कुछ नहीं बता सकते।
आप और सभी जानते ही हैं, कि संघ अपने स्थापना काल से ही राष्ट्र और समाज के साथ विश्वासघात करता रहा है और पाखंड फैलाता रहा है। संघ नेतृत्व और उसके विचारधारा से दीक्षित लोग, जिसमें हमारे प्रधानमंत्री जी भी हैं, झूठ, आत्म प्रवंचना, घृणा और आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों से नफरत करते रहे हैं । ये लोग झूठा प्रचार करते-करते बेहद बेशर्म हो गये हैं।
झूठ, घृणा और बेशर्मी भारतीय मीडिया, समाचार पत्र और बौद्धिक जगत के एक हिस्से का जीवन व्यवहार हो गया है, जो यूक्रेन संकट के दौरान भारतीय छात्रों के संदर्भ में भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है। न जाने यह बर्बरता और मनुष्य-विरोधी प्रवृत्ति कहां तक इस देश के अंदर फैला दी जाएगी।
आने वाला समय इनसे इनके अपराध का जवाब निश्चित ही मांगेगा। इस समय मीडिया सहित आईटी सेल के सभी भांड एक स्वर में चिल्ला रहे हैं, कि मोदी ने कमाल कर दिया है। पुतिन से बात की है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेंलेंस्की मोदी से गुहार लगा रहे हैं कि हमें बचाओ।
मोदी को विश्व कूटनीति का दक्ष महा नायक बताया जा रहा है। हमारे छात्र-छात्राएं रो रहीं हैं। मारी जा रही हैं। रूसी और यूक्रेनी सैनिकों की क्रूरता का शिकार हो रही हैं।
आईटी सेल के लोग इन लडके-लड़कियों को ही फर्जी और गलत प्रमाणित करने में जुटे हैं। कह रहे हैं, कि फर्जी वीडियो जारी हो रहा है।
प्रहलाद जोशी जैसा मंत्री बेशर्मी से हमारे नौजवानों को अयोग्य बता रहा है । भारत में शिक्षा प्रणाली के खर्चीले होने के कारण आम मध्यवर्गीय परिवारों के लिए मेडिकल की पढ़ाई कराना अपने बच्चों के लिए मुश्किल है। मंत्री जी सरकार की अक्षमता को बेशर्मी से छुपा रहे हैं।
एक आपराधिक गिरोह सक्रिय है और अफवाह फैलाने, झूठ रचने और मोदी सरकार की असफलता को छिपाने की असफल कोशिश में लगा है। जब उसे इस संकट के दौर में अपने नागरिकों के दुख-दर्द के साथ खड़ा होना चाहिए था। तब मोदी के महानता का पाखंडी आभामंडल रचा जा रहा है।
अभी समय है, कि सरकार यथार्थ को स्वीकार करे। त्वरित कार्रवाई कर यथाशीघ्र अपने नागरिकों और नौजवानों को अपने देश वापस लाए।
हम सभी लोगों को, जो अपने देश और देशवासियों से मोहब्बत और प्यार करते हैं, उन्हें चाहिए कि सरकार पर दबाव बनाए कि वह राजनयिक से लेकर के जो भी तरीके हो सकते हैं उनका इस्तेमाल करे।
साथ ही आज हमें युद्ध के विरोध में आवाज उठानी चाहिए। हमें शांति के लिए संघर्ष करना चाहिए। भारत में युद्ध विरोधी आंदोलन को भारत के नागरिकों के लोकतांत्रिक जनवादी अधिकारों से जोड़कर आगे बढ़ाने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
हमारा यही नारा हो सकता है, युद्ध नहीं शांति चाहिए। आक्रमण बंद करो!
विदेशी साम्राज्यवादी ताकतें यूक्रेन से दूर रहें। नाटो की विस्तारवादी, आक्रमणकारी युध्दपरस्ती नहीं चलेगी।
सभी प्रकार के युद्धों का नाश हो!
(जयप्रकाश नारायण मार्क्सवादी चिंतक तथा अखिल भारतीय किसान महासभा की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रांतीय अध्यक्ष हैं)
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