( मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र को लेकर पैदा हुए विवाद और महाराष्ट्र में जारी सांप्रदायिक लपटों की जड़ों की तलाश करती हुई अभिनय देशपांडे और पूर्णिमा शाह की यह रिपोर्ट द हिन्दू में 22 मार्च को प्रकाशित हुई है । समकालीन जनमत के पाठकों के लिए रिपोर्ट का अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है। )
17 मार्च की शाम 61 साल के रियल स्टेट कारोबारी मोहम्मद असलंम अपने 31 साला बेटे सोहिल शेख के साथ महाराष्ट्र के नागपुर में मोटा ताज बाग क्षेत्र के अपने दफ्तर में बैठे थे, तभी उनकी पत्नी शकीला बानू का फोन आया।
असलंम बताते हैं कि वह यकीनन डरी हुई थीं। “उनका कहना था कि हमारे घर के आसपास दंगे हो रहे थे और हमसे तुरंत घर आने को कहा। पर कुछ ही मिनट बाद दुबारा उन्होंने फोन पर ही हमसे यहीं रुकने को कहा क्योंकि हालात ज्यादा खराब हो गए थे।“ उन्होंने बताया।
असलम का घर उनके महाल में स्थित दफ्तर से 15 किमी की दूरी पर है। उनके मुहल्ले में उनका अकेला मुस्लिम परिवार है। उनका घर आरएसएस के मुख्यालय, डॉ0 हेड्गेवार भवन से मुश्किल से एक किमी की दूरी पर है। आरएसएस, केंद्र और महाराष्ट्र राज्य दोनों में सत्तासीन भाजपा का वैचारिक-स्रोत है।
बानू की चेतावनी को अनसुनी करते हुए असलम और शेख दोनों घर पहुंचे और कुछ ब्लॉक दूर पर ही गाड़ी खड़ी करके अपने घर की ओर लपके। वे बताते हैं कि उस भयंकर हिंसा के बीच में ढाल की तरह खड़े होकर उन्होंने लोगों से शांति बहाल करने मी मिन्नतें की, सैकड़ों लोग एक-दूसरे को गालियां दे रहे थे और पत्थरबाजी कर रहे थे और गाड़ियों को आग के हवाले कर रहे थे। असलम कहते हैं “ हम अपने हाथ उठा कर चिल्ला रहे थे, रुक जाओ, ‘रुक जाओ ! ’
सोहिल बताते हैं, “कुछ भी सोचने का वक़्त नहीं था। दंगाई मुसलमान थे पर हमारे इलाक़े के नहीं थे, सो हमें पहचानते भी नहीं थे। उन्होंने हमारे ऊपर हमला बोल दिया। उन्होंने हमारे फोन और सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिये और हमारे घर पर भी पत्थर फेंकने लगे।“
असलम कहते हैं, “इसके बाद हिन्दू लोग भी अपनी हिफाज़त में पत्थर चलाने लगे, लिहाजा हमें अब दोनों पक्षों को नियंत्रित करना पड़ रहा था।“ असलम, जिसने अपने पूरी ज़िंदगी उसी महाल में बिताई थी, ने मजहबी फसाद का ऐसा नज़ारा इस इलाके में पहले कभी नहीं देखा था।
पुलिस के अनुसार उस दिन सुबह-सवेरे दक्षिण-पंथी संगठन विश्व हिन्दू परिषद और उसके बगल-बच्चे बजरंग-दल के लोगों ने महाल के चौक के चिटनीस पार्क में एक बैठक की थी। उनकी मांग थी कि 17वीं सदी के मुग़ल सम्राट औरंगजेब के, वहाँ से 500 किमी दूर छत्रपति संभाजीनगर में स्थित, मकबरे को ढहा दिया जाय। औरंगजेब, जिसने द्वितीय मराठा शासक संभाजी महाराज पर अनेकों जुल्म ढाये थे और उनकी हत्या भी कर दी थी, की मृत्यु 300 साल पहले ही हो चुकी थी। संभाजी महाराज भारतीय उप-महाद्वीप में मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति (जन-रक्षक) शिवाजी महाराज के बेटे थे।
वैसे तो महाराष्ट्र की दूसरी जगहों पर भी प्रदर्शन हो रहे थे पर जब प्रदर्शनकारियों ने किसी चादर में आग लगा दी थी। पुलिस का कहना है कि उस चादर पर कुरान की आयतें लिखी थीं। इससे मुसलमानों में रोष फैल गया। सैकड़ों लोग पत्थरों, पेट्रोल बमों से घरों पर हमले करने लगे। तनाव बढ़ते-बढ़ते स्थिति यह हो गई कि 33 पुलिसवाले और 5 नागरिक ज़ख्मी हो गए।
हिंसा के रंग
महाल के घरों और दूसरे प्रतिष्ठानों की छतों पर भगवा झंडे लहराते हैं। इस घटना के एक दिन बाद भी वहाँ की सड़कें और दीवारें फीके पड़ते गुलाबी, पीले और नीले रंगों से अटी पड़ी हैं। ये रंग तीन दिन पहले 14 मार्च को खेली गई होली के अवशेष हैं।
दंगों के निशानात चारों ओर देखे जा सकते हैं। काली राख़ बन गई कारें हैं, ऐंठे हुए फ़र्मों वाले दुपहिये हैं। गलियों में पत्थर और सीमेंट के फैले हुए टुकड़े हैं और हवा में राख़ की हल्की सी गंध भी है।
शेख की पड़ोसन एवं एक बूटीक की मालकिन स्वाति प्रशांत दहिकार ने इसे “अपने जीवन की सबसे दिल-दहलानेवाली घटना” बतलाया। खुद को और अपनी 21 साला बेटी आस्था को भी दंगाइयों से बचाने की कोशिश करती हुई दहिकार बताती हैं, “उस रात की बात करते ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस डर से कि किसी समय कुछ भी हो सकता है, मैं पूरी रात सो नहीं पायी।“
अपने घर के हाल में, जो उनके व्यवसाय का कारख़ाना भी है, बैठी दहिकार कहती हैं, “भीड़ ने मेरा कूलर उखाड़ फेंका और फिर खिड़की से पत्थर और काँच के टुकड़े फेंकने लगे। उन्होंने मेरे दरवाजे पर लातें मारीं, फिर उसपर लाठियों और छड़ों से हमले किए। कुछ दंगाई पैदल थे, कुछ बाइक्स पर और उन सबने अपने चेहरे ढंके हुए थे। हाँलाकि यह सब दस मिनट में खत्म हो गया लेकिन माहौल को दहशहतजदा कर गया। टीवी पर मराठी न्यूज़ चैनल पर इस घटना के विडियो-फुटेज आ रहे थे, उसे देखने का इशारा करते हुए वह खुद कांप रही थी।
दहिकार और पुलिस के मुताबिक करीब 7.30 बजे बोरियों में पत्थर, कुछ छोटे-छोटे पैकेट और पेट्रोल की कुछ बोतलें भर कर भीड़ उस इलाके में घुसी। दहिकार बताती हैं, “जैसे ही हमारी लोकलिटी के लोग इकट्ठा होकर अपनी सुरक्षा में पत्थर और डंडे फेंकने लगे, वैसे ही भीड़ ने जवाबी हमला कर दिया।“
दंगाई महाल से निकलकर नागपुर के ही दूसरे इलाके हसनपुरी में चले गए। एक गृह-स्वामिनी सीमा गुप्ता कहती हैं कि वे दहिकार के घर से सिर्फ 4 किमी दूरी पर स्थित हसनपुरी में रात के लगभग 10.30 बजे पहुंचे।
घर के बाहर के जले हिस्सों को दिखाते हुए वह आगे कहती हैं कि सड़क चौड़ीकरण परियोजना के अंतर्गत उनकी बहुमंज़िली इमारत का कुछ हिस्सा पहले ही गिरा दिया गया था। “दंगाइयों ने यही काम दुबारा किया। उन्होंने मेरे घर के आगे खड़ी दर्जनों गाड़ियों को जला दिया। हमें डर इस बात का था कि कहीं इस आग की लपटें हमारे घरों के अंदर न आ जांय।“
वहाँ के निवासी कहते हैं कि पुलिस दंगा-नियंत्रण के लिए तैयार ही नहीं थी। चिटनीस पार्क के रहनेवाले किसान, सुनील पेशने जिनकी कार को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया था, ने बताया कि, “पुलिस बहुत देर से आई और आई भी तो ऐसा लग रहा था हालात को संभालने के लिए वह ठीक से तैयार ही नहीं थी। वे तो घरों में छुप गए थे। जिस समय दंगाई गलियों को रौंद रहे थे उस समय कम से कम छ: अधिकारी मेरे ही घर में छुपे थे।“
एक फिल्म, एक शहँशाह और एक मकबरा
दंगों के एक दिन बाद महाराष्ट्र के मुख्य-मंत्री, देवेंद्र फडनवीस, जो नागपुर दक्षिण-पश्चिम से विधायक भी हैं, ने संभाजी महाराज के जीवन पर बनी हिन्दी फिल्म छावा को इन दंगों के लिए जिम्मेदार बताया। राज्य की विधान-सभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि संभाजी महाराज पर औरंगजेब द्वारा की गई क्रूर प्रतारणा का इस फिल्म में जो जीवंत चित्रण किया गया है उसने उस मुग़ल सम्राट के प्रति ‘लोगों में क्रोध की आग’ भर दी थी। उन्होंने आगे कहा कि “प्रतीत होता है कि यह एक सुनियोजित हमला था। लोगों को कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए था।“
छावा 14 फरवरी को सिनेमा-घरों में रिलीज की गई थी और अब तक रु0 550 करोड़ की कमाई कर चुकी है। लक्ष्मण उटेकर द्वारा निर्देशित इस फिल्म पर दर्शकों की जबर्दस्त प्रतिक्रिया आई है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वाइरल हुआ है जिसमें इस फिल्म के किसी भावुक दृश्य के दौरान एक आदमी सिनेमा के पर्दे को फाड़ता दिखाई दे रहा है। एक दूसरे वीडियो में एक प्रशंसक सिनेमा हाल में घोड़े पर सवार “हर हर महादेव” के नारे लगाता दिखाई दे रहा है।
सपा सांसद अबू आज़मी ने 3 मार्च को विधान-सभा परिसर में मीडिया से बात-चीत में इस फिल्म को ‘ऐतिहासिक रूप से गलत’ बताते हुए पहली बार विवाद पैदा कर दिया था। उनका कहना था कि औरंगजेब कोई ‘क्रूर प्रशासक’ नहीं था और यह कि उसने ‘कई मंदिरों का निर्माण कराया था’। मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज़ कर लिया। अबू आज़मी को पूरे बजट-सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया।
लेकिन गुस्सा यहीं शांत नहीं हुआ। 7 मार्च को शिवाजी महाराज के एक वंशज उदयनराजे भोंसले, जो सतारा से सांसद भी हैं, ने सतारा में मीडिया से बात-चीत के दौरान औरंगजेब की मज़ार को ढहाने का आह्वान कर दिया। उसके कुछ दिन बाद फड़नवीस ने एक समारोह में कहा कि उनकी भी भावनाएं भोंसले के साथ हैं पर यह मकबरा भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है इसलिए इसको ढहाने के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।
मुख्यमंत्री के ताज़ातरीन बयान कि दंगे छावा द्वारा प्रेरित थे, पर प्रतिक्रिया देते हुए आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के महाराष्ट्र-अध्यक्ष इम्तियाज़ जलील ने कहा कि, “छावा का प्रचार खुद सरकार ने किया है। इस फिल्म को देखने के लिए पूरे मंत्रिमंडल को सिनेमा हाल ले जाया गया था। अब फड़नवीस साहब हालिया हिंसा के लिए उसी फिल्म को दोषी ठहरा रहे हैं। और दूसरे बहुत से अहम मसले हैं जिन पर बहस की जरूरत है पर संसद और विधान-सभा औरंगजेब पर बहस में मुब्तिला हैं। जब भाजपा केंद्र और राज्य दोनों में सत्ता में है तो वे इस प्रकार की गंदी राजनीति क्यों कर रहे हैं?”
खबर है कि फिल्म छावा की स्क्रीनिंग लोकसभा में भी किया जाना तय किया गया है।
छत्रपति संभाजीनगर जिले, जहां औरंगजेब का मकबरा स्थित है, के एक ड्राईवर का कहना है कि वह अपने 10 साला बेटे को फिल्म दिखाने इसलिए ले गया कि हर मराठी के लिए यह कहानी जानना जरूरी है। वह बताता है, “फिल्म देखकर मेरा बेटा बहुत उत्तेजित हो गया था। तो उससे मैंने कहा कि यह सिर्फ बीते कल की एक कहानी है। पर जब वह बड़ा हो जाएगा तो खुद तय कर लेगा कि उसे किस पक्ष के साथ खड़ा होना है।“
अग्नि शमन
यह हिंसा एक ऐसे शहर में हुई है जिसका लोकसभा में प्रतिनिधित्व केंद्रीय परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी करते हैं, पुलिस ने इस शहर के 11 क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा दिया है।
अभी खबर मिली है कि नागपुर शहर से कर्फ़्यू पूरी तरह से हटा लिया गया है।
20 मार्च को नागपुर से कर्फ़्यू आंशिक रूप से हटाया गया था। पुलिस आयुक्त रविंदर सिंघल कहते हैं कि पुलिस ने 13 प्राथमिकी दर्ज़ की है और 99 लोगों को फिलहाल गिरफ्तार किया गया है जिनमें माइनारिटी डेव्लपमेंट पार्टी के नगर प्रमुख फ़हीम खान भी शामिल हैं। खान के ऊपर गड़बड़ी के दौरान सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने और राजद्रोह का अभियोग लगाया गया है। पुलिस का यह भी आरोप है कि हिंसा के दौरान एक महिला कांस्टेबल के साथ यौन-दुर्व्यवहार किया गया था।
पुलिस का कहना है कि नागपुर के हालात सामान्य करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि यह आरएसएस का मुख्यालय है जो इस वर्ष अपनी शताब्दी मना रहा है, या फड़नवीस और गडकरी दोनों ही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि इसलिए भी कि हिन्दू कैलेंडर के पहले दिन गुड़ीपड़वा के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मार्च को इस जिले का दौरा कर रहे हैं। मोदी इस दिन आरएसएस द्वारा संचालित होनेवाले माधव नेत्र चिकित्सालय की आधारशिला रखेंगे। वह संभवतः आरएसएस नेताओं, के0बी0 हेड्गेवार और एम0एस0 गोलवलकर को समर्पित हेड्गेवार स्मृति मंदिर भी जाएँगे। प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद उनकी और किसी पदासीन प्रधानमंत्री की भी इस स्थल पर यह पहली यात्रा होगी।
हांलाकि वीएचपी ने चादर के जलाए जाने में अपनी किसी तरह की संलिप्तता से इंकार कर दिया है, पर पुलिस का कहना है कि उसके पास वीडियो सबूत हैं। स्थानीय नेताओं का भी आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने चादर में आग लगाई थी। तुर्रा यह कि फड़नवीस ने विधान-सभा में कुरान की आयतें लिखी किसी चादर के जलाए जाने से सिरे से इंकार कर दिया है।
एक वीडियो संदेश में वीएचपी के महासचिव ने कहा है कि, “बजरंग दल कार्यकर्ताओं के घरों पर हमले हुए हैं। हिन्दू समुदाय की बस्तियों में मुस्लिम-भीड़ ने कई घरों को निशाना बनाया, और यहाँ तक कि महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया। हम इन सब की कड़ी निंदा करते हैं। यह अत्यंत लज्जास्पद है कि एक ओर तो यह झूठ फैलाया गया कि हिन्दू समुदाय के लोगों ने एक समुदाय के पवित्र ग्रंथ में आग लगाई और दूसरी ओर दंगा भड़काने के घृणित प्रयास किए गए।“ उन्होंने आगे कहा कि सभी समाज-विरोधी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
नागपुर के एक एआईएमआईएम नेता शकीब-उर-रहमान कहते हैं, “एक मुसलमान के तौर पर हमें औरंगजेब का पुतला जलाए जाने पर कोई ऐतराज नहीं है। लेकिन कुरान की आयतें लिखी चादर को निशाना बनाए जाने में क्या तुक है?
यद्यपि राज्य सरकार ने इस हिंसा पर “पूर्व-नियोजित” होने का बिल्ला चिपका दिया है पर पुलिस का कहना है कि मात्र कुछ ही घंटों में इसे नियंत्रित कर लिया गया था और शहर के बाकी हिस्सों में फैलने से बचा लिया था। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार यह सुनिश्चित करने के लिए, कि हिंसा राज्य के दूसरे शहरों और कस्बों और खासतौर पर संभाजीनगर में न फैल जाय, पूरे राज्य की पुलिस को सतर्क कर दिया गया था।
विवाद का केंद्रविंदु
छत्रपति संभाजीनगर जिले में बैरीकेडों से घिरा हुआ औरंगजेब का एक बेहद सादा सा मकबरा ही इन सारे विवादों का जड़ है। जिला पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) विनय कुमार राठोड़ बताते हैं कि पिछले आठ दिनों से इसकी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पर्यटकों का आना जारी है। उस दिन दोपहर में एएसआई के लोगों ने इस मकबरे को टिन की चादरों से ढँक दिया था।
पुलिस और स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स के लोगों और वैन में बैठे होमगार्डों ने पूरे दिन इस इमारत के बाहर अपनी सेवा दी। एसआरपीएफ़ के एक जवान का कहना था कि, “यहाँ कोई मसला नहीं है पर हमें अपना काम तो करना ही है। एहतियात इलाज़ से बेहतर है।“
राठोड़ कहते हैं, “हमने पर्यटकों और दर्शकों को मकबरे पर फूल चढाने से रोक दिया है। 19 मार्च से 18 अप्रैल तक के लिए हमने इस क्षेत्र में ड्रोन का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया है।“
यहाँ नियुक्त सुरक्षा जवान रोजाना मकबरे के खादिम और दीगर मुलाज़िमीन के साथ सहरी और इफ्तारी में शिरकत करते हैं।
इस मकबरे के खादिम 31 साला परवेज़ कबीर अहमद हैं। अहमद का खानदान छ: पुश्तों से मकबरे की खिदमत कर रहा है। वह बताते हैं कि “औरंगजेब का जन्म 1618 में दाहोद (वर्तमान गुजरात) में और मृत्यु 1707 में हुई थी। उनका शव यहाँ लाया गया था। वह चाहते थे कि एक आम आदमी की तरह उन्हें भी खुले आसमान के तले दफनाया जाय और उनकी मज़ार पर कोई मकबरा न बनाया जाय। 1921 में जब ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड कर्ज़न ने यहाँ का दौरा किया तो उसे मज़ार की हालत देखकर बड़ी निराशा हुई और उसने हैदराबाद के निज़ाम से कहा कि इसकी फर्श को संगमरमर और पुश्त को जालीदार संगमरमर के पर्दे से सजा दिया जाय।“
इसी परिसर में औरंगजेब के उस्ताद ख्वाजा सईद ज़ैन-उद-दीन शीराजी का भी मकबरा है। यह हिस्सा एक निजी मिल्कियत है और इसकी देख-रेख का खर्च पर्यटकों के दान से निकलता है। इसके खादिम 58 साला जावेद अहमद कहते हैं, “यहाँ आनेवाले ज़्यादातर लोग उत्साही इतिहासकार और दिमाग़ी रूप से धर्म-निरपेक्ष होते हैं। यहाँ पूरे साल अधिकांशत: गैर-मुस्लिम पर्यटक ही आते हैं। वे इस कब्र पर फूल और चादर चढ़ाते हैं।“
परवेज़ के चाचा और औरंगजेब के मकबरे बड़े खादिम 65 साला निसार अहमद इसी मकबरे के पीछेवाले बाजारगली गाँव में रहते हैं। उन्हें इस बात का सख्त अफसोस है कि ऐसे समय जबकि यह इलाका तगड़ी पुलिस सुरक्षा में है, वह घुटनों का ऑपरेशन कराके बैठे हैं।
वह कहते हैं, “खुल्दाबाद हमेशा से एक धर्म-निरपेक्ष समाज रहा है जहां लोग पुश्तों से समरसता में रहते आए हैं। यह सब इसलिए हो रहा है कि कुछ शरारती लोग मज़हबी फसादात फैलाना चाहते हैं। इस तरह के प्रदर्शनों की अगली कतारों में हमेशा गरीब और बेरोजगार नौजवान ही होते हैं। और वही मरते हैं या ज़ख़्मी होते हैं, आग लगानेवाले लोग नहीं।“
अहमद खासतौर पर इस विवाद के मौके को लेकर चिंतित हैं। वह कहते हैं कि, “ये शरारती लोग इस पाक महीने में हमलोगों को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर वे मुग़लों के सारे सबूत मिटाना चाहते हैं तो उन्हें इस देश का इतिहास फिर से लिखना पड़ेगा। यह बहुत खतरनाक है।“
इससे कुछ ही मीटर दूरी पर एक मराठा-बहुल क्षेत्र है, लहानियाली। 15 साल के दीपक लागड़ कहते हैं, “मैं और मेरे दोस्त सालों से सूफी संत ज़र ज़री ज़र बख्श की यौम-ए-शहादत पर लगनेवाले उर्स में जाते रहे हैं। हर बार उनकी माएं शीर कोरमा बनाती हैं और हमें दावत देती हैं। जब हमलोग गणेश चतुर्थी या दिवाली मनाते हैं तो मेरी माँ उन लोगों को बुलाती हैं।“
एक 40 साला स्टेशनरी की दुकनवाले कहते हैं कि उन्होंने छावा देखी है और मानते हैं कि संभाजी के साथ जो क्रूरता हुई उसका बहुत छोटा सा हिस्सा ही फिल्म में दिखाया गया है। वह पूछते हैं, “जब लोग केवल 10 प्रतिशत हिंसा देखकर पागल हुए जा रहे हैं तो यदि वे मराठी साहित्य पढ़ लेंगे तो क्या करेंगे? कुछ समाचार चैनल ये झूठी खबर चला रहे हैं कि खुल्दाबाद में हिन्दू-मुस्लिम दंगा हो गया है। क्या आपको यहाँ ऐसा कुछ दिखाई दे रहा है? नेतालोग केवल राजनीति खेल रहे हैं और लोगों को एक दूसरे से लड़ा रहे हैं।“