सुशील सुमन
पिछले सप्ताह 15 जनवरी को तुर्की के महाकवि नाज़िम हिक़मत का जन्मदिवस बीता है। प्रेम और क्रान्ति के इस अनूठे कवि की आधुनिक विश्व कविता में एक ख़ास जगह है। इनकी कविताओं में जैसी गहन संवेदना और प्रखरता देखने को मिलती है, उसकी जड़ें वैचारिक दृढ़ता और अतिशय संघर्ष से भरे उनके जीवन में है। मात्र 61 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। उनमें से प्रारंभिक सोलह-सत्रह वर्षों को यदि छोड़ दें तो उनका लगभग पूरा जीवन अतिशय पीड़ा और यातना से जद्दोजेहद करते बीता। बार-बार जेल जाना पड़ा। बार-बार देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा। लेकिन इन यातनाओं को झेलने के बावजूद ज़िंदादिली और संघर्ष का रास्ता उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।
सन् 1902 में उनका जन्म हुआ। उस दौर में इस्तांबूल ब्रिटिश-अमरीकी साम्राज्यवाद के शिकंजे में था। किशोरावस्था में ही नाज़िम हिक़मत पर उनकी माँ की शिक्षा-दीक्षा और राष्ट्रवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव पड़ा और वे क्रान्तिकारी आंदोलनों में भाग लेने लगे। किसानों-मजदूरों के बीच कविताओं का पाठ करना, जनजागरण करना उन्होंने सोलह-सत्रह बरस की अवस्था में ही शुरू कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि सरकार उनके पीछे पड़ गयी। 1922 में जब उनकी अवस्था बीस वर्ष की थी, नाज़िम हिकमत का विवाह हुआ, लेकिन जल्दी ही यह शादी टूट गयी। इसी वर्ष उन्हें तुर्की छोड़कर मास्को जाना पड़ा। पहली बार की इस रूस यात्रा में वे वहाँ लगभग दो वर्ष रहे। इस दौरान उन्हें वाम राजनीति और वैचारिकी के सघन सम्पर्क में आने का अवसर मिला। इस दौरान उनकी राजनीतिक चेतना और वैचारिकी प्रखर हुई। 1924 में जब वे तुर्की वापस लौटे और एक वाम विचारधारा से जुड़ी पत्रिका में काम करने लगे, तभी से उनकी जेल यात्रा का सिलसिला शुरू हो गया। 1926 में वे फिर मास्को गए, जहाँ रूस के प्रसिद्ध कवि मायकोवस्की के सान्निध्य का उन्हें अवसर मिला। उनकी काव्य-यात्रा पर मायकोवस्की का गहरा असर पड़ा। फिर 1928 में जब वे वापस स्वदेश आए तो उन्हें एकबार फिर से जेल में बन्द कर दिया गया। जेल की यह यातना कभी रुक-रुककर, कभी लगातार तबतक चलती रही, जबतक उन्होंने मजबूरन 1951 में हमेशा के लिए अपना देश छोड़ नहीं दिया। इस बीच उनकी हत्या के भी कई प्रयास किये गए। इस अस्त-व्यस्त जीवन में उन्हें पाँच शादियाँ करनी पड़ी, क्योंकि जिस पीड़ादायी परिस्थिति में और जिस तरह का संघर्षपूर्ण जीवन वे जी रहे थे, ऐसे में किसी भी शादी का कामयाब हो पाना बेहद मुश्किल था। यही कारण है कि नाज़िम हिकमत के जीवन में यह दुःख भी बराबर आता रहा। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए इस बात का सहज ही अंदाज़ा होता है कि संयोग से ज़्यादा वियोग उनके हिस्से में रहा, लेकिन उस वियोग का काव्यात्मक रूपान्तरण उनके यहाँ रुदन के रूप में नहीं है, बल्कि उनके भीतर काव्य-शक्ति और जीवन-शक्ति के रूप में है।
तरह-तरह के भीषण दमन और विविध प्रकार की परेशानियों से घिरे रहने के बावजूद नाज़िम हिक़मत के काव्य संसार की सम्पन्नता चकित करती है। प्रेम, संवेदना, साहस और आशा की भावनाओं से उनकी कविताएँ आपूरित हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए यह एहसास होता है कि प्रेम कितनी अद्भुत शय है। यदि कोई व्यक्ति सचमुच का प्रेमी जीव हो, प्रेम की भावना पर उसका सच्चा भरोसा हो तो उसे तमाम कष्टों के बीच भी जीवन जीने के लिए अपार शक्ति मिलती है। ‘तुम्हारी वजह से’ शीर्षक कविता में नाज़िम हिकमत लिखते हैं-
“शुक्रिया तुम्हारा कि मैं उम्मीद के शहद पर जीवित हूँ
मेरा दिल धड़कता है तो इसकी वजह तुम हो
तुम्हारी वजह से मेरी बेहद तन्हा रातें भी
तुम्हारी दीवार पर फैली
किसी अनातोलियाई दीवारदरी की तरह मुस्कराती हैं
सच्चे और अच्छे मनुष्य के लिए प्रेम जितनी अच्छी शय है, झूठ और नफ़रत के सौदागरों के लिए यह उतनी ही त्याज्य है। प्रेम हमेशा किसी भी तरह की सत्ता को नहीं मानता, इसलिए चाहे पितृ सत्ता हो या राज सत्ता हो या धर्म सत्ता हो, हर तरह की सत्ताएँ प्रेम के ख़िलाफ़ खड़ी रहती हैं। यही कारण है कि पूरी दुनिया में हमेशा से इश्क़ के दुश्मन भरे रहे हैं। नाज़िम हिक़मत जैसे प्रेम और क्रान्ति के उद्गगाता के लिए यह मुनासिब ही था कि वे प्रेम-पथ के राहियों को प्रोत्साहित करें, उनके भीतर शक्ति का संचार करने वाली कविताएँ लिखें। नाज़िम हिक़मत ने ऐसी अनेक कविताएँ लिखीं, जिसमें प्रेम की महत्ता को उन्होंने मुखरित किया। ऐसी ही उनकी एक कविता है- ‘रोमियो-जूलियेट के बारे में’। इस कविता की शुरूआत में वे लिखते हैं-
जुर्म नहीं है कोई रोमियो या जूलियेट होना
इश्क़ के लिए मरना कोई जुर्म नहीं है
मुद्दा ये है कि क्या तुम रोमियो
या कि जूलियेट हो सकते हो-
यानी कि कुल मामला तुम्हारे दिल का है
मिसाल के तौर पर ; मोर्चों पर लड़ना
या कि उत्तरी ध्रुव के खोज अभियान पर जाना
या कि ख़ुद अपनी नसों में किसी नये सीरम का परीक्षण करना-
इस तरह मरना क्या जुर्म होगा?
जुर्म नहीं है कोई रोमियो या जूलियेट होना
इश्क़ के लिए मरना कोई जुर्म नहीं है
नाज़िम हिक़मत जिस गहन संवेदना से प्रेम को सींचने वाली कविताएँ लिखते हैं, ठीक उसी गहराई से क्रान्ति को सींचने वाली कविताएँ लिखते हैं। दरअस्ल प्रेम और क्रान्ति एक-दूसरे को परस्पर सींचते हैं। चूँकि नाज़िम हिक़मत स्वयं दमन सह रहे थे और संघर्ष में सीधे शामिल थे, इसलिए वे क्रान्ति के बाहर रहकर क्रान्ति की कविताएँ लिखने वाले कवियों की तुलना में ज़्यादा विश्वास के साथ इन मुद्दों पर अवाम को सम्बोधित कर सकते थे और जनता का भरोसा हासिल कर सकते थे। साधारण जन के भीतर साहस और आशा का संचार करते हुए, ‘संदेसा’ शीर्षक कविता में वे लिखते हैं-
मेरे हमदम
मरीजो,
तुम अच्छे होगे- भले-चंगे होगे,
दर्द और दूसरी तकलीफें दूर होंगी
आराम आयेगा
आहिस्ता-आहिस्ता, गर्मियों की किसी
गुनगुनी शाम के मानिंद
हरी-भरी शाखों से उतरता हुआ
मेरे हमसफ़र
मरीजो,
थोड़ा बर्दाश्त करना सीखो, हिम्मत बाँधो
दरवाज़े के बाहर इन्तिज़ार करती
मौत नहीं है
ज़िन्दगी है
गहमागहमी से भरी समूची कायनात है
दरवाज़े के बाहर,
तुम अपने मरीजी बिस्तरों से उठोगे
और चलोगे
महसूस करोगे फिर तुम भरपूर
नमक-रोटी का स्वाद, और धूप
यूँ तो मैंने नाज़िम हिक़मत की छिटपुट कविताएँ ही पढ़ी हैं। कुछ कविताएँ वीरेन डंगवाल के अनुवाद में, कुछ मंगलेश डबराल के अनुवाद में और कुछ सुरेश सलिल के अनुवाद में। कुछ और अनुवादकों का काम भी पढ़ा होगा, लेकिन अभी उनका नाम ध्यान नहीं आ रहा है।नाज़िम हिक़मत की कविताओं के इस सीमित अध्ययन ने भी मुझे उनकी कविताओं का मुरीद बना दिया। बतौर हिन्दी पाठक नाज़िम हिक़मत की कविताओं को हिन्दी में उपलब्ध कराने वाले सभी अनुवादकों के प्रति मैं आभार प्रकट करता हूँ। इस लघु टिप्पणी के आख़िर में उनकी उस कविता का उल्लेख करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ, जिस कविता के माध्यम से पहली बार मुझे नाज़िम हिक़मत को जानने का मौका मिला था। उस कविता की मेरे दिल में एक ख़ास जगह है। वह बहुचर्चित कविता थी-
सबसे सुन्दर समुद्र अभी तक लाँघा नहीं गया
सबसे सुन्दर बच्चा अभी बड़ा नहीं हुआ
हमारे सबसे सुन्दर दिन अभी देखे नहीं हमने
और सबसे सुन्दर शब्द जो मैं तुमसे कहना चाहता था
अभी कहे नहीं मैंने
(यहाँ उद्धृत अधिकांश तथ्य और कविताएँ, सुरेश सलिल द्वारा चयनित और अनूदित नाज़िम हिक़मत की कविताओं के संकलन से।)
लेखक सुशील सुमन, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी विभाग
कोच बिहार पंचानन बर्मा विश्वविद्यालय, कोच बिहार, पश्चिम बंगाल।
सम्पर्क: Email- apkasusheel@gmail.com