बलिया जिला के लोगों को इस पर बहुत फक्र है कि उनका जिला बाग़ी जिला है।
बाग़ी इसलिए कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के लोग मुम्बई में कांग्रेस नेताओं की गिरफ़्तारी की खबर सुनते ही सड़क पर उतर गए और बलिया कोआजाद घोषित करते हुए स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चित्तु पांडेय के नेतृत्व में अपनी सरकार बना ली। इसके पहले 1857 में में जब बलिया गाजीपुर जिले का परगना था, विद्रोह का प्रमुख केन्द्र बना रहा। वीर कुंवर सिंह और उनके छोट भाई अमर सिंह ने बलिया,गाजीपुर और आजमगढ़ में अंग्रेजों के खिलाफ लम्बा छापामार युद्ध चलाया। बलिया के ज्योधर सिंह के 900 विद्रोहियों के दल ने वीर कुंवर सिंह के साथ मिलकर व्रिदोही गतिविधियों को तेज किया। वे अपने दल के साथ बलिया से लेकर बिहार तक छापामार लड़ाई लड़ते रहे।
आजादी की लड़ाई में बाग़ी तेवर दिखाने के कारण बलिया लोक में बागी बलिया के नाम से मशहूर हुआ।
इस जिले के चन्द्रशेखर देश के प्रधानमंत्री बने जिन्हें अपने प्रारम्भिक राजनीतिक जीवन में ‘ युवा तुर्क ‘ कहा गया था।
बलिया का बाग़ी तेवर जब तब दिख जाता है। योगी सरकार ने मार्च 2022 में बोर्ड परीक्षा का पेपर लीक होने की खबर छापने पर तीन पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया तो यहां के पत्रकार और लोग सड़क पर उतर आये। पत्रकारों ने एक महीने तक लगातार आंदोलन चलाया। एक दिन के लिए बलिया बंद रहा। आंदोलन से परेशान जिले केडीएम खुद तबादला करा कर चले गए।
गोदी मीडिया के दौर में प्रतिरोध का यह विरल वाकया बाग़ी बलिया में ही संभव हुआ।
बाग़ी बलिया की यह तासीर यहां के लोगों के मिजाज में अब भी दिखती है। बलिया का जिला प्रशासन अधिक मतदान के लिए लोगों को बाग़ी बलिया के गर्व का अहसास करा रहा है। एक आटो के पीछे यह स्टिकर दिखता है -‘
बाग़ी बलिया का पैगाम जरूर करें मतदान ’। एक पेट्रोल पम्प पर बैनर टंगा है-‘ बाग़ी बलिया तब्बे कहाई , घर घर से जब वोट दियाई। ’
वीर कुंवर सिंह चौराहे के पास राबड़ी का ठेला लगाए रोबदार मूँछों वाले व्यक्ति से पूछता हूँ -क्या माहौल है ? उनका जवाब था -माहौल ठीक हैं। यह पूछने पर कि किसका माहौल ठीक है तो उनका जवाब था- मेरा माहौल अच्छा है। और किसका होगा ?
जिले में प्रवेश करते ही बलिया के इस अलग मिजाज से रूबरू हो गए। बलिया कलेक्ट्रेट गेट के पास सत्तू की लस्सी की दो दुकान चलाने वाले सभी व्यक्तियों को ‘ आईं प्रधान जी, आई आई , शुद्ध सतुई की लस्सी पीं ‘ की पुकार लगा रहे थे। यह पूछने पर कि सबको प्रधान जी काहे बोल रहे थे तो उनका जवाब था कि ‘ इ कहले में हमके ठीक लगेला। ‘
दोनों दुकानदरों ने सत्तू की लस्सी और नीबूं पानी को ‘ कोल्ड वार ‘ के खिलाफ जंग घोषित कर रखा है और उनके बारे में स्थानीय अखबारों में छपी खबरें यहां साया हैं।
बलिया में जहां भी बात करें लोग इसी अलग अंदाज में मिलते हैं। अपनी राय खुलकर प्रकट करते हैं। चट्टी-चैराहों व चाय की दुकानों में अलग-अलग सोच व विचार के लोग एक साथ बैठे लेते हैं और तीखी बहसें हंसी-ठिठोली व तंज के साथ कर लेते हैं।
बलिया से बक्सर की तरफ बढ़ने पर चितबड़ा गाँव के पास सड़क पर नाशपाती का ठेला लगाए निषाद बिरादरी का युवक बातचीत में कहता है कि यहां से सनातन बाबा जीत जाएँगे। पिछले बार भी जीत गये थे लेकिन जोर जबरदस्ती से हरा दिया गया। इस बार लोग भरपाई करेगा। उनका कहना था कि हमारे गांव में भाजपा काभी वोट है। उन्होंने इशारों में कहा कि निषाद बिरादरी में भाजपा का वोट ज्यादा है लेकिन जागरूक लोग बदलाव के लिए वोट कर रहा है।
गंगा तीरे के पोलिटिकल एक्सपर्ट
आगे बढ़ने पर बैरिया गांव के लोग सड़क किनारे चाय की दुकानपर चुनावी चर्चा करते मिले। गांव की ओर जाने वाले रास्ते पर शहीद नर्वदेश्वर राय की स्मृति में गेट और उनका स्मारक बना हुआ है।
यहां चर्चा दो दिन पहले सपा से भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री नारद राय पर केन्द्रित थी जो अगले एक घंटे में बलिया से लेकर गाजीपुर, घोसी,बक्सर की सीटों पर चुनावी हालात, बेरोजगारी, महंगाई, लोकतंत्र, संविधान से होते हुए अलग-अलग बिरादरी के चुनावी पोजीशन तक चलती रही।
यहां पर बैठे लोगों में भूमिहार, दलित, यादव बिरादरी के थे। चाय के दुकानदार वैश्य थे जिसके बारे में शैलेन्द्र राय का कहना था कि वे मोदी की जाति के हैं लेकिन मोदी अपने गरीब जाति वाले लोगों के बजाय अडाणी को मदद करते हैं।
इस जुटान के केन्द्र में शशि शेखर राय थे जो ‘ पोलिटिकल एक्सपर्ट ’ की तरह बात कर रहे थे और उनके राजनीतिक मुहावरे कभी उत्तेजना भरते तो कभी लोगों को हंसी का ठहाका लगाने पर मजबूर कर देते। यहां बैठे एक युवा ने जैसे ही कहा कि ‘ नारद राय पल्टी मार दिहलन, अब के के का कहल जाई ‘ शशि शेखर राय ने अपनी विशेषज्ञ टिप्पणी दी- सात दिन साइकिल के लिए वोट मंगलन। अब तीन दिन कमल के फूल के लिए घूमिइन। भाजपा वाले उनके भूमिहारन के गांव में लगइहें। ’
शैलेन्द्र राय का विश्लेषण था कि नारद राय एक महीना पहले से भाजपा में जाने का जुगाड़ लगा रहे थे। वे दबाव में गए हैं, मन से नहीं गए हैं। ‘
इसी वक्त साइकिल से आए वर्मा जी को शैलेन्द्र राय बुलाने लगे और कहा कि ‘ आपों कुछ वक्तव्य दिहल जा । ‘ वर्मा जी ने सड़क किनारे खड़े-खडे तंज कसा -नारद राय के अइला से अब सब कमल के फूले पर चढ़ जईहें। अइसन अइसन लोग बात करेलन। भूमिहारन में एतना पकड़ बाटे तो काहें आपन चुनाव हार गइलन। ’
नारद राय के बाद चर्चा बलिया के आस-पास के सीटों की तरफ मुड़ गई। शैलेन्द्र राय ने कहा- बक्सर में भी कस के लड़ाई बा। प्रशांत किशोरवा एगो धांसू प्रत्याशी दे दिहले बा। उ आईपीएस की नौकरी छोड़ के चुनाव लड़त ता। ऊ भाजपा के नुकसान करत बा। ’
शशि शेखर राय अब घोसी का चुनावी हाल बताने लगे। वह घोसी के सपा प्रत्याशी के बारे में टिप्पणी करते हैं- उ नक्षत्र के बली हउअन। देखीं ए बेरी शायद निकल जाएं लेकिन अंसारी परिवार का आशीर्वाद बिना जितल मुश्किल रही। गाजीपुर के भाजपा प्रत्याशी पारस राय के बारे में उनकी संक्षिप्त टिप्पणी थी-वे शिक्षा कारोबारी हैं । बलिया सीट के बारे में शशि शेखर राय का कहना था कि ‘ सनातन बाबा बहुत नीमन आदमी हैं । पिछले बार जीतल रहलन। थपड़ा मार के और गाड़ी के शीशा फोड़ के उनके हरा देहल गईल। हम ए बेरी भी उनही के वोट देब लेकिन हमार घर वाले कमल के फूल पर दिहें।
जब हम उठने लगे तो बोले-गंगा तीरे बैठें हैं। देखीं कइसन बढ़िया हवा आवत बा। एक और चाय पीजिए। यही गंगा तीरे के हवा लखनऊ और दिल्ली जाई। बाग़ी बलिया ने करवट ले लिया है। हर जगह करवट है। ’
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी सनतान पांडेय और भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र सिंह मस्त के बीच जोरदार मुकाबला हुआ था। सनातन पांडेय 15519 वोट से हार गए। हार के बाद उन्होंने मतगणना में धांधली का आरोप लगाया था।
इस चुनाव में भाजपा ने वीरेन्द्र सिंह मस्त का टिकट काट पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को टिकट दिया है। नीरज शेखर 2014 का लोकसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़े थे। वे भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह से 139,434 मतों से हार गए। बाद में नीरज शेखर भाजपा में शामिल हो गए और राज्य सभा सदस्य बन गए।
अब चर्चा ईवीएम की शुरू हो गई। शशि शेखर राय की टिप्पणी थी-कौनो ठीक नाहीं बा कि हम साइकिल के वोट देहीं और हमार वोट कमल के फूले पर चल जाय। ‘ बुजुर्ग राम समुझ चौधरी चर्चा में शामिल होते हुए बोले-‘अइसन नाहीं होेवे पाई। ऐ बेरी सुप्रीप कोर्ट निगाह रखले बा। हम रेडियो पर बीबीसी लंदन क समाचार सुनलीं। उ सही बात करेला। ‘
’ हमनी के एक बारी जोरन हईं, हमनन के ही दही जमावल जाई ‘
चर्चा में काफी देर से शांत बैठे शिव शंकर राम ने हस्तक्षेप करते हुए कहा-हमरे गांव में तीन हजार वोट बा। हमरी बिरादरी के 800 से उपर वोट बा। यहां वोट हथियो के बा लेकिन कुछ
लोगों का मन डोल रहल बा। उ लोग सोचत बा कि भाजपा कइसे परस्त हो। उनकर मानसिकता बनत बा कि हाथी पर रहले से भाजपा परस्त होई कि केहू और के देहले से होई। लेकिन एक बात पक्का बा। हमनी के वोटवा जोरन बा। हमनन के ही दही जमावल जाई। ’
दलित मतदताओं विशेषकर जाटव इस चुनाव में बंटे नजर आ रहे है। शिव शंकर राम की तरह कई दलित भाजपा को हराने के लिए वोट करने की बात कर रहे तो बहुत से लोग हार जीत की परवाह किए बिना हाथी के साथ रहने की बात कर रहे हैं। दलित मतदाताओं की यह उलझन जगह-जगह दिखी।
आगे बढ़ने पर बाबातर गांव के पास सड़क किनारे 1942 के शहीद शिव दहीन राजभर की प्रतिमा दिखी। सड़क उस पार बैठे दलित बस्ती के सुरेंद्र राम, विक्रमा राम ने बताया कि हर साल 30 अगस्त को यहां बड़ा कार्यक्रम होता है। नेता घोषणा कर चले जाते हैं लेकिन कुछ होता नहीं है। गांव में डिस्पेंसरी चलाने वाले मिश्रा जी ने कहा कि शहीद शिव दहीन राजभर का नाम जिला से आगे बढ़ नहीं पाया।
मिश्रा जी का आकलन था कि बलिया में पचास-पचास की लड़ाई है। बक्सर में भी यही स्थिति है लेकिन दोनों जगह भाजपा जीत जाएगी। उनका यह भी कहना था कि बक्सर में निर्दलीय प्रत्याशी आनन्द मिश्रा भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे है।
बाबातर गांव के कड़ौंजा टोले के लोग गंगा नदी की कटान से प्रभावित हैं। लोग बार-बार विस्थापित हुए हैं। विक्रमा राम ने कहा-ढाही वाला गाँव है। चार बार ढहे हैं। सरकार से कोई मदद नहीं मिलती। खेत बालू से पट गए हैं। मसूर, चना एक फसल हो जाता है। ‘
सुरेन्द्र राम और विक्रमा राम ने साफ कहा कि उनका समर्थन बसपा को है। सुरेन्द्र राम बोले-‘ हम लोग हाथी वाला हईं। सबके देख समझ गईंल बांटी। दूसरें के वोट दिहल जाला तब्बो लोग कहेला कि ई लोग हथिये के वोट देले होईअन। एही लिए न किसी को देना है न किसी को कुछ कहना है। अपने हाथी पर रहना है चाहे जीते या हारें । एक बात और जान लीं। हमन के केहू के दबाव में नाहीं बांटी न केहू दबाव बना पाई। हमार संगठन मजबूत बा।
’आधा गांव, टोपी शुक्ला, नीम का पेड़ जैसा चर्चित उपन्यास लिखने वाले डाॅ राही मासूम रजा के गांव गंगौली में नहर पटरी पर मिले दलित बजुर्ग ने सुरेन्द्र राम की तरह ही बात कही। उन्होंने कहा-‘ हम नहीं जानते कि हाथी से कौन खड़ा है। हम अपने घर में ही रहेंगे। इधर-उधर नहीं जांएगे।
’ गमछी के पीछे क्या है ‘
उजियारपुर के चौराहे पर चाय की दुकान पर भगवा व सफेद गमछा डाले सात-आठ लोग मिले। गर्मी से परेशान होकर दुकानदार घर चला गया था और यहां बैठे लोग चुनावी चर्चा में मशगूल थे। हमें देख भगवा गमछा सिर पर बांधे एक व्यक्ति यह कहते हुए चले गए कि आप लोग बैठिए। मोदी जी ने बहुत काम किया है। बलिया में भाजपा जीत रही है। ‘
उनके जाते भगौने के पास बैठा व्यक्ति बोला-उनके बात पर मत जाईं। इहां से सनातन बाबा आगे बाटें।
तभी गले में सफेद गमछा डाले आया व्यक्ति बोला-हमरी गावें में सबकर वोट बा। भले पांचे वोट केहू के मिले पर मिली। लेकिन एक बात हम कहब। जेकर गमछी पहिनी ओही के साथ रहीं जेकरा साथे रह दिल से रह। ‘
भगवा गमछा डाले युवा की तरफ इशारा करते हुए वे बोले-इ बसपा से भाजपा में आईल बाटें। केहू बताई कि ई कहां रहईन। हमके देखीं हमार सफेद गमछा ह। इ कौनो पार्टी के नाहीं ह। हमार वोटवा साइकिल पर बा। ‘
इस पर जय प्रकाश राम नाम के युवक ने जवाब देते कहा कि ‘ हम 2022 में भाजपा में आए। हमारे साथ बैठे व्यक्ति बसपा के सेक्टर अध्यक्ष हैं। उन्होंने पूरे गांव में वोट का आंकड़ा देते हुए कहा कि भाजपा इहां से निकल जाई। तभी एक व्यक्ति ने टिप्पणी की-बसपा के का बात करत हईं । ऐ बेरी बसपा के दुई टुकड़ा हो गईल बा। ‘
सफेद गमछी वाला एक बार फिर गमछे पर ज्ञान देने लगा। तभी पीछे से एक व्यक्ति ने कहा-‘ ए समय 42 डिग्री से 48 डिग्री मिल के डबल हो जात बा। उहे चढ़कर बोलत बा। ‘
यह बात हम लोगों को समझ में नाही तो उन्होंने संकेत देते हुए कहा-48 डिग्री त टेम्परेचर ह अउर 42 डिग्री नया ब्रांड ह। अब आप समझ लेईं। ‘
‘ महामहिम ’ के मंदिर दर्शन पर विमर्श
कठआ मोड के आगे से गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र शुरू हो जाता है। बलिया लोकसभा में गाजीपुर जिले की दो विधानसभा -मोहम्मदाबाद और जहूराबाद आते हैं। कठआ मोड के एक तरफ बलिया लोकसभा क्षेत्र है तो सड़क के दूसरी तरफ के गांव-कस्बे गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में आते हैं।
कठआ मोड़ पर चाय की दुकान पर बैठे लोगों में एक व्यक्ति अखबार पढ़ रहे थे तो दूसरे समोसा खा रहे थे। तभी काला चश्मा लगाए थुलथुल बदन वाले व्यक्ति ने यह कह कर चर्चा छेड़ दी कि ‘ आप लोग कहते हैं कि मोदी ने कोई काम नहीं किया है। देखिये इस सीजन में कितना ताजा मूली मिल रहा है। बीस रूपए में ताजा नेनुआ मिल जा रहा है। यह सब मोदी जी की ही तो देन है। ’
इस पर अखबार पढ़ रहे व्यक्ति ने तंज किया-ई सब मुरई, नेनुआ मोदिए जी तो उगइलें बाटें। अखबार पढ़िये ! महामहिम जी मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं। ’
चश्मे वाले इस पर तिलमिला कर बोले-काहें दुखाये लगल। पूजा उ करत बाटें दुख तोहरा बा। ‘
अखबार पढ़ रहे व्यक्ति का का जवाब आया-‘ काहे न तकलीफ हो। चुनाव के समय काश्मीर से इहां का करे आवत बाटें। वहां मंदिर नहीं थे क्या कि गाजीपुर चले आए। राज्यपाल पद की हिनाई करा रहे हैं। ‘
समोसे खा रहे व्यक्ति ने प्रतिकार किया-‘ सिन्हा जी कौन गलत काम कर रहे हैं। अब मंदिर भी न जाएं। ‘
तभी धोती कुर्ता पहले लम्बे कद वाले बुजुर्ग प्रवेश करते हैं। सब उनका ‘ जय समाजवाद ‘ कह कर स्वागत करते हैं। चश्मे वाला व्यक्ति उनको भी चिढ़ा देता है-‘ मोदी के हरावे खातिर 57 पार्टी लगल बा। ‘ अखबारे वाले झट से जवाब देते हैं-त भाजपा वाला अकेले लड़त बा का ? ओकर सथवन पार्टिया के भी गिन ल। ‘
अब चश्मे वाले ने मनोज सिन्हा की तारीफ शुरू की-उ अपने लड़का लड़किन खातिर त वोट नाहीं मांगत हवें। अनजान आदमी के टिकट धरा देहलन तब्बौ तोहके तकलीफ बा। ‘
चश्मे वाले व्यक्ति को समोसे वाले का समर्थन मिला-सिन्हा जी कील उखाड़े खातिर आइल हवन। ए बेरी कील उखाड़ के फिर गड़ा जाई। ‘
अखबार पढ़ रहे व्यक्ति अब बहस को निर्णयात्मक बनाते हुए बोले-‘ ई चुनाव में गाजीपुर अपने जगहे रही, बलिया बदल जाई। बलिया में पंडित जी अइहें। ‘
‘ जय समाजवाद वाले ‘ मेज पर मुक्का मारते हुए खड़े गए-जहूराबाद और मोहम्मदाबाद डेढ लाख से बढ़त नाहीं देहलस तब चार के मिलिह। ‘
यह पूछने पर कि गाजीपुर में क्या होगा, उनका जवाब था-वहां इतना मंत्री कुल आवत हवें। भगवान जाने क्या होगा ?
(इस रिपोर्ट का संपादित अंश द वायर हिन्दी में प्रकाशित हुआ है)