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सुरजीत सिंह पातर की कविताओं में ज़माने का दर्द बहुत ही शिद्दत से उभरता है

अमरजीत कौंके


पंजाबी के अज़ीम शायर सुरजीत पातर का जन्म 1945 में पंजाब के जालंधर जिला के गांव पत्तड़ कलां में हुआ। उन्होंने अपना तख़ल्लुस अपने गांव के नाम पर पातर रखा।

1960 में उनकी पहले कविता संग्रह का प्रकाशन हुआ और  ‘हवा विच लिखे हर्फ़’ प्रकाशित होने के साथ ही वह पंजाबी कविता में हरमन और बेहद प्यारे शायर बन गए।

उसके बाद उनकी पुस्तकें ‘हनेरे विच सुलगदी वरनमाला’, ‘पतझर दी पाजेब’, ‘लफ़जां दी दरगाह’ और ‘सुरजमीन’, बिरख अर्ज करे,  प्रकाशित हुईं। सुरजीत पातर प्रतिरोध, संगीत और संवेदनशीलता की शिखर थे। उनकी कविताओं में जमाने का दर्द बहुत ही शिद्दत से उभरता प्रतीत होता है-

इस दरवाज़े से बाहर खड़ी हैं
उदास नस्लों के ख़ून पर पलीं
मेरी ग्यारह हज़ार ज़हर-भरी रातें
ख़ूँखार अत्याचारी
मेरी काली फौज़
मेरी तारीख़ का आक्रोश।

वहीं स्थापित के ख़िलाफ़ उनके उद्गार देखने लायक हैं। उन्होंने बहुत सारी पुस्तकों का अनुवाद भी किया। 2012 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।

पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल पंजाबी कवि सुरजीत सिंह पातर को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान करतीं। फोटो साभार: आरवी मूर्ति

इससे पहले उन्हें सरस्वती सम्मान, गंगाधर नेशनल अवार्ड, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी पुरस्कृत हुए। पातर पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष थे। वह पंजाबी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे थे।

सुरजीत पातर जी की कविता की ख़ासियत उन्हें अपने समकालीन कवियों में विशिष्ट बनाती है।  उनकी कविता में सत्ता और स्थापित का जो विरोध था वह बहुत प्रमुख रूप से उजागर होता था।

सात-आठ घंटे चलने के बाद
क्या देखा डिब्बों के बीच
सभी भेड़िए बन गए मेमने
सब मेमने बन गए भेड़िए

आप यक़ीन करें या न करें
यह सब अपने देश में हुआ
और आदमियों के भेस में हुआ।

हिंसा, अन्याय और जुल्म के ख़िलाफ़ उनकी कविताएँ एक संवेदनशील ढंग से विरोध करती थीं। उनकी कविता का जो अन्य विशेष गुण था जो वह था कि वह अपनी कविताओं को हमेशा गाकर पढ़ते थे तो गाने के कारण उनकी कविता आम लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुई।  उनकी कविताओं के लोकप्रिय होने का महत्वपूर्ण कारण  यह था कि उनकी बहुत सारी कविताएँ लोगों के लिए मुहावरों की तरह बनती चली गयीं। जैसे उनकी एक कविता है कि-

इस अदालत में बंदे वृक्ष हो गए
फैसला सुनते सुनते सूख गए
इनको कहो कि उजड़े घरों में जाएं अब
वह कब तक यहाँ पर खड़े रहेंगे

अदालत के बारे में उनकी यह पंक्तियाँ उन लोगों की तकलीफ़ को बयान करती है जो न्याय की आस में अदालतों में खड़े खड़े सूखे वृक्ष की तरह हो गए।

राष्ट्रीय, अंतर राष्ट्रीय प्रसिद्धि रखने वाले इस अज़ीम शायर का 11 मई 2024 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। पातर के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटे हैं। आज समकालीन जनमत पोर्टल के मंच पर उन्हे श्रद्धांजलि के रूप में पेश है उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद।

 

 

सुरजीत पातर की सात कविताएँ
हिंदी अनुवाद : अमरजीत कौंके 

 

1. आया नन्द किशोर

पीछे पीछे नौकरी के
आया नन्द किशोर
गाड़ी बैठ सियालदा
साथ में साथी और
रामकली भी साथ थी
सुघड़ लुगाई उसकी
लुधियाने के पास ही
इक गाँव बोड़ेवाल में
जड़ लगी और हुई हरी
रामकली के कोख से
जन्मी बेटी उस कि
नाम रखा माधुरी
कल देखी मैंने माधुरी
उसी गाँव स्कूल में
चोटियाँ बांध के रिबन में
सुंदर फट्टी पोंछ कर
ऊड़ा ऐड़ा लिख रही
ऊड़ा ऐड़ा लिख रही
बेटी नन्द किशोर की
कितना गहरा रिश्ता है
रोज़ी का और शब्द का
इसी गाँव के लाडले
पौत्र अछर सिंह के
अपने बाप की कार में
बैठ आते लुधियाना
कौनवेंट में पढ़ रहे
ए बी सी डी लिख रहे
ए बी सी डी लिख रहे
पौत्र अछर सिंह के
कितना गहरा रिश्ता है
अक्खर और आकांक्षा
पीछे पीछे रिजक के
आया नन्द किशोर…..

 

2. शब्दों का जादूगर

मैडलिन शहर में
कविता उत्सव के दिनों में
उबरेर पार्क में
साइकल पर एक बच्चा मेरे पास आया
मेरी पगड़ी और दाढ़ी देख कर
पूछने लगा
-तुम जादूगर हो ?

मैं हंस पड़ा
कहने लगा था नहीं लेकिन अचानक बोला
-हाँ
मैं आकाश से तारे तोड़ कर
लड़कियों के लिए हार बना सकता हूँ
मैं जख्मो को फूलों में बदल सकता हूँ
वृक्षों को साज़ बना सकता हूँ
और पवन को साज़-नवाज
-सचमुच ?
बच्चे ने कहा
-तो फिर मेरे साइकल को घोड़ा बना दो
नहीं मैं बच्चों का जादूगर नहीं
मैं बड़ों का जादूगर हूँ
-तो फिर हमारे घर को महल बना दो
नहीं असल बात तो यह है
कि मैं वस्तुओं का जादूगर नहीं
शब्दों का जादूगर हूँ
-ओह मैं अब समझा
बच्चा साइकल चलाता चलाता
हाथ हिलाता
पार्क से बाहर चला गया
और शामिल हो गया
मेरी कविता में

 

3. मौत के अर्थ

कोई माँ नहीं चाहती
लहू पृथ्वी पर गिरे
हर माँ चाहती है बेटी बेटे
और बढ़ती फूलती फसलें
हर माँ चाहती है
लोहा कोई लाभदायक हथियार बने
लेकिन जब लहू खौलता है
और लोहे को हथियार बना लेता है
और हाँ
कभी माएं
अपने हाथों
बेटों को अणख का युध्ध लड़ने के लिए भेजती हैं
लहू पृथ्वी पर गिरता है
तो पृथ्वी लहू को सोख लेती है
उसे तत्वों में बदल देती है
कुदरत के लिए मौत का अर्थ मौत नहीं
कुदरत के लिए
मौत का अर्थ तत्वों में बदलना
कुदरत के लिए मौत का अर्थ एक और जन्म
लेकिन माँ के लिए
मौत का अर्थ है कोख से जन्मे का
अंतहीन अंधकार में डूब जाना…….

 

4. बन रहे हैं

बन रहे हैं
आदमी से फिर पत्थर
फिर मिटटी
फिर पानी
बन रहे हैं पंक्तियों से फिर लफ्ज़
और लफ्ज़ों से
चीखें
विलाप
चिंघाड़ें

पृथ्वी उल्टी घूम रही है
खौफ़ से

खा रही है बृक्ष मिटटी
लौट रहे हैं नीर अपने स्रोतों की ओर
लौट रहे हैं फूल
पीछे की तरफ़

फेंक कर ये साज़
ये पावन पुस्तकें
ये प्यारे मुखड़े
दौड़ पड़ेंगें सिर्फ अपनी जान बचा के

बन रहे हैं आदमी से सिर्फ जानें…..

 

5. पुल

मैं जिन लोगों के लिए
पुल बन गया था
वे जब मेरे ऊपर से
गुज़र रहे था
मैंने सुना मेरे बारे में
कह रहे थे

वह कहाँ चला गया
खामोश सा बन्दा
शायद पीछे मुड़ गया है
हमें पहले ही पता था
कि उसमें इतना दम नहीं

 

6. जिसे

जिसे तुम बहुत रुलाओगे
वह अंत में हंस पड़ेगा
पागल हो कर

जान से मार दोगे
तो लौट आएगा
प्रेत बन कर

और प्रेत को तुम
कभी मार नहीं सकते….

 

7. अल्प गिनती नहीं

अल्प गिनती नहीं
मैं दुनिया की
सब से बड़ी बहु-गिनती के साथ
संबंध रखता हूँ
बहु-गिनती जो उदास है
खामोश है
इतने झरनों के बावजूद प्यासी है
इतनी रौशनी के बावजूद अँधेरे में है….


सुरजीत पातर का जन्म 1945 को जिला जालंधर में और निधन 11मई 2024
शिक्षा – ऍम.ऐ .पीएच.  डी , सेवामुक्त लेक्चरार
हवा विच लिखे हर्फ़, बिरख अर्ज़ करे, हनेरे विच सुल्घदी वर्णमाला ,ल्फ्ज़ां दी दरगाह ,और अन्य काव्य संग्रह प्रकाशित .
अनेक इनामों से सम्मानित…हनेरे विच सुल्घदी वर्णमाला के लिए साहित्य अकादेमी सम्मान….
लफ़्ज़ों की दरगाह के लिए सरस्वती सम्मान…..
46-47, आशा पूरी , अग्गर नगर, लुधियाना. (पंजाब)                       

अमरजीत कौंके का जन्म 1964, लुधियाना
शिक्षा – ऐम ए ( पंजाबी ) .पीएच. डी। निर्वाण दी तलाश च,   द्वंद कथा, यकीन, शब्द रहनगे कोल, स्मृतियां दी लालटेन, तथा प्यास काव्य संग्रह प्रकाशित,
मुट्ठी भर रौशनी, अँधेरे में आवाज़, अंतहीन दौड़, तथा बन रही है नई दुनिया, काव्य संग्रह हिंदी में प्रकाशित हिंदी के दिग्गज लेखकों डॉ. केदार नाथ सिंह, श्री नरेश मेहता, कुंवर नारायण, अरुण कमल,बिपन चंद्रा, मिथिलेश्वेर,  पवन करन की पुस्तकों का हिंदी से पंजाबी में और पंजाबी से हिंदी में 40 पुस्तकों का अनुवाद प्रकाशित पंजाबी में 2001 से प्रतिमान नाम की पंजाबी पत्रिका का निरंतर संपादन. साहित्य अकादेमी, दिल्ली से साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरुस्कार, भाषा विभाग पंजाब से ‘प्यास’ तथा ‘मुठ्ठी भर रौशनी’ पुस्तकों के लिए सर्वोत्तम पुस्तक पुरुस्कार, गुरु नानक यूनिवसर्सिटी अमृतसर से साहित्य पुरुस्कार सहित अनेक सम्मान प्राप्त। 
पता – 718, रणजीत नगर -ऐ , भादसों रोड , पटिआला – 147001 (पंजाब )
फोन.. 098142 31698

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