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प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जवाब दें कि बिल्कीस बानो के सामूहिक बलात्कारियों को आजाद करने का निर्णय क्यों लिया गया -ऐपवा 

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संगठन ( ऐपवा) ने बिल्कीस बानो के सामूहिक बलात्कारियों को आजाद करने का निर्णय पर सवाल उठाते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से जवाब मांगा है कि यह निर्णय क्यों लिया गया ?

ऐपवा की अध्यक्ष राति राव, महासचिव मीना तिवारी और सचिव कविता कृष्णन द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि कल भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह पर सात मुसलमानों की हत्या और एक गर्भवती महिला बिल्कीस बानो का सामूहिक बलात्कार करने के अपराध में आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रहे 11 अपराधियों को इस आधार पर जेल से मुक्ति मिल गयी कि गुजरात सरकार की मंशा थी कि उनकी सज़ा माफ़ कर दी जाय।

उन्होंने यह अपराध गुजरात में 2002 में हुये मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान किया था (जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे)।

बयान में कहा गया है कि 15 अगस्त 2022, जिसे प्रधानमंत्री मोदी भारत का ‘‘अमृत काल’’ कहते हैं, का जश्न मनाने के लिये उन लोगों को आजाद करने के गुजरात सरकार के निर्णय का आधार क्या था ? क्या सज़ा माफ़ी और आज़ादी मुसलमानों की हत्या और बलात्कार का पुरस्कार था ? क्या ऐसा इसलिये हुआ कि 2002 के दंगों में मारे गये या बलात्कृत मुसलमानों के न्याय के लिये लड़नेवाली महिला, तीस्ता सीतलवाड़ इस समय जेल में है क्योंकि उसने इस उम्मीद में कि वह उस काल की सरकार और पुलिस मशीनरी को उस चूक और लापरवाही के लिये जिम्मेदार ठहरा सकेगी जिसके चलते दंगा सम्भव हुआ, उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने में ज़ाकिया ज़ाफ़री की मदद की थी ? वेसे भी साम्प्रदायिक हत्यारों और बलात्कारियों को अपराधी ठहराया जाना भारत में एक असामान्य स्थिति है, सामान्य व्यवस्था नहीं। क्या इस सज़ा माफी का मकसद साम्प्रदायिक हत्यारों और बलात्कारियों के लिये सज़ा माफी की मुकम्मल व्यवस्था देना नहीं है?

आज हिन्दू श्रेष्ठतावादियों के लिये यह मामूली बात हो गयी है कि वे बिना किसी बात की परवाह किये मुसलमानों की हत्या और बलात्कार का आह्वान कर दें। बिल्कीस बानो के बलात्कारियों को आजाद कर दिये जाने का फैसला ऐसे लोगों और उनके अनुयायियों को अपनी धमकियों पर काम करने के लिये उनकी हौसला-आफ़ज़ाई करता है।

भारत में ‘‘गोदी मीडिया’’ के एन्कर (मोदी शासन और भाजपा के भोंपू) नारी-अधिकारवादियों और महिला आन्दोलन के संगठनों पर ‘‘बलात्कारियों के प्रति नरम’’ होने का आरोप लगाते रहते हैं क्योंकि हम लोग बलात्कार के लिये मृत्युदंड का विरोध करते हैं। इस मामले में बिल्कीस ने खुद कहा था कि वह मृत्युदंड की माँग नहीं करेगी क्योंकि सैद्धान्तिक रूप से वह इसके खिलाफ़ है। अब केवल कुछ साल जेल में गुजारने के बाद सामूहिक बलात्कारियों को आजाद कर दिया जा रहा है, और वे आजीवन जेल में नहीं रहेंगे, इसपर इन एंकरों को क्या कहना है? क्या न्याय के लिये बिल्कीस की माँग को वे बुलन्द करेंगे ?
क्या प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह इस फैसले पर कोई टिप्पणी करना चाहेंगे? क्या हम वास्तव में इस बात पर विश्वास कर लें कि यह फैसला लिये जाने के पीछे भाजपा के इन सर्वोच्च नेताओं का वरदहस्त नहीं है ?

#IndiaAt75 भारत की महिलाओं के लिये शर्म का दिन बनकर रह गया है क्योंकि सत्तासीन भाजपा ने इसे बिल्कीस के बलात्कारियों का दिन बना दिया है।

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