जयप्रकाश नारायण
लगभग 24 लाख छात्र लंबे समय से चिकित्सक बनने की तमन्ना लिए परीक्षा की तैयारी में घर-परिवार छोड़कर कंक्रीट के जंगल नुमा शहरों की तंग गलियों की किसी दरबेनुमा कोठरी में कठोर तपस्या में इस उम्मीद के साथ लगे रहते हैं, कि आने वाले समय में साफ-सुथरी परीक्षा होगी और उनके परिश्रम का फल उन्हें अवश्य मिलेगा। लेकिन उन्हें क्या पता था, कि अमृत काल के दौर में भारतीय राज्य व्यवस्था विकास के जिस मंजिल में पहुंच गई है, वहां आम भारतीय नागरिक के जीवन की उम्मीद भविष्य के सपने और श्रम के मूल्य अब भ्रष्टाचार की काली कोठरी में दफन हो जायेंगे।
सत्ता संरक्षण में जनता की गाढ़ी कमाई से निचोड़े गये टैक्स से हासिल सुविधाओं पर आलीशान महलों में बैठा हुआ एक आपराधिक गिरोह देश की सभी संस्थाओं को नियंत्रित करने के अपने खतरनाक उद्देश्य को अंजाम देने के लिए कितने सूक्ष्म स्तर पर सक्रिय है, इस बात का इल्म नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों की चेतना में रत्ती भर भी नहीं रहा होगा।
लेकिन पिछले 10 वर्षों से सत्ता के शिखर पर जिस विचारधारा की टीम काबिज है, पेपर लीक जैसे अपराध का होना ही इस षड्यंत्रकारी गिरोह की बुनियादी फितरत है। यहां इस यथार्थ को समझने की जरूरत है कि पिछले 10 वर्षों में हिंदुत्व के सबसे क्रूर मॉडल के सत्ता में आने के बाद सबसे ज्यादा शिकार ज्ञान, तर्क, प्रतिभा, योग्यता, पारदर्शिता, सुचिता और ईमानदारी जैसे मूल्यों को क्यों होना पड़ रहा है? इस हालात की चीड़फाड़ आज के यथार्थ की जड़ में जाकर किये जाने की जरूरत है।
यह सर्वविदित है कि संघ परिवार (सत्ता के बाहर रहते हुए और सत्ता में आने के बाद) की अनवरत कोशिश रहती है, कि लोकतांत्रिक संस्थाओं से लेकर सामाजिक जीवन के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवकों और उनके लोगों की घुसपैठ सुनिश्चित हो।
सत्ता में आने पर वे सभी लोकतांत्रिक और कानूनी परंपराओं की धज्जियां उड़ाते हुए ढिठाई पूर्वक ऐसा करते हैं। हालांकि वे अपने प्रवचनों में सुचिता, संस्कार, ईमानदारी, योग्यता, प्रतिभा, दक्षता जैसे सामाजिक लोकतांत्रिक मूल्यों की जुगाली हमेशा करते रहते हैं।
दूसरी कोशिश यह होती है, कि भारत की विविधता और महादेशीय जटिलता को नकारते हुए सभी संस्थाओं को एक केंद्रीय सत्ता के अधीन लाने की। इसके लिए वह संवैधानिक संस्थाओं को तोड़ने-मरीड़ने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं।
यहां नोटबंदी, जीएसटी, एनटीए, नीति आयोग, रिजर्व बैंक, सीबीआई, न्यायपालिका और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को देखा जा सकता है।( मोदी के पिछले 23 वर्षों से सत्ता में रहने का रिकॉर्ड इस बात की पुष्टि करता है।)
संघ परिवार की खासियत है, शक्ति का केंद्रीकरण। जिससे कुछ हाथों (एक छोटे गुट) में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक सत्ता का केंद्रीकरण सुनिश्चित कर, संस्थाओं का मनमाना दुरपयोग करते हुए हिंदुत्व-कॉर्पोरेट गठजोड़ के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा सके।( संघ का प्रेरणास्रोत और विचार प्रकिया सदिओं से चली आ रही भारत की वर्णवादी व्यवस्था की जड़ों में निहित है।)
इसको व्यावहारिक धरातल पर उतारने के लिए लोकतंत्र की बहुमतवादी स्थिति और कानून व लोकतंत्र के लचीलेपन तथा संविधान में मौजूद अपवादों का फायदा उठाते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों व परम्पराओं के विपरीत जाकर नीतियां बनाने से लेकर सभी तरह के गैर कानूनी क्रिया-कलापों को अंजाम देने का उनका रिकार्ड रहा है।
जैसे बाबरी मस्जिद ढहाने से लेकर मनी बिल की आड़ में बनाए जाने वाले खतरनाक पीएम केयर फंड और इलेक्टोरल बांड आदि।
वर्तमान समय में धर्म के धंधे के बाद दो ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सबसे ज्यादा धन का प्रवाह हो रहा है। एक चिकित्सा और दूसरा शिक्षा।
विद्या भारती और शिशु मंदिरों के संजाल द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में संघ परिवार की पहले से ही गहरी पकड़ रही है। अब वह स्वास्थ्य के व्यवसाय पर अपने लोगों की पकड़ को मजबूत करने में लगा है।
इसलिए इस महादेश की जटिलता को नकारते हुए मेडिकल प्रवेश की एक केंद्रीय परीक्षा नीति लाई गई।
आज उसी परीक्षा नीति की विसंगतियां लाखों छात्रों के भविष्य को बर्बाद कर संपन्न परिवारों और भाजपा संघ परिवार के आयोग्य लोगों के लिए दुधारू गाय बनकर के सामने आई है। यह गड़बड़ घोटाला पिछले कई सालों से चल रहा था। लेकिन पानी सर से ऊपर गुजर जाने के बाद अब असलियत सामने आ रही है।
2022 में यूपीपीसीएस जे की परीक्षा में 50 प्रतिभागियों की कॉपियां बदल दी गई थी। जिससे उनकी जगह पर अयोग्य लोग न्यायपालिका में पहुंच गए। स्थिति की भयावहता को समझिए।
चूंकि संपूर्ण नियंत्रण या केंद्रीकरण संपूर्ण भ्रष्टाचार के लिए रास्ता सुगम बना देता है। इसलिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर एक मेडिकल परीक्षा की पॉलिसी बनाई गई। जिसे नीट के नाम से जानते हैं।
उसके बाद नेशनल टेस्टिंग एजेंसी एनटीए नामक नोडल एजेंसी बनी। जो उच्च परीक्षाओं को आयोजित करती है।
यह सर्वविदित है, कि वाजपेई की सरकार के समय से ही संघ परिवार ने शिक्षण संस्थानों पर कब्जा जमाना शुरू किया था। जो 2014 में मोदी सरकार आने के बाद बृहद पैमाने पर धृष्टता पूर्वक जारी है।
शिक्षा और इतिहास के क्षेत्र में किए जाने वाला बदलाव फासीवादी राजनीति का बुनियादी अंग रहा है। इसलिए आप देखेंगे की मुरली मनोहर जोशी के शिक्षा मंत्री रहते हुए भी यह विवाद खड़ा हुआ था। उस समय शिक्षा नीति में भारी बदलाव करने की कोशिश हुई थी।( वैदिक गणित और ज्योतिष को पाठ्यक्रम में लाने जैसी बकवास उसी समय शुरू हुई थी ।) इतिहास के पुस्तकों में भारी बदलाव किया गया। जो एक हद तक सफल भी रहा।
लेकिन 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद संपूर्ण केंद्रीकरण के लिए रास्ता साफ हो गया और अब 10 वर्षों बाद केंद्रीकरण के दुष्परिणाम भारत के करोड़ों छात्रों, नौजवानों को भोगना पड़ रहा है।
भ्रष्टाचार तो इसका मात्र एक पहलू है
इसके अनेक आयाम है। जैसे अयोग्य लोगों को संस्थानों में घुसाना , संस्थाओं की गुणवत्ता का क्षरण, लोकतांत्रिक स्पेस का कमजोर होना, विचार विमर्श की प्रक्रिया को सांप्रदायिक जहरीले विचारधारा से भर देना और पदों का दुरुपयोग कर बाधित करने की कोशिश करना, समाज के योग्यतम लोगों को शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र से एक-एक कर बाहर करते जाना।
हम सबको पता है, कि भारत में शिक्षा, कला, विज्ञान के स्वायत्त क्षेत्र में किस तरह से अयोग्य और तीसरे दर्जे के संघियों को भरा गया है।
इसे देखकर आप मोदी सरकार की कार्यशैली को समझ सकते हैं। शिक्षा क्षेत्र की दुर्गति को समझने के लिए इन अयोग्य और सांप्रदायिक सर्वसत्तावादी लोगों की कार्यशैली को समझना बहुत जरूरी है। (अभी-अभी जिस नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन करने के नाम पर मोदी तमाशा करने गए थे । मोदी के आने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के आर्किटेक्ट अमर्त्य सेन, लार्ड मेघनाथ शाहा और एन के सिंह जैसे लोग बाहर कर किए गए थे ।)
नीट परीक्षा का वर्ग चरित्र
मोदी सरकार आने के बाद संपदा और शक्ति का केंद्रीकरण तेजी से बढ है। जिसके परिणाम विषमता की बढ़ती खाई के रूप में सामने आ रहे हैं। एक प्रतिशत लोगों का देश की 45% से ज्यादा संपदा पर कब्जा होना और 50% आबादी के पास देश की तीन प्रतिशत संपदा का होना स्थित की भयावहता को दर्शाता है।
स्वाभाविक है यह केंद्रीकरण देश की 50% आबादी को समाज के सभी क्षेत्रों से बाहर खदेड़ने की भौतिक स्थिति तैयार कर चुका है।
दूसरा, संपत्ति का केंद्रीकरण कोई अलग-अलग सामाजिक प्रक्रिया नहीं है। सबसे पहले यह सत्ता के केंद्रीकरण के रूप में आकार लेता है। फिर जीवन के सभी क्षेत्रों पर कब्जा कर धीरे-धीरे समाज की सभी संस्थाओं, क्रियाकलाप तथा विचार को नियंत्रित करने लगता है। अगर इन अर्थों में मेडिकल परीक्षा में हुए भ्रष्टाचार को समझने की कोशिश करें तो संघ परिवार की मंशा और उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है।
तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने मेडिकल में एक राष्ट्रीय प्रवेश नीति का विरोध किया था। उनका कहना था, कि यह यह कदम राज्यों की विशिष्टता और विविधता के खिलाफ जाएगा तथा कोई सकारात्मक परिणाम नहीं देगा। लेकिन मोदी सरकार संस्थाओं के केंद्रीकरण और भ्रष्टाचार अपराध को व्यवस्थित ढंग से अंजाम देने के अपने चरित्र के अनुकूल राज्यों द्वारा उठाई गई आशंकाओं को कूड़ेदान में डालती रही।
नीट
नीट देश की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षा प्रणाली है, जिसे एनटीए ( नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ) संचालित करती है। एनटीए सहित यूजीसी और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों पर एक-एक कर संघ के अयोग्य और बदनाम लोगों को बैठाया गया है।
एनटीए के अध्यक्ष डॉक्टर प्रदीप जोशी मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे हैं। उनके कार्यकाल में व्यापम घोटाला हुआ था। वहां भी मेडिकल में प्रवेश का ही मामला था।
एमपी में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की गई। जिससे हजारों नौजवानों का भविष्य और जिंदगी तबाह हो गई। कई दर्जन छात्रों ने आत्महत्या की। सैकड़ो छात्र जेल में डाल दिए गए। इस परिघटना से प्रभावित लोग शांतिमय तरीके से एक-एक कर मारे जाते रहे। यह भ्रष्टाचार एक बबूले की तरह से उठा। लेकिन सत्ता संस्थानों पर संघ की मजबूत जकड़ होने के कारण दर्जनों बिचौलियों की जिंदगी लील लेने के बाद धीरे-धीरे शांत हो गया।
सभी गुनहगार अपने-अपने पदों पर रहते हुए सत्ता का आनंद लेते रहे और छात्र, नौजवान अपनी जिंदगी से हाथ धोते रहे। यही नहीं, अपराधियों का खेल बदस्तूर जारी रहा।
इतने बड़े भ्रष्टाचार के उजागर होने के बाद भी डॉ प्रदीप जोशी एक-एक कर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते रहे और आज एनटीए के अध्यक्ष हैं। मध्य प्रदेश में इतने बड़े खूनी भ्रष्टाचार को दफन कर सरकार को संकट से सुरक्षित निकाल कर बाहर लाने और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सफलता पूर्वक योगदान देने के कारण ही प्रदीप जोशी लगातार सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते गये। उनका मनोबल बना रहा और संघ का लक्ष्य पूरा होता रहा। आज भी छोटी मछलियां मारी जा रही हैं और भ्रष्टाचार के मुख्य केंद्र एनटीए के अध्यक्ष प्रदीप जोशी सुरक्षित हैं। यही नहीं जांच की जिम्मेदारी भी उन्हें के हाथ में है।
नीट 2024 का परिणाम
यह उस दिन शाम को घोषित किया गया, जिस दिन 18वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ रहे थे।
स्पष्ट है कि परीक्षा के आयोजकों को अपने अपराथ के बेनकाब होने का डर था। इसलिये परीक्षा परिणाम की घोषित तिथि से 10 दिन पहले ही सोची समझी योजना के तहत परिणाम घोषित कर अपने राष्ट्रद्रोही अपराध को छिपा लेने की योजना बनाई गई।
आयोजकों ने यह सोचा होगा कि चुनाव परिणाम की आंधी के बीच उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार छुप जाएंगे।
परिणाम घोषित करने के तरीके से ही स्पष्ट हो जाता है यह गिरोह कितना शातिर है और अपराध व भ्रष्टाचार को छिपाने में माहिर है। (अपराध, षड्यंत्र, नफरत, घृणा, झूठ, असत्य और गद्दारी का 100 साल का उनका अनुभव जो ठहरा)।
जबकि बिहार और झारखंड से इस भ्रष्टाचार की प्रारंभिक जानकारी परीक्षा के दिन ही मिल चुकी थी और लोग गिरफ्तार किए जाने लगे थे।
इस पूरे खेल की क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है। आरएसएस और भाजपा के द्वारा दीक्षित प्रत्येक स्वयंसेवक और कार्यकर्ता किसी न किसी बहाने योग्यता और गुणवत्ता का सवाल उठाता रहा है। इस आधार पर ये लोग आरक्षण को प्रतिभा, दक्षता और योग्यता के दमन के रूप में प्रसारित करते रहे हैं। आरक्षण विरोधी अभियान को इन्हीं बिंदुओं पर संचालित किया गया। संघ के प्रचार का केंद्रीय तत्व रहा है, कि अयोग्य लोग सरकारी सेवाओं में आ रहे हैं।
यहां तक मेडिकल और इंजीनियरिंग के मामले में तो इन्होंने बहुत ही घिनौना प्रचार अभियान पिछले 70 वर्षों से चला रखा है। लेकिन आज नीट में हुए भ्रष्टाचार से स्पष्ट हो गया है, कि भाजपाइयों की चिंता योग्यता और प्रतिभाओं के हनन से जुड़ा हुआ नहीं है। बल्कि वे दलितों, पिछड़ों, कमजोर वर्गों के उत्थान को लेकर डरे हुए हैं। उनकी चिंता व घृणा का कारण है कि ये वर्ग जैसे-जैसे समाज में विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से शिक्षित, प्रशिक्षित होते हुए राज्य की संस्थाओं में पहुंचेंगे, वैसे-वैसे वर्ण वादी सामाजिक ढांचे का दबदबा कम होगा। जो भाजपा और संघ की तानाशाही की योजना के विपरीत जाएगा।
दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों के सत्ता की परिधि में प्रवेश की प्रक्रिया से लोकतांत्रिक परिवेश का विस्तार होना लाजमी है।
इस कारण से भाजपा ने ’90 के दशक में मंडल कमीशन लागू होने के बाद तूफान खड़ा कर दिया था।
एक नफरती नैरेटिव खड़ा कर सैकड़ो नौजवानों की बलि ले ली गई थी। बच्चे आत्मदाह करने लगे थे। जिससे सामाजिक जीवन में तनाव बढ़ गया था। इस वातावरण की आड़ में उस समय राम मंदिर आंदोलन को आगे कर पूरे देश को आग, धुआं, नफरत और हिंसा में झोंक दिया गया। लेकिन आज वहीं भाजपा नीट की पूरी परीक्षा प्रणाली और उसके चयन प्रक्रिया द्वारा जिस परियोजना को सामने लेकर आई है, उससे देश में प्रतिभा और योग्यताओं के हनन के साथ संपन्न वर्गों को खुला लाभ मिलने वाला है। संक्षिप्त में चयन प्रणाली के वर्ग अंतर्वस्तु को समझते हैं।
नीट मेडिकल की एमबीबीएस, बीडीएस, आयुष आदि की सीटों के लिए परीक्षा आयोजित करता है। पहले राज्य सरकारें मेडिकल की प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करती थी। जैसे यूपी में सीपीएमटी और केंद्रीय विश्वविद्यालय की अलग परीक्षाएं होती थी। धीरे-धीरे इनका केंद्रीकरण शुरू हुआ और 2013 से लेकर 2018 के बीच केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने नीट को आयोजित किया था।
2017 में स्थापित एनटीए ( भारत के उच्च शिक्षा विभाग के तहत स्थापित स्वायत्त एजेंसी है, जो 17 परीक्षाएं आयोजित करती है) को उच्च शिक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी दी गई।
अभी तक मेडिकल की परीक्षा अखिल भारतीय प्री मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी ) आयोजित करती थी। जिसे बाद में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा( नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) नीति के अधीन लाया गया। जिसके तहत नेट, यूजीसी नेट, पेट जैसी प्रतियोगी परीक्षाएं कराई जाती है।
एनटीए एक अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षाओं के संचालन के लिए नोडल एजेंसी बनाई गई है। जो 2019 से परीक्षाएं आयोजित कर रही है।
इस वर्ष एनटीए द्वारा आयोजित परीक्षा विवाद के घेरे में आ गई। क्योंकि परीक्षा के दिन कुछ छात्र पकड़े गए, जिन्हें पहले से ही परीक्षा में आने वाले पेपर मुहैया करा दिए गए थे।
यह घटना बिहार में घटित हुई। इसके अलावा इस बार 67 छात्रों ने 720 में 720 अंक प्राप्त किये। जिसमें 6 छात्र तो हरियाणा के एक ही परीक्षा केंद्र से थे।
जब विद्यार्थियों ने यह स्थिति देखी तो उन्हें शंकाएं हुई और वे इस पर सवाल उठाने के साथ आक्रोशित और आंदोलित हो गए। यहां एक बड़े भ्रष्टाचार का संकेत मिलने लगा है। जिस कारण भ्रष्टाचार की बहस छात्रों, कालेजों व विश्वविद्यालयों की सीमा तोड़कर अभिभावको और आम नागरिकों तक पहुंच गई।
चुनाव परिणाम आने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि मोदी सरकार जनता का विश्वास खो चुकी हैं। इस लिए आम नागरिकों को भी भ्रष्टाचार पर यकीन होने लगा और वे चिंतित हो गए। चूंकि अपने बच्चों को डॉक्टर बनने की प्रबल आकांक्षा मध्य और उच्च मध्यवर्ग में होती है।यह वर्ग किन्हीं कारणों से पिछले दिनों भाजपा आरएसएस का समर्थक रहा है। लेकिन नीट में भ्रष्टाचार के खुलासों से यह वर्ग नागरिक समाज के साथ विरोध में आ गया और सरकार के खिलाफ मुखर हो गया।
परंपरा के विपरीत पहली बार 1563 छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए गए थे। सामान्य दृष्टि से देखने पर ही नीट में हुआ भ्रष्टाचार दिखाई देने लगा।
अब मध्य प्रदेश में मेडिकल परीक्षा (व्यापम) में हुए भ्रष्टाचार की स्मृति नागरिकों के चेतना में लौट आई। सरकार ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए ग्रेस मार्क पाये छात्रों की परीक्षा रद्द कर दी और आनन-फानन में पुनः परीक्षा आयोजित की गई। इसमें आधा से ज्यादा परीक्षार्थी भाग ही नहीं लिए । यहां खेल का एक पक्ष दिखाई देता है।
भ्रष्टाचार की खिड़की
परीक्षा फॉर्म भरने के एक महीने बाद अचानक एनटीए ने दो दिन के लिए नए फार्म जमा करने के लिए विंडो खोली। यह नया प्रयोग था।षड्यंत्र का खेल इसी दो दिन के लिए खिड़की खोलने से शुरू होता है।
इस दो दिन में अचानक 24हजार से ज्यादा छात्रों ने मेडिकल परीक्षा फार्म जमा किए। आश्चर्य है कि 720 नंबर पाने वाले छात्र इसी विंडो के माध्यम से अपना फार्म जमा किए थे ।
यहां सवाल उठना लाजिमी है, कि अगर वे इतने मेधावी छात्र थे, तो सामान्य दिनों में उन्होंने परीक्षा के लिए फार्म क्यों नहीं भरा!
दूसरा सवाल, विंडो खुलने के साथ एक और खेल हुआ था। जिसमें छात्रों को परीक्षा केंद्र के चुनाव के लिए दो विकल्प दिए गए। गृह इलाके जहां वे पढ़ते हैं, अथवा वह जहां चाहे वहां सेन्टर चुन सकते हैं।
इसी दूसरे विकल्प को ध्यान में रख कर सोची समझी रणनीति के तहत फार्म भरे गए। यहीं सेटिंग-गेटिंग का खेल था। इन छात्रों में से अधिकांश ने अपने परीक्षा केंद्र सुदूर इलाकों को चुना। जैसे बिहार, झारखंड, उड़ीसा, मध्य प्रदेश के छात्रों ने गुजरात के गोधरा में जय जलाराम कालेज और हरियाणा के झज्जर के एक स्कूल को, जहां से सात छात्रों ने 720 नंबर प्राप्त किए है। प्रसंगवस ये सभी परीक्षा केंद्र भाजपा के नेताओं द्वारा संचालित विद्यालयों में हैं।
यही से भ्रष्टाचार की पोल खुलना शुरू हुई। इन विद्यालयों की जांच शुरू हुई तो पता चला कि यहां भ्रष्टाचार के नए-नए प्रयोग किए गए थे।गोधरा के जय जलाराम स्कूल में परीक्षा देने वाले छात्रों से कहा गया था, कि 100% सही सवालों के ही सामने वह गोल भरें। बाकी खाली छोड़ दें। बाद में उनकी काफी भर दी जायेगी।
हुआ भी ऐसा ही। यहां कई छात्र शत-प्रतिशत अंक प्राप्त करके परीक्षा में सफल हो गए। जब जांच की सूई घूमते-घूमते इन स्थानों पर पहुंची तो विद्यालय के प्राचार्य और परीक्षा नियंत्रण को गिरफ्तार कर लिया गया। साथ में कुछ और लोग भी गिरफ्तार हुए हैं। अभी भी गिरफ्तारी जारी है।
इतना बड़ा खेल क्यों और कैसे संभव हुआ
जो जानकारी मिल रही है, ऐसे विद्यार्थियों से 10 से लेकर 25 लाख तक रुपए वसूले गए हैं। भ्रष्टाचार इस खेल का एक पहलू है। क्योंकि पैसे वालों के लिए तो 47% सीटें पहले से ही आरक्षित हैं। चाहे वह 137 अंक ही क्यों न पाते। चूंकि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के लिए कट ऑफ लिस्ट 600 अंक और बीडीएस के लिए 450 अंक निर्धारित है।
निजी मेडिकल कॉलेज की 47% सीट पैसे वालों के लिए पहले से ही आरक्षित है। जहां की न्यूनतम कट ऑफ अंक सामान्य के लिए 137 और एससी, एसटी, ओबीसी के लिए 136 -107 अंक रखी गई है।
यानी मध्यवर्गीय समाज के हर सामाजिक समूह के लोग जिनके पास पैसा है, चाहे वह सामान्य श्रेणी में हो या दलित, ओबीसी श्रेणी के, उनके लड़के न्यूनतम अंक प्राप्त करके भी डॉक्टर बन सकते हैं।
सूचना के अनुसार मोदी काल में करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। जिसमें नौकरशाह, व्यापारी, उद्योगपति, राजनेता, डॉक्टर, इंजीनियर, ठेकेदारों का समूह शामिल है। इस वर्ग को संतुष्ट करने के लिए और उसकी सामाजिक, राजनीतिक हैसियत को और सुदृढ़ बनाने के लिए मेडिकल की यह शिक्षा प्रणाली तैयार की गई है। इनके अयोग्य संतानों को भी डॉक्टर बनने के लिए कानूनी आधार तैयार किया गया है।
यहां एक बात याद रखनी चाहिए कि पैसे की भूख अनंत होती है। पूंजीपति वर्ग की सर्वोच्च आकांक्षा होती है कि वह धरती की सभी संपदा, बौद्धिक, आर्थिक, सामाजिक, प्राकृतिक पर कब्जा कर ले। चूंकि आरएसएस और भाजपा की नीति ही देश में मुट्ठी भर लोगों के हितों को आगे बढ़ाने की है, इसलिए मोदी राज के 10 वर्षों में सभी नीतियां इस वर्ग के लिए बनाई जा रही है, जिससे देश के प्राकृतिक और बौद्धिक संपदा पर मुट्ठी भर लोगों का कब्जा हो जाए।
पूरे देश में 706 मेडिकल कॉलेज हैं। जिसमें 386 सरकारी और 320 निजी मेडिकल कॉलेज हैं। इसके अलावा दो एम्स और दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी भी हैं। 52 डीम्ड मेडिकल यूनिवर्सिटी है । कुल 106333 सीट सभी मेडिकल कॉलेज को मिलाकर हैं। जिसमें सरकारी मेडिकल कॉलेज में 55648 और निजी मेडिकल कॉलेज में 50685 सीट हैं। इसमें एम्स और केंद्रीय विश्वविद्यालय को मिला दिया जाए तो 386 सरकारी मेडिकल कॉलेज में 55850 सीट है।
सरकारी मेडिकल कॉलेजों में वार्षिक शुल्क 2हजार से 14हजार तक है। जो 5 वर्ष में 72 से 75हजार के आसपास होता है।
निजी मेडिकल कॉलेज में वार्षिक शुल्क 10 लाख से 25 लाख तक है। जो पांच साल में 50 लाख से 72-75 लाख तक पहुंचता है। वहीं डीम्ड यूनिवर्सिटीज में 24 से 25 लाख वार्षिक फीस है। जो एक करोड़ 2 लाख से 5लाख सालाना पहुंचती है।
इसी पहेली के बीच में 24हजार फार्म, जो दो दिन तक विंडो खोलकर भराये गए थे, का रहस्य खुलता है। एनटीए के अध्यक्ष और उनकी पूरी टीम ने सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीट लूटने का फैसला किया।
जिसमें उन्हें दोहरा लाभ होना था। एक पेपर लीक कराने के लिए एजेंटों को भारी धन मिला। दूसरा आरएसएस, बीजेपी और उनसे जुड़े हुए परिवारों के अयोग्य लड़कों को सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिले की गुंजाइश बनाई गई।
जहां वह प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में 70-75 लाख खर्च करते, वहां 20 लाख रुपए पर्चा लीक में घूस मान लें तो भी ये बच्चे 5 वर्ष में 21-22 लाख में ही एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर लेंगे।
अब इस पूरे नॉरेटिव को इस तरह से देखा जाय कि कैसे योग्य बच्चों की सीट अयोग्य बच्चों ने छीन ली। यही योजना एनटीए द्वारा तैयार की गई थी। जहां मेरिट के आधार पर सीट एलाट होनी थी।
आरक्षण के खिलाफ संघ के प्रचारकों द्वारा दिए जाने वाले तर्क की धज्जियां यहां उड़ जाती है। प्रतिभा, योग्यता के हनन के पाखंड का जो हवामहल आरएसएस-बीजेपी ने खड़ा किया था। जिसके आधार पर पूरे देश में उन्होंने युवा गोलबंदी की थी। दर्जनों आत्महत्याएं आरएसएस के प्रचार के पाखंड में फंस कर 1990- 91 में नौजवानों ने की थी। यहां आकर उसका पाखंड सामने आ जाता है।
मेडिकल कालेज में वर्ग विभाजन तो पहले से ही हो चुका था। न्यूनतम कट ऑफ लिस्ट के कारण 13 लाख से ज्यादा छात्र मेडिकल के लिए क्वालीफाई किए हैं। तो फिर इस तरह के भ्रष्टाचार और षड्यंत्र की क्या जरूरत थी। जो 53% सीट मेरिट वाले छात्रों के लिए थी। उसमें भी सेंध लगाने की योजना बनाई गई। इसके लिए आरएसएस और भाजपा के नेटवर्क को सक्रिय किया गया ।
जगह-जगह उनसे जुड़े हुए वे लोग जो 10 से 15 लाख तक में पर्चा खरीद सकते थे। उन्हें तैयार किया गया और उनको उनके मन-माफिक सेंटर अलाट करके उन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए क्वालीफाई कराया गया। इस क्रम में 24 हजार से ज्यादा सीटें लूट ली गई।
यही एनटीए का खेल था। जो नीट के परिणाम आने के बाद बाहर आया है। जिसको लेकर पूरे देश में हंगामा चल रहा है।
यह कोई अलग-अलग घटना नहीं है। जब नीट का विवाद चल ही रहा था तो नीट यूजी के पेपर लीक हो गए। इसके पहले नेट के भी पेपर लीक हो चुके थे। परीक्षाएं रद्द कर दी गई है।
यूपी में तो आरओ, एआरओ, पुलिस भर्ती से लेकर अनेक परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं और सरकार बड़े आराम से भ्रष्टाचार के पहाड़ पर बैठी रही ।
भाजपा शासित राज्यों से बड़े स्तर पर पेपर लीक की खबरें आती रही हैं। एक मोटी जानकारी के अनुकूल अब तक दो करोड़ नौजवान पेपर लीक से प्रभावित हो चुके हैं। इस कारण जन आक्रोश तूफान पर है। जो निश्चित ही कोई सही दिशा लेगा।
युवा आक्रोश को देखते हुए हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए गए हैं। लेकिन डॉक्टर प्रदीप जोशी के एनटीए का अध्यक्ष रहते हुए कोई परिणाम नहीं निकलेगा।
और अंत में गोधरा से गोधरा तक-गोधरा से शुरू हुई मोदी सरकार की यात्रा अंततोगत्वा गोधरा में हुए संगठित पेपर लीक तक पहुंच कर एक चक्र पूरा कर रही है । लेकिन इस बार मोदी सरकार अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है ।
इस दौर में आकार ले रहा नया युवा आक्रोश मोदी राज के आपराधिक, भ्रष्टाचारी, षड्यंत्रकारी, सांप्रदायिक और कॉर्पोरेटपरस्त चरित्र के अंत की पटकथा लिखने की तरफ बढ़ सकता है!