औढर
अफ़वाह आत्मा की तरह होती है.
उसे किसी ने देखा नहीं होता, लेकिन सभी उसमें यकीन करते हैं.
अफ़वाह आत्मा की तरह अजर-अमर होती है. शस्त्र उसे छेद नहीं सकते. आग उसे जला नहीं सकती. पानी उसे घुला नहीं सकता. हवा उसे सुखा नहीं सकती.
आज हम ऐसी ही एक अफ़वाह की चर्चा करेंगे.
यह उस जमाने की बात है जब हिन्दोस्तान में एक धर्म विशेष को मानने वाले लोगों के बीच जोरशोर से एक अजीबोगरीब अफ़वाह फ़ैली हुई थी.
यह वही धर्म था, जिसके बारे में एक जाने माने जज ने फैसला दिया था कि असल में वो धर्म नहीं एक जीवन शैली विशेष है!
हालांकि उस धर्म की सबसे बड़ी पहचान यह थी कि उसे मानने वाले लोगों की हज़ारो श्रेणियां, उपश्रेणियां, उपउपश्रेणियां . उपुपुपश्रेणियां थीं और हर एक के लिए एक अलग ही तरह की जीवन शैली का विधान किया गया था, जो कि ब्रह्मा के विधान की तरह अटल था.
बहरहाल अफ़वाह यह थी कि यह दुनिया का सबसे उदार, सहिष्णु, सेक्युलर और शाकाहारी धर्म था. गो वे जानते नहीं थे कि यही अफ़वाह सभी धर्मों में अपने धर्म के बारे में फ़ैली रहती है.
यह अफ़वाह इस कदर फ़ैली हुई थी कि इस धर्म में जन्मे कम्युनिस्ट, नास्तिक और तर्कवादी भी इसे मानते थे.
इसलिए जब विभाजन के बाद भारत आए एक पाकिस्तानी शरणार्थी ने अपने सीने में जलती हुई बदले की आग ठंडी करने के लिए एक क़दीमी मस्जिद को गिराकर वहाँ उसी धर्म का एक मन्दिर बनाने का अभियान शुरू किया, तब लगभग हर एक संजीदा शहरी ने उसे एक कुंठित आदमी की अहमकाना उछलकूद के रूप में देखा. अफवाह का असर इस हद तक था कि जबतक मस्जिद को मिस्मार करने की कार्रवाई सचमुच शुरू नहीं हो गयी, तब तक कोई यह मानने को राजी नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है .
मस्जिद के शहीद हो जाने के बाद भी अफ़वाह का असर कम नहीं हुआ. अधिकतर लोगों ने यही समझा कि वह घटना एक आकस्मिक दुर्घटना थी. इस धर्म के धर्मी वैसे हैं नहीं. इसलिए बावज़ूद इसके कि देश में उनका विशाल बहुमत है, उनके ही नाम पर अंजाम दी गई इस वहशियाना हरकत को माफ नहीं किया जाएगा. कुंठित शरणार्थी कितनी भी उछल कूद कर ले , वह केंद्र में अपनी पार्टी की सरकार नहीं बनवा पाएगा.
फिर एक दिन उसी पार्टी की सरकार बन गयी. फिर भी उस अफवाह का जोर कम नहीं हुआ. कहा गया कि देखो, आखिर वह कुंठित शरणार्थी पीएम नहीं बन पाया . यह धर्मियों के उदार सेक्युलर और प्रगतिशील, होने की निशानी है . उसकी पार्टी भले पावर में आ गयी हो, लेकिन अब यह वही पार्टी नहीं है. यह बदल गयी है. यह ख़ुद उदार, सेक्युलर और दयालु हो गई है. यह धर्मियों के उदारता का सबूत है .
उसी दयालुता के दौर में एक प्रांत-विशेष में अभूतपूर्व मारकाट, आगजनी और तबाही हुई. अफ़वाह फिर भी यथावत बनी रही. माना गया कि यह एक क्षेत्र विशेष में घटी अघटनीय घटना थी. इसका देश की मुख्यधारा पर कोई असर नहीं होगा. और गुजरात के उस क्षत्रप को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. कुर्सी गंवानी पड़ेगी. क्योंकि धर्मियों का बहुमत ऐसे क्षत्रप को कभी बर्दाश्त नहीं करेगा, जिसकी अमलदारी में इतना खून-खराबा हुआ हो .
फिर एक दिन वही क्षत्रप हिन्दोस्तान का सुलतान बन गया. भारी बहुमत से धर्मियों ने उसे चुन लिया. क्या इसके बाद उस अफ़वाह का दम निकल गया? नहीं. उम्मीद की गई कि वह भले वही हो, लेकिन उसे वही होने के कारण नहीं , बल्कि विकास के उसके वादे पर चुना गया है . यह इसी बात का सबूत है कि धर्मी उदार, सहिष्णु और विकास-प्रेमी होते हैं.
जैसी कि उम्मीद थी, क्षत्रप ने इस उम्मीद को भी टिकने नहीं दिया. जल्दी ही उसने विकास की बोलती बंद कर उसी मारकाट को कमोबेस देश भर में फैला दिया, जिसने उसे प्रांत विशेष से निकाल आकर मुल्क का सुलतान बना दिया था. लेकिन अफ़वाह थी कि अब भी टिकी हुई थी.
और अब तो इस ऐंठ से टिकी हुई थी कि किसकी मजाल है सवाल उठाने की!
यह आत्मा के परमात्मा हो जाने क्षण था. यह भक्ति का नया सूत्र था.