इलाहाबाद, 3 अगस्त 2024, दिन शनिवार को जन संस्कृति मंच और समकालीन जनमत द्वारा जनमत की प्रबंध सम्पादक मीना राय को याद करते हुए एक व्याख्यानमाला का आयोजन अंजुमन रूह-ए-अदब, मेयो हॉल रोड, इलाहाबाद में किया गया। जिसका विषय ‘विद्रोह की एक महायात्रा: अक्क महादेवी’ था। इसके मुख्य वक्ता सुभाष राय थे, जिन्होंने ‘दिगंबर विद्रोहिणी अक्क महादेवी’ नाम से किताब भी लिखी है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजेंद्र कुमार और प्रस्तावना प्रणय कृष्ण ने दी, वक्ता के तौर पर कवि रुपम मिश्र ने भी अपनी बात रखी।
मुख्य वक्ता सुभाष राय ने कहा कि मैं ऐसा मानता हूं कि हमारे भीतर हमारे पुरखों की ऊर्जा कहीं न कहीं हम सबमें होती है। किसी- किसी में अधिक होती है । मीना भाभी जैसी स्त्रियां उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने दक्षिण की भक्ति को जोड़ते हुए बासवन्ना और अल्लम प्रभु की संत बनने की प्रक्रिया को बताया फिर अक्क महादेवी के जीवन के विषय में बताते हुए कहा कि उन्हें जब पति और आजादी को चुनने का प्रश्न आया तो उन्होंने आजादी को चुना। यह एक बड़ा संदेश है स्त्रियों के लिए। वे कहती है, आजादी के लिए वे वस्त्र भी छोड़ सकती हैं। चुनने की आजादी जीवन का बड़ा प्रत्यय है ।
प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए प्रणय कृष्ण ने कहा कि यह किताब एक तरह से उपलब्धि है। इस किताब में अक्क महादेवी ही यात्रा नहीं, बल्कि अल्लम प्रभु के साथ उनकी समकालीन कवयित्रियों की भी यात्रा है। अक्क महादेवी ने वस्त्र त्याग दिया था। वह कहती हैं, कि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। अपने एक वचन में वह शिव को अपना अवैध प्रेमी बताती हैं, जिससे वह शादी की प्रथा तोड़कर मिलना चाहती हैं। अक्क महादेवी जिस सामाजिक क्रांति में शामिल थीं उसका ज़िक्र इस किताब में देखने को मिलता है। यह संघर्ष 12वीं सदी का ही नहीं इक्कीसवीं सदी का भी है।
कवि रुपम मिश्र ने कहा कि मीना राय को याद करते हुए उनकी संघर्ष की स्मृतियां ही नहीं उनके जैसी तमाम संघर्ष करती स्त्रियों का संघर्ष याद आ जाता है । एक बिरादराना दुःख और संघर्ष किस्से जैसे ज़ेहन पर तारी हो जाता है। मीना राय का जीवन मनुष्यता, न्याय, समता और सामूहिकता के जीवन का सुन्दर स्वप्न एक मॉडल की तरह हमसब के सामने था।
उनसे बहुत कुछ सीखना और जानना था लेकिन एकदिन अचानक उनकी यात्रा थम गई हम हठात रह गये थे। जाने कितनी साध, सपने उनके साथ चले गये पर न्याय और हक की लड़ाई में वे हमारे सामने मिसाल की तरह खड़ी रहेगीं। ये अद्भुत संयोग है कि आज मीना राय स्मृति व्याख्यानमाला की शुरुआत अक्क महादेवी जैसी दिगम्बर विद्रोहिणी पर लिखी गयी किताब से हो रही है। और होना भी चाहिए था एक विद्रोहिणी को श्रद्धांजलि एक विद्रोहिणी की ही जीवन गाथा गाकर देना चाहिए।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए राजेन्द्र कुमार सर ने कहा, जब कोई पुरुष अपने युग को सम्बोधित करता है तो वह युग पुरुष कह दिया जाता है। लेकिन जब कोई स्त्री अपने समय को सम्बोधित करती है तो उसे युग स्त्री नहीं कहा जाता है। सुभाष राय ने अक्क महादेवी के साथ पूरी पूरी परम्परा को उद्घाटित करने की कोशिश की है।
एक तरह से प्रादेशिकता की सीमाओं से ऊपर उठकर उत्तर और दक्षिण का संवाद स्थापित किया गया है।
सांस्कृतिक स्तर पर भिन्नताएं हैं, भाषाभेद है बावजूद इसके भारतीय एकता को पहचानने की जरूरत है। अक्क महादेवी के वस्त्र त्याग पर कहते हैं, वस्त्र त्यागना नग्नता नहीं है, यह देह और आत्मा का एकात्मकता का दर्शन है, वस्त्र त्याग बाहर से भीतर की यात्रा है।
कार्यक्रम के अंत मे आभार ज्ञापन के. के. पांडे ने किया।
कार्यक्रम का संचालन शिवानी ने किया।
कार्यक्रम के दौरान सैकड़ों की संख्या में विश्वविद्यालय के छात्र, अध्यापक, साहित्यकर्मी, राजनीतिक कार्यकर्ता समेत शहर के बुद्धिजीवी शामिल रहे।