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सच और लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व लेखकों के ऊपर : रविभूषण

पटना।  “राजनीति झूठ के साथ चल रही है। भारत और पूरी दुनिया में लोकतंत्र के गर्भ से फासीवाद जन्म ले रहा है। लोकतंत्र के चारों स्तंभ तोड़ दिए गए हैं, खत्म कर दिए गए हैं। ऐसे समय में सच, लोकतंत्र, संविधान, जीवन के मूल्य, भाईचारे की रक्षा का दायित्व लेखकों के ऊपर है।”

प्रसिद्ध आलोचक डॉ. रविभूषण ने जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान के सभागार में 16 दिसंबर को आयोजित ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान समारोह’ का उद्‌घाटन करते हुए यह बातें कहीं ।

“हिंदी लेखकों के समक्ष चुनौतियाँ’ विषय पर केंद्रित अपने उद्‌घाटन वक्तव्य में डॉ. रविभूषण ने कहा कि हिन्दी पट्टी आज दक्षिणपंथियों का गढ़ बना हुआ है, जो कभी समाजवादियों और वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था। इसकी शुरुआत नवउदारवादी नीति के लागू होने और बाबरी मस्जिद ध्वंस से हुई। फिर गुजरात जनसंहार से मणिपुर तक भारत पूरी तरह बदल चुका है। ऐसे समय में हिंदी प्रदेश के लेखकों की भूमिका बहुत बढ़ जाती है। आज राजनीति ने बेशकीमती शब्दों को लील लिया है। बिहार में अभी भी चिंगारियाँ शेष है और यह चिंगारी बुझनी नहीं चाहिए।

उद्‌घाटन वक्तव्य के पूर्व अरविंद कुमार ने संयोजकीय वक्तव्य दिया। समारोह के अतिथियों और वक्ताओं ने बनारसी प्रसाद भोजपुरी की तस्वीर पर माल्यार्पण किया। जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध-संस्थान के डाइरेक्टर नरेंद्र पाठक ने स्वागत वक्तव्य दिया ।

बनारसी प्रसाद भोजपुरी भोजपुर के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, संपादक और साहित्यकार थे। उनकी स्मृति में आरंभ हुए सम्मान समारोह के आज 35 साल हो गए हैं। इस बार 2018 में कहानी के लिए पूनम सिंह, 2019 में कविता के लिए डॉ. विनय कुमार, 2020 में कहानी के लिए रामदेव सिंह, 2021 में कविता के लिए अनिल विभाकर, 2022 में कहानी के लिए रतन वर्मा और 2023 में कविता के लिए विनय सौरभ के लिए घोषित सम्मान एक साथ दिया गया। सम्मान में अशोक स्तंभ का प्रतीक चिहन,
शाल और ग्यारह हजार रुपये की राशि दी गयी।

 

सम्मानित साहित्यकारों के प्रशस्ति-पत्र का पाठ क्रमशः अनीश अंकुर, सुधीर सुमन, प्रणय प्रियवंद, ओम प्रकाश मिश्र, बालमुकुंद और संजय कुमार कुंदन ने किया। इन कवियों और कहानीकारों के रचनात्मक महत्त्व पर क्रमश: सुनीता गुप्ता, राकेश रंजन, संतोष दीक्षित, शिवद‌याल, सतीश कुमार राय एवं यादवेंद्र ने वक्तव्य दिया। सम्मान के निर्णायक मंडल के सदस्य के बतौर आलोक धन्वा ने कहा कि स्त्रियां बेहतर कविताएँ लिख रही हैं। अवधेश प्रीत ने कहा कि साहित्य आज राजनीति को परखने वाला मशाल है।

इस अवसर पर अभिधा बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित डॉ. रविभूषण के निबंधों की पुस्तक ‘आजादी : सपना और हकीकत’ का लोकार्पण कथाकार एवं विचारक प्रेम कुमार मणि ने किया। मणि ने कहा कि धर्म और राजनीति का आज मनुष्य के पक्ष में नहीं है। साहित्य की जिम्मेवारी है कि वह मनुष्य के पक्ष में खड़ा हो। उन्होंने कहा कि रविभूषण अपने समय और सभ्यता के समीक्षक हैं। भारत कुल मिलाकर एक विचार है। रविभूषण भारतीय समाज की स्थिति और उसके परिवर्तनों की बात करते हैं।

‘आज की कहानी और कविता’ पर विमर्श

समारोह के दूसरे सत्र में ‘आज की कहानी और कविता’ पर विमर्श हुआ, जिसकी अध्यक्षता कवि विमल कुमार, मीरा श्रीवास्तव और आलोक धन्वा ने किया । कविता पर बोलते हुए कवि रंजीत वर्मा ने कहा कि भारतेंदु, निराला और शुक्ल पर हिन्दुत्ववाद का प्रभाव रहा है, जिसकी परंपरा आज उत्कर्ष पर पहुंच गयी है। आज का साहित्य जनांदोलन से कटा हुआ है। विमल कुमार ने कहा कि चीजों के सरलीकरण से बचना चाहिए। हर कवि के भीतर अंतर्विरोध होता है। डॉ. रविभूषण ने कहा कि साहित्यकारों की भूमिका को संपूर्णता में देखना चाहिए।
आलोक धन्वा ने कहा कि कवियों में अच्छाई और बुराई दोनों होती है। बुराई को छोड़ देना चाहिए और जो सकारात्मक हो उसे ले लेना चाहिए। आज का समय बेहद खतरनाक है, ऐसे समय में हमारे बीच सम्मान होना चाहिए।

संचालन सुधीर सुमन ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सम्मान समारोह के संयोजक अरविंद कुमार ने किया। आयोजन में समकालीन जनमत के प्रबंध संपादक मीना राय की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया।

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