नवेंदु मठपाल
13 जून की सुबह सुबह जैसे ही फेसबुक खोला एक मित्र की वाल पर उत्तराखण्ड के लोकगायक, कुमाउनी कवि हीरा सिंह राणा जी के निधन का समाचार पढ़ने को मिला, विश्वास ही नही हुआ, जैसे-तैसे हिम्मत कर दिल्ली उनके आवास पर श्रीमती राणा जी के मोबाइल पर फोन किया, उधर से किसी और ने फोन उठाया, पता चला खबर सही है. एकदम सुबह ह्र्दयगति रुकने से उनका निधन हो गया. यह सुन सन्न रह गया.
अभी पिछले वर्ष 19 अक्टूबर रविवार का ही तो दिन था. जब सुबह सुबह अचानक मोबाइल का फोन बजा. उधर से श्रीमती विमला राणा जी का फोन था. बोलीं लीजिये राणा जी से बात करिये. राणा जी ने जानकारी दी वे हल्द्वानी से चल रहे हैं. पिताजी से मिलने रामनगर आ रहे हैं. एक घण्टा रुकेंगे फिर दिल्ली को लौट जाएंगे. अभी ज्यादा दिन नही हुए थे राणा जी के दिल्ली सरकार में कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी भाषा विकास परिषद का उपाध्यक्ष बनने की खबर मीडिया में प्रमुखता से छपे हुए. इसलिए इस बार उनसे मिलने का कुछ विशेष उत्साह था. मौका मिलते ही मैंने उनकी व्यस्तता के बीच ही कुछ समय उनसे कार्बेट पार्क के बीचो-बीच स्थित अपने विद्यालय के बच्चों के लिए भी ले लिया.
तय समय से थोड़ा देर से राणा जी पहुंचे. उत्तराखण्ड में लोकभाषाओं-कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी आदि की स्थिति, दिल्ली सरकार में मिले नए पद में उनकी भूमिका, जिम्मेदारियां इन सब पर पिताजी से खूब सारी बातचीत हुई. जल्दी ही फिर आता हूँ, बैठ कर बहुत सारी बातें करनी हैं, पिताजी से यह बोल उनका कारवाँ हमारे कालेज की ओर चल पड़ा. वहां उन्होंने बच्चों से सहजता ,सरलता से बातचीत की, कई गीत सुनाए , कठिन शब्दों का अर्थ भी समझाया. हीरा सिंह राणा जी का यह व्यक्तित्व मैने भी पहली बार देखा.
अपने गीतों से उत्तराखंडी जनमानस में काफी ऊंचा स्थान बना चुके 77 साल के हीरा सिंह राणा बच्चों के साथ अपने गीतों को गाते औऱ कठिन कुमाउनी शब्दों का अर्थ बताते ऐसे बतिया रहे थे जैसे उनके घर का ही कोई सदस्य हों. उन्होंने जब अपना सबसे प्रसिद्ध गीत ‘ लस्का कमर बांधा हिम्मत का साथा, भोल आयी उज्याली होलि कां तक रोली राता (कस कर कमर बांध लें, हिम्मत के साथ, कल फिर सुबह होगी, रात कब तक रहेगी) गाया तो बच्चों ने भी सुर में सुर दे डाला। उन्हें बहुत खुशी हुई कि बच्चों को उनका यह गीत याद है। उस दिन उनके पांव में काफी तकलीफ थी पर फिर भी उन्होंने कभी भी इसका अहसास नही होने दिया।
ऐसी ही बहुत सी यादें हैं जब राणा जी को नजदीक से देखने का मौका मिला। वर्ष 2016 में उनके पैर में फ्रेक्चर हुआ. वे एक माह से अधिक समय तक रामनगर के एक हस्पताल में भर्ती रहे. रात को खाना लेकर जाने की जिम्मेदारी मैने इस उद्देश्य से ले ली थी कि इस बहाने रोज उनके साथ बैठ कुछ बातचीत करने का मौका मिलता था.
78 बर्ष की उम्र में अपनी खनकती आवाज से पहाड़ की सुंदरता के साथ साथ उसके दर्द को उकेरने वाला, पहाड़ के संघर्षों को अपने स्वर देने वाला यह कवि, गायक अपने गीतों ,कविताओं के साथ हमको छोड़ कर चला गया.
पहाड़ में जब भी सामाजिक सरोकारों को लेकर कोई आंदोलन छिड़ेगा, रोजगार के लिए कोई परिवार पलायन करेगा, कोई युवा अपनी प्रेयसी का स्थानीय उपमाओं के साथ वर्णन करेगा, कोई महिला चट्टान पर घास काट रही होगी या कोई बच्चा अपनी बकरियों को हांकता हुआ घर को ले जा रहा होगा हीरा सिंह राणा वहां सशरीर नही होंगे पर उनके गीत उन सब जगहों पर मौजूद होंगे.