विमल किशोर
झारखण्ड का अपना इतिहास है। जून के मध्य में इस राज्य के एक महत्वपूर्ण शहर हजारीबाग जाने का मौका मिला। इसके पहले भी कई बार इस शहर में आ चुकी हूं। मेरे बड़े भाई साहब यहीं रहते हैं। 2013 में यहां हुई राष्ट्रीय कविता गोष्ठी में भी आने का अवसर मिला था। इस शहर से एक आत्मीय रिश्ता बन गया है, कारण सामाजिक, पारिवारिक और साहित्यिक है। यह शहर कभी हरियाली और प्राकृतिक संपदा से भरपूर था। कहते हैं कि यहां कभी हजार आम और अन्य पेड़ों के बगीचे थे। इसी से इसका नाम हजारीबाग पड़ा।
झारखण्ड वह राज्य है जहां हमारा आदिवासी समाज रहता है। यह कई जातियों व जनजातियों से मिलकर बना है। मुण्डा जनजाति यहां की प्रमुख है। देश की गुलामी के समय आदिवासियों ने अपनी स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से बेमिसाल संघर्ष किया था। जब अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों की जमीने छीनी जाने लगी, वहां की नदियों व तालाबों पर वे कब्जा करने लगे और आदिवासियों को प्रताडि़त किया जाने लगा तब मूल रूप से मुंडा जनजाति के बिरसा मुण्डा ने इसका विरोध किया। उनकी उम्र महज 19 साल की थी। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जो संघर्ष किया, वह इतिहास में ही नहीं लोगों की जबान पर दर्ज है।
उन्होंने आदिवासियों की सेना संगठित की। तीर-धनुष से अंग्रेजों का मुकाबला किया। पहली अक्टूबर 1894 को उन्होंने अंग्रेजों से संघर्ष किया। इसमें अंग्रेजों की मुंह की खानी पड़ी। उनके संघर्ष को उलगुलान के नाम से जाना जाता है। बाद में वे गिरफ्तार हुए और लड़ते हुए मात्र 25 साल की उम्र में शहीद हुए। जिस बहदुराना ढंग से अंग्रेजों का मुकाबला किया इसकी वजह से लोग उन्हें ‘ धरती आबा ’ कहते हैं।
आज भी आदिवासी समाज और समूचे झारखण्ड में बिरसा मुण्डा भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। उन्हे लोग आयरन मैन के नाम से भी याद करते हैं। इन्हें लेकर कई फिल्में भी बनी है जिनमें ‘बिरसा मुण्डा द आयरन मैन’ प्रमुख है। इस बार के हजारीबाग के प्रवास के दौरान इस फिल्म के एक प्रमुख कलाकार श्री अशोक अखौरी से मुलकात हुई जिन्होंने इसमें जमीन्दार का रोल अभिनीत किया।
हजारीबाग यात्रा की यह उपलब्धि रही। हमने स्वर्ण जयन्ती पार्क में लगी बिरसा मुण्डा की तस्वीर का भी दर्शन किया। कवि शंभु बादल और कौशल किशोर भी साथ थे। यह रोमांचति कर देने वाला लम्हा था। मुझे इसमें 23 साल के शहीदे आजम भगत सिंह नजर आ रहे थे। जब उनकी मूर्ति के सामने खड़ी थी लग रही था, मैं अपने शहीदों के पास हूं। अजीब सा रोमांच हो रहा था। मुट्ठियां भीच गई थी। रोंगटे खड़े हो रहे थे। उस वक्त ऐसा ही अहसास हो रहा था।
जहां तक हजारीबाग के पर्यावरण की बात है, अब पहले जैसी बात नहीं रही। यह शहर कंक्रीट में बदलता जा रहा है। इस बार की यात्रा में यह देखने को मिला। हमने गौर किया कि परिन्दे भी कम हो गये हैं। हरियाली के बावजूद वे कम दिख रहे थे। हजारीबाग शहर से कुछ दूरी पर संरक्षित वन क्षेत्र है जो यहां आने वालों को रोमांचित करता है। यह नेशनल संचुरियन पार्क के नाम से जाना जाता है जिसका रख-रखाव वन विभाग द्वारा किया जाता है। करीब दस किलोमीटर अन्दर तक हम गये। पर कोई जानवर देखने को नहीं मिला। बस, इक्का-दुक्का हिरन देखने को मिले। हां, पाले गये दो मोर से जरूर मुलाकात हुई।
वहां के कर्मचारियों ने बताया कि यह जंगल बहुत बड़ा है। इसका फैलाव चतरा तक है। काफी अन्दर हाथियों का झुण्ड रहता है जो कभी-कभार इधर भी आ जाता है। इस जंगल में जंगली पशु भी हैं लेकिन हिंसक जानवर जैसे तेंदुआ, चीता, बाघ आदि इस जंगल में नहीं हैं।
अब भी हजारीबाग और उसके आसपास स्थित तिलैया डैम, झील, स्वर्ण जयन्ती पार्क, पहाडि़यां, कनेरी हिल आदि इस क्षेत्र के सौदर्य को बचाये हुए है। इसका प्रभाव मौसम पर भी पड़ता है। अन्य जगहों की तुलना में यहां गर्मी का अहसास कम होता है। पहले जब यह बागों व प्राकृतिक सम्पदा से भरा था, यह हिल स्टेशन के मौसम का आनन्द देता था। लेकिन जंगलों का सिमटते जाना, आबादी का बढ़ते जाना आदि ने इस क्षेत्र को पहले की तुलना में गर्म बना दिया है।
आज विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई हो रही है। जंगल क्षेत्र व खेत सिमटते जा रहे हैं। हरियाली कम होती जा रही है। आधुनिकीकरण की वजह से पर्यावरण दूषित हो रहा है। यहां के तापमान के बढ़ने के पीछे यह प्रमुख कारण है। अब यहां के लोग भी गर्मी से बेहाल होते नजर आते हैं। फिर भी मैदानी इलाकों की अपेक्षा यहां राहत है। आज भी हजारीबाग जाने पर प्राकृतिक सौदर्य का बोध होता है और वह अपनी ओर खींचता है। हम लखनऊ की गर्मी से निकल यहां आये थे, हमें हजारीबाग में बड़ी ताजगी मिली। अपने लोगों, मित्रों से मिलकर यह ताजगी और बढ़ गई।
[author] [author_image timthumb=’on’][/author_image] [author_info] विमल किशोर चित्रकार हैं. लखनऊ में रहती हैं [/author_info] [/author]
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