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हाथरस बलात्कार एवं हत्या केस :  एक साल बाद भी परिवार न्याय की आस में

( ‘द हिन्दू’  16 सितम्बर को प्रकाशित अनुज कुमार की इस रिपोर्ट को दिनेश अस्थाना ने हिंदी अनुवाद कर समकालीन जनमत के पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है )

दलित बालिका का दूसरी जाति के चार लोगों द्वारा बलात्कार किया गया और उसे गाँव के खेत में खून से लथपथ छोड़ दिया गया था।
इस संवाददाता ने जब पिछली बार उस गाँव का दौरा किया था उस समय दालान की पीछे की दीवारें देवी-देवताओं के पोस्टरों से लदी पड़ी थीं, इस बार वे गायब थे। दो कमरों के घर की छत पर सी0आर0पी0एफ0 का एक जवान गश्त लगा रहा था। दूसरा छप्पर की छत वाली रसोई में था, वह शायद कुछ खाना गरम कर रहा था। घर के बाहर बदबू मारता हुआ गोबर का पहाड़ खड़ा था। दलित बालिका का दूसरी जाति के चार लोगों द्वारा बलात्कार किये जाने और उसे गाँव के खेत में खून से लथपथ छोड़ दिये जाने के एक साल बाद आज भी हाथरस के इस गाँव में पीड़िता के परिवार के लोग सी0सी0टी0वी0 कैमरों और सुरक्षा बल की टुकड़ी की लगातार घूरती नज़रों से जूझ रहे हैं।

पीड़िता के पिता ने कहा, ‘‘बहुत निराशा और घुटन होती है। हमें मालूम है कि इन्हीं लोगों के चलते हम सुरक्षित हैं, इस घटना ने हमें गाँव में पहले से ज्यादा अछूत बना दिया है, पर हम भी एक सामान्य जीवन जीना चाहते हैं। सिर्फ एक ब्राह्मण परिवार ने हमारी 3.5 बीघा जमीन को बटाई पर जोतने-बोने पर हामी भरी है।’’

उस वीभत्स हादसे को याद करते हुये पीड़िता के बड़े भाई ने कहा कि जब उनकी 19 साल की बहन मिली तो उसकी गर्दन और गुप्तांगों में गहरे ज़ख़्म थे। उसे अलीगढ़ के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल काॅलेज और अस्पताल ले जाया गया। जब उसकी हालत बिगड़ने लगी तो उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया जहाँ 29 सितम्बर को उसकी साँसें उखड़ गयीं। उसके शव को एक एम्बुलेंस में गाँव लाया गया और पुलिस और जिले के अफसरान ने रात 3.30 के लगभग उसे जबरदस्ती जला दिया। सन्दीप (20), रवि (35), रामू (26) और लवकुश (23) की गिरफ्तारी की गयी थी।

ताने और टीका-टिप्पणी

उसके पिता ने बताया, ‘‘हमें कोई नहीं पूछता और जब हम लोग सुनवाई के लिये जाते हैं तो हमपर ताने उछाले जाते हैं और टीका-टिप्पणी की जाती है, जैसे कि अपनी बेटी के लिये इन्साफ़ माँग कर मैंने कोई जुर्म कर दिया है’’ और आगे यह भी कहा कि हमारे परिवार ने कभी सामाजिक नियमों को तोड़ने की कोशिश नहीं की। ‘‘एस0एच0ओ0 जब वहाँ आये थे तो मैंने चिकित्सकीय जाँच की माँग की थी लेकिन उन्होंने इज़्ज़्ात का वास्ता देकर मेरा मुँह बन्द करने की कोशिश की, कि इससे उसकी शादी में अंड़चनें आयेंगी। मेरी बेटी ने साफ तौर पर कहा था कि उसका बलात्कार हुआ है, प्रशासन ने जानबूझ कर चिकित्सकीय जाँच में देरी की। वे नहीं चाहते थे कि अपराध का बलात्कार वाला हिस्सा प्रकाश में आये। पर मैं फिर भी गिड़गिड़ाता रहा……….लेकिन उन्होंने मेरी बात अनसुनी कर दी और हमें एहसास करा दिया कि वे हमारी बेटियों के साथ कुछ भी कर सकते हैं।’’

पीड़िता के बड़े भाई, जो तीन बेटियों के पिता भी हैं, अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर चिन्तित हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जब वे स्कूल जायेंगी तो क्या सुरक्षित रहेंगी। जब हमारे वकील पर भी भद्दे जुमले उछाले जाते हैं, उनका पीछा किया जाता है तो फिर हमलोग किस खेत की मूली हैं’’। उन्हें ऐसी ही घटनाओं के अकबराबाद (अलीगढ़), दिल्ली और मुम्बई में भी होने पर ताज्जुब होता है। वह कहते हैं, ‘‘ इस घटना के बाद भी महिलाओं  की हालत ज्यों की त्यों है, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।’’

उसका छोटा भाई और भी ग़मज़दा और मायूस है। उसने कहा, ‘‘भगवान के फोटो फट गये थे, इसलिये हमने उन्हें हटा दिया। मतलब यह कि हमें हिन्दू माना ही नहीं जाता। हमारे सारे रोज़गार बन्द हो गये हैं। पिछले एक साल से जब भी मैं अपनी बहन का अस्थिकलश देखता हूँ, तो पूछता हूँ कि हमें यह दिन क्यों देखना पड़ा।’’

पीड़िता के परिवार को उ0प्र0 सरकार द्वारा 25 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया था, पर पिता का कहना है कि अगर मुकदमा ऐसी ही खिंचता रहा तो ये रुपये कितने दिन चलेंगे।

सी0आर0पी0एफ0 के एक वरिष्ठ सिपाही ने नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि उसने पहले कभी भी किसी ऐसे परिवार की चौकीदारी नहीं की जिसके पड़ोसी उसके ठीक सामने रह कर उसकी छाती पर मूँग दल रहे हों। उसने कहा कि यह कितना अज़ीब लगता है कि पूरे गाँव ने पीड़िता के घर के ठीक सामने गोबर और कूड़े-कचरे का अम्बार लगा दिया है। ‘‘जब बारिश होती है तो हमारा वहाँ रहना मुश्किल हो जाता है क्योंकि उसमें से न सिर्फ़ बदबू उठती है बल्कि उससे संक्रमण भी फैल सकता है।’’

दो मामले दर्ज़ किये गये

 बालिका की मृत्यु के बाद दो मामले दर्ज़ किये हैं। एक ओर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शव के ‘बलपूर्वक’ जलाये जाने पर स्वतः संज्ञान लिया है और दूसरे हाथरस के ही अनुसूचित जाति/जनजाति न्यायालय में बलात्कार और हत्या का मामला चल रहा है।
सुनवाई की गति पर सन्तोष व्यक्त करते हुये पीड़िता की वकील सीमा कुशवाहा को आशा है कि परीक्षण न्यायालय अगले दो माह में अपना निर्णय सुना देगा। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि, ‘‘दूसरा सकारात्मक विकास यह है कि उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार से कहा है कि वह एक ऐसी मानक कार्यशैली विकसित करे जिसमें किसी गम्भीर अपराध के पीड़ित का अन्तिम संस्कार कानून और व्यवस्था का मामला बन जाय।’’

उन्होंने आगे बताया कि एक घर और एक सरकारी नौकरी दिये जाने का वादा अभी भी पूरा नहीं किया गया है। ‘‘इसके लिये एक न्यायिक व्यवस्था है और इस मामले में यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उस परिवार को मानसिक आघात से उबरने में मदद मिलेगी और शारीरिक हमले और धमकियाँ दिये जाने के अवसर कम हो जायेंगे।’’

इस मामले में पीड़िता के मृत्युपूर्व बयान और पीड़िता के पिता ने 16 सितम्बर को चिकित्सकीय जाँच के लिये जो लिखित अनुरोध किया था, ये दोनों बहुत ही मजबूत साक्ष्य हैं।

आरोपी के परिवार के सदस्य भी नाराज़ और निराश हैं। उनका गुस्सा मीडिया पर है कि उसने न्यायिक परीक्षण के पहले ही उनके बेटों को अपराधी बनाकर पेश कर दिया। उनका कहना है कि यह मामला ‘‘ ऑनर किलिंग’’ का लगने लगा साथ ही उन्होंने मृत्युपूर्व बयान पर आधारित सी0बी0आई0 के आरोप-पत्र को भी ‘‘फ़र्ज़ी दस्तावेज़’’ बता दिया। ‘‘राकेश के बाबा संदीप का कहना है कि, ‘‘हम भी चाहते हैं कि हमारे गाँव की बेटी के साथ न्याय हो पर इसका मतलब यह तो नहीं कि आप मासूमों को ही लटका दें।’’

उनका आरोप है कि स्थानीय सांसद पीड़िता की जाति के हैं, इसलिये सरकार उस परिवार की तरफ़दारी कर रही है। ‘‘फिर भी मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूँ उन्हें पीड़िता के परिवार के तीन वोट भी नहीं मिलेंगे।’’

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