भीमा-कोरेगांव हिंसा केस में मुंबई की एक जेल में दो वर्ष से बंद विख्यात कवि 81 वर्षीय वरवर राव की तबियत काफी खराब है और उन्हे न तो जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करायी जा रही है न परिजनों को उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी जा रही है। वरवर राव की पत्नी पी0 हेमलता और पुत्रियों पी0 सहज, पी0 अनल व पी0 पवन ने आज एक बयान जारी कर कहा है कि तलोजा जेल के अस्पताल में वरवर राव की गम्भीर बीमारी के इलाज के लिये न तो चिकित्सा विशेषज्ञ हैं और न ही उपकरण। इसलिये यह बहुत आवश्यक है कि उन्हें बचाने के लिये किसी पूर्णसज्जित सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में स्थानान्तरित कर दिया जाय।
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नवी मुम्बई के तलोजा जेल में निरुद्ध तेलगू भाषा के विश्व-विख्यात कवि एवं बुद्धिजीवी वरवर राव के हम पारिवारिक सदस्य उनके लगातार गिरते स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिन्तित हैं। मई 28, 2020 को जब उन्हें बेहोशी की हालत में तलोजा जेल से जेजे अस्पताल ले जाया गया था तब से ही उनकी हालत चिन्ताजनक बनी हुयी है। तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी करके उन्हें जब जेल वापस भेजा गया था, उस समय भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ था और आज भी उन्हें आपातकालीन स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल की जरूरत है।
शनिवार की शाम से उनसे मिलने वाली नियमित फोन काल्स इस समय हमारी तात्कालिक चिन्ता का कारण बन गयी है। हाँलाकि पिछली 24 जून और 2 जुलाई को जो दो कालें मिली थीं वे भी चिन्ताजनक थीं, उनकी आवाज़ बहुत कमजोर और टूटी-फूटी थी, असम्बद्ध थी और बीच-बीच में वह हिन्दी में बोलने लगते थे। चूँकि वह पाँच दशकों से अधिक से तेलगू भाषा के वाक्पटु और धाराप्रवाह वक्ता और चार दशकों से तेलगू भाषा के अध्यापक रहे हैं और अपनी कुशल स्मृति के लिये जाने जाते रहे हैं, इसलिये इस प्रकार का अस्थिर और असम्बद्ध वार्तालाप और स्मृतिलोप अपने आप में विचित्र और भयावह है।
परन्तु 11 जुलाई को हुयी उनसे पिछली बातचीत बहुत अधिक चिन्ताजनक है, उनकी तबीयत के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कोई सीधा उत्तर नहीं दिया और एक तरह के प्रलाप और मतिभ्रम में जाकर अपने पिता और माता के अन्तिम संस्कार की बातें करने लगे जबकि ये घटनायें क्रमशः सात और चार दशक पहले घटी थीं। इसके बाद उनके सह-आरोपी ने उनके हाथ से फोन ले लिया और हमें बताया कि वह चल-फिर नहीं सकते, न शौचालय जा सकते हैं और न ही अपने हाथ से ब्रश कर सकते हैं। हमें यह भी बताया गया कि वे हमेशा इस भ्रम में रहते हैं कि उनकी छुट्टी होने वाली है और उनके परिवार के सदस्य, हम लोग जेल के फाटक पर उन्हें ले जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
उनके एक बन्दी साथी ने भी बताया कि न सिर्फ उनके शारीरिक बल्कि मानसिक रोगों के लिये भी उन्हें तुरंत चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है। मतिभ्रम, याददाश्त का ग़ायब होना और असम्बद्ध व्यवहार इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन और सोडियम और पोटेशियम स्तर गिरने के कारण होेता है जिससे मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो सकता है। यह इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन मृत्यु का भी कारण बन सकता है। तलोजा जेल के अस्पताल में ऐसी गम्भीर बीमारी के इलाज के लिये न तो चिकित्सा विशेषज्ञ हैं और न ही उपकरण। इसलिये यह बहुत आवश्यक है कि उन्हें बचाने और किसी सम्भावित मस्तिष्क-आघात और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन के चलते उनके जीवन पर आसन्न खतरे को टालने के लिये उन्हें किसी पूर्णसज्जित सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में स्थानान्तरित कर दिया जाय।
इस मौके पर हम इन समस्त प्रासंगिक तथ्यों को एक किनारे छोड़ रहे हैं कि उनके खिलाफ़ साज़िशन मामला बनाया गया है; कि एक विचाराधीन कैदी के रूप में उन्होंने 22 महीने गुजार दिये हैं, यह भी एक प्रकार का दण्ड ही है; कि अबतक उनकी पाँच जमानत याचिकायें निरस्त की जा चुकी हैं और यहाँ तक कि उनकी आयु, खराब स्वास्थ्य और कोविड के प्रति उनकी संवेदनशीलता के आधारों की भी अनदेखी की गयी है। इस समय उनके जीवन की चिन्ता हमारे लिये सर्वोपरि है। हमारी इस समय एक ही माँग है कि उनका जीवन बचा लीजिये। हम सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि किसी व्यक्ति के जीने के अधिकार से इन्कार करने का उसके पास कोई अधिकार नहीं है चाहे वह विचाराधीन कैदी ही क्यों न हो।