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सरकार कंगाल, सरकार चलाने वाली पार्टी मालामाल !

“देश नहीं बिकने दूँगा” नारा लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने एयर इंडिया की शत-प्रतिशत सरकारी हिस्सेदारी बेचने का फैसला ले लिया है. दो साल में एयर इंडिया को बेचने की यह दूसरी कोशिश है. 2018 में केंद्र सरकार ने इस विमानन कंपनी के 76 प्रतिशत शेयर बेचने के लिए टेंडर निकाला था. लेकिन उस समय कोई खरीददार नहीं मिला. केंद्रीय विमानन मंत्री हरदीप पुरी के अखबारों में छ्पे बयान को देख कर तो ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार एयर इंडिया को बेचने की शर्तें भी खरीदने वालों के हिसाब से तय कर रही है. मंत्री कह रहे हैं कि सरकार संभावित खरीददारों के सुझाव पर शर्तों में आगे भी बदलाव करने को तैयार है. समाचार पत्रों में सामने आए ब्यौरे के अनुसार 85 हजार करोड़ रुपये के एयर इंडिया के कर्ज में से केवल 23 हजार 286 करोड़ रुपये का कर्ज ही खरीददार को चुकाना होगा. इसका आशय यह है कि लगभग 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज सार्वजनिक धन से चुकता होने के बाद इस कंपनी को निजी हाथों में सौंपा जाएगा. एयर इंडिया का 2018-19 का राजस्व 30632 करोड़ रुपया है. लेकिन खरीदार की हैसियत 3500 करोड़ रुपये की हो तो वह इस कंपनी को खरीद सकता है. केंद्रीय विमानन मंत्री हरदीप पुरी के अनुसार “खरीददार के लिए अच्छा सौदा होगी एयर इंडिया.” सवाल यह है कि यदि यह किसी निजी खरीददार के लिए अच्छा सौदा है तो फिर वर्तमान में इसका संचालन करने वाली सरकार के लिए यह बोझ क्यूँ है ?

लेकिन एयर इंडिया एकलौती सरकारी कंपनी नहीं है, जिसे “देश नहीं बिकने दूँगा” का घोष करने वाले मोदी जी की सरकार बेच रही है. भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड(बीपीसीएल), भारतीय कंटेनर कार्पोरेशन, भारतीय शिपिंग कार्पोरेशन, टीएचडीसी, नॉर्थ ईस्ट इलैक्ट्रिक पावर कार्पोरेशन आदि में अपनी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय केंद्र सरकार ले चुकी है.यह बिक्री इसलिए हो रही है क्यूंकि सरकार की आर्थिक दशा बेहद खराब है.

सरकार की आर्थिक दशा तो निश्चित ही बेहद खराब है.अंगेजी अखबार- टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार सशस्त्र सीमा बल(एसएसबी) ने अपने सैनिकों के विभिन्न भत्तों पर रोक लगा दी है. बल की तरफ से अपने संघटकों को बताया गया है कि उसके पास मुश्किल से अगले दो महीने का वेतन देने लायक पैसा है. पिछले वर्ष सितंबर में भी एसएसबी के राशन भत्ते का भुगतान गृह मंत्रालय द्वारा समय पर नहीं किए जाने से जवानों को इस भत्ते का भुगतान रोक दिया गया था. समाचार पत्रों में खबर छपने के बाद ही राशन भत्ते की बकाया धनराशि का भुगतान गृह मंत्रालय द्वारा किया गया था.

देश की अर्थ व्यवस्था की हालत इस कदर पतली है कि सरकार सार्वजनिक कंपनियां बेच रही है, सैनिकों को वेतन भत्ते के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं. पैंतालीस साल में इससे अधिक बेरोजगारी कभी नहीं रही. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2018 में 12936 बेरोजगार युवाओं ने आत्महत्या कर ली. इसी दौरान आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 10349 थी. इन विकट हालातों के बीच देश की सत्ता पर काबिज पार्टी-भाजपा की आर्थिक सेहत पर भी नजर डाल ली जाये. भाजपा द्वारा चुनाव आयोग में जमा की गयी ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 2018-19 की पार्टी की आय 2410 करोड़ रुपया है. 2017-18 में यह 1027 करोड़ रुपया थी. अँग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका- द वीक के अनुसार एक साल में भाजपा की आय में 134 प्रतिशत की वृद्धि हुई. भाजपा की इस 2410 करोड़ रुपये की आय में से 60 प्रतिशत यानि 1450 करोड़ रुपये उन इलेक्टोराल बॉन्ड के जरिये आए,जिनमें देने वाले की पहचान सार्वजनिक नहीं होती और ना ही इस बात का पता लगाया जा सकता है कि जो पैसा दिया जा रहा है, वह कालाधन तो नहीं है.

इस तरह देखें तो जहां मोदी जी के राज में सरकारी कंपनियों की हालत निरंतर बद से बदतर होती गयी,सैनिकों को तनख्वाह के लाले हैं,किसान और नौजवान आत्महत्याओं का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है, वहीं सत्ताधारी पार्टी का कोष भी लगातार फलफूल रहा है. भाजपा बड़ी देशभक्त पार्टी होने का दावा करती है. लेकिन यह देशभक्ति का कौन सा मॉडल है जिसमें सरकार तो कंगाल होती जाती है और सरकार चलाने वाली पार्टी मालामाल होती जाती है ?

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