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महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा की छात्राओं ने कुलपति का घेराव किया

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र में प्रसाशनिक लापरवाही एवं मनमाने फैसले के विरुध्द विश्वविद्यालय की छात्राओं ने कुलपति का घेराव किया.

कहने को तो हिंदी विश्वविद्यालय महाराष्ट्र का एक मात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है परन्तु छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों को बुनियादी सुविधा देने में असफल नज़र आ रहा है. कुलपति को घेराव करने के कई बड़े कारण थे जिसमें महिला छात्रावास का मुद्दा प्रमुख नजर आया. महिला छात्रावास में सिर्फ 94 कमरे हैं जिनमें  300 से ज्यादा छात्रायें रखी जा रही हैं और विश्वविद्यालय प्रशाशन मौन धारण किये हुए बैठा है. साथ ही विद्यार्थियों के मेस में गुणवत्ता युक्त भोजन, सुरक्षा और शुद्ध पेयजल की समस्या को लेकर लापरवाही बरत रहा है.

इन सभी समस्याओ को लेकर छात्राओ ने कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन को शिकायती पत्र के माध्यम से अवगत कराया परन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा कोई सकरात्मक कार्यवाही न किये जाने के कारण अन्तः कार्यकारी कुलपति का एवं कुलसचिव का घेराव कर धरने पर बैठ गयीं. छात्राओ के विरोध को देखते हुए कुलपति द्वारा मौखिक तौर पर आश्वस्त किया है कि जल्द ही सभी समस्याओ का समाधान किया जायेगा परन्तु ये नहीं बताया कि कब तक उनको मूल भूत आवश्यकताओं को दिया जायेगा. वहीं छात्राओ का कहना है कि दो दिन के अन्दर उनकी इन समस्या का समाधान नहीं हुआ तो हम आन्दोलन को विवश होना पड़ेगा.

विद्यार्थियों का कहना है कि इन सभी समस्याओ का कारण कही न कहीं सरकारी धन का बंदरबाट में संलिप्ता का होना बताया जा रहा है. साल भर पहले बन तैयार होने वाला राजगुरु हॉस्टल अभी तक नहीं बना. छात्राओ के लिए नया जो हॉस्टल बनाना था वो फीता कटाई की रश्म के लिए रूका हुआ जिसका धन आवंटित हो चुका है. वही पीने पानी की समस्या का हल न किये जाने का कारण एक निजी पानी का शुद्धिकरण  पूर्तिकर्ता को फायदा पहुचाने का आरोप छात्रों ने लगाया है.

हिंदी विश्वविद्यालय में सिर्फ महिला छात्रावास ही बुरी स्थिति से नहीं गुज़र रहा है बल्कि यहाँ अन्य छात्रावासों का भी यही  हाल है जहां एक कमरे में एक साथ तीन छात्र रहने को मजबूर है और आये दिन किसी न किसी बात पर छात्रों के बीच मार-पीट की घटना सुनने को मिल जाती है जो एक ही कमरे में विभन्न संकायों के वरिष्ठ एवं कनिष्ठ विद्यार्थियों को साथ रखने के बाद उत्पन्न हुई है. विश्वविद्यालय के विद्यार्थी लगातार विभिन्न असुविधाओं से जूझ रहे हैं और प्रशासन सिर्फ टालमटोल कर बीच का रास्ता निकालने में लगा है.

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