( आथिरा पेरिंचेरी की यह रिपोर्ट ‘द वायर ’ में 19 फरवरी को प्रकाशित हुई है। समकालीन जनमत के पाठकों के लिए इसका हिन्दी अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है )
25 जनवरी को, जब दिल्ली विधानसभा का चुनाव-अभियान अपने चरम पर था तब, उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने आम आदमी पार्टी (आप) के अरविन्द केजरीवाल को अपने राज्य के प्रयागराज में संगम में एक डुबकी लगाने का न्योता दिया था, यह बताने के लिये कि कैसे वह दिल्ली से गुजरनेवाली यमुना को अभी तक साफ नहीं रख पाये। उन्होंने कहा था कि, ‘‘इससे (संगम में डुबकी लगाने से) उनका (आप की दिल्ली सरकार का) कुछ भला हो जायेगा।’’
अभी एक महीने से भी कम हुआ है, लगता है कि आदित्यनाथ अपने शब्द वापस ले सकते हैं। 3 फरवरी को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें कहा गया है कि उस प्रयागराज में गंगा के पानी में- जहाँ एक सरकारी अनुमान के अनुसार 45 करोड़ से अधिक भक्तों का महाकुम्भ मेले में जुटान हो रहा है, फीकल कोलीफाॅर्म (मल में पाया जानेवाला बैक्टीरिया) का स्तर मानकों के लगभग 20 गुने से अधिक पाया गया है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि यहाँ गंगा का जल मल-पदार्थों के चलते इतना प्रदूषित हो गया है कि वह डुबकी लगाने के योग्य नहीं रह गया है।
आदित्यनाथ ने हाँलाकि इन दावों से एकदम इन्कार कर दिया है। बुधवार (19 फरवरी) को उत्तर-प्रदेश विधान-सभा में बोलते हुये उन्होंने कहा कि प्रयागराज का पानी नहाने के लिये और आचमन के लिये भी एकदम ठीक है।
जल-विशेषज्ञ एवं साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एण्ड पीपुल (एस0ए0एन0डी0आर0पी0) के को-आर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर का कहना है कि अधिकारियों द्वारा महाकुम्भ की तैयारियों के दौरान ‘ विशेष ध्यान ’ दिये जाने के बावजूद पानी में फीकल कोलीफाॅर्म की मात्रा में यह तीव्र बढ़ोत्तरी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि एक लम्बे अरसे तक नदी की सफाई न किये जाने के पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है।
उन्होंने यह भी कहा कि गंगा की सफाई केवल कुम्भ के मौके पर ही नहीं वरन पूरे साल होनी चाहिये और जल की गुणवत्ता सम्बन्धी सूचना कुम्भ के प्रत्येक स्थल पर लगानी चाहिये, क्योंकि यह लोगों का अधिकार है कि उन्हें इस बात की जानकारी रहे कि वे कैसे जल में स्नान करने जा रहे हैं।
कोलीफाॅर्म एवं फीकल-कोलीफाॅर्म का अत्यंत उच्च-स्तर
3 फरवरी को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को प्रस्तुत रिपोर्ट के इस अंश में प्रयागराज महाकुम्भ 2025 में नदी-जल में प्रदूषण मापने के सभी आवश्यक अवयवों- बायोकेमिकल ऑक्सीजन माँग, टोटल कोलीफाॅर्म और फीकल कोलीफाॅर्म स्तरों के मानकों के आधार पर 3 सूचियाँ प्रस्तुत की गयी हैं।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को प्रस्तुत केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण विन्दुओं में 12 से 15 जनवरी, तथा 19, 20 एवं 24 जनवरी की तिथियों में उपरिवर्णित जल-गुणवत्ता मानकों की जाँच के आंकड़े सम्मिलित किये गये हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘‘ फीकल कोलीफाॅर्म के सन्दर्भ में, विभिन्न अवसरों पर, निगरानी में सम्मिलित सभी स्थानों से एकत्र नदी-जल की गुणवत्ता स्नान-योग्य जल के प्रारम्भिक गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं पायी गयी। प्रयागराज में महाकुम्भ के दौरान एवं स्नान के प्रमुख दिवसों पर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग स्नान कर रहे हैं और इसके चलते यह स्वाभाविक है कि फीकल सान्द्रता में वृद्धि हो जाय।
उदाहरण के लिये प्रयागराज के संगम घाट पर टोटल कोलीफाॅर्म और फीकल कोलीफाॅर्म के स्तर जो 12 जनवरी को क्रमशः 4,500 एवं 2,000 एमपीएन (मोस्ट प्राॅबेबुल नंबर्स प्रति 100 मिली) थे, 14 जनवरी को बढ़कर क्रमशः 49,000 एवं 11,000 एमपीएन हो गये थे और ये 19 जनवरी को और भी आगे बढ़कर क्रमशः 7,00,000 एवं 49,000 एमपीएन हो गये।
नदियों में आमतौर पर नालों के अशोधित जल के प्रवाह के कारण फीकल कोलीफाॅर्म का स्तर 2,500 एमपीएन से कम पाया जाना भी आदर्श ही माना जाता है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार प्रयागराज के दसों सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू हालत में हैं परन्तु उनमें से किसी की भी कार्यक्षमता परिचालन मानकों के अनुरूप नहीं है।
फीकल कोलीफाॅर्म के उच्च स्तर को देखते हुये गंगा नदी के प्रदूषण पर सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने कहा था कि उत्तर-प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने महाकुम्भ की शुरुआत से पहले, पिछले साल दिसम्बर में उसके द्वारा सुझाये गये कदमों का विवरण देते हुये ‘कृत कार्यवाही की विस्तृत रिपोर्ट’ प्रस्तुत नहीं की।
लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार 17 फरवरी को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने सदस्य सचिव एवं राज्य के अन्य अधिकारियों को निर्देशों की अवहेलना पर विचार करने के लिये 19 फरवरी को उपस्थित होने का आदेश दिया था। इस बैठक में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने बोर्ड एवं उत्तर-प्रदेश सरकार को प्रयागराज में गंगाजल में उपस्थित फीकल कोलीफाॅर्म एवं जल की गुणवत्ता के अन्य मानकों जैसे ऑक्सीजन स्तर को लेकर एक सुसंगत-विवरण प्रस्तुत न कर पाने के लिये लताड़ लगायी। अब प्राधिकरण ने विस्तृत-विवरण प्रस्तुत करने के लिये अधिकारियों को एक सप्ताह का समय दिया है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
‘ द वायर ’ से बातचीत में जल-विशेषज्ञ ठक्कर ने इस विषय को लेकर कई चिन्तायें व्यक्त कींः
सबसे पहली बात, ‘ विशेष ध्यान ’- जैसे कुम्भ के क्षेत्र से नालों का पानी किसी और क्षेत्र में मोड़ देना, आसपास के सारे चमड़े के कारखानों को बन्द कर देना, सारे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का चालू हालत में होना सुनिश्चित करना और ऊपरी क्षेत्र से और अधिक पानी का छोड़ा जाना आदि, अधिकारियों द्वारा कुम्भ मेले की तैयारी में उठाये गये इन कदमों के बावजूद पानी में फीकल कोलीफाॅर्म की मात्रा में यह तीव्र बढ़ोत्तरी हुयी।
दूसरे, कुम्भ की इन तमाम तैयारियों के साथ ही सरकार ने लोगों को इस मेले के लिये आमंत्रित भी किया। इसलिये सरकार को यह भी सुनिश्चित करना है कि इस अवधि में गंगा-जल की गुणवत्ता न सिर्फ नहाने के बल्कि सम्भवतः पीने के भी योग्य रहे क्योंकि उन्हें यह पता है कि लोग स्नान के साथ ही उस जल से आचमन भी करते हैं। लेकिन वे बुरी तरह नाकाम रहे।
तीसरे, ठक्कर ने इस बात को रेखांकित किया कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में जल की गुववत्ता के आंकड़े ‘कुछ गिने-चुने दिनों के’ हैं। ‘‘शेष आंकड़े अभी आने बाकी हैं और सभी आंकड़े तुरंत आमजन को उपलब्ध हो जाने चाहिये।’’
प्रकरण की गम्भीरता को देखते हुये उन्होंने सलाह दी कि कुम्भ में हर जगह बोर्ड लगाकर उनपर स्पष्ट रूप से यह अंकित किया जाना चाहिये कि ‘‘आचमन की बात तो छोड़िये, यह (पानी) स्नान करने के योग्य भी नहीं है।’’
ठक्कर ने यह भी कहा कि, ‘‘जनहित में इसका व्यापक प्रचार किया जाना चाहिये ताकि लोगों को पता चले कि उन्हें (इस कुम्भ में) क्या मिला।’’
‘‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह बहाना भी बनाया है कि जब इतने करोड़ों लोग एक साथ नहायेंगे तो बायोकेमिकल ऑक्सीजन माँग, टोटल कोलीफाॅर्म और फीकल कोलीफाॅर्म स्तरों में बढ़ोत्तरी लाज़मी है।’’ यह एकदम बकवास है। ‘‘आपके लिये लाज़मी है इन्तजा़मात…..यह सुनिश्चित करना कि इतने ज्यादे लोगों के आने के बावजूद गंगाजल की गुणवत्ता बरकरार रहे, उसमें कोई क्षरण न हो। यदि आप ऐसा नहीं कर पाते तो आपने अपना कर्तव्य ठीक ढंग से नहीं निभाया है और न ही समय रहते आप ने लोगों को इससे आगाह किया है।’’
ठक्कर के अनुसार पानी में नहानेवालों की अधिकतम संख्या निर्धारित होनी चाहिये ताकि नदी के जल की गुणवत्ता खराब होकर तयशुदा मानकों से नीचे न आ जाय।
पर क्या यह निश्चयन सम्भव है, विशेषतः तब, जब सवाल एक धार्मिक आयोजन का हो ? ठक्कर इसे बिल्कुल सम्भव मानते हैं, वह इसके समर्थन में एक अन्य धार्मिक आयोजन- 2013 की चारधाम यात्रा, में कई तीर्थयात्रियों की मृत्यु के बाद उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू की गयी उच्चतम वहन क्षमता के प्रकरण को उद्धृत करते हैं।
जहाँ तक गंगा का सम्बन्ध है, केवल कुम्भ के अवसर पर किये गये अस्थायी उपाय या कुछ ‘‘ प्रतीकात्मक परिवर्तन (काॅस्मेटिक चेंजेज़)’’ कारगर नहीं होंगे। ठक्कर का कहना है कि, ‘‘गंगा की सफाई का काम पूरे साल चलते रहना चाहिये, न कि केवल कुम्भ के मौके पर….एक नदी के तौर पर, पूरे साल भर। यदि ऐसा करने की राजनीतिक इच्छा-शक्ति हो तो यह बिल्कुल सम्भव है।
वास्तव में पूरे समय नदी में नालों का पानी बहाये जाने पर लोगों ने बार-बार चिन्ता व्यक्त की है। अशासकीय संस्था संकट मोचन फाउन्डेशन के अध्यक्ष वी0एन0 मिश्र ने, गंगा की स्वच्छता जिनका सपना है, 6 मार्च 2024 को ट्वीट किया था कि अपने कई हिस्सों में इसका पानी ‘नहाने लायक भी नहीं है’।’’ पिछले साल दिसम्बर में- जबकि गंगा को खासतौर पर महाकुम्भ के लिये साफ किया गया था- अपनी ताजा पोस्ट में उन्होंने लिखा था कि नालों का पानी अभी भी इस नदी में छोड़ा जा रहा है।
गंगा नदी में मानव-मल के प्रदूषण की ताजा खबर उस दौर में आ रही है जबकि सरकार इसकी सफाई पर लगातार खर्च कर रही है। पिछले साल अगस्त में द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार इस कार्य के लिये स्वीकृत 38,000 करोड़ रुपये की धनराशि में से जून 2024 तक 18,000 करोड़ रुपये स्वच्छ गंगा राष्ट्रीय मिशन के अन्तर्गत नमामि गंगे परियोजना के विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च किये जा चुके थे। इस मिशन के महानिदेशक ने स्वयं टिप्पणी की थी कि कार्य की गति बहुत धीमी है। और फिर भी करदाताओं के करोड़ों रुपये के सरकारी खर्च के बावजूद यह नदी अभी भी साफ नहीं हुयी है- एक डुबकी लगाने भर को भी नहीं- फिर भी उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री इसे सिरे से नकार रहे हैं।