इलाहाबाद.
कासगंज के साम्प्रदायिक दंगे की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि प्रतापगढ़ में बलात्कार करने के बाद राबिया की हत्या कर दी गयी। राबिया के न्याय के लिए आंदोलन चल ही रहा था कि शनिवार की रात को इलाहाबाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेज एडीसी से एलएलबी कर रहे छात्र दिलीप सरोज की बेरहमी से हॉकी, रॉड और ईंट से पीट पीटकर हत्या कर दी गयी। उसका कसूर सिर्फ इतना था कि अनजाने में हत्यारे से उसका पैर टकरा गया। अनजाने में पैर लग जाने भर से हत्यारे की सामंती अकड़ को इतनी ठेस पहुँची कि वो अपने कई साथियों को बुलाकर दिलीप को इतना मारा की वह कोमा में चला गया। कोमा में चले जाने के बाद भी हत्यारे उसको पीटते रहे।
कैसे और कहाँ हुई ये घटना
यूनिवर्सिटी मुख्य कैंपस से लगभग एक किलोमीटर दूरी पर एक रेस्तरां है, नाम है कालिका। यहीं शनिवार की रात दिलीप अपने दो साथियों के साथ खाना खाने आया था। बताया जा रहा है कि रेस्तरां की सीढ़ी पर बैठकर दिलीप अपने घर बात कर रहा था। इसी वक्त आरोपी विजय शंकर सिंह भी रेस्तरां में खाना खाने पहुँचा। सीढियाँ चढ़ते वक्त विजय शंकर का पैर दिलीप से लग गया। बस इसी बात पर विजय शंकर से कहासुनी हुई। इसपर विजय शंकर ने फोन करके कुछ लोगों को बुला लिया। वो हॉकी, रॉड लेकर आये और दिलीप को बेरहमी से मारने लगे।
घटना स्थल पर मौजूद कुछ लोगों ने इसका वीडियो बना लिया। वीडियो में साफ साफ देखा जा सकता है कि दिलीप के अचेत हो जाने के बाद भी हत्यारे उसको मार रहे हैं। जब दिलीप बिलकुल अचेत अवस्था में पहुँच गया तब रेस्तरां के मालिक अमित उपाध्याय उसको लेकर एसआरएन हॉस्पिटल ले गया। अगले दिन उसे शकुंतला हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ दिलीप ने आखिरी सांस ली।
क्या कहती है पोस्टमार्टम रिपोर्ट ?
दिलीप के मर जाने के बाद पुलिस ने आनन फानन में दिलीप के मृत शरीर को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया। पोस्टमार्टम से ये बात सामने आयी कि दिलीप के सर पर रॉड या हॉकी से हमला किया गया। इससे उसका सर तो नहीं फटा पर इंटरनल ब्लीडिंग हुई। अपराधी प्रहार करते रहे। वह कोमा में चला गया। उसके पूरे शरीर में गहरे चोट के साक्ष्य मिले हैं।
पुलिस की लापरवाही भी आयी सामने
जहाँ घटना हुई ठीक इसी के पास है लक्ष्मी चौराहा। लक्ष्मी चौराहे पर दो पुलिस वाले हमेशा देखे जा सकते हैं। पर आधे घंटे से भी ज्यादा देर तक चले इस जघन्य अपराध के बाद भी पुलिस वहां नहीं पहुँच सकी। 100 नंबर पर जब डायल किया गया तब कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला। वीडियो में पीछे से आवाज़ भी आ रही है कि पुलिस घटना के बाद आएगी। इससे साफ साफ समझा जा सकता है कि पुलिस का रवैया क्या है।
घटना के चौबीस घंटे के बाद भी पुलिस ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की। दिलीप के दम तोड़ देने के बाद जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र भारी संख्या में डीएम कार्यालय का घेराव किये तब जाकर पुलिस ने केस दर्ज किया। बताया जा रहा है कि घटना के बाद रसूखदार मुख्य आरोपी के सगे संबंधी कर्नलगंज थाने में देर रात जमे रहे और किसी तरह इस मामले को सेटल करवा लेने की कोशिश करते रहे थे, शायद इसीलिए पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया था। ये जान लेना बहुत महत्वपूर्ण है कि मुख्य आरोपी विजय शंकर सिंह सत्ताधारी दल के पूर्व विधायक हिस्ट्रीसीटर सोनू सिंह का रिश्तेदार है। हालांकि इस विधायक का नाम मीडिया अभी भी लेने से कतरा रही है। कारण ये कि इलाहाबाद के फूलपुर लोकसभा का उपचुनाव होने को है। अतः भाजपा की भी कोशिश ये है कि किसी भी तरह से पार्टी का नाम इस पूरे मामले में न आये।
कहाँ से आयी इतनी हिम्मत
सवाल ये है कि आखिर विजय शंकर को इतनी हिम्मत कहाँ से आयी कि इस जघन्य अपराध को अंजाम देने में उसे थोड़ी सी भी हिचक नहीं हुई। इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते हैं तो इसका एक सिरा जा पहुँचता है सुल्तानपुर।
2006 में संगम से लौट रहे संत ज्ञानेश्वर पर हमला हुआ था जिसमें संत ज्ञानेश्वर सहित चार लोगों की मौत हो गयी थी। संत ज्ञानेश्वर के शिष्यों ने सोनू सिंह और मोनू सिंह पर केस दर्ज करवाया था। जिसमें विजय शंकर सिंह पर भी साजिश रचने का आरोप लगा था। हालाँकि संत ज्ञानेश्वर मामले में सभी आरोपी बरी हो गए थे। सोनू मोनू सिंह के नाम अपराधों की लंबी फेहरिश्त है। सनद रहे कि जब वरुण गाँधी सुल्तानपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे, तब सोनू सिंह को सुल्तानपुर विधानसभा का प्रभारी बनाया था।
योगी का दावा खोखला है
पिछले साल जब मार्च में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो मीडिया और आरएसएस के प्रचारतंत्र द्वारा हौवा खड़ा किया गया कि उत्तर प्रदेश से एकाएक अपराधी प्रदेश छोड़कर भाग गए हैं। पर स्थिति ठीक इसके उलट है। अपराध बढे हैं।
2016 में लूट की घटनाएं 27 थी, जबकि 2017 में 47 हो गई।
2016 में रेप के 440 केस दर्ज हुए, तो 2017 में 603 केस दर्ज हुए हैं।
कुल अपराध- 2016 में कुल 32954 केस दर्ज हुए, जबकि 2017 में 42444 केस सामने आए।
घटना के दो दिन बाद भी मुख्य आरोपी को पुलिस पकड़ने में नाकामयाब है। इससे योगी सरकार की नाकामी और लचर कानून व्यवस्था साफ़ साफ़ सामने आ जाती है। राहत देने वाली बात ये है कि अभी भी सैकड़ों छात्र दिलीप और उनके परिजनों को न्याय दिलाने के लिए सड़क पर हैं।