संघी फासीवादियों के लिए उनके द्वारा ध्वस्त किए गए मस्जिद के स्थान पर एक मंदिर फासीवाद के लिए एक विजय घोष जैसा होगा.
लेकिन इस बात को समझने वाले कुछ लोग भी डरते हैं कि भारतीयों से, या भारत के हिंदुओं से न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती, यानी ध्वस्त मस्जिद के स्थान पर दुबारा मस्जिद के निर्माण की उम्मीद नहीं की जा सकती, इसलिए वे कहते हैं कि वहाँ एक विश्वविद्यालय या एक आश्रय गृह, एक अस्पताल इत्यादि का निर्माण हो.
मैं समझ सकती हूं इस भावना को – इस भावना के पीछे भारत की जनता पर भरोसे की एक कमी है, यह डर है कि यहां के हिंदू शायद राम मंदिर बनाने के पक्ष में न भी हों, वहां मस्जिद के दोबारा बनने को स्वीकार नहीं कर पाएंगे. बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक अपराधी करतूत थी, एक अपराध था जो फासीवादीओं ने मुसलमानों को यह बताने के लिए किया था कि वे भारत के नहीं हैं – पर इसके लिए न्यायपूर्ण क्षतिपूर्ति की उम्मीद हिंदुओं से नहीं की जा सकती. इसलिए अस्पताल, विश्वविद्यालय आदि की बातें होती हैं.
सवाल तो यह है कि क्या भारत के लोगों के लिए ‘न्याय की रोटी’ उतनी ही ज़रूरी नहीं है जितनी रोज़ी रोटी, शिक्षा, अस्पताल वगैरह ? क्या हमारे देश के अल्पसंख्यकों के लिए सम्मान उतना ही ज़रूरी नहीं जितना रोटी कपड़ा मकान ? जरा सोचिए कि अगर कहीं अम्बेडकर की मूर्ति गिरायी जाती है, तो क्या न्याय पसंद लोग कहेंगे, कि अम्बेडकर की मूर्ति की जगह चलिए, अस्पताल बनें जो मूर्ति गिराने वाले सामंतों के लिए भी होगी और दलितों के लिए भी ? क्या हम नहीं कहेंगे कि न्याय हो, अम्बेडकर की प्रतिमा फिर बने ?
उन लोगो के लिए जो कहते हैं, अयोध्या में मस्जिद जहां ध्वस्त हुई, वह ‘विवादित भूमि’ है, या जो लोग कहते हैं कि वहां बाबर ने मस्जिद का निर्माण करने के लिए एक मंदिर को ध्वस्त कर दिया : ज़रा सोचिए.
अ) आपको लगता है कि आप उन तुलसीदास से बेहतर जानते हैं जिन्होंने अकबर के समय में रामचरितमानस की रचना की थी, जिसमें अयोध्या में राम मंदिर होने का या यह बाबर द्वारा विध्वंस का कोई उल्लेख नहीं किया किया गया ?
ब) भले ही आप मानते हो कि एक मंदिर को मस्जिद के लिए रास्ता बनाने के कारण ध्वस्त कर दिया गया होगा तो भी यह विध्वंस एक ऐसे समय में हुआ जब उपासना स्थल का विध्वंस आधुनिक अर्थों में अपराध नहीं था. मसलन, हिंदू शासकों ने कई बौद्ध मंदिरों को ध्वस्त कर दिया या बर्बाद कर दिया. जबकि बाबरी मस्जिद के विध्वंस को जानबूझकर किया गया, उसे जानबूझकर राजनीतिक अपराध की योजना के तहत के किया गया, खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवज्ञा कर पूरे देश और विश्व के लोगों के सामने इस अपराध को किया गया .
मुझे लगता है हम सभी को भारतीय होने के नाते न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए. मतलब, बाबरी मस्जिद जहां खड़ी थी, वहीं एक मस्जिद को फिर से बनाया जाना चाहिए ताकि फासिस्ट भीड़ द्वारा किए अपराध की क्षतिपूर्ति हो सके, देश के मुसलमानों से माफी मांगी जा सके.
और मस्जिद पुनर्निर्माण के बजाय नहीं बल्कि उसके साथ-साथ, मेरा सुझाव है कि जर्मनी में होलोकॉस्ट मेमोरियल की तर्ज पर, एक फासीवाद-विरोधी, सांप्रदायिकता-विरोधी स्मारक का अयोध्या में निर्माण किया जाए.
(कविता कृष्णन भाकपा (माले) लिबरेशन की पोलित ब्यूरो की सदस्य और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (AIPWA) की सचिव हैं )
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