झारखंड जनाधिकार महासभा ने सुरक्षा बलों‘ द्वारा ब्रम्हदेव सिंह की हत्या के केस में 100 दिन बाद भी हत्यारोपियों पर एफआईआर दर्ज नहीं होने और कोई कार्रवाई नहीं होने पर रोष प्रकट करते हुए अपनी मांग फिर से दुहराई है।
झारखंड जनाधिकार महासभा ने ने छह अक्टूबर को जारी बयान में कहा है कि 12 जून 2021 को पिरी के ब्रम्हदेव सिंह समेत कई आदिवासी पुरुष नेम सरहुल मनाने की तयारी अंतर्गत शिकार के लिए गाँव से निकले ही थे कि उनपर जंगल किनारे से सुरक्षा बलों ने गोली चलानी शुरू कर दी. उन्होंने हाथ उठाके चिल्लाया कि वे आम जनता हैं, पार्टी (माओवादी) नहीं हैं और गोली न चलाने का अनुरोध किया. युवकों के पास पारंपरिक भरटुआ बंदूक थी जिसका इस्तेमाल ग्रामीण छोटे जानवरों के शिकार के लिए करते है. ग्रामीणों ने गोली नहीं चलायी थी. लेकिन सुरक्षा बल की ओर से गोलियां चलती रही एवं दिनेनाथ सिंह के हाथ में गोली लगी और ब्रम्हदेव सिंह की गोली से मौत हो गयी. पहली गोली लगने के बाद ब्रम्हदेव को सुरक्षा बलों द्वारा थोड़ी दूर ले जाकर फिर से गोली मार के मौत सुनिश्चित की गयी. दोषियों के विरुद्ध कार्यवाई करने के बजाय पुलिस ने मृत ब्रम्हदेव समेत छः युवकों पर ही विभिन्न धारा अंतर्गत प्राथमिकी (Garu P.S. Case No. 24/2021 dated 13/06/21) दर्ज कर दी.
इस प्राथमिकी में पुलिस ने घटना की गलत जानकारी लिखी है. प्राथमिकी में इस कार्यवाई को मुठभेड़ कहा गया है और यह लिखा गया है कि हथियार बंद लोगों द्वारा पहले फायरिंग की गई और कुछ लोग जंगल में भाग गए. साथ ही, मृत ब्रम्हदेव का शव जंगल किनारे मिला. यह तथ्यों से विपरीत है.
ब्रम्हदेव सिंह की पत्नी जीरामनी देवी ने उनकी पति की हत्या के लिए जिम्मेवार सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवाने के लिए 29 जून को गारू थाना में आवेदन दिया था. आवेदन संलग्न. लेकिन आज तक प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई. आवेदन के बाद आज 100वा दिन है. इस बीच ग्रामीणों ने पुलिस अधीक्षक से लेकर मुख्यमंत्री तक कई बार अपील की है.
स्थानीय पुलिस इस मामले में दो बहाना देती है – 1) इस घटना की एक प्राथमिकी उन्होंने दर्ज कर दी है एवं 2) मामले को CID के हवाले कर दिया गया है. दोनों कानून व सामान्य ज्ञान से परे है. पुलिस की प्राथमिकी में ब्रम्हदेव की हत्या का ज़िक्र नहीं है. जीरामनी ब्रम्हदेव की हत्या का प्राथमिकी दर्ज करवाना चाहती हैं. साथ ही, एक घटना के विभिन्न घटनाक्रम के आधार पर दो प्राथमिकी दर्ज होना आम बात है. CID को मामला ट्रान्सफर कर देने से पीड़ित के परिवार के सदस्यों की प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता है. जीरामनी देवी ने अब स्थानीय न्यायलय में इस विषय में आवेदन दिया हैं.
प्रशासन और पुलिस के रवैया से स्पष्ट है कि दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है. यह अत्यंत चिंतनीय है कि एक आदिवासी की हत्या की प्राथमिकी 100 दिनों के बाद भी दर्ज नहीं हो रहा है. यह स्थिति राज्य सरकार का जन पक्षीय होने के दावों के खोखलेपन को उजागर करती है.
महासभा, झारखंड सरकार से फिर मांग करती है :
• ब्रम्हदेव सिंह की हत्या के लिए ज़िम्मेवार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों के विरुद्ध जीरामनी देवी के आवेदन पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज की जाए एवं दोषियों पर दंडात्मक कार्यवाई की जाए. पुलिस द्वारा ब्रम्हदेव समेत छः आदिवासियों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए. गलत बयान व प्राथमिकी दर्ज करने के लिए स्थानीय पुलिस व वरीय पदाधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाई की जाए. मामले की निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन हो.
• ब्रम्हदेव की पत्नी को कम-से-कम 10 लाख रु मुआवज़ा दिया जाए और उनके बेटे की परवरिश, शिक्षा व रोज़गार की पूरी जिम्मेवारी ली जाए. साथ ही, बाकी पांचो पीड़ितों को पुलिस द्वारा उत्पीड़न के लिए मुआवज़ा दिया जाए.
• नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए. किसी भी गाँव के सीमाना में सर्च अभियान चलाने से पहले पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों एवं अन्य क्षेत्रों में पंचायत प्रतिनिधियों की सहमती ली जाए. पांचवी अनुसूची प्रावधानों व पेसा को पूर्ण रूप से लागू किया जाए.
• स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और समवेदनशील बनाया जाय.