लखनऊ। संयुक्त छात्र मोर्चा ने 29 अप्रैल को लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन के बाहर सहायक आचार्य डॉ. माद्री काकोटी के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस और एफआईआर के विरोध में प्रदर्शन किया। यह आंदोलन अकादमिक स्वतंत्रता की रक्षा और राजनीतिक दबाव के विरुद्ध छात्रों की एकजुटता का प्रतीक बना।
प्रदर्शन के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेतृत्व में एक अन्य छात्र समूह ने “देख के गद्दारों को, जूते मारो सालों को” जैसे नारे लगाते हुए प्रदर्शनकारियों को डराने-धमकाने की कोशिश की। यह घटना स्पष्ट करती है कि सत्तारूढ़ दल के छात्र संगठन को खुलेआम डराने-धमकाने की छूट मिल रही है।
छात्रों ने साफ कहा कि वे कुलपति से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपे बिना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। यह दबाव इतना प्रभावी रहा कि एक कुलपति जो आमतौर पर सिर्फ एबीवीपी के प्रतिनिधियों से मिलते हैं, आज सभी प्रदर्शनकारी छात्रों से मिलने को बाध्य हुए।
छात्रों ने कुलपति से सीधा सवाल किया – डॉ. माद्री को नोटिस किस आधार पर जारी किया गया? विश्वविद्यालय को एक निजी ट्वीट पर नोटिस जारी करने का क्या अधिकार है? इस पर कुलपति का उत्तर चौंकाने वाला था – उन्होंने कहा कि अगर विश्वविद्यालय के पास अधिकार नहीं है, तो यह पूरी कार्यवाही नहीं टिकेगी। उन्होंने स्वीकार किया कि कई “सिविल सोसायटी” के लोग उनसे मिले थे और इसी दबाव में उन्होंने यह नोटिस जारी किया। कुलपति की यह स्वीकारोक्ति दर्शाती है कि उन्हें अपनी ही प्रशासनिक सीमा और अधिकारों की समझ नहीं है।
इस मौके पर आइसा यूपी के उपाध्यक्ष समर ने कहा कि “आज का आंदोलन केवल एक प्रोफेसर की रक्षा के लिए नहीं था—यह लोकतंत्र के लिए, एबीवीपी और उनके राजनीतिक आकाओं द्वारा फैलाए जा रहे डर के माहौल के खिलाफ था। प्रशासन की कार्रवाई एक राजनीतिक बदले की कार्यवाही है।”
एनएसयूआई यूपी के उपाध्यक्ष अहमद रज़ा ने कहा कि “हम लखनऊ विश्वविद्यालय को सत्ताधारी दल का राजनीतिक अखाड़ा नहीं बनने देंगे। डॉ. काकोटी पर एफआईआर और नोटिस राजनीति से प्रेरित हैं और इन्हें तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।”
एससीएस यूपी के उपाध्यक्ष कांची सिंह ने कहा कि “यह आंदोलन एक स्पष्ट संदेश है कि जब फासीवादी ताकतें हमारे शिक्षकों और हमारे अधिकारों पर हमला करेंगी, तो छात्र चुप नहीं बैठेंगे। हम देख रहे हैं और हम मुकाबला करेंगे।”
बीएएसएफ की लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई, के अध्यक्ष विराट शेखर ने कहा कि “विश्वविद्यालय सभी छात्रों का है, सिर्फ एक संगठन का नहीं। आज कुलपति ने हमसे मुलाकात की, यह एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण जीत है—अब हम तब तक लड़ेंगे जब तक झूठे आरोप पूरी तरह से खत्म नहीं होते।”