डॉ. तैयब हुसैन ‘पीड़ित’ को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि
प्रसिद्ध प्रगतिशील-जनवादी कवि, आलोचक, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार और संपादक डॉ. तैयब हुसैन पीड़ित आज हमारे बीच नहीं रहे। आज 11 मई को पटना के अपोलो हॉस्पीटल में लगभग 2ः30 बजे उनका निधन हो गया। वे लीवर और किडनी के परेशानियों से संघर्ष कर रहे थे।
वे हिन्दी के प्रोफेसर थे और सिवान के जेड.ए. इस्लामिया कॉलेज के हिन्दी विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे। हिन्दी में भी उन्होंने रचनाएं लिखीं, पर उससे ज्यादा वे भोजपुरी साहित्य की यथार्थवादी-प्रगतिशील परंपरा के विकास के लिए जाने जाते थे।
उनका जन्म 16 अप्रैल 1945 को सारण जिला के मिर्जापुर गांव में हुआ था। प्रगतिवादी-जनवादी सिद्धांतों के प्रति उनकी दृढ़ता, उनका शालीन व्यक्तित्व और उनकी बेबाकी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके निधन से भोजपुरी साहित्य जगत ने प्रगतिशील-समाजशास्त्रीय दृष्टि वाली एक प्रतिभाशाली शख्सियत को खो दिया है।
डॉ. तैयब हुसैन महान लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के विशेषज्ञ विद्वान थे। उन्होंने ‘ भिखारी ठाकुर: व्यक्तित्व-कृतित्व ’ विषय पर ही पी-एच.डी. की थी। साहित्य अकादमी के लिए भिखारी ठाकुर पर लिखा गया उनका मोनोग्राफ उल्लेखनीय कृति है। उन्होंने पुस्तकालय विज्ञान, नाटक और सिनेमा में डिग्री हासिल की थी या डिप्लोमा किया था। उनकी कविताएं, गीत, कविता, कहानी, निबंध और आलोचना हिन्दी-भेाजपुरी की सारी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। बिहार में जन संस्कृति मंच का निर्माण हुआ तो उन्हें इसकी राज्य कमेटी का सदस्य बनाया गया था।
इन्होंने ज्यादा किताबें भोजपुरी में लिखीं, जिनमें कहानी संग्रह- बिछऊँतिया, सिद्ध साँप, एकांकी संग्रह- आपन-आपन डर, बाल एकांकी संग्रह- ईदगाह से आगे, साहित्येतिहास- भोजपुरी साहित्य के संक्षिप्त रूपरेखा, आलोचना- भोजपुरी कविता के सामाजिक परिप्रेक्ष्य, गीत-गजल-लोकराग- सुर में सब सुर, कविता-संग्रह- सुर में सब सुर और अनसोहातो, रेखाचित्र- सिरखार, निबंध-संग्रह- गहिराई में गोता, जियतार जिनिगी और भोजपुरी नाट्यरंग आ भिखारी ठाकुर आदि प्रमुख हैं। वे लोक इतिहास और लोकसंस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फतेहबहादुर शाही और मास्टर अजीज जैसी शख्सियतों पर भी लिखा और बोला। उन्होंने कई पुस्तकें भी संपादित और प्रकाशित की, जिनमें कहानी संग्रह- एगो बड़ परिवार, भोजपुरी नाटक, जिसमें तेरह प्रतिनिधि नाटक और एकांकी शामिल हैं, एकांकी संग्रह- एक पर एक इगारह, मारीशस के तीन एकांकी- रंगमंच पर मारीशस, हिन्दी-भोजपुरी के गद्य-पद्य संग्रह- अजब आदि उल्लेखनीय हैं।
हिन्दी में भिखारी ठाकुर पर मोनोग्राफ के अतिरिक्त ‘ भिखारी ठाकुर: अनगढ़ हीरा ‘ नामक उनकी एक पुस्तक तथा ‘ लोक नारायण और एक गुमशुदा इतिहास ‘ नामक नाटक भी प्रकाशित हैं।
तैयब हुसैन पीड़ित को भोजपुरी साहित्य और संस्कृति से जुड़े संगठनों की ओर से कई सम्मान और पुरस्कार मिले। भोजपुरी भाषा-साहित्य के आंदोलन की वे जनपक्षीय आवाज थे। सांप्रदायिकता, जातिवाद, शोषण-उत्पीड़न और भेदभाव के खिलाफ उन्होंने धैर्य के साथ संघर्ष किया। इस संघर्ष में इतिहास, लोकसंस्कृति और परंपरा के साकारात्मक तत्वों का भरपूर उपयोग किया। समाज में जो अवांछित बदलाव हो रहे थे, उन पर सवाल उठाये। प्रगतिशील-जनवादी मूल्यों के प्रति आजीवन प्रतिबद्ध रहे।
जन संस्कृति मंच अपने वैचारिक हमसफर डॉ. तैयब हुसैन ‘पीड़ित’ के निधन पर गहरा शोक जाहिर करता है और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।