लखनऊ। अनिल सिन्हा स्मृति व्याख्यान को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए भाकपा माले सांसद कामरेड सुदामा प्रसाद ने कहा कि कोई भी वर्चस्व हमेशा दमन के बूते ही स्थापित होता है। भाजपा और संघ परिवार आज यही कर रहे हैं – जो भी खिलाफ बोले उसे मार दो, डरा दो, जेल में बंद कर दो। लेकिन इन मुट्ठी भर लोगों से हमें डरना नहीं है और जन प्रतिरोध को मजबूत करना है।
जन संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्य अनिल सिन्हा की 14वीं पुण्यतिथि के मौके पर 22 फरवरी को आयोजित इस व्याख्यान का विषय था – ‘वर्चस्व की संस्कृति और जन प्रतिरोध’।
शनिवार को गांधी भवन के करन भाई सभागार में जसम के इस कार्यक्रम में शिरकत करने आरा से आए कामरेड प्रसाद ने कहा कि वर्चस्व और दमन के खिलाफ लड़ाई का कोई शाश्वत रूप नहीं होता। देश-काल और शासन में बैठे लोगों के मुताबिक इसमें बदलाव आता रहता है। आज जो फासीवादी ताकतें सत्ता में काबिज हैं उनसे हमें अंततः सड़क पर ही निपटना होगा। देश में लोकतंत्र और संविधान का किस तरह गला घोंटा जा रहा है, इसके उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा और संघ को संविधान नहीं, मनुस्मृति का शासन चाहिए। हमें उनके इन मंसूबों को कामयाब नहीं होने देना है।
भोजपुर के सांस्कृतिक दल ‘युवा नीति’ में बतौर रंगकर्मी अपनी सांस्कृतिक व राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले कामरेड प्रसाद ने अपने संघर्ष भरे संस्मरण साझा किए। उन्होंने कहा कि तब वह दौर था जब दलितों, अति-पिछड़ों को खाट पर बैठने और दिन भर खटने के बाद मजदूरी मांगने का अधिकार नहीं था। लंबी लड़ाई के बाद स्थितियां बदलीं, लेकिन आज एक नई गुलामी का दौर शुरू हो गया है। यह काॅरपोरेट गुलामी है। पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए जल, जंगल, जमीन, नदी, पहाड़ समेत पूरी सृष्टि का विनाश किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में अडाणी की कोयला खान के लिए लाखों पेड़ काटने की इजाजत दी गई है।
उन्होंने कहा कि सिर्फ भौतिक संसाधन ही नहीं लूटे जा रहे, मनुष्य के भीतर की इंसानियत और संवेदनशीलता खत्म की जा रही है। उन्होंने लखनऊ की मिसाल देते हुए कहा कि जिस शहर को ‘तहजीब का शहर’ कहा जाता था, वहां प्रेम और भाईचारा खत्म करने की कोशिश चल रही है। उत्तर प्रदेश सहित बहुत सी जगहों पर मस्जिदों के नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं। कामरेड प्रसाद ने कहा कि अगर मंदिरों के नीचे भी इसी तरह की तलाश की जाए तो न जाने कितने बौद्ध स्तूप और बौद्ध भिक्षुओं की अस्थियां मिलेंगी। उन्होंने कहा कि दुनिया को पीछे की ओर धकेलने की कोशिश में लगी ताकतों से लड़ना होगा। शाहीन बाग और किसान आंदोलन इस बात के सबूत हैं कि जनता की एकजुटता से इन ताकतों को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सकता है।
मुख्य वक्ता के व्याख्यान से पूर्व उत्तर प्रदेश जसम के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने अनिल सिन्हा के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा की। उन्होंने कहा कि पत्रकार और लेखक अनिल सिन्हा ने कलम चलाने के साथ-साथ सड़कों पर भी खूब संघर्ष किया। वह कई तरह की बीमारियों से घिरे हुए थे, लेकिन उन्होंने अपने संघर्ष पर बीमारियों को कभी हावी नहीं होने दिया। अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले, अस्वस्थ होने के बावजूद, उन्होंने विनायक सेन को सजा सुनाए जाने के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया। कौशल किशोर ने कामरेड सुदामा प्रसाद के सांस्कृतिक और राजनीतिक सफर से परिचय कराते हुए कहा कि उनका जीवन साहित्य, संस्कृति और राजनीति के अंतर्संबंध का प्रमाण है।
इस मौके पर उपस्थित जसम के राष्ट्रीय महासचिव मनोज सिंह ने कहा कि अनिल सिन्हा के विचारों और जीवन में कोई फांक नहीं थी। बुद्धिजीवियों में अक्सर जनता से एक निष्क्रिय किस्म की सहानुभूति देखने को मिलती है, लेकिन उनकी जनता से सक्रिय सहानुभूति थी। अनिल सिन्हा इस बात को लेकर खास आग्रही थे कि लेखक, बुद्धिजीवी अपनी बात गोलमोल ढंग से नहीं, बल्कि साफ-साफ कहें। मनोज सिंह ने कहा कि देश में फासीवादी सत्ता के साथ लोकतांत्रिक संस्थाएं चरमराती जा रही हैं। यहां तक कि चुनाव भी बेमानी से जान पड़ने लगे हैं। इस संदर्भ में उन्होंने चुनाव आयोग की छीजती विश्वसनीयता का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि जब मुकाबला फासीवादी निजाम से हो, तो लड़ाई राजनीति के साथ-साथ संस्कृति के मैदान में भी लाजिमी हो जाती है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में वरिष्ठ किसान नेता जयप्रकाश नारायण ने कहा कि अनिल सिन्हा को याद करते हुए यह खयाल आता है कि मार्क्सवाद कितने नायाब, कितने शानदार लोगों को पैदा करता है। उन्होंने कहा कि विचार और व्यवहार में कितना कम अंतर है, इसी से किसी व्यक्ति की जन-पक्षधरता की पहचान होती है।
वर्चस्व की संस्कृति को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि यह स्वतंत्रता को सीमित करती है और तर्क के रास्ते बंद करने के लिए दमन अख्तियार करती है। दूसरा, वह श्रम जो जीवन को निर्मित करता है, उसमें विभाजन पैदा करती है। पहले शारीरिक और बौद्धिक श्रम में विभाजन पैदा करती है, फिर शारीरिक श्रम को गरिमाहीन बनाती है। यहां से वह संस्कृति के क्षेत्र में विभाजन पैदा करती है। विचार पर वह कब्जा तो करती ही है साथ ही तकनीक और शस्त्र पर भी कब्जा करती है, क्योंकि इसके बिना वह वर्चस्व की संस्कृति को आगे बढ़ा नहीं सकती। राजनीतिक आंदोलनों में संस्कृतिकर्मियों की भूमिका को रेखांकित करने के लिए उन्होंने अवध के इलाके में वाम चेतना के अग्रदूत रहे राजबली यादव का जिक्र करते हुए कहा कि जहां भी राजबली के नाटक ‘धरती हमारी है’ के मंचन का ऐलान होता, घबराए हुए सामंती तत्व उसे रोकने की हर कोशिश करते। उन्होंने काॅमरेड सुदामा प्रसाद के संघर्षों को भी इसी पांत में शामिल किया।
कार्यक्रम की शुरुआत लखनऊ के जसम सचिव फरजाना मेहदी के स्वागत वक्तव्य और अरविंद शर्मा द्वारा प्रस्तुत गोरख पांडेय के मशहूर गीत ‘जनता की आवे पलटनिया’ से हुई। संगठन की वरिष्ठ साथी सईदा सायरा ने गुलदस्ता भेंट कर काॅमरेड सुदामा प्रसाद का इस्तकबाल किया। कवि भगवान स्वरूप कटियार ने अनिल सिन्हा की स्मृति में लिखी अपनी कविता का पाठ किया। कार्यक्रम का समापन वरिष्ठ सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यकर्ता तस्वीर नकवी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।