पटना। आज पटना के गांधी मैदान में ऐतिहासिक ‘बदलो बिहार महाजुटान’ को संबोधित करते हुए माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य में गरीब, किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, महिलाएं, मुस्लिम, फुटपाथी दुकानदार जैसे कमजोर समुदायों की पीड़ा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। अब समय आ गया है कि इस पीड़ा को एक ताकत में बदल दिया जाए। जो लोग अलग-अलग मुद्दों पर संघर्ष करते रहे हैं, उन्हें एक मंच पर लाने का अवसर आज मिला है। आज यह सभी मुद्दे एक ही दिशा में संगठित हो रहे हैं, और गांधी मैदान से बिहार में बदलाव का संकल्प लिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि एक हालिया सर्वे में पाया गया कि 50 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बिहार सरकार पूरी तरह से विफल हो चुकी है और उसका समय अब खत्म हो चुका है। वहीं, 25 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सरकार बेकार है, लेकिन अभी तक बदलाव की सोच नहीं बनी। अगर 75 प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं, तो भाजपा को अपने ख्याली सपनों में जीने दिया जाए। बिहार वही रास्ता अपनाएगा, जैसे झारखंड में भाजपा को रोका गया। 2020 में जहां गाड़ी रुकी थी, वहीं से आगे बढ़ेगी। नीतीश कुमार के जाने बाद भी 2024 में हमने कई लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। यह साबित करता है कि बिहार का बदलाव अब तय है।
का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि विभिन्न आंदोलनकारी ताकतों की एकता का यह जो आगाज हुआ है, वह बिहार में बदलाव की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। किसान दिल्ली में एकजुट हुए और मोदी सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया। ठीक वैसे ही, बिहार के मजदूर-किसान भी यदि चाह लें तो चार लेबर कोड वापस करवा सकते हैं। पुरानी पेंशन स्कीम लागू हो सकती है। यह साल चुनाव का साल है। भाजपा एक साजिश रचने वाली पार्टी बन चुकी है। गिरिराज सिंह की सीमांचल यात्रा के जरिए सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई। हम इस पर ध्यान नहीं देंगे और अपने मुद्दों पर ही लड़ेंगे।
बिहार के नौजवानों को पलायन से बचाने के लिए, स्थानीय स्तर पर रोजगार की आवश्यकता है। झारखंड में जहां 200 यूनिट बिजली मुफ्त मिल रही है,तो बिहार में क्यों नहीं हो सकता ? मोदी जी ने कहा था कि अमृत काल में सबको पक्का मकान मिल जाएंगे. कहां पक्का मकान बना ? जो बना था उसे ढाह दिया जा रहा है. स्मार्ट मीटर लाया जा रहा है. महिलाओं-वृद्धों को झारखंड में 2500 रु. मिल सकते हैं तो क्या बिहार में क्यों नहीं मिल सकते? इन्हीं एजेंडों पर बिहार का चुनाव हो, यहां से तय करके जाना है.
चुनाव आया है, तो जातियां रैलियां हो रही हैं. सबके अपने-अपने सवाल हैं. इस जाति प्रथा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल उत्पीड़न के लिए हुआ है. बाबा साहेब ने कहा था कि इस पूरी प्रथा को खत्म कर देना होगा. हम बाबा साहेब के उस सपने के साथ हैं. लेकिन उसके उन्मूलन में समय लगेगा. लेकिन जाति के आधार पर एक ही अधिकार मिला हुआ था – आरक्षण का. वह आरक्षण का अधिकार खतरे में है. संविधान खतरे में है. यदि सरकारी नौकरी व शिक्षा नहीं मिलेगी तो कहां आरक्षण मिलेगा ?
कुछ लोग आरक्षण के नाम पर भी बांटने का काम कर रहे हैं. बिहार में जाति आधारित गणना के बाद पूरे देश में जाति गणना की मांग उठी. सभी दलों ने मांग उठाई कि 65 प्रतिशत आरक्षण तक विस्तार हो. विधानसभा से पारित भी हो गया लेकिन वह मामला अभी कानूनी पेंच में फंस गया है. यदि भाजपा व जदयू दोनों सहमत है तो संसद से भी प्रस्ताव पारित कर दीजिए, संविधान की 9 वीं अनुसूची में डाल दीजिए. इसलिए, 65 प्रतिशत आरक्षण के लिए लड़ो. इसमें दलितों का आरक्षण बढ़ेगा. वह बढ़कर 20 प्रतिशत होगा. बिहार में कई जिलों में आदिवासी समुदाय हैं. उनका प्रतिशत भी 2 होगा. अतिपिछड़ी जातियों का खूब नाम लेते हैं. कर्पूरी जी को भारत रत्न देकर कहते हैं कि सबकुछ हो गया. आपने कुछ नहीं किया. आप आरक्षण खत्म कर रहे हैं. लैटरल इंट्री हो रही है. एक साथ मिलकर लड़िए कि डबल इंजन का धोखा मंजूर नहीं है.
नीतीश जी कहते थे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा. क्या हुआ ? अब कह रहे हैं कि विशेष राज्य का दर्जा नहीं विशेष पैकेज मिलेगा. विशेष पैकेज के नाम पर विशेष धोखा मिला, डबल इंजन का डबल धोखा मिला. यदि महागरीब परिवारों को 2 लाख रु. नहीं मिल रहे तो कौन सा विशेष पैकेज है? एक भी काॅलेज नहीं खुला, स्कूल बंद हो रहे हैं. आशा, ग्रामीण चिकित्सक जिनके आधार पर स्वास्थ्य व्यव्स्था चल रही है, उनके लिए कुछ नहीं किया गया. तो क्या कुछ हवाई अड्डे बन जाने को विशेष पैकेज कहा जाएगा? रोजगार सुरक्षित नहीं है, कोई सम्मान नहीं कोई जीने लायक वेतन नहीं. सरकार ने खुद तय किया था कि न्यूनतम मजदूरी दी जाएगी लेकिन किसी को भी यह नहीं मिल रहा. किसी की एमएसपी पर फसल की खरीद नहीं होती. रसोइयों को महज 1650 रु. मिलते हैं. यदि न्यूनतम वेज नहीं मिलेगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा तो कौन सा विशेष पैकेज होगा?
20 साल का समय कम समय नहीं है. बार-बार लोगों ने मौका दिया है. नीतीश जी का मतबल अब भाजपा है. बाएं – दाए, उपर -नीचे सब जगह भाजपा ही भाजपा है. भाजपा बिहार की सत्ता काबिज करके लूट व पुलिस तथा सामंती उत्पीड़न का राज लाना चाहती है. दलितों का उत्पीड़न करो, महिलाओं को घरों में रोक दो, माॅब लिंचिंग को नियम बना दो. भाजपा बिहार को प्रयोगशाला बनाना चाहती है – उत्पीड़न व दमन का. लेकिन बिहार हमेशा संघर्ष की प्रयोगशाला रही है. हम भाजपा की साजिश को कामयाब नहीं होने देंगे. बिहार आगे बढ़ेगा और वह बदलेगा.
महाजुटान में झारखंड के निरसा के विधायक अरूप चटर्जी, बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह, यूपी के राज्य सचिव सुधाकर यादव, और झारखंड के जनार्दन प्रसाद, कार्तिक पाल, और पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य, केडी यादव, रामेश्वर प्रसाद, प्रभात कुमार चैधरी, मीना तिवारी, मंजू प्रकाश आदि शामिल थे। इसके अलावा, पार्टी सांसद राजाराम सिंह और सुदामा प्रसाद भी मंच पर उपस्थित थे।
महाजुटान में शामिल हुए प्रमुख संगठनों में आइसा, एपवा (आल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमन एसोसिएशन), एआइपीएफ, आइलाज, खेत और ग्रामीण मजदूर सभा, इंसाफ मंच, आरवाइए, अखिल भारतीय किसान महासभा, सामाजिक न्याय आंदोलन जैसे संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी अपनी बात रखी। इन संगठनों ने सामाजिक न्याय, महिला अधिकार, और ग्रामीण मजदूरों के हक की बात की।
‘बदलो बिहार महाजुटान’ एक बड़ा और महत्वपूर्ण आयोजन था, जिसमें बिहार के विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और पेशेवर समूहों ने अपनी आवाज़ उठाई और राज्य की सरकार से अपनी मांगों को लेकर दबाव डाला। यह महाजुटान विभिन्न आंदोलनों की एकता का प्रतीक था, जिसमें अलग-अलग वर्गों और संगठनों ने मिलकर एकजुट होकर अपनी समस्याओं को सामने रखा।