समकालीन जनमत
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‘ फूट डालो, राज करो ’ के औपनिवेशिक फंदे से सावधान !

संसद में महत्वपूर्ण बजट-सत्र चल रहा है। ट्रम्प प्रशासन रोजाना भारत को अपमानित कर रहा है और हमारे आर्थिक हितों पर चोट कर रहा है।

एक ओर जहां एलोन मस्क और उसके आर्थिक साम्राज्य को अमेरिका में भयानक थपेड़ों का सामना करना पड़ रहा है वहीं मोदी-शासन मस्क के उपक्रमों के लिए भारत में लाल कालीन बिछा रहा है। एक ओर जहां भारतीय शेयर बाज़ार के मुंह के बल गिरने से निवेशकों को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है वहीं विदेशी निवेशक भारत से अपना निवेश निकाल कर दूसरे देशों के अधिक स्थिर एवं मुनाफा देनेवाले बाज़ारों में लगा रहे हैं।

परंतु इस गहराते आर्थिक संकट को लेकर आमजन में कोई चर्चा नहीं है और रीढ़विहीन मोदी सरकार अमेरिकी साम्राज्यवाद के कदमों में बिछी जा रही है।

इसके साथ ही संघ-ब्रिगेड और गोदी मीडिया ने बंबइया सिनेमा द्वारा आपूर्त ईंधन के सहारे भारत को मुस्लिम-विरोधी घृणा और हिंसा की आग में गहरे झोंक दिया है।

जबसे भाजपा ने जोड़-तोड़ करके महाराष्ट्र में संदिग्ध जीत हासिल कर ली है, तबसे संघ-ब्रिगेड ने इस राज्य को घृणा की प्रयोगशाला बना देने के लिए दिन-रात एक कर रखा है।

पिछले कुछ समय से भाजपा सुव्यवस्थित तरीके से तीन शताब्दी पूर्व के छठवें मुग़ल सम्राट औरंगजेब को क्रूर शासक बताते हुए मुस्लिम-विरोधी आग भड़काने में लगी हुई है।

अभी हालिया रिलीज़ हुई धमाकेदार बंबइया फिल्म ‘छावा’, जिसमें शिवाजी के पुत्र, द्वितीय मराठा शासक संभाजी की औरंगजेब के हाथों हुई क्रूर हत्या को खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है, ने इस आग में घी का काम किया है।

मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस लगायत भाजपा के कई मंत्रियों और नेताओं ने भी औरंगजेब के खिलाफ ताबड़तोड़ बयान देकर और उसके मकबरे को ज़मींदोज़ कर देने की मांग को जायज ठहरा कर नफरत के इस पागलपन को हवा ही दी है। और इन सब का परिणाम यह हुआ कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का अपना निर्वाचन क्षेत्र, नागपुर ही इस पहले सांप्रदायिक-दंगे की आग में धधक उठा।

इतिहास गवाह है कि शिवाजी के उत्तराधिकारियों के मन में औरंगजेब के मकबरे और दूसरी मुग़ल इमारतों को लेकर कोई समस्या न थी।

अभिलेखों में यह अंकित है कि मराठा साम्राज्य के पांचवे छत्रपति, संभाजी महाराज के बेटे साहू प्रथम, औरंगजेब को श्रद्धांजलि देने के लिए खुद उसकी मज़ार पर गए थे और इसके अलावा उन्होंने औरंगजेब की बेटी ज़ीनत-उन-निसा की याद में एक मस्जिद (सतारा की बेगम मस्जिद) भी बनवाई थी।

मराठा और मुग़ल साम्राज्यों के आपसी संबंध कोई अंधे और अनवरत जारी रहनेवाले झगड़ों के नहीं थे, ये संबंध बहुत ही सूझ-बूझ वाले थे जहां असहमति और सहयोग साथ-साथ चलते थे और युद्ध के चलते कूटनीति स्थायी रूप से बाधित नहीं होती थी।

मराठा शासकों ने कभी भी मुग़ल इमारतों को नुकसान नहीं पहुंचाया। पर आज संघ ब्रिगेड मराठा इतिहास के पुनर्लेखन में और इस्लामोफोबिया के समकालीन गुणा-गणित के आधार पर मराठा-विरासत को पुनर्परिभाषित करने में जुटा हुआ है।

औरंगजेब के मकबरे और पूरी मुग़ल विरासत- यानी मुग़ल शासकों के पूरे इतिहास को निशाना बनाकर चलायी जा रही प्रचंड नफरती मुहिम के चलते मुग़ल शासकों के इतिहास को पाठ्यक्रम से हटाया जाना भी संघ-ब्रिगेड द्वारा चलाये जा रहे मुस्लिम-विरोधी एजेंडे का ही हिस्सा है, जिसकी जद में इस समुदाय के जीवन और जीविका के हर पहलू आ जाते हैं।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश इस नफरती-राजनीति की बीज-प्रयोगशालाएँ हैं, जहां हर दिन दमन के नए हथियार विकसित करने के बहाने ढूँढे जाते हैं।

यहाँ तक कि उत्तर-प्रदेश के हिंसा-प्रभावित संभल में तनाव की स्थिति बरकरार होने के बावजूद पूरे देश में अधिक से अधिक मस्जिदों और मकबरों या दरगाहों को निशाना बनाने की अनथक कोशिश जारी है। और इस साल होली जैसा त्योहार भी होली बनाम जुमे की नमाज जैसे मुस्लिम-विरोधी जहरीले नफरती-अभियान की भेंट चढ़ गया।

शांतिपूर्ण ढंग से होली मनाना सुनिश्चित करने के स्थान पर संभल के उप पुलिस-अधीक्षक अनुज चौधरी ने मुसलमानों को घरों के अंदर बंद रहने का फरमान ही जारी कर दिया।

सबसे बुरा तो यह रहा कि योगी आदित्यनाथ ने तुरंत इस फरमान का समर्थन किया और इसी आधार पर पूरे उत्तर भारत में उकसावा-भरे नफरती-भाषणों के कर्कश सुरों की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

संभल में मस्जिदों को तिरपाल से ढँक दिया गया और साथ ही भाजपा के नेताओं ने मुसलमानों को चिढ़ाते हुए यह कहना शुरू कर दिया कि वे खुद को भी तिरपाल के कपड़ों से ढँक लें।

पुलिस की देख-रेख में होली के हुड़दंगियों को लगा कि सारी ताक़त उनके ही हाथों में हैं और उन्हें मुस्लिम-जनाजों पर भी कीचड़ फेंकने का लाइसेन्स मिल गया है।

ऐसे नफरत भरे जहरीले माहौल में भी हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने अप्रतिम साहस और समझदारी का परिचय देते हुए पूरे सद्भाव से होली मनाई।

होली के नाम पर दलितों को भी सामंती-हिंसा का शिकार होना पड़ा। बिहार के औरंगाबाद जिले में एक दलित अवयस्क लड़की कोमल पासवान को कथित रूप से इसलिए कुचल कर मार दिया गया कि उसने रंग लगवाने से इंकार कर दिया था।

नफरती अभियानों और गलियों में फैली हिंसा को विधिक मान्यता दिलवाना ही मोदी सरकार का नियामक एजेंडा है।

इसके लिए दो उदाहरण सामने हैं, समान नागरिक संहिता जो उत्तराखंड में पहले ही कानून का रूप ले चुका है और वक्फ संशोधन विधेयक जो संसद से पारित हो जाने की प्रतीक्षा में है।

इन दोनों कदमों से मुस्लिम समाज स्थायी रूप से भय, असुरक्षा और उत्पीड़न के दायरे में आ जाएगा। उत्तराखंड का समान नागरिक संहिता मॉडल दो वयस्क लोगों के लिए, जो अंतरधार्मिक या अंतरजातीय विवाह करते हैं या अपने चुनाव से लिव-इन सम्बन्धों में रहना चाहते हैं, प्रदत्त संवैधानिक सुरक्षा पर खतरा है। और वक्फ संशोधन विधेयक यदि कानूनी रूप ले लेता है तो वह मुस्लिम दीनी-जागीरों, मस्जिदों और दरगाहों पर वक्फ-बोर्ड के सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार पर राज्य का फैसलाकुन हमला होगा।

इतिहास की यह ऐसी शर्मनाक विडम्बना है कि जब दुनिया भारतीय-अमेरिकी अन्तरिक्ष-यात्री सुनीता विलियम्स और बुच बिलमोर की लंबे अरसे तक अन्तरिक्ष में रहने के बाद पृथ्वी पर वापसी का जश्न मना रही है, ऐसे में संघ-ब्रिगेड भारत को खुदाई की नफरत से लबरेज राजनीति में धकेल रहा है।

तीन सौ साल से ज्यादा अरसे पहले काल के गाल में समा गए एक सम्राट की गुमनाम कब्र एक ऐसी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में 2025 में बहस का केंद्र-विंदु बनी है जो वैश्विक-स्तर पर सामाजिक प्रगति और जन-कल्याण के प्रत्येक सूचकांकों में धूल फांक रहा है।

हमें यह याद रखना चाहिए कि विभाजन की पीड़ा झेलने से पहले दो सदियों तक भारत की औपनिवेशिक दासता का सबसे बड़ा हथियार सामुदायिक घृणा ही थी।

औपनिवेशिक युग की इस ‘फूट डालो, राज करो’ नीति का वर्तमान प्रतिरूप हमारे विनाश का हथियार बनेगा। भारत को हर हाल में इस भयानक संजाल को काट फेंकना ही होगा।

( अनुवाद: दिनेश अस्थाना )

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