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1857 : आजाद कानपुर का प्रशासन और अजीमुल्ला खां

आलोक कुमार श्रीवास्तव 

 

1857 के स्वाधीनता संग्राम में ब्रिटिश सेना को पीछे धकेलने वाले नगर कानपुर के लोगों ने जून और जुलाई 1857 में थोड़े समय के लिए ही सही, आजादी हासिल कर ली थी। न केवल वे आजाद रहे, बल्कि एक व्यवस्थित प्रशासन भी कायम कर रखा था। आज जब पूरे देश में मुसलमानों के प्रति घृणा का जहर फैलाने की संगठित कोशिश की जा रही है, ऐसे समय में नाना साहब के नेतृत्व में स्थापित कानपुर की शासन-व्यवस्था में शामिल लोगों के नाम देखना ज़रूरी हो जाता है। यह हमारे इतिहास का एक बहुमूल्य अध्याय है जिसकी समय-समय पर आवृत्ति की जानी चाहिए। ऐसा करना हमारी आजादी की लड़ाई की साझी विरासत को याद रखने और साम्प्रदायिक राजनीति को परास्त करने के लिए बहुत ज़रूरी है।

 

बहरहाल, 1857 का इतिहास हमें बताता है कि जब अंग्रेजों ने कानपुर में बहादुरशाह ज़फर को अपना नेता मानने वाली वाली क्रांति-समर्थक विद्रोही सेना के सामने समर्पण कर दिया तब उसके बाद, 27 जून 1857 से 16 जुलाई 1857 तक नाना साहब पेशवा ने कानपुर की शासन-व्यवस्था विभिन्न वर्गों के लोगों के सहयोग से संचालित की जिनमें मुसलमानों और स्त्रियों का महत्वपूर्ण योगदान था। कानपुर के प्रथम भारतीय कलेक्टर के रूप में अजीमुल्लाह खान से लेकर प्रशासन के बिल्कुल निचले पायदान पर मुहर्रिर और नायब परवाना नवीस के पदों पर रहीम बख़्श, मुहम्मद हबीब और औलाद अहमद जैसे नाना के विश्वस्त कर्मचारियों के नाम हमें मिलते हैं जो मुस्लिम समुदाय के थे। काजी वसीउद्दीन नाना साहब के प्रशासन के प्रथम विधि अधिकारी और कोतवाल थे।

 

जुलाई 1857 में नाना साहब के नेतृत्व में कार्यरत आज़ाद कानपुर का राजस्व-प्रशासन अलग-अलग तहसीलों में बँटा हुआ था। इन तहसीलों और उनके तहसीलदारों के नाम निम्नलिखित हैं:

तहसील तहसीलदार का नाम तहसील तहसीलदार का नाम
जाजमऊ शाह अली हुसैन साढ़ सलेमपुर महाराज बख़्श
अकबरपुर लक्ष्मण प्रसाद बिल्हौर मुहम्मद नज़र खां
बिठूर अहमदुल्ला रसूलाबाद फरीदुज्जमा
सिकंदरा अजीमुद्दीन घाटमपुर अफजल अली
डेरापुर वारिस अली भोगनीपुर त्रिवेणी सहाय
शिवराजपुर अशरफ अली

1857 के कानपुर के प्रशासन से संबद्ध अन्य कर्मचारियों के पदनाम और नाम निम्नलिखित हैं:

पदनाम नाम
गुप्तचर अधिकारी शाह अली
रसद अधिकारी मूलचंद्र चौधरी
जेल दरोगा शिवचरण
सिरश्तेदार विलास राय
मुआफिज़ दफ्तर कैफियत अली
रोबकारी नवीस लालचंद्र कायस्थ
वसूलवाकी नवीस बाबू राय कायस्थ
नायब वसूलवाकी नवीस शिव प्रसाद कायस्थ
जमाखर्च नवीस भगवानदीन कायस्थ
सियाह नवीस तुलसीराम कायस्थ
आबकारी दरोगा लक्ष्मण प्रसाद कायस्थ
मुहर्रिर मुहम्मद हबीब, रहीम बख़्श
नायब सिरश्तेदार ईश्वरी प्रसाद, भगवान प्रसाद
रोज़नामचा नवीस गुरु साहब कायस्थ
नायब रोज़नामचा नवीस मथुरा प्रसाद कायस्थ
परवाना नवीस मुहम्मद हबीब खान
नायब परवाना नवीस औलाद अहमद

कानपुर के प्रथम भारतीय कलेक्टर अजीमुल्ला खां

कानपुर इतिहास समिति के महासचिव और स्थानीय इतिहास के विशेषज्ञ श्री अनूप कुमार शुक्ल मानते हैं कि 1857 के स्वाधीनता-संघर्ष के समय अजीमुल्ला खां नाम के दो शख़्स मौजूद थे। एक थे दिल्ली से प्रकाशित पत्र ‘पयाम-ए-आज़ादी’ के सम्पादक अजीमुल्ला खां, जिन्होंने ‘हम हैं इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा’ शीर्षक प्रसिद्ध तराना लिखा था और दूसरे नाना साहब के सहयोगी और कानपुर के प्रथम भारतीय कलेक्टर। हालांकि आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा’ नामक तराने के रचयिता और कानपुर में नाना साहब के सहयोगी अजीमुल्ला खां एक ही हैं।

बहरहाल, अजीमुल्ला खां एक थे या दो, इसकी स्पष्ट और सप्रमाण जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन भारत की आजादी के इतिहास में क्रांतिवीर अजीमुल्ला खां की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी।

 

माना जाता है कि अजीमुल्ला सन् 1834 के अकाल के दौरान अपनी मां के साथ भीख मांगते हुए कानपुर फ्री स्कूल के हेड मास्टर के दरवाजे तक पहुंच गए थे। कानपुर फ्री स्कूल के हेड मास्टर ने उनकी मां को काम पर रख लिया और अजीमुल्ला भी हाउस बॉय बन गए।

मोहम्मद मोइन की किताब ‘जंगे आजादी में मुसलमानों का हिस्सा’ के मुताबिक अजीमुल्ला पैदाइशी पठान थे। उनके पिता मुकीमुल्ला खां तहसील संभल जिला मुरादाबाद के निवासी थे। लेकिन ज्यादातर इतिहासविद मानते हैं कि वे अकाल के दौरान बुंदेलखंड से कानपुर आए थे। उनकी कुशाग्र बुद्धि व मेधावी लक्षण देखकर फ्री स्कूल के हेड मास्टर ने स्कूल में प्रवेश दे दिया जहां पर अंग्रेजी और फ्रेंच का अध्ययन कर उसी फ्री स्कूल में वे अध्यापन कार्य करने लगे। डॉ. मोहम्मद अशरफ खान ने अपने शोध-प्रबंध अजीमुल्ला खां और उनका युग में लिखा है कि अजीमुल्ला खां केवल दो वर्ष अध्यापन कार्य करने के पश्चात ब्रिगेडियर स्कॉट के मीर मुंशी नियुक्त हो गए। स्काट के उत्तराधिकारी ब्रिगेडियर एंशबर्नहम ने भी उन्हें कुछ समय तक उस पद पर बनाए रखा। परंतु कुछ समय पश्चात वे सेवा से निकाल दिए गए। इसके बाद ही वे नाना साहब के सम्पर्क में आए होंगे।

 

अजीमुल्ला खां सन् 1852-53 मे नाना साहब के संपर्क में आए और बाद में नाना साहब पेशवा के सेक्रेटरी और सलाहकार बन गए। अजीमुल्ला खां ने ही नाना साहब की पेंशन के मामले को ईस्ट इंडिया कंपनी कार्यालय फोर्ट विलियम कोलकाता में प्रस्तुत किया । बाद में इस मामले को लेकर अजीमुल्ला ने ब्रिटेन की भी यात्रा की। वहां पर ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड और ब्रिटिश सरकार के समक्ष नाना साहब पेशवा के पेंशन प्रत्यावेदन को एक अंग्रेज के माध्यम से प्रस्तुत किया। महारानी विक्टोरिया के समक्ष भी पेंशन प्रकरण को उठाने की योजना बनाई लेकिन वह जान गए थे कि कम्पनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर इंग्लैंड की संसद से ज्यादा शक्तिशाली है।

इसके बाद अजीमुल्ला के मन में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह का भाव भर गया। इसके बाद वह पेरिस चले गए। वहीं से यूरोपीय देशों का भ्रमण करते हुए क्रीमिया युद्ध को देखा। इसके बाद अजीमुल्ला मक्का-मदीना पहुंचे और फिर अफगानिस्तान। पेशावर, लाहौर, अंबाला, मेरठ छावनी होते हुए कानपुर आ गए और इन सभी छावनी क्षेत्रों में प्रवास के दौरान सैनिकों को देशभक्ति व अंग्रेजी सत्ता का विरोध करने को प्रेरित किया।

 

4 और 5 जून 1857 को कानपुर में विद्रोह का आगाज हुआ तो अजीमुल्ला विद्रोही सैनिकों के ‘दिल्ली चलो’ के नारे के बदले ‘कानपुर चलो’ के नारे के साथ नाना साहब पेशवा को लेकर कल्याणपुर के सैनिक कैंप में पहुंचे। उन्होंने सैनिकों से कहा कि पहले कानपुर के अंग्रेजों पर विजय प्राप्त कर लें फिर ‘दिल्ली चलो’ के तहत कार्य किया जाएगा। इसके बाद ही विद्रोही सैनिकों ने कानपुर शहर में पहुंचकर व्हीलर एंट्रेंचमेंट को घेर लिया और 26 जून तक घेरे रहे। अंग्रेजों के समर्पण के बाद कानपुर को आजाद करा लिया गय। आजाद कानपुर में अजीमुल्ला खां को कानपुर का कलेक्टर बनाया गया।

 

18 जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने कानपुर व 19 जुलाई को बिठूर पर पुन: कब्जा कर लिया। इसके बाद नाना व अजीमुल्ला बिठूर से निकल गए और कभी पकड़ मे नहीं आए। तीन नकली नाना पकड़े गए और छोड़े गए परन्तु अजीमुल्ला कभी पकड़ में नहीं आए।

 

हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा

हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा

पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा

ये है हमारी मिल्कियत, हिंदुस्तान हमारा

इसकी रूहानियत से, रोशन है जग सारा

कितनी कदीम, कितनी नईम, सब दुनिया से न्यारा

करती है जरखेज जिसे, गंगो-जमुन की धारा

ऊपर बर्फीला पर्वत पहरेदार हमारा

नीचे साहिल पर बजता सागर का नक्कारा

इसकी खाने उगल रहीं, सोना, हीरा, पारा

इसकी शान शौकत का दुनिया में जयकारा

आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा

लूटा दोनों हाथों से, प्यारा वतन हमारा

आज शहीदों ने है तुमको, अहले वतन ललकारा

तोड़ो, गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा

हिन्दू मुसलमाँ सिख हमारा, भाई भाई प्यारा

यह है आज़ादी का झंडा, इसे सलाम हमारा ॥

 

फ़ीचर्ड इमेज गूगल से साभार 

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