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‘  हाशिए के समाज के लेखक थे प्रो.चौथीराम यादव ’

मऊ। राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ और जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वावधान में संत साहित्य व दलित विमर्श के व्याख्याता काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य डॉ.चौथीराम यादव की स्मृति में सात अक्टूबर को ‘ चौथीराम यादव के साहित्य लेखन में सामाजिक चेतना का परिप्रेक्ष्य ‘ विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन राहुल सांकृत्यायन सृजनपीठ के सभागार में किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ.चौथीराम यादव के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर हुई। आयोजक मंडल की तरफ से अभिनव कदम के संपादक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जयप्रकाश ‘धूमकेतु’ ने गोष्ठी में सभी का स्वागत किया।इस मौके पर सर्वोदय पी.जी.कालेज में हिन्दी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. धनञ्जय शर्मा की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘ मुक्तिबोध प्रयोगवाद और नई कविता’ का लोकार्पण भी हुआ।

विचार गोष्ठी के विषय पर आधार वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ कवि शिवकुमार ‘ पराग ‘ ने कहा कि प्रो.चौथीराम यादव हाशिए के समाज के लेखक थे। प्रो.यादव संत साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे। वे संत रैदास के वेगमपुरा की अवधारणा पर आधारित सामाजिक मॉडल के हिमायती थे।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष व वरिष्ठ कवि डॉ.दिनेश कुशवाह ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि सहते-सहते पौ फटने जैसे फटे डॉ. चौथीराम यादव। चौथीराम यादव ने जब तक अध्यापन किया तब तक कुछ खास नहीं लिखा। मेरा ऐसा मानना है कि उनकी अध्यापकीय कुशलता उनके लेखन में बाधा रही। मैं चौथीराम जी को दूसरी परम्परा के वाहक के रूप में कम बल्कि तीसरी परम्परा की शुरुआत करनेवाले की दृष्टिकोण से ज्यादा देखता हूँ।

प्रो.रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि डॉ.चौथीराम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में वैसे ही रहते थे जैसे बत्तीसों दांतों के बीच जीभ रहती है।सेवानिवृत्त होने के बाद साहित्य लेखन को लेकर वे ज्यादा मुखर हो गए थे।

बीएचयू के हिन्दी विभाग के प्रो.प्रभाकर सिंह ने कहा कि डॉ .चौथीराम यादव हजारीप्रसाद द्विवेदी पर लिखते हुए अपने-आप को मुक्तिबोध से जोड़ लेते थे। चौथीराम को केवल दलित समाज के लेखक के रूप में ही नहीं जानना चाहिए, उनके लेखन में स्त्री विमर्श को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। वे रचनाकार के साथ-साथ बहुत बड़े व्यक्ति भी थे।

डॉ.रामप्रकाश कुशवाहा ने कहा कि प्रो.चौथीराम यादव एक कुशल अध्यापक थे।

सहायक आचार्य डॉ. प्रियंका सोनकर ने कहा कि प्रो. चौथीराम यादव सत्ता परिवर्तन की तुलना में व्यवस्था परिवर्तन को तरजीह देते थे।

डॉ संजय राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रो.यादव का अध्ययन ग्रासरूट लेवल का था। युवा आलोचक मनोज सिंह के अनुसार प्रो.चौथीराम लोकधर्मी चेतना के लेखक थे।

 

इस अवसर पर रतनलाल और उनकी टीम ने सामाजिक विसंगतियों पर एक नाटक प्रस्तुत किया।

गोष्ठी का संचालन बृजेश गिरि और धन्यवाद ज्ञापन डॉ.धनञ्जय शर्मा ने किया।

कार्यक्रम में कामरेड राम अवतार सिंह, बाबू राम पाल, डॉ.रामविलास भारती, फखरे आलम, अतुल राय, डॉ.राम शिरोमणि, डॉ.तेजभान, डॉ.प्रद्युम्न, शुभम सरोज, जितेन्द्र मिश्र काका, श्री राम सिंह, सुशील यादव, रणधीर सिंह, मदनमोहन पाण्डेय, बसंत कुमार, रमेश, साधू, प्रमोद मौर्य, रामहर्ष, रामअवध भंते,मरछू प्रजापति, विद्या कुशवाह,ब्रिकेश यादव, राजेश्वर खरवार, सत्यम सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे।

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