देश को गहरे संकट से निकालने के लिए सांस्कृतिक शक्तियाँ एकजुट हों -अवधेश प्रधान
मऊ। राहुल सांस्कृत्यायन सृजन पीठ में आयोजित जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश का 9 वां राज्य सम्मेलन देश और प्रदेश में निर्णायक रूप से बढ़ते फासीवाद के विरुद्ध लोकतांत्रिक और जनवादी सांस्कृतिक संघर्ष और एकजुटता के संकल्प के साथ सम्पन्न हुआ।
जन संस्कृति मंच का 9वाँ राज्य सम्मेलन 14-15 अक्तूबर को भुजौटी स्थित राहुल सांस्कृत्यायन सृजन पीठ के परिसर में प्रख्यात आलोचक मैनेजर पांडेय स्मृति सभागार में आयोजित किया गया। सम्मेलन का उद्घाटन वक्तव्य जाने माने आलोचक प्रो. अवधेश प्रधान ने दिया।
प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि हम जिस दुनिया में रह रहे हैं वह काफी बदल गयी है। तानाशाही ने एक नया बाना धारण कर लिया है। भारतीय राष्ट्र को फासीवादी रास्ते पर लाने का लगातार प्रयास हो रहा है। चुनावबाज तानाशाही की स्थापना हो गयी है। अत्याचार को भी प्रचारित करने के लिए जनता का ही धन इस्तेमाल किया जा रहा है। मीडिया पर कब्जा करके झूठ को सही साबित किया जा रहा है। सरकार को ही देश का पर्याय बना जनता से अंधभक्ति माँगी जा रही है। बुद्ध की संवाद की परंपरा को खत्म कर सनातन के नाम पर तानाशाही को बढ़ावा दिया जा रहा है।
उन्होंने मुक्तिबोध की किताब ‘ भारत इतिहास और संस्कृति’ पर लगे प्रतिबंध का जिक्र करते हुए मुक्तिबोध के हवाले से कहा कि उस समय उन्होंने जो कहा था, वह आज सच साबित हुआ है। प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि देश को गहरे संकट से निकालने के लिए सांस्कृतिक शक्तियों को एकजुट होकर काम करने की ज़रूरत है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में इतिहासकार शुभनीत कौशिक ने कहा कि लोकतंत्र का सबसे बड़ा दस्तावेज भारत का संविधान है। संविधान निर्माण की प्रक्रिया ही वर्चस्व की संस्कति के खिलाफ है। आज हमारे संविधान के सभी मूल्यों पर आघात हो रहा है। राज्यों को केंद्र पर आर्थिक रूप से निर्भर बना दिया गया है। यह भारतीय राष्ट्र के निर्माण के लिए अपनायी गयी संघवाद की अवधारणा के खिलाफ है। अम्बेडकर ने उन प्रवृत्ततियों को लक्षित किया और कहा था कि हमें नायक पूजा से बचना होगा। नायक पूजा अंततः लोकतंत्र की विरोधी है। अम्बेडकर ने कहा कि हम राजनीतिक लोकतंत्र तो बना रहे हैं, लेकिन सामाजिक न्याय महत्त्वपूर्ण है।
सीएए और एनआरसी आंदोलन में संविधान में सार्वजनिक आस्था प्रकट की गई। दुनिया में इस तरह के उदाहरण नहीं मिलते। इसी तरह आदिवासियों का पत्थलगड़ी आन्दोलन भी था। उन्होंने प्रख्यात इतिहासकार रंजीत गुहा के हवाले से कहा कि रोजमर्रा के जीवन मे होने वाले प्रतिरोध भी महत्वपूर्ण हैं। जो जिस रूप में प्रतिरोध कर रहा है, उसको हमें स्वीकार करना चाहिए। संविधान को बचाने के संघर्ष से भी हम वर्चस्व की संस्कृति का विरोध कर सकते हैं। दक्षिणपंथी लोग इतिहास को बदलने की योजना चला रहे हैं। वे बहुत सारे तथ्यों को बदल रहे हैं। मुगल इतिहास को पूरी तरह से गायब किया जा रहा है। उन्होंने स्कूलों में साम्प्रदायिक शिक्षा के ख़तरे के प्रति सचेत करते हुए सांस्कृतिक प्रतिरोध के विभिन्न रूपों की चर्चा करते हुए पुस्तकालय आंदोलन, स्टडी सर्किल के संचालन को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में युवाओं को शिक्षित करने के लिए अभियान चलाने पर जोर दिया।
जनवादी लेखक संघ, उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष
महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि प्रगतिशील आंदोलन ने साहित्य का मेयार बदल दिया और दलितों और वंचितों को नायक बनाया।
प्रो. कमलानंद झा ने कहा कि आज देश दानवी फासीवाद के मुहाने पर खड़ा है। इससे मुक़ाबले की ठोस रणनीति बनानी होगी। उन्होंने कहा कि फासीवादी शक्तियाँ लोकतंत्र और जनवादी विचारों से भयभीत है। इसलिए सबसे अधिक हमला इसी पर है।
प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव डॉ संजय श्रीवास्तव ने साहित्य के संयुक्त मोर्चा को मज़बूत कर आगे बढ़ाने की ज़रूरत पर बल दिया। इप्टा के प्रदेश महासचिव शहजाद रिज़वी ने इप्टा के ‘ढाई आखर प्रेम’ पदयात्रा का ज़िक्र करते हुए आज के समय में उसकी ज़रूरत को रेखांकित किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रणय कृष्ण ने कहा कि फासीवाद का पहला बड़ा प्रतिरोध साहित्य की ओर से हुआ। पुरस्कार वापसी अभियान इसका उदाहरण है। कवि महमूद दरवेश के हवाले से उन्होंने कहा कि नाउम्मीदी के इसी दौर में हमें उम्मीद का अविष्कार करना चाहिए। उन्होंने ने कहा कि खाली बचाने से कुछ नहीं बचेगा, हमें कुछ नया बनाना भी पड़ेगा।
उद्घाटन सत्र के प्रारंभ में बंटू डीपी और अंकुर ने दो गीत गाये।
स्वागत भाषण राहुल सृजन पीठ के अध्यक्ष एवं जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश धूमकेतु ने दिया। संचालन जसम के पूर्व सचिव प्रेमशंकर सिंह ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रदेश सचिव दुर्गा सिंह ने किया।
पहले दिन का दूसरा सत्र सांस्कृतिक कार्यक्रम से भरा रहा। इस सत्र का प्रारम्भ कवि सम्मेलन से हुआ। इसके बाद मऊ की ही अविकल म्यूजिकल बैण्ड ने अपनी प्रस्तुति दी। इसी क्रम में शाहजाद रिज़वी, बृजेश यादव, विवेक व रुचि मौर्य ने जनगीतों से सांस्कृतिक सत्र में सुर सजाये। लालगंज, आज़मगढ़ से आयी राजदेव की टीम की संगीत और लोकनृत्य की प्रस्तुति से इस सत्र का समापन हुआ। सांस्कृतिक सत्र का संचालन लखनऊ जसम के जिला सचिव फ़रजाना महदी ने किया।
सम्मेलन के दूसरे दिन 95 सदस्यीय राज्य परिषद और 31 सदस्यीय राज्य कार्यकारिणी का चुनाव हुआ। सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने वरिष्ठ लेखक एवं ‘अभिनव कदम’ के संपादक जय प्रकाश धूमकेतु को प्रदेश अध्यक्ष, जाने माने कवि कौशल किशोर को कार्यकारी अध्यक्ष और लेखक-शिक्षक डॉ रामनरेश राम सचिव को चुना।
इसके अलावा मीना राय, वीएस कटियार, कमलानंद झा, हेमंत कुमार व रूपम मिश्र उपाध्यक्ष तथा दीपशिखा सिंह, फरजाना महदी व डीपी सोनी सह सचिव चुने गये। राज्य कार्यकारिणी के लिए मनोज कुमार सिंह, रामनरेश राम, दुर्गा सिंह, रामायन राम, प्रेम शंकर सिंह, डीपी सोनी बंटू, बृजेश यादव, कौशल किशोर, दीपशिखा सिंह, जयप्रकाश धूमकेतु, फरजाना महदी, हेमंत कुमार, कमलानंद झा, मयंक खरे, मीना राय, प्रियम अंकित, रुचि दीक्षित, शिव त्रिपाठी, उदयभान यादव, उमाकांत चौबे, भगवान स्वरूप कटियार, कलीम इकबाल, सच्चिदानंद पांडेय, विनोद सिंह, पुरंजय, शिवानी, आलोक कुमार श्रीवास्तव, रूपम मिश्र व कवि धुरिया सहित 29 सदस्यों का चुनाव हुआ। दो स्थान कार्यकारिणी द्वारा भरा जाना है।
सम्मेलन के दूसरे सत्र में प्रस्ताव पारित कर लेखकों-पत्रकारों-कलाकारों और सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की झूठे केस में गिरफ़्तारी की भर्त्सना करते हुए कहा गया कि मोदी सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगातार दमनात्मक कार्रवाई कर रही। उसकी कार्रवाई बोलने की आज़ादी के साथ-साथ लोकतंत्र पर हमला है।
प्रस्ताव में प्रख्यात लेखिका अरुंधति राय के ख़िलाफ़ केस चलाने की अनुमति देने, न्यूज़ क्लिक से जुड़े पत्रकारों के घरों पर छापे व इसके संस्थापक प्रवीर पुरकायस्थ सहित दो लोगों की गिरफ़्तारी, गोरखपुर में झूठे केस में दलित चिंतक पूर्व आईजी एस आर दारापुरी, लेखक पत्रकार डॉ रामू सिद्धार्थ, दलित नेता श्रवण कुमार निराला सहित कई लोगों की गिरफ़्तारी का ज़िक्र करते हुए माँग की गई है कि इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई तत्काल बंद की जाय और गिरफ़्तारी लेखकों-पत्रकारों-कलाकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाय।
प्रतिनिधि सत्र में प्रतिनिधियों ने अपनी गतिविधियों, कार्यक्रमों व हस्तक्षेप की रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा राज्य सचिव दुर्गा सिंह की सांस्कृतिक व सांगठनिक रिपोर्ट पर चर्चा की। प्रतिनिधियों ने लोकतंत्र, संविधान व लिखने बोलने की आज़ादी पर हो रहे हमले के ख़िलाफ़ सांस्कृतिक शक्तियों को एकजुट करने प्रतिरोध को तेज करने पर बल दिया।
इस सत्र का आरंभ बंटू और अंकुर के द्वारा प्रस्तुत जन गीतों की प्रस्तुति से हुआ।
इस सत्र को अध्यक्ष मंडल की ओर से शिवानी, जसम के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर और रामजी राय ने संबोधित किया।