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सुरक्षा बलों पर पिरी (लातेहार) के ब्रम्हदेव सिंह की हत्या का आरोप, न्यायिक जांच की मांग

झारखंड जनाधिकार महासभा ने फ़ैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की 

झारखंड जनाधिकार महासभा ने पिरी (लातेहार) के ब्रम्हदेव सिंह की मौत को सुरक्षा बलों द्वारा हत्या बताते हुए फ़ैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की गई है। महासभा ने मामले के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन करने, ब्रम्हदेव की हत्या और ग्रामीणों पर गोली चलाने के लिए ज़िम्मेवार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज करने, ब्रम्हदेव समेत छः आदिवासियों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने, गलत बयान व प्राथमिकी दर्ज करने के लिए स्थानीय पुलिस व वरीय पदाधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाई करने और पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की मांग की है।

महासभा द्वारा गठित की गई टीम ने 17 जून को गाँव का दौरा किया और ग्रामीणों व पीड़ितों से मुलाकात की। टीम ने स्थानीय प्रशासन व पुलिस की प्रतिक्रिया, दर्ज प्राथमिकी और स्थानीय मीडिया द्वारा की गई रिपोर्टों  का विश्लेषण करते हुए अपनी रिपोर्ट जारी की है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 12 जून 2021 को दिन में कई ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट पर यह खबर छपी कि लातेहार (झारखंड) के गारू थाना अंतर्गत कुकू-पिरी जंगल में सुरक्षा बल और माओवादियों में मुठभेड़ हुई जिसमें एक नक्सली मारा गया और कई बंदूके बरामद हुई. अगले दिन (13 जून 2021) कई स्थानीय अख़बारों में यह खबर छपी कि सरहुल पर्व के पहले जंगल में शिकार करने निकले पिरी गाँव के आदिवासी युवकों में 24 वर्षीय ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बलों की जवाबी फायरिंग में गोली द्वारा मृत्यु हुई है.

इस मामले की जांच झारखंड जनाधिकार महासभा की ओर से विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, पत्रकार, वकील व सामाजिक कार्यकर्ताओं के तथ्यान्वेषण दल द्वारा की गई . महासभा द्वारा गठित दल में आदिवासी अधिकार मंच, आदिवासी विमेंस नेटवर्क, ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क, द ग्रामसभा शामिल थे।

दल ने पाया कि कि 12 जून की घटना किसी भी प्रकार से “ मुठभेड़ ” नहीं थी. सुरक्षा बल द्वारा निर्दोष ग्रामीणों पर गोली चलयी गयी. घटना से सम्बंधित ब्रम्हदेव समेत छः ग्रामीण, हर साल की तरह, गाँव के नेम सरहुल पर्व के लिए पारंपरिक शिकार करने के लिए घर से निकले ही थे. उनके पास भरटुआ बंदूक थी जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके परिवारों में रही है. इस बंदूक से सिंगल फायर होता है और इसका इस्तेमाल छोटे जानवर – जैसे खरगोश, मुर्गी, सूअर आदि – के शिकार एवं फसल को जानवरों से बचाने के लिए होता है.

यह समूह जंगल की ओर थोड़ी दूर (लगभग 50 फीट) बढ़ा था, तब एक समूह के एक सदस्य को जंगल किनारे सुरक्षा बल के जवान दिखे. उसने दो कदम पीछे लिए और अपने अन्य साथियों को पीछे जाने बोला. पीछे के लोग दौड़ने लगे. इतने में दूसरी तरफ से सुरक्षा बल ने गोली चलानी शुरू कर दी. ग्रामीणों के द्वारा उनके भरटुआ बंदूक से फायरिंग नहीं की गयी थी. उन्होंने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिया और चिल्लाया कि वे आम जनता हैं, माओवादी (पार्टी) नहीं हैं, और गोली न चलाने का अनुरोध किया. फिर भी पुलिस द्वारा लगातार गोली चलायी गयी जिसमें दिनेनाथ के हाथ में गोली लगी और ब्रम्हदेव के शारीर में. इसके बाद सुरक्षा बल द्वारा ब्रम्हदेव को जंगल किनारे ले जाकर फिर से गोली मारी गयी और उनकी मौत सुनिश्चित की गयी. ग्रामीणों के अनुसार आधे घंटे तक पुलिस की ओर फायरिंग की गयी. तथ्यान्वेषण दल को ग्रामीणों ने यह भी कहा कि सभी छः पीड़ितों का माओवादी संगठन से किसी प्रकार का रिश्ता नहीं है.

पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी से यह स्पष्ट है कि वे सच्चाई को छुपाना चाह रही है. प्राथमिकी में ब्रम्हदेव की पुलिस की गोली द्वारा हत्या का कहीं ज़िक्र नहीं है. इस कार्यवाई को मुठभेड़ कहा गया है और यह लिखा गया है कि हथियार बंद लोगों द्वारा पहले फायरिंग की गई और कुछ लोग जंगल में भाग गए. साथ ही, मृत ब्रम्हदेव का शव जंगल किनारे मिला. यह तो तथ्यों से विपरीत है. ब्रम्हदेव समेत छः आदिवासियों पर आर्म्स एक्ट समेत विभिन्न धाराओं अंतर्गत केस दर्ज करना भी पुलिस की मंशा को बेनकाब करता है. वे ग्रामीणों पर दबाव बनाकर रखना चाहते हैं ताकि पुलिस द्वारा गोलीबारी और हत्या पर ग्रामीण सवाल न उठाए. थाने में उन लोगों से कई कागजों (कुछ सादे व कुछ लिखित) पर हस्ताक्षर करवाया गया (या अंगूठे का निशान लगवाया गया). लेकिन किसी को भी कागज़ में लिखी बातों को पढ़ के नहीं सुनाया गया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी घटना राज्य में लगातार घट रही है. जून 2020 में पश्चिमी सिंहभूम के चिरियाबेड़ा गाँव के आदिवासियों की CRPF द्वारा सर्च अभियान के दौरान बेरहमी से पिटाई की गयी थी. हालाँकि चाईबासा के अधीक्षक ने हिंसा में सीआरपीएफ की भूमिका को माना था, लेकिन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में हिंसा के लिए ज़िम्मेवार सीआरपीएफ शब्द तक का ज़िक्र नहीं है. आज तक न पीड़ितों को मुआवज़ा मिला और न ज़िम्मेवार सीआरपीएफ जवानों पर कार्यवाई हुई है.

पिछले भाजपा सरकार के दमनकारी और जन विरोधी नीतियों एवं आदिवासियों पर हो रहे लगातार के विरुद्ध मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिला. लेकिन यह अत्यंत दुःख की बात है कि अभी भी मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं एवं आदिवासियों पर प्रशासनिक हिंसा व पुलिसिया दमन थमा नहीं है.

रिपोर्ट में राज्य सरकार से सात सूत्री मांग की गई है –

सरकार औपचारिक रूप से सच्चाई को सार्वजानिक करे – यह माओवादियों के साथ मुठभेड़ नहीं थी. न ही यह सुरक्षा बल द्वारा जवाबी कार्यवाई थी. शिकार पर निकले आदिवासियों ने सुरक्षा बल पर गोली नहीं चलायी थी. सुरक्षा बल द्वारा निर्दोष आदिवासियों पर गोली चलायी गयी और ब्रम्हदेव की हत्या की गयी. फिर मामले को छुपाने की कोशिश की गयी.

मामले के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन हो. ब्रम्हदेव की हत्या और ग्रामीणों पर गोली चलाने के लिए ज़िम्मेवार सुरक्षा बल के जवानों व पदाधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज की जाए. पुलिस द्वारा ब्रम्हदेव समेत छः आदिवासियों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए. गलत बयान व प्राथमिकी दर्ज करने के लिए स्थानीय पुलिस व वरीय पदाधिकारियों पर प्रशासनिक कार्यवाई की जाए.

अभी तक पीड़ितों व उनके परिवार के सदस्यों से पुलिस द्वारा लिए गए सभी बयान, एफिडेविट आदि को रद्द माना जाए क्योंकि उनसे सादे पन्ने / बिना पढ़ के सुनाए गए लिखित बयानों पर हस्ताक्षर / अंगूठे का निशान लगवाया गया है. पीड़ित का बयान उनके अधिवक्ता की मौजूदगी में ही हो.

ब्रम्हदेव की पत्नी को कम-से-कम 10 लाख रु मुआवज़ा दिया जाए और उनके बेटे की परवरिश, शिक्षा व रोज़गार की पूरी जिम्मेवारी ली जाए. साथ ही, बाकी पांचो पीड़ितों को पुलिस द्वारा उत्पीड़न के लिए मुआवज़ा दिया जाए.

स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दें कि वे किसी भी तरह से लोगों, विशेष रूप से आदिवासियों, का शोषण न करें. नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए.

किसी भी गाँव के सीमाना में सर्च अभियान चलाने से पहले पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों एवं अन्य क्षेत्रों में पंचायत प्रतिनिधियों की सहमती ली जाए. पांचवी अनुसूची प्रावधानों व पेसा को पूर्ण रूप से लागू किया जाए.

• स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाय और समवेदनशील बनाया जाय.

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