गीतेश सिंह
पीपल्स कमीशन ऑन शृंकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस द्वारा भारत में शैक्षणिक संस्थानों पर हो रहे हमलों पर आयोजित जन अधिकरण की रिपोर्ट को किताब की शक्ल में प्रकाशित किया गया है- ‘शैक्षणिक परिसरों की घेराबंदी: बोध-प्रतिरोध-आजादी’। पीसीएसडीएस उन मानवाधिकार संगठनों, जनतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं और सरकारी व्यक्तियों का देशव्यापी सदस्यता आधारित समूह है, जो विचारों की आजादी और व्यक्तियों की आजादी, सभा, असहमति, विरोध- प्रदर्शन व ऐसे तमाम अधिकारों से जुड़े मुद्दों सहित सभी मानवाधिकार रक्षकों के उत्पीड़न व अपराधीकरण के मसले पर पैरोकारी व प्रतिक्रिया देने का लक्ष्य रखता है ।
पिछले दिनों भारत में शैक्षिक संस्थानों पर हो रहे लगातार हमलों के संदर्भ में इस जन अधिकरण ने देश के तमाम विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थाओं के छात्रों और अध्यापकों की लिखित और मौखिक गवाहियों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है ।
ट्रिब्यूनल के जूरी पैनल के सदस्य थे- बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस होस्बेट सुरेश, जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, जे. एन. यू. के पूर्व प्रोफेसर प्रो. अमित भादुड़ी, प्रो. टी के ऊमन, डी. यू. की पूर्व प्रोफेसर व महिलावादी इतिहासकार प्रो. उमा चक्रवर्ती, पूर्व वाइस चांसलर प्रो. वसंती देवी, जे. एन. यू. के पूर्व प्रोफेसर प्रो. घनश्याम शाह, काऊंसिल फ़ॉर सोशल डेवलपमेंट, हैदराबाद के प्रो. मेहर इन्जीनियर और वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस ।
यह जन अधिकरण अपनी छान-बीन में जिन निष्कर्षों तक पहुँचता है, उनमें प्रमुख हैं- निजीकरण और वैश्वीकरण, उच्च शिक्षा में अनुदान की समाप्ति, उच्च शिक्षा के संस्थानों की स्थिति और सांस्थानिक क्षरण, प्रवेश प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण, शिक्षा में सार्वजनिक अनुदान के प्रति बदलती धारणा और नीतिगत बदलाव, इतिहास का विकृतीकरण, सिलेबस और शिक्षा का भगवाकरण, हिन्दुत्व का प्रसार और सेकुलर संस्कृति पर कब्ज़ा, साम्प्रदायिक परियोजना के तहत पाठ्यक्रम और सिलेबस में बदलाव, वफादारों की भर्तियों के माध्यम से विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का हनन और संस्थागत कब्ज़ा, परिसरों के भीतर हिंदुत्ववादी ताकतों का उभार और प्रतिरोध के स्वरों का दमन, छात्र संघ और चुनाव, असहमति का दमन और अपराधीकरण, छात्र आंदोलन के दमन के लिए कानूनी तरीकों का इस्तेमाल, जासूसी-प्रतिबंध और प्रतिक्रिया का भय, छात्रों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और आपराधिक प्रणालियों का इस्तेमाल, छात्रों और फैकल्टी के खिलाफ बर्बर बल प्रयोग, फैकल्टी के सदस्यों का उत्पीड़न, संरचनागत हाशियाकरण, जातिगत भेदभाव, लैंगिकता और यौनिकता आदि ।
जूरी पैनल ने 17 राज्यों के करीब 50 संस्थानों से आए अनेक छात्रों और शिक्षकों की लिखित और मौखिक गवाहियों को सुना , जिसके आधार पर यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई । किताब में इन गवाहियों को विस्तार से जगह दी गई है ।
किताब के प्राक्कथन का एक छोटा सा हिस्सा इस रिपोर्ट के महत्व को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है-“वास्तव में यह ‘रिपोर्ट’ नहीं है । यह बैरिकेड्स का एक गीत है, कक्षा का एक उत्सव है, जहाँ ज्ञान ही मुक्ति है । यह समकालीन भारत का एक वृत्तचित्र है जब हम अपने परिसरों में 2014 के बाद से घेरेबंदी में हैं, एक फ़ासीवादी राज्य के तहत, जहाँ उनके सड़कछाप हमलावर खुलेआम घूम रहे हैं । निश्चित रूप से, जीवन कहीं और नहीं है । वह है तो यहीं है, जहाँ नए मचान बनाए गए हैं और नए प्रतिरोध गीत लिखे जा रहे हैं । सचमुच, यह एक यथार्थवादी बनने का और असंभव की माँग करने का समय है ।”
इस रपट की महत्वपूर्ण स्थापनाओं में विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के बयानों की महती भूमिका है । ‘प्रो. अपूर्वानंद ने प्रान्तीय विश्वविद्यालयों की खराब हालत पर अपनी बात रखते हुए बताया कि केन्द्रीय विश्वविद्यालयों पर फोकस होने के कारण इनकी उपेक्षा हो जा रही है ।…प्रान्तीय विश्वविद्यालयों के पतन पर पटना यूनिवर्सिटी के मुकेश कुमार ने दर्दनाक प्रसंग बताया । वहाँ 24 घंटे खुलने वाला पुस्तकालय अब केवल 12 घंटे खुलता है । परीक्षाएँ चार से पाँच साल के अंतराल पर ली जाती हैं ।…प्रो. थापर ने बताया कि छात्रों को यह बताया जाना जरूरी है कि कैसे मौजूदा ज्ञान का प्रश्नांकन करें ताकि वे ज्ञान के तंत्र पर सवाल उठा सकें और उसे बदल सकें ।’
हिन्दुस्तान में उच्च शिक्षा के लगातार निजीकरण, व्यवसायीकरण और सम्प्रदायीकरण की शिनाख्त करती यह रपट छात्र आन्दोलनों, उनकी मांगों, अपेक्षाओं और उनके विजन को भी रेखांकित करती है ।
यह किताब ‘नवारुण प्रकाशन’ से छपी है । 288 पृष्ठों की इस किताब के पेपरबैक संस्करण का मूल्य 300रू है ।
मूल आवरण चित्र क्षितिज हड़के का है और आवरण प्रस्तुति राम बाबू की है । मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है अंकुर जायसवाल और अभिषेक श्रीवास्तव ने ।