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श्रमिक महिलाओं ने की जन सुनवाई और जारी किया अपना घोषणा पत्र

श्वेता राज


विभिन्न सेक्टरों में कार्यरत महिलाओं जैसे – सफाईकर्मी, घरेलू कामगार, स्वस्थ कर्मी, स्किम वर्कर्स, खेत-मजदूर महिलाओं ने मोदी सरकार की गद्दारी पर मुखर होकर अपनी बात रखी।

समान काम के लिए समान वेतन की लड़ाई में नौकरी से निकाली गयीं JNU में सफाई कर्मी उर्मिला, जो वर्तमान में ऑल इंडिया जनरल कामगार यूनियन JNU यूनिट की अध्यक्ष भी हैं

मजदूर-महिलाओं ने एक स्वर में मोदी सरकार की चुनावी युद्धोन्माद फैलाने की राजनीति को खारिज करते हुए कहा कि सरकार आम जनता के ज्वलंत मुद्दों से भटकाना चाहती है।

महिला दिवस की पूर्व संध्या पर ऐक्टू तथा ऐपवा द्वारा जंतर-मंतर पर जन-सुनवाई का आयोजन किया गया। दिल्ली के विभिन्न इलाकों तथा सेक्टरों से जैसे – सफाई कर्मी, खेत-मजदूर, आशा कर्मी, बिल्डिंग वर्कर, स्वरोजगार तथा घरेलू कामगार महिलाओं ने जन-सुनवाई में भागीदारी की। जन-सुनवाई में एक जूरी पैनल भी था, जिसमें इतिहासकार तनिका सरकार, डॉ. उमा चक्रवर्ती, डीयू शिक्षक डॉ. उमा गुप्ता, ऐक्टू दिल्ली राज्य, अध्यक्ष संतोष रॉय, वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह, दलित लेखक संघ की सचिव पूनम तुषामढ़, पत्रकार अनुमेहा यादव मौजूद थे।

कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. तनिका सरकार ने की।

उन्होंने महिला दिवस के इतिहास को बताते हुए, इसके क्रांतिकारी समाजवादी जड़ों के बारे में बताया। आज भाजपा और आरएसएस को युद्धोन्माद की स्थिति देश में पैदा कर रहा है, उसकी उन्होंने कड़े शब्दों में निंदा की। जन-सुनवाई में जेएनयू की सफाई कर्मी उर्मिला जी ने बात रखी और बताया कि हमें बहुत गन्दे और खतरनाक हालत में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। मोदी सरकार भले ही स्वच्छ भारत का ढिंढोरा पिट रही है, पर सफाई कर्मी किस नारकीय व असुरक्षित हालत में जी रहे हैं और काम कर रहे हैं, इसकी कोई चिंता नहीं है।

घरेलू कामगार यूनियन से माला जी ने बताया कि घरेलू कर्मियों को कोई न्यूनतम वेतन नहीं मिलता तथा हम जिनके घरों में काम करते हैं, उनके द्वारा बार-बार अपमानित भी किया जाता है।


दिल्ली आशा कामगार यूनियन की महासचिव रीता ने बताया कि हमसे चौबीसों घंटे काम लिया जाता है और बदले में न्यूनतम वेतन तक नहीं मिलता। सरकारी स्किम के तहत काम करने के बावजूद न ही श्रमिक का दर्जा प्राप्त है और न ही अन्य सुविधाएं मिलती है।


फेक्ट्री में काम करने वाली शकुंतला जी ने वज़ीरपुर की फैक्टरियों में किस असुरक्षित हालत में मजदूर काम कर रहे हैं, हर दिन किसी न किसी घटना का शिकार हो रहे हैं। न्यूनतम वेतन तो मिलता ही नहीं है।

सभी महिला मजदूर साथियों की बात सुनने के बाद ज्यूरी पैनल इस बात को लेकर चिंता जाहिर की कि आज दिल्ली के किसी भी सेक्टर में महिलाएं सुरक्षित नहीं है और बहुत खराब हालत में काम कर रही हैं। मोदी सरकार स्किम वर्कर्स से किये हुए अपने को पूरा करने में असफल रही है। और सिर्फ नफरत और युद्ध का माहौल बनाने में लगी हुई है।

जन-सुनवाई आने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं के घोषणा-पत्र को जारी करते हुए समाप्त हुई।

(श्वेता राज, सचिव, ऐक्टू-दिल्ली की ओर सेे प्रचारित और प्रसारित)

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