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नोटबंदी से काले धन पर प्रहार भी एक जुमला ही था

 

दो वर्ष पूर्व आज ही के दिन यानि 8 नवंबर को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा की गयी थी. इसके अंतर्गत 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था.तब इसे काले धन के खिलाफ एक मास्टरस्ट्रोक बताया गया था. परंतु दो साल बाद इस बारे में सरकार में बैठे लोगों ने एक अप्रत्याशित खामोशी अख़्तियार कर ली है. पिछले दिनों सर्जिकल स्ट्राइक की दूसरी वर्षगांठ मनाने के लिए तो देश के सभी विश्वविद्यालयों को बाकायदा सर्कुलर जारी किया गया. पर नोटबंदी की वर्षगांठ का आयोजन तो छोड़िए,कहीं कोई चर्चा तक नहीं है.

इसके बावजूद नोटबंदी के प्रभावों की चर्चा तो होनी चाहिए. इस बात का भी ब्यौरा सार्वजनिक होना चाहिए कि नोटबंदी से काले धन का खात्मा हुआ या उस पर अंकुश लगा ? हालांकि यह तो खुली आँखों से देखा जा सकता है कि काले धन पर न रोक लगी,न कोई काला धन जब्त हुआ. बल्कि नोटबंदी के दौरान भी बंद किए गए नोटों की लगभग सारी रकम बैंकों में वापस आ गयी. पर यह जानना रोचक है कि नोटबंदी के दो साल बाद केंद्र सरकार का कालेधन के बारे में क्या कहना है !

कालेधन के संदर्भ में लोकसभा में सरकार द्वारा दिये गए जवाबों को देख कर साफ अंदाज लगाया जा सकता है कि कालेधन के मामले में मोदी जी और उनकी सरकार धूल में लट्ठ चला रही थी. 2014 में लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि यदि स्विस बैंक में जमा काला धन वापस आ जाये तो हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपये आ जाएँगे. लेकिन सरकार बनने के बाद मोदी जी की सरकार ने ऐलान कर दिया कि विदेशों में जमा काले धन का कोई आकलन उसके पास नही है.

लोकसभा में 06 अप्रैल 2018 को एक अतारांकित प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने बताया कि “विदेशों में जमा काले धन/छुपा कर रखे गए धन,काले धन में भारत की जी.डी.पी. की धनराशि और प्रतिशत(प्रतिशत में और रुपये में) या आंतरिक/बाह्य अवैध वित्तीय प्रवाह का, कोई सरकारी अनुमान नहीं है.” इस उत्तर से साफ जाहिर है कि मोदी या उनकी सरकार के पास विदेश और देश में काले धन को लेकर कोई जानकारी नहीं है. जब कोई जानकारी ही नहीं है तो फिर कालेधन के खिलाफ लड़ाई के सारे दावे स्वतः ही खोखले साबित हो जाते हैं.


नोटबन्दी देश के अंदर मौजूद कालेधन से लड़ने के नाम पर की गयी थी. लेकिन आज के दिन तक मोदी सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक देश में काले धन संबंधी आंकड़े तक जारी करने में भी विफल रही है. इस संबंध में एक अतारांकित प्रश्न का जवाब देते हुए 03 अगस्त 2018 को वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने लोकसभा में कहा कि “घरेलू काले धन के संबंध में डेटा का अभी तक कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है”.

लोकसभा में इसी वर्ष, केंद्र सरकार की ओर से दिये गए जवाबों से स्पष्ट है कि मोदी सरकार के पास नोटबंदी के समय तो छोड़िए आज भी देश और देश के बाहर मौजूद काले धन के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जब जानकारी नहीं है तो उसके विरुद्ध मोदी सरकार,लड़ सकती है,यह खामख्याली ही है. जिस तरह लोगों के खाते में 15 लाख रुपया आना- जुमला था,उसी तरह नोटबंदी से काले धन पर प्रहार भी एक जुमला ही था. लेकिन इस जुमले ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी और 150 नागरिकों को बैंकों की लाइन में अपनी जान गंवानी पड़ी. यह जो मार देश को झेलनी पड़ी,इसका हिसाब कौन देगा और किस चौराहे पर देगा, मोदी जी ?

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