( शाहजहांपुर की नाबालिग लड़की से रेप के केस में आसाराम को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है.पत्रकार शालिनी बाजपेयी उन पत्रकारों में से हैं जिन्होंने आसाराम के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद शाहजहांपुर का सबसे पहले दौरा किया था और उस बहादुर लड़की से मुलाकात की थी जिसके साहस और संघर्ष से अपने को ‘ ब्रह्मज्ञानी ‘ और ‘ भगवान ‘ मानने वाला आसाराम पिछले पांच वर्ष से जेल में है और आगे भी उसे जीवन पर्यंत जेल में ही रहना है. शालिनी बाजपेयी ने शाहजहांपुर दौरे, लड़की और उसकी माँ से मुलाकात को याद करते हुए यह रिपोर्ट लिखी है. )
मुझे याद है जब 21 अगस्त 2013 को आसाराम उर्फ आसूमल के खिलाफ एफआईआर दर्ज होने की सूचना आई थी। खबर पढ़ने और सुनने के बाद मुझे लगा सभी ‘सु’ के पिता के हवाले खबरें दे रहे हैं, कोई ‘सु’ और उसकी मां से तो पूछे कि उन्होने कैसे इस पूरे हादसे को सहन किया। और मैंने निश्चय कि मैं एक बार ‘सु’ से मिलकर उसके हौसले को जरूर देखना चाहूंगी, जो एक ‘ ब्रह्मज्ञानी ‘ के कुकर्मों के खिलाफ अपना मुंह खोलने की हिम्मत कर पाई।
तब तक तमाम अख़बारों मैगज़ीन में ये रिपोर्ट आ चुकी थी, लेकिन कहीं भी ‘सु’ के शब्द नहीं थे। मैंने अपने संपादक दिनेश जुयाल जी से कहा कि मैं इस मामले को ‘सु’ की ओर से रिपोर्ट करना चाहती हूं। संपादक जी ओके किया और मैं अगले दिन रोडवेज की बस पकड़कर शाहजहांपुर निकल गई। अगस्त का ही महीना था, उमस भरी गर्मी में भी मुझे लग रहा था कि मैं किसी बड़े मिशन पर जा रही हूं। मुझे हर हर हाल में ‘सु’ से मिलना था और उसके दर्द को आसाराम के अंधभक्तों तक पहुंचाना था।
कुछ साथियों ने कहा कि ‘उस’ मैगज़ीन में रिपोर्ट आ चुकी है, पिता के हवाले से स्टोरी है। अब तुम ऐसा क्या नया ले आओगी। जब वो रिपोर्टर ‘सु से’ नहीं मिल पाई तो तुम कैसे मिलेगी। ऐसा क्या नया ले आओगी अपनी रिपोर्ट में। मैंने कहा, देखते हैं, मैं अपना प्रयास करूंगी।
शाहजहांपुर पहुंचते ही मैंने अपने स्थानीय साथी रिपोर्टर को फोन किया, उन्हे पहले ही ब्रीफ कर दिया गया था। वह तुरंत मुझे लेने आ गए और फिर हम दोनों लोग ‘सु’ के घर पहुंचे। ‘सु’ का घर पुलिस छावनी बना हुआ था। वहां पता चला कि अभी कुछ रिपोर्टर आए थे, उसके पिता सबको सारी बातें बता चुके हैं। मुझे एहसास था कि एक पिता के लिए अपनी बेटी के साथ हुई घटना को बार-बार मीडिया वालों को बताना बहुत पीड़ादाई होगा, लेकिन क्या करें, हमारे पेशे की मजबूरी है। हमें बातों को घुमा-फिराकर पूछना होता है, ताकि कहीं से कोई नई बात मिल जाए।
साथी रिपोर्टर ने मेरा परिचय कराया और कहा, ये बात करना चाहती हैं। मैं अपने साथी के सामने सवाल पूछने में सहज नहीं थी। दरअसल वहां पर कुछ और लोग भी बैठे थे। मुझे बार-बार लगा कि इनके सामने ‘सु’ और उसके परिवार से सहज बातचीत नहीं हो सकती। मैंने कहा, आप लोग बाहर चले जाएं, मैं कुछ अकेले में बात करना चाहती हूं। वो लोग बाहर चले गए। इसके बाद मैंने ‘सु’ के पिता से कुछ सवाल किए, लेकिन वह बहुत थके हुए थे, शायद कुछ थकान दुख की थी और कुछ दबाव की। बोले, मैं कई रातों से सोया नहीं हूं, नींद नहीं आती है। उन्होने बताया कि उनका पूरा परिवार आसाराम में बहुत श्रद्धा रखता था। आसाराम का वास उनके रोम-रोम में ही नहीं घर के कोने-कोने में था। लेकिन आज वो श्रृद्धा कितनी नफरत में बदल गई थी ये ‘सु के घर के बाहर पड़ा आसाराम आश्रम का बोर्ड बता रहा था। उन्होने बताया कि घर से आसाराम की निशानी मिटाने में बहुत समय लगा।
उन्होने बताया कि घर में हर जगह आसाराम की तस्वीर लगी हुई थी। बाबा के ब्रांड की दवाइयां, चाय की पत्ती, किताबें हर जगह बाबा का ही कब्जा था। जब हम लोगों को उनकी असलियत पता चली तो घर से आसाराम की एक-एक फोटो को हटा दिया। उन्होने बताया, कोई भी अलमारी खोलते हैं तो उसमें आसाराम से संबंधित कुछ न कुछ जरूर मिल जाता है। कहीं कोई किताब दिख जाती है, कहीं दवाई तो कहीं कैलेंडर।
तभी एक लड़का पानी लेकर आया। उसने उन्हें पानी के साथ नींद की एक गोली दी। उन्होंने कहा, मैं बहुत परेशान हूं, मैं सोना चाहता हूं। मैंने कहा, ठीक है, कोई बात नहीं, आप सो जाइए, मैं कल आऊंगी, आप जब सहज हों, तभी बात करेंगे। इसके बाद मैं अपने साथी के साथ वहां से चल दी। मैंने उनसे कहा, मैं ‘सु’ से मिलना चाहती हूं। उन्होंने कहा, अरे ये लोग उससे किसी को भी मिलने नहीं देते हैं। आपने देखा है न, कैसे बात कर रहे थे।
थोड़ा निराश हुई, लेकिन मन में सोचा अब जो होगा देखा जाएगा। साथी बोले, अब कहां चलें। मैंने कहा, आसाराम का आश्रम ही देख आते हैं, साथी बोले, वहां कुछ नहीं है। वहां पर तो पुलिस लगा दी है। मैंने कहा, चलते हैं। मेरे कहने पर वह आसाराम के आश्रम चल दिए।
वहां पर पहुंची तो देखा कि बड़े से अहाते के किनारे की तरफ कुछ कमरे बने हुए हैं, बरामदे में आसाराम की विशालकाय फोटो लगी थी जिस पर लिखा था – चप्पल-जूते नीचे उतारें, ऊपर भगवान जी का निवास है। वहां जो महिला पुलिसकर्मी ड्यूटी पर तैनात थीं, वह भी नीचे की तरह बैठी थीं और चप्पल तो ऊपर रखने का सवाल ही नहीं था। मैंने उससे कहा- अरे आप लोग नीचे क्यों बैठी हैं। वे बोलीं, अरे यहां ये लिखा है न, फोटो लगा है, ऊपर बैठना ठीक नहीं। मैंने कहा, कैसी बातें करती हैं, यह तो दुष्कर्म का आरोपी है, इसके साथ तो अपराधियों जैसा ही सलूक होना चाहिए। मैं उनके सामने ही चप्पल पहनकर ऊपर चढ़ी और वहां पर बने हुए सभी कमरे देखे, उनमें सुविधाओं की कौन-कौन सी चीजें हैं। सब देखने के बाद हम लोग वहां से निकल गए। हमारे साथी ने पूछा, अब आप कहां जाएंगी, मैंने कहा यहां पर मेरी भाभी का परिवार रहता है, मैं वहीं जाउंगी।
भाभी के घर पहुंचकर मैंने संपादक जी से सारी कहानी बताई। मैंने कहा, सर मैं आज यहीं रुकूंगी। यह बात आप किसी को बताइएगा नहीं। मैं ‘सु’ से बात करने कल अकेली जाऊंगी। उनसे बात करने के बाद मैं रातभर सो नहीं पाईं। मुझे बार-बार यही लग रहा था कि पता नहीं मैं ‘सु’ से मिल भी पाऊंगी या नहीं। मुझसे खाना भी नहीं खाया गया।
अगले दिन सुबह मैं ‘सु’ के घर जाने के लिए तैयार हो गई। वहां पहुंचते ही गार्ड ने मुझसे पूछा, किससे मिलना है। मैंने अपना परिचय दिया तो गार्ड ने एक्सटेंशन पर बात कर पूछा और मुझसे कह दिया, उनकी तबियत ठीक नहीं है। मैंने उनसे कहा, मेरी बात कराइए। मैंने कल ही उनसे समय लिया था। इसके बाद उन्होंने मेरी बात कराई तो ‘सु’ के भाई ने फोन रिसीव किया। मैंने उससे पूरी बात की। मैने कहा, देखिए मुझे मिलना है। मैं बहुत दूर से आई हूं। कल ही मैंने समय लिया था। उसके बाद वह तैयार हो गया। पुलिसकर्मियों ने मुझसे रजिस्टर पर एंट्री कराई। मैंने भी जल्दबाजी में बिना कुछ सोचे-समझे एंट्री कर दी। इसके बाद मैं ऊपर पहुंची। वहां पहुंच कर मैंने ‘सु’ के पिता से कुछ बातें पूछीं। इसके बाद मैंने उनसे कहा, मुझे ‘सु’ से मिलना है। वह बोले, नहीं वह मिलने की स्थिति में नहीं है। मैंने कहा- ‘सु’ की मां से बात करा दीजिए। बोले, वह भी बीमार हैं। मैंने कहा- देखिए आज जैसा चाहेंगे, वैसा ही लिखूंगी। मैं आपको परेशान करने नहीं आई हूं। उन्होंने कहा, नहीं हम आपको नहीं मिलवा सकते। क्या पता आप आसाराम की तरफ से आई हों। मैं ऐसे किसी पर विश्वास नहीं करता। मैंने उन्हें अपना विजिटिंग कार्ड दिया, मैंने कहा, अखबार में मेरे ऑफिस का नंबर छपा हुई है, वहां पर फोन करके पूछ लीजिए।
दूसरा रही बात सुरक्षा की तो ये लीजिए आप मेरा बैग, मेरा फोन, मेरा पेन सब कुछ आप अपने पास रखिए। एक महिला पुलिस को बुलाकर मेरी तलाशी लीजिए। इसके बाद महिला पुलिस के साथ ही मुझे बेटी से मिलने दीजिए। मैं उसका दर्द आसाराम के अंधभक्तों के सामने लाना चाहती हूं। मेरी बातें सुनकर वो कुछ असहज तो हुए, लेकिन मान गए। जो मैंने कहा- वैसा ही किया। मैं महिला पुलिस और उनके साथ अंदर गई। वहां पर जाकर फिर वह अपनी पत्नी के कमरे में पहुंचे और बाहर आकर बोले, वह सो रही हैं। मैंने कहा- कोई नहीं, मैं इंतजार कर सकती हूं। उन्हें मुझपर थोड़ा गुस्सा आया।
कुछ देर बाद ‘सु’ की मां आईं। उनसे कुछ सामान्य हालचाल पूछने के बाद बातें शुरू हुईं। मैंने उनसे कहा कि बेटी को भी बुला लीजिए वह भी अपनी बात करना चाहती होगी। मेरे कहने उन्होंने बहुत सहज तरीके से ‘सु’ को बुलाया। जब मैंने ‘सु’ को देखा- मुझे लगा लड़की में वाकई बहुत हिम्मत है। उसकी वह हिम्मत मुझे उसकी आंखों में दिख रही थी। बहुत ही शांत तरीके से कुछ मुझे कुछ बातें बताईं। मुझे यकीन हो गया था कि आसाराम और उशके भक्त झूठ बोल रहे हैं कि लड़की पागल है। वह दोनों लोग लगभग एक घंटे तक मुझसे बात करते रहे। दरअसल उनके पास इतना कुछ बताने के लिए था समय कम पड़ रहा था, क्योंकि अब तक उनकी तो किसी ने सुनी ही नहीं थी।
लड़की की मां ने बताया कि गुरुकुल से उन्हें फोन आया कि उनकी बेटी बहुत बीमार है और तुरंत महामृत्युंजय का जाप शुरू कर दें। उन्होंने रात में ही जाप शुरू कर दिया और सुबह छिंदवाड़ा बेटी के गुरुकुल पहुंच गए।
वहां पर बेटी से तो नहीं मिलना हुआ, लेकिन गुरुकुल की शिक्षकों ने बताया कि उसकी तबीयत ठीक है। मां ने तुरंत ही गुरुकुल के बाहर शिक्षक के पास से फोन पर बेटी से बातचीत कर उसका हाल पूछा। बेटी ने कहा, वह बिल्कुल ठीक है, बस उसे एक दिन चक्कर आ गया था। तब से सब लोग कह रहे हैं कि उसके ऊपर भूत-प्रेत है। लेकिन, वह बिल्कुल ठीक है।
बातचीत के बाद शिल्पी बेन ने कहा कि बापू से बात हो गई है, उसके ऊपर भूत-प्रेत है। उसे बापू के पास ले जाना पड़ेगा। वह इन लोगों के षड्यंत्र को समझ नहीं पाई। आस्था में फंसने की वजह से उसे लगा कि चलो कोई बात नहीं, इसी बहाने बापू के दर्शन भी हो जाएंगे। वहीं से पता चला कि बाबा जोधपुर में है। इसलिए, परिवार बेटी को लेकर बापू के जोधपुर आश्रम में पहुंच गए। मां ने बताया कि जिस गांव में उसका आश्रम था, उस गांव का नाम बार-बार पूछने के बाद भी कोई पता नहीं बता पा रहा था।
बड़ी मुश्किल से रास्ता मिला। वहां पर हम लोग आश्रम पहुंचे। आश्रम में काफी लोग बैठे हुए थे। लेकिन, बापू ने हम लोगों को देखते ही बेटी से पूछा, तू कहां से। बेटी ने कहा, छिंदवाड़ा गुरुकुल से। बोले, अच्छा भूत वाली। बेटी ने भी कह दिया, हां। इसके बाद बापू ने उसे आगे बुलाया और उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा कि तू तो ठीक है, तुझ पर कोई भूत- प्रेत नहीं। बेटी ने कहा, यही तो मैं सबसे कह रही हूं, लेकिन मेरी कोई सुन ही नहीं रहा। इसके बाद बापू ने लड़की के पिता की खूब तारीफ की, उसकी मां को भी अपनी बातों में बहलाया। बोले, क्या चाहते हो। परिवार आस्था में डूबा होने की वजह से बोला, बस, आपका आशीर्वाद। बापू बोले, ऐसे भक्त होने चाहिए।
मां पूरी बात बताते हुए बीच में जरा सा भी रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि उसके दिल में इतना दर्द था कि वह खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। आगे मां ने बताया, इसके बाद हम लोगों को कमरे में बैठा दिया गया।
15 अगस्त को शाम करीब दस बजे हमें बुलाया गया। कहा गया कि बापू कुटिया में बुला रहे हैं। इसके बाद बापू के हम लोग कुटिया पहुंचे। बापू कुटिया में ऊपर की तरफ आसन पर बैठे थे और हम लोग नीचे जमीन में दरी पर। बापू ने रसोइए को बुलाकर सबके लिए दूध मंगाया और और बेटी को अपने पास बुलाया। उससे बोले, अंदर बैठकर माला जपो। वह बापू का आदेश मानते हुए पीछे चली गई। हम लोग बाहर बापू से बातचीत करने लगे। काफी देर बातचीत के बाद बापू उस आश्रम में घूमने लगे। हम लोग भी उनसे बातचीत करते हुए उनके पीछे-पीछे चलते रहे।
इसके बाद वह फिर आसन पर आए और अंदर चले गए। वह एक कमरे में गए और फिर पांच मिनट के बाद लाइट बंद कर दी। उस कमरे में चारों ओर से शीशे लगे हुए थे। हम लोगों को लगा कि बेटी पीछे बैठी जाप कर रही होगी, लेकिन उसे वहां से बुलाकर बापू के पास भेज दिया गया। मां बोली, मेरे पति बोले लग रहा है कि बापू सो गए। इसके बाद हम लोग माला जपने लगे। दस-पंद्रह मिनट बाद मेरे पति बोले, मैं चलता हूं, तुम उसे लेकर आ जाना, लेकिन जल्दी आना।
उसके बाद, मैं अकेले वहां रह गई। दस मिनट तक मैं माला जपती रही, लेकिन फिर, मेरे मन में कुछ पाप आया। लेकिन, मैंने खुद ही अपने हाथ से दो अपने थप्पड़ मारे और कहा, अरे ये मैं कहा सोच रही हूं। खैर, मैं फिर, बेटी का इंतजार करने लगी।
वह अंदर बैठे बेटी से बातचीत कर रहे थे, फिर, उन्होंने करीब सवा 11 बजे उससे कहा, जाओ बाहर देखों तुम्हारे मम्मी-पापा बैठे हैं क्या। उन्हें देखकर मुझे बता देना। बेटी बाहर आई और उसने मुझे देखा बोली, मैं बापू को बता कर आती हूं। वह उन्हें अंदर बताने गई और वहीं पर बाबा ने उसका हाथ खींच लिया। अब मेरा मन और घबराने लगा, मुझे लगा अब कहां रह गई। कुछ देर बाद जब बेटी बाहर निकली तो बदहवास थी….।
उसका यह हाल देखकर मेरा दिल वहीं पर धक्क बोल गया। मैंने उससे पूछा क्या हुआ, वह बस इतना बोली, ‘ चलो यहां। यह बाबा पूजने लायक नहीं है। ये बापू बहुत गंदा है। ‘
रिपोर्ट पूरी करने के बाद जब मैं बरेली पहुंची तो उस दिन काम करने के बाद बीमार पड़ गई। दरअसल मैं बहुत थक चुकी थी, दो दिन खाना-पीना भी अनियमित रहा था। सुबह से शाम तक धूप में घूमती रही। मेरी माम्मी का फोन आया तो मैंने उन्हे पूरी बात बताई। ये भी बताया कि मेरी तबीयत खराब हो गई है। ये सुनना था के मम्मी बहुत डरी हुई गम्भीर आवाज़ में बोलीं, अरे, तुम चप्पल पहनकर उसके आश्रम में चढ़ गई थी। वो बाबा तांत्रिक भी है। उसने कुछ करा दिया होगा! उस स्थिति में भी मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई। मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है। वो खुद जेल में पड़ा है, अपने हालात देखे। मम्मी से बात करने के बाद मन हल्का हो गया, फिर कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
( जोधपुर की अदालत ने अपने निर्णय दिनांक 25.04.2018 में लड़की का नाम ‘सु’ लिखा है )