प्रधानमंत्री के नाम जिग्नेश मेवानी का खुला पत्र
आदरणीय मोदी जी
कल 14 अप्रैल के दिन देश के तमाम दबे कुचले, शोषित उत्पीड़ित लोग लाखों लाख की तादाद में देश के गांवों, नगरों, शहरों में सड़कों पर निकलेंगे और बाबा साहब डा भीमराव अम्बेडकर को याद करेंगे । वही बाबा साहब जिन्होंने देश को एक ऐसा संविधान दिया जिसने कानून के सामने सभी को समान घोषित किया और सदियों से कायम मनु की व्यवस्था – जो जनम के आधार पर लोगों को उंच नीच बनाती थी – को समाप्त किया।
मोदीजी, सुना है कि आप की सरकार भी बड़े धूमधाम से इस दिन को मना रही है। अभी 13 अप्रैल को आप ने अलीपुर स्थित बाबासाहब के निवास पर एक राष्ट्रीय स्मारक का उदघाटन किया, वही जगह जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी। चन्द रोज पहले ही आप ने कहा था कि डा अम्बेडकर
का सम्मान आप की सरकार ने जितना किया उतना किसी ने नहीं किया।
यह कैसा सम्मान मोदी जी कि इधर कहीं दिल्ली में तो कभी लंदन में डा अम्बेडकर के स्मारकों के उदघाटन होते रहें और उधर आप के ही दल के लोग कानून के राज की बखिया उधेड़ते रहे, जिसके निर्माण के लिए डा अम्बेडकर ने अपनी जिन्दगी निछावर कर दी।
मोदीजी, आप ने आठ साल की आसिफ़ा का नाम सुना है, जो जम्मू की थी जिसे एक मंदिर में बन्द रखा गया गया और कई दिनों तक उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और अन्ततः उसे मार दिया गया और यह महज इसलिए क्योंकि उसके समुदाय के लोग डर कर भाग जाएं। और बलात्कारियों को जब पकड़ा गया तो आप की पार्टी के मंत्राीगण पैरवी करने के लिए उतरे और उन अमानुषों के हक में ‘भारत माता के नारे लगे ’।
मानवता को शर्मसार करनेवाली इस घटना पर सभी ने लब खोले, मगर प्रधानमंत्राी पद का जिम्मा संभालते वक्त़ संविधान को सबसे पवित्र किताब घोषित करनेवाले आप मौन बनाए रखा, गोया आप ने कुछ देखा सुना न हो।
मोदीजी उसी किस्म का सिलसिला उन्नाव की किशोरी के साथ हुआ। विधायक और उसके गुर्गों ने उससे बलात्कार किया। शिकायत करने पर उसके पिता को उन्हीं ने पीटा और पुलिस कस्टडी में डलवा दिया। पिता की मौत हुई, तब भी विधायक बेदाग घूमता रहा। राम राज्य की दुहाई देता रहा। न आप बोले, न राज्य की बागडोर संभाले आदित्यनाथ बोले। भला हो डा अम्बेडकर के बनाए संविधान के तहत चलने वाली अदालत का। उसने जब डांट लगायी तभी विधायक को सलाखों के पीछे भेजा गया।
मोदीजी, कानून का राज जब कमजोर पड़ता है या किया जाता है, तो ‘ जिसकी लाठी, उसकी भैंस ’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। झुंड का शासन कायम होता है। आततायियों को, दंगाईयों को छूट मिलती है।
झुंड तय करता है कि रामनवमी के जुलूस में हथियार लेकर चलेंगे, हनुमान जयंती के दिन मोटरसाइकिलों पर शोभायात्रा निकालेंगे और अल्पसंख्यक समुदायों के प्रार्थनास्थलों के सामने त्रिशूलों और तलवारों के साथ नारेबाजी करेंगे। दादरी के किसी अखलाक के घर सैकड़ों की तादाद में अचानक पहुंचेगे और उसे महज सन्देह के आधार पर खतम करेंगे। और हत्या का आरोपी किसी वजह से मर जाए तो उसे तिरंगे से सम्मानित करे।
झुंड तय करता है कि कोई शंभुलाल रैगर – जिसने किसी निरपराध मुस्लिम मजदूर की बिना कारण हत्या की, इस बर्बर हत्या को औचित्य प्रदान करनेवाला विडियो अपलोड किया – उसे ‘अपने युग का नायक ’ घोषित कर दे और धार्मिक जुलूसों में उसकी झांकी निकाले।
झुंड तय करता है कि दलित-आदिवासी मरे, किसान आत्महत्या करे, मजदूर गोलियों से मार दिया जाए, तो भी न कोई हंगामा हो, न कोई शिकायत, मगर अगर कहीं से गोवंश मरने की अफवाह उड़े तो बस्तियों को बेचिराग कर दिया जाए, किसी उस्मान, किसी जावेद की जिन्दगी की डोर समाप्त की जाए।
मोदीजी, खुद डा अम्बेडकर ने संविधान को देश को सौंपते वक्त हमें बताया था कि हम एक व्यक्ति एक मत वाले राजनीतिक जनतंत्रा में प्रवेश कर रहे हैं, मगर एक व्यक्ति एक मूल्य वाला सामाजिक जनतंत्र कायम करने की लड़ाई अभी दूर तक चलेगी। आज जब ट्रेन में किसी जुनैद को भीड़ पीट-पीट कर मार देती है या दिल्ली में किसी इमाम को पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाली बस में अपमानित करती है, और ऐसे लोगों को शह मिलती है, तो यही उजागर होता है कि हमारा मुल्क अम्बेडकर के सपनों के सामाजिक जनतंत्रा की तरफ नहीं बल्कि मनु के दिनों के झंडूतंत्रा की तरफ बढ़ रहा है।
मोदीजी, आप जानते हैं ! इस मुल्क के करोड़ो करोड़ दलित आदिवासी और इन्साफ पसंद लोगों के लिए डा अम्बेडकर की 117 वीं जयंति का आयोजन बहुत विकत परिस्थितियों में हो रहा है। एससी/एसटी एक्ट को कमजोर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल को हुए भारत बन्द के दौरान
शरारती तत्वों द्वारा की गयी हिंसा का बहाना बना कर देश के हजारों हजार दलितों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे खतरनाक कानूनों के तहत मुकदमे कायम किए गए है, तमाम लोग जेल की सलाखों के पीछे हैं, तमाम लोग पुलिसिया दमन से बचने के लिए घर से पलायन किए हैं।
एक तरफ दलितों पर फर्जी मुकदमे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वर्चस्वशाली जातियों के वे लोग जिन्होंने बन्द का बहाना बना कर दलितों की हत्याएं की, वह बेदाग घूम रहे हैं। यह संविधान की कैसी रक्षा है मोदीजी ! डा अम्बेडकर की मूर्ति पर माल्यार्पण करने के पहले क्या आप इस मसले पर नहीं आत्मपरीक्षण करेंगे कि किस तरह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के लिए – जिसने एस सी एस टी एक्ट को कमजोर किया – आप की सरकार ने ही जमीन तैयार की। ठीक से केस लड़ा नहीं। एटर्नी जनरल
के बजाय सालिसिटर जनरल के किसी जुनियर को भेजा। जनता के भारी दबाव के तहत जब आप की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा पुनर्विचार याचिका के लिए खटखटाया तो यही बात माननीय न्यायाधीश ने कही।
अगर आप की सरकार ने बरती भूल को सुधारना चाहते हैं तो क्यों नहीं आप की सरकार तत्काल एक अध्यादेश जारी कर दे ताकि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला निष्प्रभावी हो जाए।
ध्यान दीजिए, यह महज एससी /एसटी एक्ट को बचाने की लड़ाई नहीं है यह तो भारत के दंड विधान / इंडियन पीनल कोड को बचाने की लड़ाई है। एससी/ एसटी एक्ट को लेकर यह फैसला कहता है कि कोई भी केस दर्ज हो प्रथम सूचना रिपोर्ट तभी दर्ज होगी, जब जांच होगी ; जबकि भारत के दंड विधान के तहत यह शिकायतकर्ता का अधिकार है। दिल्ली ही नहीं देश के तमाम पुलिस स्टेशनों में यह बात बाकायदा लिखी गयी है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट पाना साधारण नागरिक का अधिकार है।
मोदीजी, यह कैसा भारत बनाना आप चाहते हैं कि पुलिस थानों में केस दर्ज न हो, जांच पूरी करने के नाम पर दबंगों को पीड़ितों को प्रताडित करने की पूरी छूट मिले , अदालतें न्याय न करें और आम नागरिक दर दर भटकता रहे। किझेवनमनीसे लेकर बाथे, शंकरबिगहा, चुंदूर तक दलित जनसंहारों के तमाम मामलों में कभी भी न्याय नहीं मिल सका है। उना, गुजरात के दलित – जिन्हें मरी हुई गाय की चमड़ी उतारने के लिए – सरेआम बुरी तरह पीटा गया था और इस वीडियो को इंटरनेट पर साझा किया गया था ; जिसकी प्रतिक्रिया में एक व्यापक जनान्दोलन हुआ था, उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला है मोदीजी।
यह कैसा भारत आप बनाना चाहते हैं कि आप के बाद सूबा गुजरात की मुख्यमंत्राी बनी आनंदीबेन पटेल ने डा अम्बेडकर के चरित्रा की लाखों प्रतियां – जो स्कूलों में बांटने के लिए उनकी ही सरकार ने प्रकाशित की थी – रददी में डाल दी क्योंकि लेखक ने किताब के अन्त में बाबासाहब डा. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म के स्वीकार के वक्त़ जिन बाईस प्रतिज्ञाओं को अपनी अनुयायियों के साथ दोहराया था, उन्हें किताब के अन्त में शामिल किया था। और आनंदीबेन पटेल के बाद मुख्यमंत्राी बने विजय रूपानी ने तो 15 अगस्त के दिन दलितों के हाथों तिरंगा लेने से भी इन्कार किया
था।
कानून का राज जब भी कमजोर किया जाता है, संविधान के उसूलों को तथा उसके मूल्यों को जब भी खोखला किया जाता है, तब उसकी सबसे बड़ी मार आम व्यक्ति पर पड़ती है और पूंजीशाह, थैलीशाह तथा साम्प्रदायिक जातिवादी गिरोहों की पौ बारह हो जाती है।
अभी चन्द रोज पहले लगभग पचास हजार किसानों ने नाशिक से मुंबई पैदल मार्च किया था। लाल झंडे तले हुए इस शांतिपूर्ण मार्च का जोरदार स्वागत मुंबई की आम जनता ने किया। मजदूरों-किसानों के प्रदर्शनों को लेकर नाकभौं सिकोड़नेवाले मीडिया ने भी इस मार्च को खूब प्रचारित किया। नासिक के इन किसानों के जरिए यही बात रेखांकित हुई कि जब पूंजीशाह, थैलीशाहों और साम्प्रदायिक जातिवादी गिरोहों को छूट मिलती है तो लाखों लाख किसानों की आत्महत्या भी किस तरह ख़बर तक नहीं बन पाती।
किसान मामूली कर्ज वसूली से बचने के लिए आत्महत्या कर रहे हैं और कानून के राज को ठेंगा दिखाते हुए सरकारी बैंकों के हजारों हजार करोड़ रूपए गटक कर नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे लोग विदेशों में ऐश कर रहे हैं। कानून का राज जब कमजोर किया जाता है तो मारूति और प्रिकाॅल के कामगार सालों साल जेल में सड़ने के लिए मजबूर होते हैं, रोहिथ वेमुल्ला की सांस्थानिक हत्या में शामिल लोग – जिन पर मुकदमे कायम हुए हैं – सम्मानित होते रहते हैं, पदोन्नति पाते रहते हैं, रोहिथ की मां राधिका
वेमुल्ला न्याय की तलाश में भटकती रहती है, नजीब की मां सलाखों के पीछे भेजी जाती है और भीमा कोरेगांव में दलितों पर हुए संगठित हमले के सूत्राधार सरकार की तरफ से अभय पाते रहते हैं, और अदालत से बेदाग छूटे भीम आर्मी के जुझारू नेता चंद्रशेखर आज़ाद रावण के खिलाफ रासुका लगायी जाती है।
मोदीजी, जेल में अनशन का चंद्रशेखर आज़ाद रावण का यह सातवां दिन है। 2 अप्रैल के भारत बन्द के दिन दलितों पर हुए झूठे मुकदमों को वापस करने की मांग को लेकर जेल की सलाखों के पीछे से उन्होंने अपनी आवाज़ बुलन्द की है। हम पुरयकीं हैं कि जेल की दीवारों को भेदते हुए यह आवाज़ – जो एक नए भारत के निर्माण की बुलंद आवाज़ है – यह आवाज़ जो भगतसिंह, बिस्मिल, अशफाक, अम्बेडकर जैसे विद्रोहियों के सपनों का भारत बनाने की आवाज़ है, दूर दूर तक पहुंचेगी।
उना के आन्दोलन ने हम सभी को तप कर फौलाद बनाया है। हमारी चेतना महज खास तबके के लिए, खास समुदाय तक सीमित नहीं हैं। अब यह धर्म की दीवारों, जाति नस्लों की बाड़ों से परे जानेवाली चेतना है, जो समूची इन्सानियत की बेहतरी के ख्वाब देखती है। मध्यप्रदेश के किसानों के सीनों पर चलनेवाली गोलियां भी हमें छलनी करती हैं और किसी नन्हीं सी आसिफा को न्याय दिलाने के लिए भी हम तत्पर रहते हैं।
मोदीजी, संविधान को पवित्रा किताब महज जुबानी जमाखर्च में ही नहीं बल्कि हक़ीकत में उतारने के लिए तैयार होइए। वक्त़ अब बदल रहा है।