भाकपा माले के 10 वें महाधिवेशन में महासचिव कॉ. दीपांकर भट्टाचार्य का उद्घाटन भाषण
माले के 10वें पार्टी महाधिवेशन में शामिल भारत की विभिन्न वामपंथी पार्टियों से आये साथियों, अंतर्राष्ट्रीय वाम और प्रगतिशील आन्दोलन से आये सम्मानित अतिथियों, प्रतिनिधि, अतिथि, पर्यवेक्षक और कार्यकर्ता साथियों,
इस उद्घाटन सत्र में मैं आप सब का क्रांतिकारी अभिवादन और गर्मजोशी भरा स्वागत करता हूँ. इस महाधिवेशन के कुछ पहले ही हमने गौरवशाली नवम्बर क्रान्ति का शताब्दी वर्ष मनाया है. 2017 महान नक्सलबाड़ी किसान आन्दोलन का 50वां साल भी है. इस 10वें महाधिवेशन के मंच से हम अंतर्राष्ट्रीय और भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन की महान ऐतिहासिक विरासत को सलाम करते हैं और हर तरह के उत्पीड़न व अन्याय के खिलाफ तथा पूर्ण मानवीय गरिमा की प्रतिष्ठा के उच्चतम कार्यभार के लिए हम अपने आपको पुनः समर्पित करते हैं.
आज हम यहाँ एक ऐतिहासिक मोड़ पर मिल रहे हैं. हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार वैश्विक आर्थिक मंदी, विराट असमानता, कामगारों की जीविका और उनके बुनियादी अधिकारों पर सतत हमलों के दौर से गुजर रहे हैं. इसे आर्थिक संकट से जुगलबंदी करता हुआ फासीवादी प्रवृत्तियों और ताकतों का उभार भी सामने है जो युद्ध, नस्लीय हिंसा, इस्लामोफोबिया और राज्य द्वारा निगरानी की लहरों पर सवार है. हम एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक माहौल से दरपेश हैं जिसने एक नस्लवादी और घृणित डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति को अमेरिका का राष्ट्रपति बना दिया है, जहां राज्य और कारपोरेट के हित कुछ यूं एकमेक हो गए हैं कि इसे राज्य का ही निजीकरण कहा जा सकता है.
लेकिन ठीक इसी दौर में हम पूंजीवाद-विरोधी, नस्लवाद-विरोधी प्रतिवादों का उभार वैश्विक पूंजीवाद के ह्रदय स्थल अमेरिका और यूरोप समेत पूरी दुनिया में देख रहे हैं. ये बढ़ते हुए लोकप्रिय प्रतिवाद निश्चित तौर पर वामपंथ की और झुकाव की संभावनाओं से भरे हुए हैं. जिस चुनाव ने ट्रंप को राष्ट्रपति बनाया, उसी ने बर्नी सैंडर्स को करीब-करीब डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दिया था जो अमेरिकी मुख्यधारा की राजनीति के सन्दर्भ में ज्यादा समाजवादी रुझान वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हो सकते थे.
ब्रिटेन में भी ब्रेक्जिट के साथ ही साथ हम जेर्मी कोर्बेन के नेतृत्त्व में लेबर पार्टी की नीतियों और कार्यवाहियों में एक स्पष्ट वामपंथी झुकाव देख सकते हैं. नेपाल में नए गणतांत्रिक संविधान के तहत हुए देश के पहले आम चुनाव में हमने कम्युनिस्टों को नेतृत्वकारी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरते हुए देखा. भाकपा-माले का 10वां महाधिवेशन दुनिया के सभी हिस्सों में वाम और प्रगतिशील ताकतों की अग्रगति का समर्थन और स्वागत करता है.
साथियों, हमारा यह 10वां महाधिवेशन भारत में फासीवाद के निश्चित उभार के दौर में हो रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्त्व में एनडीए की जीत और उसके बाद अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारों के बनने ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हौसले बुलंद कर दिए हैं. इससे उसको यह बल मिला है कि अपना फासीवादी एजेंडा अभूतपूर्व आक्रामकता से लागू करे. संघ ही वह मूल संगठन है जो भाजपा का नेतृत्त्व करने के साथ ही साथ तमाम अनुषंगी संगठन भी संचालित करता है. आज भाजपा हर क्षेत्र में नव-उदारवादी हमलों का नेतृत्त्व करने के साथ ही साथ साम्प्रदायिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करने तथा संघ के एजेंडे को आगे बढाने के लिए सभी राज्य व गैर-राज्य संस्थाओं पर काबिज होने की कोशिश में लगी हुई है. संसदीय प्रक्रियाओं को तोड़ने-मरोड़ने, संवैधानिक संस्थाओं के विध्वंस ने तकरीबन संसदीय तरीके से तख्तापलट जैसी स्थितियां बना दी हैं.
हम निश्चित तौर पर जानते हैं कि भाजपा सिर्फ अगले संसदीय चुनाव में जीत हासिल करके एक और कार्यकाल भर के लिए तैयारी नहीं कर रही, बल्कि यह भारत को संघ के हिन्दू वर्चस्ववादी नक़्शे के मुताबिक ढालना चाहती है. 2025 में संघ की स्थापना के शताब्दी वर्ष के पहले वह यह काम निपटा लेना चाहती है. घृणा, झूठ, राज्य दमन और निजी गिरोहों द्वारा हिंसा की रोजमर्रा की घटनाओं के पीछे भारतीय फासीवाद का एक सुविचारित जाल है. यह हमारे अतीत की सबसे प्रतिगामी और भयावह प्रवृत्तियों को जगाने के जरिये हमारे समाज की सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी, जातिवादी, साम्प्रदायिक और पितृसत्तावादी ताकतों के हौसले बुलंद करना चाहता है. स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के दुश्मन भारत के संविधान को तहस-नहस करके भारत को हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान के अपने खाके में बिठाना चाहते हैं. भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन से गद्दारी करने वाले अंगरेजी उपनिवेशवाद के पिट्ठू अब भगत सिंह के ऊपर सावरकर, अम्बेडकर के ऊपर गोलवरकर और गांधी के ऊपर गोडसे को रखने के लिए इतिहास पर कब्जा करना चाहते हैं और उसका पुनर्लेखन करना चाहते हैं.
इस प्रवृत्ति को निश्चित रूप से परास्त करना होगा. इस विनाश को रोकना ही होगा. यह हमारे दौर की सबसे ज्वलंत चुनौती उअर जरूरी कार्यभार है और हम भाकपा-माले के इस 10वें महाधिवेशन को इसी के लिए समर्पित कर रहे हैं. हमें पता है कि वामपंथ ने कुछ महत्वपूर्ण चुनावी युद्धों में पराजय का मुंह देखा है लेकिन ये चुनावी धक्के फासीवाद और लोकतंत्र के बीच चल रहे इस युद्ध का परिणाम निर्धारित नहीं करेंगे. कम्युनिस्टों ने हमेशा ही जनता के साहस और दृढ निश्चय से अपनी शक्ति अर्जित की है जिसने ऐतिहासिक रूप से अपने स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष किया है. आज जब भारत एक बार फिर से मजदूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों, छात्रों, युवाओं और महिलाओं के नेतृत्त्व में जुझारू जन संघर्षों का गवाह है तो ये संघर्ष निश्चित ही फासीवाद के हमले के खिलाफ वामपंथ के संघर्ष को मजबूत करेंगे. विभिन्न वाम ताकतों में आन्दोलनकारी एकता और प्रतिरोध की व्यापक धाराओं के बीच आपसी सहयोग निश्चित रूप से फासीवादी ताकतों की हत्यारी अग्रगति को रोकने में कामयाब होगा. आजीविका, सम्मान और लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाली जनता की एकता ध्रुवीकरण और साम्प्रदायिक घृणा वाली राजनीति को पराजित करेगी.
भाजपा और संघ एक राजनीतिक खालीपन के दौर में ही अपना जहरीला फन पसार सके हैं. 2004 से 2014 तक लगातार सत्ता में रही कांग्रेस के नेतृत्त्व वाकी यूपीए इतनी बुरी अपनी साख खो बैठी कि भाजपा को लगभग थाली में सजा कर सत्ता सौंप दी गयी. त्रिपुरा में लगभग पूरी की पूरी कांग्रेस इकाई का भाजपा में शामिल हो जाना एक बार फिर यह साबित करता है कि आक्रामक भाजपा को रोकने में कांग्रेस कितनी अक्षम है. बहुत सी क्षेत्रीय पार्टियों और मंडल के बाद उभरी सामाजिक न्याय की अधिकांश पार्टियों ने बार-बार भाजपा से हाथ मिलाया है जिससे भाजपा अपने बलबूते बहुमत और अपने सहयोगियों के साथ पूर्ण बहुमत तक आसानी से पहुँच सकी. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा गद्दारी के चलते भाजपा एक बार फिर पिछले दरवाजे से बिहार की सत्ता पर काबिज हो गयी जिसे 2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता ने पूरी तरह नकार दिया था. उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा की एकता और जीतनराम मांझी और चंद्रबाबू नायडू का एनडीए से अलग होना भाजपा विरोधी ताकतों के नए चुनावी मोर्चों की संभावना बढाता है लेकिन ऐसे मोर्चे अधिकतम भाजपा की अस्थायी चुनावी हार तक ही पहुँच सकते हैं.
फासीवाद की निर्णायक शिकस्त के लिए हमें देश के राजनीतिक एजेंडे और माहौल को बदलना होगा. और ऐसे बदलाव के लिए वामपंथ का उभार ही एक रास्ता है. यदि भाजपा लोकतंत्र का विध्वंस करने पर आमादा है तो हमें देश की जनता के लिए लोकतंत्र की खातिर इसका जवाब देना होगा. यदि भाजपा इतिहास पर कब्जा जमाने और झूठ फैलाने पर आमादा है तो हमें अपने स्वतंत्रता आन्दोलन की गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाना होगा और उनके झूठ का पर्दाफ़ाश करने के लिए सामाजिक न्याय व महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष को और बुलंद करना होगा. यदि संघ गिरोह भारत और भारतीय राष्ट्रवाद को हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तान के संकीर्ण आधार पर परिभाषित करना चाहता है तो हमें साम्राज्यवाद-विरोधी जनता की एकता और पहले नंबर पर जनता को रखते हुए देशभक्ति को पुनर्परिभाषित करना होगा.
हमें गर्व है कि पंजाब के साथी शहीदे-आजम भगत सिंह-सुखदेव-राजगुरु के शहादत सप्ताह में महाधिवेशन आयोजित कर रहे हैं. भगत सिंह की विरासत भारत के स्वाधीनता आन्दोलन की वामपंथी परम्परा का सबसे मजबूत उदाहरण है और यह एक बार फिर जनता के लिए वास्तविक स्वतंत्रता और लोकतंत्र की जीत हासिल करने में हमें रास्ता दिखायेगी. महाधिवेशन का यह सभागार कॉ स्वपन मुखर्जी और कॉ गणेशन की यादों को समर्पित है तथा इस मंच का नामकरण कॉ श्रीलता स्वामीनाथन और कॉ जीता कौर मंच किया गया है. हम अपने बिछुड़े नेताओं को सलाम करते हैं और भगत सिंह के सपनों का भारत बनाने के लिए अपने आपको पुनः समर्पित करते हैं. हम एक बार फिर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं. आपकी उपस्थिति वामपंथ व अन्य जुझारू ताकतों की व्यापक एकता के हमारे संकल्प को और मजबूती देती है तथा फासीवाद के खिलाफ लोकतंत्र व समाजवाद के लिए एक मजबूत, साझा प्रतिरोध विकसित करने की प्रेरणा देती है.