( तस्वीरनामा की पहली कड़ी में उन्नीसवीं सदी के यथार्थवादी चित्रकला धारा के अग्रणी चित्रकार ज्याँ गुस्ताव कोरबे (1819-1877) के चित्र ‘ पत्थर तोड़ने वाले ‘ के बारे में बता रहे हैं प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक )
गुस्ताव कोरबे का चित्र ‘ पत्थर तोड़ने वाले ‘ को गौर से देखने से हमें मेहनतकश श्रमिकों की दुर्दशा के प्रति , चित्रकार की सहानुभूति स्पष्ट दिखाई देती है. चित्र में पत्थर तोड़ते हुए दो श्रमिकों को हम देख सकते हैं जो पत्थर तोड़ कर, उसे वहाँ से हटा कर एक सड़क बना रहे हैं.
दोनों बदहाल श्रमिकों के कपड़े फटे हुए हैं. यहाँ इन दोनों मज़दूरों की उम्र भी गौर करने लायक है. पत्थर तोड़ते आदमी की उम्र इतनी है, कि उसके लिए पत्थर तोड़ने का काम निहायत मज़बूरी ही है. उसी प्रकार पत्थर बटोरने वाले बच्चे की उम्र भी इतनी नहीं हैं कि वह सड़क बनाने का काम करे. गुस्ताव कोरबे ने अपने चित्र में इस मज़बूरी का अत्यन्त सजीव चित्रण किया है ।
चित्र में , दोनों मज़दूरों की पृष्ठ भूमि में एक पहाड़ है और चित्र के दाहिने कोने पर नीले आकाश का एक तिकोना टुकड़ा दिख रहा है. इस प्रकार की कसी हुई संरचना के कारण , दोनों लोग मानो पूरे समाज से कटे , अकेले से लगते हैं. ‘ पत्थर ताड़ने वाले ‘ चित्र में गुस्ताव कोरबे ने इन्हें शारीरिक और आर्थिक रूप से समाज के हाशिये पर दिखाया है.
इस चित्र में गुस्ताव कोरबे, तत्कालीन कला के प्रचलित नियमों से बाहर निकलने का भी साहस दिखाते हैं. यूरोप की तत्कालीन कला में प्रायः मूल विषय को उभारने के लिए, पृष्टभूमि की तुलना में मूल विषय पर ज्यादा बारीकी से काम करने का रिवाज़ रहा है. इससे स्वाभाविक रूप से केंद्रीय चरित्र अलग से उभर कर सामने आता दिखाई देता है.
इस चित्र में गुस्ताव कोरबे ने जिस बारीकी से आकाश के टुकड़े को बनाया हैं , उसी बारीकी से लड़के की फटी कमीज़ से झाँकते उसके पीठ के हिस्से को भी दिखाया है. बूढ़े मज़दूर से कुछ दूरी पर जमीन पर रखे उनके भोजन के डब्बे को भी चित्रकार ने समान महत्व का मान कर चित्रण किया हैं , क्योंकि गुस्ताव कोरबे के लिए चित्र में सभी पक्षों की अपनी अहमियत है , जो एक दूसरे के साथ जुड़कर ही पूरे चित्र को सार्थक बनाते हैं .
गुस्ताव कोरबे का इस महान चित्र के बारे में बात करते हुए , एक तथ्य हमें विचलित भी करता है । 1945 में यह कालजयी चित्र , दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ड्रेस्डेन की बमबारी की चपेट में आकर नष्ट हो गया। चित्रकला के इतिहास की यह निश्चय ही एक अपूरणीय क्षति है .
ज्याँ गुस्ताव कोरबे (1819-1877) फ्रांस के निवासी थे । उन्नीसवीं सदी के यथार्थवादी चित्रकला धारा के अग्रणी चित्रकार के रूप में कोरबे ने प्रचलित और रोमॅंटिसिज़्म धारा के विरुद्ध जाकर अपने चित्रों में केवल वही चित्रित किया जिसे वे अनुभव करते थे या जिसे उन्होंने देखा था। अपने समकालीन कला की प्रचलित और रोमानी कला-सोच से हट कर गुस्ताव कोरबे ने न केवल अपने लिए ही कला में एक स्वतंत्र जगह बनाई, बल्कि आने वाले समय के प्रभाववादी (इम्प्रेशनिस्ट) और घनवादी (क्यूबिस्ट) चित्रकारों को भी प्रभावित किया.
अपने राजनैतिक विचारधारा के कारण गुस्ताव कोरबे को 1871 में छह महीने जेल में रहना पड़ा और 1873 से अपने मृत्यु तक उन्हें अपने देश से दूर स्विट्ज़रलैंड में निर्वासित जिंदगी बितानी पड़ी.
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