( प्रख्यात कवि प्रो. केदारनाथ सिंह ने 26 फरवरी 2016 को गोरखपुर के प्रेमचंद पार्क में प्रो परमानंद श्रीवास्तव की स्मृति में ‘ कविता का भविष्य ’ पर व्याख्यान दिया था. यह आयोजन प्रेमचंद साहित्य संस्थान ने किया था. इस व्याख्यान में भविष्य की कविता पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें की थी. प्रस्तुत है व्याख्यान का प्रमुख अंश )
आज का समय अपने सारे गड्डमड्ड स्वरूप के भीतर से अपनी सच्ची कविता खोज रहा है. इस कविता की तलाश बड़े पैमाने पर जारी है. यह कार्य नई पीढ़ी कर रही है. ये वो लोग हैं जो बिलकुल नई आवाजें लेकर आ रहे हैं. इस नई पीढ़ी को पहचानना जरूरी है.
सभी तरह की दबावों से, पश्चिम के दबाव से भी मुक्त हैं होकर नए तरह का लेखन जन्म ले रहा है. इसके लिए उत्तर औपनिवेशिक शब्द का प्रयोग करना ठीक नहीं है. इसके लिए अपना नया पद गढ़ना होगा. नई पीढ़ी में सिर्फ भारतीय ही नहीं पूरी पूर्वी अस्मिता पर जोर देने का भाव है.
महर्षि अरविन्द ने कहा था कि आने वाली कविता ‘ मंत्र कविता ’ होगी. मुझे लगता है कि कविता भविष्य में गहन से गहनतर होती जाएगी. संक्षिप्त होती जाएगी जैसे लोकगीत होता है. अभिव्यक्ति का सबसे सघन रूप लोकगीत है. कविता की यह दिशा है. यही कारण है कि आज हाइकू, झेन कविता लोकप्रिय हो रही है. हमारे यहां दोहा और गजल की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है उसका सघन होना. एक शेर में पूरी कविता होती है. यही कारण है कि आज कोई महाकाव्य नहीं लिखा जा रहा है. उपन्यास हमारे समय का महाकाव्य है. फार्म के स्तर पर भविष्य की कविता का यही विकास दिख रहा है.
हमेशा नई पीढ़ी परिवर्तन लाती है. रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अपनी कविता में कहा है -ऐ कच्चे लोगों आओ, समय को संभालो, यह तुम्हारा समय है. कविता में नई पीढ़ी परिवर्तन का वाहक बन रही है. आज प्रकाशन के माध्यम बहुत हैं. प्रिन्ट के अलावा फेसबुक और ट्विटर पर कविता व्यापक रूप से आ रही है. इस माध्यम पर आ रही कुछ कविताएं विलक्षण हैं. यह देख मैं चमत्कृत हूं. आज कविता में नई आवाजों की विशेषता पहचानने वाले नहीं दिखाई दे रहे हैं. मुझे लगता है कि नई पीढ़ी अपना आलोचक लेकर भी आएगी.