Friday, December 1, 2023
Homeतस्वीरनामाअमृता शेरगिल की ' तीन लड़कियाँ ’

अमृता शेरगिल की ‘ तीन लड़कियाँ ’

 

( तस्वीरनामा की छठी कड़ी में भारतीय चित्रकला के मुहावरे को बदल देने वाली विश्व प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल के चित्र  ‘ तीन लड़कियाँ ‘ के बारे में बता रहे हैं प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक)

 

बीसवीं सदी की भारतीय चित्रकला की धारा, जिसका विकास बंगाल में 1900 के बाद से आरम्भ हुआ था; देवी देवताओं की लीला कथाओं के चित्रण से भरा हुआ था.  बंगाल के कलाकारों ने अजंता से लेकर मुग़ल कला के अनुसरण में ही ‘भारतीयता’ की खोज करने की कोशिश की और इस लिए विषय के स्तर  पर उनकी कला अपने पूर्ववर्ती कलाओं से भिन्न नहीं थीं. ऐसे समय में भारतीय चित्रकला में अमृता शेरगिल का आगमन एक बड़ी घटना थी, जिसने युगों से चली आ रही भारतीय चित्रकला के मुहावरे को ही बदल दिया. एक उदार और उन्मुक्त कला-दृष्टि से जहाँ एक ओर उन्होंने पाश्चात्य के कला से परहेज नहीं किया, वहीं उन्होंने अपने चित्रों में देवी-देवताओं, राजा-रानियों के स्थान पर परिचय और सन्दर्भविहीन आम लोगों को बार बार चित्रित किया.

उनके चित्रों की  भारतीयता, उनके चित्रों में आये भारतीय आम जनों के चेहरों , वेशभूषा और स्थानीयता में है .  उनके चित्रों में आये लोगों के नामों से या उनसे जुड़े किसी सन्दर्भ से हम परिचित नहीं हैं , पर बावजूद इसके वे सभी हमारे जाने पहचाने से लगते हैं , और निश्चय ही भारतीय लगते हैं .

‘ तीन लड़कियाँ ‘ शीर्षक के इस चित्र में हम तीन युवतियों को एक साथ बैठे पाते है  पर एक साथ होते हुए भी अमृता शेरगिल ने उन्हें तीन स्वतंत्र लड़कियों के रूप में दिखाया है. उनके वस्त्रों के रंग तो भिन्न है ही , साथ ही उनके चेहरों के रंग भी भिन्न है. इन तीनों में कोई भी गोरी तो नहीं है , वे एक समान साँवली भी नहीं हैं. चित्र में तीनों लड़कियों के चेहरों पर कोई स्पष्ट भाव नहीं दिखता और तीनों ही अपने-आप में इस हद तक खोये से लगते हैं कि हमें लगता है मानो उनके पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है. इन सब के साथ साथ वे तीनों कुछ असहज सी मुद्रा में चित्रकार से मुँह फेरे बैठी सी दिखती है.

अमृता शेरगिल के चित्रों में विदेशी चित्रकला के प्रभावों को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं पर वास्तव में इस चित्र के तीन बेबस और  लगभग बेज़ुबान भारतीय लड़कियों की विशिष्टता ही अमृता शेरगिल के चित्रों की ‘भारतीयता’ है , जिसकी कल्पना उनके पहले किसी भारतीय चित्रकार ने नहीं की थी.

अमृता शेरगिल (1913-1941) का जन्म हंगेरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था. बचपन से ही उनकी चित्रकला में रूचि थी. 1921 में भारत आने के बाद उन्होंने शिमला में चित्रकला में आरंभिक शिक्षा लेनी शुरू की पर जल्द ही  बहुत कम उम्र में वह इटली के फ्लोरेंस में चित्रकला में शिक्षा लेने गयीं. बाद में (1930  से 1932 ) उन्होंने एकोल नेशनाल दे बूज़ आर्ट्स में प्रोफेसर लूसिएन साइमन की देख रेख में कला अध्ययन किया. 1934 में अमृता शेरगिल ने फ्रांस से भारत लौट कर अमृतसर में कुछ समय बिताया था . ‘ तीन लड़कियाँ ‘ चित्र उसी दौरान बनाया हुआ है.

अमृता शेरगिल की कला पर यूरोप के कई कलाकारों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था पर उन्होंने शिमला, अमृतसर, गोरखपुर , केरल के साथ साथ अनेक भारतीय शहरों और उनके लोगों के रहन-सहन और संस्कृति को जानने समझने की कोशिश की,  इसलिए उनके चित्रों में बार बार भोले भाले आम भारतीय लोगों का विविध -वर्णी चित्रण पाते हैं। उन्होंने विशेष रूप से भारतीय महिलाओं को अपने चित्र का विषय बनाया.

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में अमृता शेरगिल लाहौर में रहीं और वहीं 1941 में केवल सत्ताईस वर्ष की कम उम्र में उनका निधन हुआ.

अशोक भौमिक
मशहूर चित्रकार
RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments