इलाहाबाद। गाँधी जी ने कहा था, कि असली भारत गांवों में बसता है। मेरे सपनों का स्वराज्य और ग्राम स्वराज्य का मॉडल देते हुए उन्होंने आज़ाद भारत में ग्राम पंचायत की परिकल्पना पेश किया। फिर ऐसा क्या हो गया कि आज़ादी के महज सात सालों बाद ही हिन्दी साहित्य में ग्राम्य जीवन को आधार बनाकर लिखी जाने वाली कहानियों पर आंचलिकता और पिछड़ापन का ठप्पा लगाकर उन्हें निम्न दर्ज़े का करार दे दिया गया और यूरोपीय संस्कृति और जीवन शैली, मध्यवर्गीय हताशा, अवसाद, एकाकीपन और स्वच्छन्द उपभोग, आधुनिक मूल्यों की कसौटी की कहानी ‘परिन्दे’ को हिन्दी भाषा की पहली नयी कहानी घोषित कर दिया गया।
उपरोक्त बातें 18 मार्च को वरिष्ठ कहानीकार मार्कण्डेय जी की पुण्यतिथि पर इलाहाबाद संग्रहालय के बृजमोहन व्यास सभागार में आयोजित कार्यक्रम में कही गयी। कार्यक्रम का विषय था – ‘मार्कण्डेय: जीवन और साहित्य-कर्म’।
भारतीय भाषा केंद्र जेएनयू के अध्यक्ष ओम प्रकाश सिंह ने मुख्य वक्ता के तौर पर कहा कि नयी कहानी आन्दोलन पर आधुनिकता का दबाव था। नयी कहानी में आधुनिकता को ही मानदंड मान लिया गया, जबकि आधुनिकता पूंजीवाद का बाईप्रोडक्ट है। उन्होंने आगे कहा, कि कहानी आलोचना की सैद्धांतिकी के लिए इलाहाबाद में जोरदार बहस हुई। लेकिन जिस तरह से कहानी को बांटा गया ग्राम कहानी, नगर कहानी और क़स्बा कहानी में और आधुनिकता की तलाश की गयी वह ठीक नहीं था। उन्होंने कहा, कि परम्परा का परिमार्जन ज़रूरी है वर्ना परम्परा के टूटने के साथ ही परम्परा के माध्यम से देश और समाज को लेकर जो भी कहा जाएगा वो टूट जाएगा। लेकिन परम्परा को नकार कर कुछ नहीं हासिल किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि भारत में अधिकांश गांवों की दशा एक सी है। एक सी भाषा, एक सी जीवनशैली। घटित को देखने का एक सा नज़रिया इन सबको सामने ले आता है। मार्कण्डेय को अपने समय से मुठभेड़ करने वाले साहित्यकार बताते हुए उन्होंने कहा कि जब नयी कहानी को ग्रामकथा, क़स्बा कथा और नगरकथा में बांटकर संबोधित किया जा रहा था तब मार्कण्डेय अपने लेखन को देशकथा कहकर संबोधित करते थे। वे अपनी कथा का सूत्र बराई, केराकत, जलालपुर से लेते थे। लेकिन समस्या सार्वभौमिक लेते थे। ओम प्रकाश जी ने नामवर सिंह द्वारा मार्कण्डेय का कहीं जिक्र न किये जाने पर भी अफ़सोस जताया। जबकि उन्हें नयी कहानी आलोचना में मार्कण्डेय ही लेकर आये थे।
गौरतलब है कि सन 1956 में भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में नयी कहानी नाम की पत्रिका का विशेषांक निकला। 1956 में ही भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में ‘कहानी’ पत्रिका के नववर्षांक में निर्मल वर्मा की ‘परिन्दे’, भीष्म साहनी की ‘चीफ की दावत’, अमरकांत की ‘डिप्टी कलेक्टरी’, राजेंद्र यादव की ‘एक लड़की की कहानी’, शेखर जोशी की ‘कोसी का घटवार’, मोहन राकेश का ‘सेफ्टी पिन’, मार्कण्डेय का ‘हंसा जाई अकेला’ रांगेय राघव का ‘गदल’, धर्मवीर भारती का ‘गुलकी बन्नो’ आदि कहानियां छपी। सन 1957 में इलाहाबाद में आयोजित प्रयाग साहित्यकार सम्मेलन में शिव प्रसाद सिंह ने पर्चा पढ़ा था। शिव प्रसाद सिंह की कहानी ‘दादी मां’ का भी उल्लेख नयी कहानी के प्रवर्तन के तौर पर होता है।
ओम प्रकाश सिंह ने मार्कण्डेय के गीतों का भी जिक्र किया। उन्होंने पान-फूल , गुलरा के बाबा, और हंसा जाई अकेला कहानी का विशेष जिक्र किया।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि इलाहाबाद साहित्य का काबा बहुत पहले से था। कहानीः नई कहानी की जो चर्चा इलाहाबाद में हुई वो दिल्ली में नहीं हो पायी। दिल्ली ने इसे हाईजैक करने की कोशिश की पर नहीं कर पाये। उन्होंने कहा कि नई कहानी का दौर 1950 से शुरु होता है। नामवर को कहानी में आलोचना में मार्कण्डेय लेकर आये। उन्होने कहा कि आधुनिकता पूँजीवाद का बाईप्रोडक्ट है। यह अंग्रेजी का है और हिन्दी में उसका तर्जुमा सही से नहीं हुआ। सन 1957 में हुए प्रयाग साहित्यकार सम्मेलन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मार्कण्डेय जी प्रलेस और परिमल के बीच समन्वयक थे। सुरेंद्र प्रताप जी ने बदरी विशाल पित्ती के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘कल्पना’ के लिए मार्कण्डेय जी द्वारा एम एफ हुसैन, अमृता शेरगिल, आदि पर लिखे लेख का विशेष जिक्र किया। मार्कण्डेय जी द्वारा ‘चक्रधर’ नाम से कहानी आलोचना लिखे जाने का भी जिक्र कार्यक्रम में किया गया।
वरिष्ठ कवि हरीश्चंद्र पांडे ने मार्कण्डेय जी के संपादकीय कौशल पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि मार्कण्डेय जी ने ‘कथा’ पत्रिका में नवाचार शुरु किया। साथ ही उन्होंने अपनी कविता ‘कुतरे हुए फल’ पर मार्कण्डेय जी के संपादन दृष्टि का विशेष तौर पर जिक्र किया।
इस दौरान नामवर सिंह को कमरे में बंद करके उनसे कहानी आलोचना लिखवाने का भी जिक्र कई बार आया। राजेंद्र कुमार ने भी उनकी संपादकीय कौशल की प्रशंसा करते हुए कहा कि किस समीक्षक के पास कौन सी किताब भेजनी है, इसे लेकर वे बहुत स्पष्ट रहते थे। साहित्यकार और छोटे भाई नीलकान्त ने कहा कि किस्सा कहने में वो अपनी माता जी से प्रभावित थे।
कार्यक्रम का संचालन दुर्गा सिंह ने किया। उन्होंने बताया कि मार्कण्डेय जी की पुण्यतिथि पर परिवार और कथा प्रकाशन द्वारा सालाना आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम कोविड काल के कारण चार सालों बाद धरातल पर वापिस मुमकिन हो पाया, जिसमें उनकी दोनों बेटियों स्वस्ति ठाकुर और सस्या नागर का अहम योगदान है।
कार्यक्रम की सदारत करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ आलोचक राजेंद्र कुमार जी ने सोंटा गुरु भैरो प्रसाद गुप्त और तख्ता गुरु मार्कण्डेय जी को यूनिर्सिटी के बाहर की यूनिवर्सिटी बताया। उन्होंने बताया कि संत्रास, कुंठा, हताशा नई कहानी की सैद्धांतिकी के बीज शब्द थे। राजेंद्र कुमार ने मार्कण्डेय जी को प्रेमचंद की परम्परा का कहानीकार बताये जाने को घिसा पिटा मुहावरा बताते हुए कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में आज़ादी के पहले के गाँव हैं और मार्कण्डेय जी के यहाँ आज़ादी के बाद का गांव है।