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जन सहयोग से संचालित पुस्तकालय एक मंच पर आए, बनाया लाइब्रेरी नेटवर्क

जौनपुर में जश्न-ए-किताब का आयोजन, पुस्तकालय संचालक, लाइब्रेरी एक्टिविस्ट और  लेखक-कलाकार जुटे  

जौनपुर। जौनपुर के ऐतिहासिक हिंदी भवन में 10-11 मई को जन संस्कृति मंच द्वारा पुस्तकालय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन जन संस्कृति मंच द्वारा 2015 में शुरू किए गए पुस्तकालय अभियान का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।

सम्मेलन में उत्तर प्रदेश में एक दशक के अंदर विभिन्न स्थानों पर जन सहयोग से स्थापित व संचालित दो दर्जन पुस्तकालयों से जुड़े लाइब्रेरी एक्टिविस्ट, पुस्तकालय अभियान से जुड़े लेखक-कलाकार एकत्र हुए। सम्मेलन में लाइब्रेरी नेटवर्क का गठन करते हुए 11 सदस्यीय संयोजन समिति गीतेश सिंह, आलोक श्रीवास्तव, ममता सिंह, विमल कुमार, महेश सिंह, संजय जोशी, डॉ. उदयभान यादव, अपल, रुचि दीक्षित, विनोद सिंह और कमलेश अटवाल को शामिल करते हुए बनायी गयी। संयोजन समिति ने गीतेश सिंह और आलोक श्रीवास्तव को संयोजक चुना।

लाइब्रेरी नेटवर्क ने अगले दो वर्षों में उत्तराखंड, झारखंड, बिहार सहित कई राज्यों में पुस्तकालय सम्मेलन करने, देश में कार्य कर रहे अन्य लाइब्रेरी नेटवर्क व एसोसिएशन से सम्पर्क व संवाद स्थापित करने, विभिन्न पुस्तकालयों के संचालन के अनुभवों को एक दूसरे से साझा करते हुए पुस्तकालयों को उन्नत, जनोपयोगी और उन्हें एक सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित करने, ऑनलाइन बुक बैंक स्थापित करने, लाइब्रेरी और उसके संचालन से सम्बन्धित उपयोगी ब्रोशर, पुस्तिका और किताब प्रकाशित करने, अपना स्वतंत्र कोष स्थापित करने का निर्णय लिया।

लाइब्रेरी नेटवर्क ने लाइब्रेरी अभियान को गति देने के लिए पूर्व में स्थापित जन पुस्तकालयों जो किन्हीं कारणों से बंद हैं या ठीक से संचालित नहीं हो पा रहे हैं, उनका सर्वे कर उनको फिर से शुरू करने व संचालन में मदद करने का भी निर्णय लिया।

सम्मेलन का उद्घाटन वक्तव्य देते हुए लाइब्रेरी अभियान के सूत्रधार जन संस्कृति मंच के पूर्व महासचिव प्रणय कृष्ण ने कहा कि पढ़ने से जिंदगी सबसे ज्यादा बदलती है। अन्न और अक्षर जिंदगी के लिए सबसे जरूरी हैं। आज जबकि चेतना पर प्रहार चतुर्दिक है, समाज में धर्म, जाति, सम्प्रदाय, भाषा के नाम पर विभाजन गहरा किया जा रहा है, पुस्तक संस्कृति उसका प्रतिकार हो सकती है। पुस्तक संस्कृति के लिए पुस्तकालयों का प्रसार बेहद आवश्यक है। ये पुस्तकालय लम्बे अंतराल में सांस्कृतिक केन्द्र बन जाएं यह हमारी अंतिम सफलता होगी।

लाइब्रेरी अभियान के दौरान सबसे पहले जनवरी 2018 में अग्रेसर में सावित्री बाई फुले पुस्तकालय की स्थापना करने वाली शिक्षिका ममता सिंह ने बताया कि यह लाइब्रेरी 24 घंटे खुली रहती है। करीब चार हजार किताबें हैं और पुस्तकालय ने 1500 पाठकों तक अपनी पहुंच बनायी है। लाइब्रेरी में आने वाले लोग हर आयु और वर्ग के हैं। वंचित और श्रमिक वर्ग के जुड़ाव ने लाइब्रेरी की स्थापना को सार्थक बना दिया है। उन्होंने कहा कि अग्रेसर गांव में लाइब्रेरी की स्थापना एक अभूतपूर्व घटना की तरह है जिसने गांव के साथ-साथ हम सबको बदल दिया है। यह लाइब्रेरी एक पब्लिक स्पेस बन गयी है।

उद्घाटन सत्र में बोलते हुए झारखंड के बगोदर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक विनोद सिंह ने अपने इलाके में पुस्तकालयों के संचालन से जुड़े अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि सबसे बड़ी चुनौती पुस्तकालयों से स्थानीय जन और युवाओं को जोड़ने की है। हम लोग पुस्तकालयों से आस-पास के विद्यालयों को जोड़ रहे हैं ताकि युवा पुस्तकालयों में विशेष रुचि लें।

आजमगढ़ से आए मार्क्सवादी विचारक जय प्रकाश नारायण ने पुस्तकालय आंदोलन को समय की जरूरत बताते हुए कहा कि आज सोशल मीडिया ने सारा स्पेस घेर लिया है जिसका असर पुस्तक संस्कृति पर भी पड़ा है। पुस्तकें पढ़ने से सवालों का जन्म होता है और हम इन सवालों के उत्तर पाने के लिए कुछ और किताबों की ओर जाते हैं। उन्होंने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह पुस्तकालय की स्थापना और उसके संचालन से जुड़े अनुभव साझा करते हुए कहा कि पुस्तकालय आज समय की जरूरत हैं। इसलिए यह आंदोलन निश्चय ही गति पकड़ेगा।

जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज सिंह ने देश में लाइब्रेरी आंदोलन के इतिहास की चर्चा करते हुए कहा कि आजादी की लड़ाई में पुस्तकालयों ने जन चेतना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उत्तर प्रदेश में शुरू हुए हमारे पुस्तकालय अभियान ने 200 वर्ष बाद एक नए पुस्तक आंदोलन की नींव रखने का काम किया है। उन्होंने देवरिया, गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, उन्नाव, इलाहाबाद, बलिया, सुल्तानपुर आदि स्थानों पर नए पुस्तकालयों की स्थापना के बारे में बताते हुए कहा कि इन पुस्तकालयों ने अपने-अपने गांवों और क्षेत्र में नई हलचल पैदा की है। ये पुस्तकालय विभिन्न विषयों पर संवाद के कार्यक्रम भी आयोजित कर रहे हैं जिनमें लोगों की उल्लेखनीय भागीदारी देखने को मिल रही है।

उन्होंने कहा कि यह पुस्तकालय सम्मेलन जन सहयोग से संचालित पुस्तकालयों का नेटवर्क बनाने की दिशा में एक प्रयास है जिसके जरिए हम पुस्तकालय अभियान को संगठित करना चाह रहे हैं।

उद्घाटन सत्र का संचालन जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के सचिव रामनरेश राम ने किया। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि, संस्कृतिकर्मी अजय कुमार ने की।

उद्घाटन सत्र के बाद कविता पाठ का सत्र हुआ जिसमें वरिष्ठ कवि अजय कुमार, मृत्युंजय, बृजेश यादव, डाॅ. प्रतीक मिश्र, रूपम मिश्र, आलोक श्रीवास्तव, संजय जोशी, प्रतिमा मौर्य ने कविता पाठ किया।

सम्मेलन के दूसरे दिन 11 मई को शामली के चलचित्र अभियान के पुस्तकालय से आए सचिन और शावेज, मुक्तिबोध पुस्तकालय सोरांव के अविकल्प और सत्यम, आजमगढ़ के डाॅ. उदयभान यादव, जौनपुर स्थित अपनी क्लीनिक में प्रतीक्षारत मरीजों के लिए पुस्तकालय स्थापित करने वाले होमियोपैथिक चिकित्सक डाॅ. प्रतीक मिश्र, देवरिया जिले के गांव में प्रेमचंद पुस्तकालय स्थापित करने वाले किसान नेता शिवाजी राय, जौनपुर की दलित अधिकार कार्यकर्ता शोभना स्मृति, आजमगढ के मिर्जापुर ब्लाक में नट समाज के बीच कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तारिक, जौनपुर के चार गांवों में सचल पुस्तकालय संचालित करने वाले एक्टिविस्ट लाल प्रकाश राही, गोरखपुर फिल्म सोसाइटी के मनीष चौबे, प्रतिरोध का सिनेमा के संयोजक संजय जोशी, जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के सचिव राम नरेश राम, शोधकर्ता डाॅ. धर्मवीर यादव गगन, मुक्तिबोध पुस्तकालय के संस्थापक आलोक श्रीवास्तव, बलिया में दलित छात्रावास में अम्बेडकर पुस्तकालय स्थापित करने वाले डाॅ. विमल कुमार, लोक गायक बृजेश यादव, कवयित्री रूपम मिश्र, समकालीन जनमत के प्रधान सम्पादक रामजी राय, डाॅ. प्रेमशंकर सिंह, जौनपुर में आर्काइव्स की स्थापना करने वाले संजय सेठ, जाने माने सिनेमैटोग्राफर अपल ने अपने विचार रखे।

सम्मेलन में नहीं आ पाए ग्रामीण पुस्तकालय भलुआ देवरिया के महेश सिंह और गोरख राय पब्लिक लाइब्रेरी विशुनपुर चिरिकिया, देवरिया के संस्थापक व संचालक अनिल कुमार राय ने अपने अनुभव व विचार लिखित रूप से भेजे थे जिन्हें सम्मेलन में पढ़ा गया।

समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय ने अपने विचार रखते हुए कहा कि लाइब्रेरी आन्दोलन अनुभवों के आदान-प्रदान से विकसित हो रहा है। बीज बड़ा नहीं होता, उसके बड़े होने की संभावना मायने रखती है। लाइब्रेरी आंदोलन एक नए बीज के अंखुआने जैसा है। नये प्रयोग और आकांक्षाएं केवल लाइब्रेरी आंदोलन तक सीमित नहीं रहेंगी बल्कि और आगे तक जाएंगी। यह पठनीयता का संकट भी दूर करेगी। पुस्तकालयों के प्रति यह नई ललक अनायास पैदा नहीं हुई है। यह ललक शिक्षा से समाज की बढ़ती दूरी के कारण पैदा हुई है। समाज में नई ललक है जो नया स्वप्न देख रहा है।

सम्मेलन में अपने विचार व अनुभव साझा करते हुए शामली से आए सचिन व शावेज ने बताया कि वे पुस्तकालय में उर्दू सिखाने का कार्य भी कर रहे हैं। साथ ही नियमित रूप से फिल्म शो, पेटिंग का भी आयोजन रखते हैं। सप्ताह में दो बार किताबें डोर टू डोर ले जायी जाती हैं। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद के शहादत दिवस और बाबा साहेब अम्बेडकर की जयंती पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

मुक्तिबोध पुस्तकालय के सत्यम ने बताया कि पुस्तकालय की ओर से लोगों में वैज्ञानिक चेतना प्रसारित करने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप पर वीडियो भेजे जाते हैं। बृजेश यादव, शोभना स्मृति ने दो-दो स्थानों, मनीष चौबे ने एक स्थान और तारिक ने नट समाज के गांव में लाइब्रेरी और रिसोर्स सेंटर की स्थापना के बारे में सूचना दी।

मनीष चौबे ने पुस्तकालयों में किताबों के संरक्षण की योजना और डाॅ. धर्मवीर गगन ने पुस्तकालयों को अपने क्षेत्र के जन साहित्य को संरक्षित करने की योजना को भी अपने हाथ में लेने का सुझाव दिया। सिनेमैटोग्राफर अपल ने विशेषकर बच्चों के लिए विजुअल सामग्री को भी पुस्तकालयों में जगह देने का सुझाव दिया। डाॅ. प्रेमशंकर सिंह ने पुस्तकालय अभियान को संयोजित करने के लिए कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने की सलाह दी तो कवि मृत्युंजय ने पुस्तकालयों में कैटलॉगिंग की जरूरत को रेखांकित किया।

डाॅ. उदयभान यादव का सुझाव था कि पुस्तकालयों के नाम स्थानीय जन नायकों के नाम पर रखे जाएं जिससे जनसमुदाय का जुड़ाव बढ़ता है। डाॅ. रामनरेश राम और डाॅ. विमल कुमार का विचार था कि गांवों और शहरों में सार्वजनिक स्थानों, सामुदायिक परिसरों में भी पुस्तकालय स्थापित करने का प्रयास किया जा सकता है। संजय जोशी ने उत्तराखंड में पुस्तकालय आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कई विद्यालय व कालेज इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। संजय सेठ का सुझाव था कि पुस्तकालयों व आर्काइव्स को अपने क्षेत्र के लोगों से सम्पर्क कर उनके पास मौजूद ऐतिहासिक पत्र-पत्रिकाओं, अभिलेख आदि को प्राप्त करने और उसे संरक्षित करने का कार्य भी करना चाहिए।

सत्र की अध्यक्षता कर रहे मऊ में राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ की स्थापना करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, अभिनव कदम पत्रिका के संपादक और जन संस्कृति मंच के प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश धूमकेतु ने कहा कि यह सम्मेलन पुस्तकालय अभियान को आगे ले जाएगा। उन्होंने पुस्तकालयों को अपने क्षेत्र का जीवंत पब्लिक स्पेस बनाने का आह्वान किया।

इस सत्र का संचालन जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।

सम्मेलन के दोनों दिन बृजेश यादव और अंकुर राय ने जनगीत प्रस्तुत किए।

सम्मेलन का समापन लाइब्रेरी नेटवर्क की स्थापना और संयोजन समिति के गठन के साथ हुआ। आखिर में लोकगायक बृजेश यादव ने अपना चर्चित गीत ‘ हमें हल्के में मत लेना’ गाया जिसमें सभी ने अपना स्वर मिलाया। ग्रुप फोटोग्राफी के साथ सम्मेलन सम्पन्न हुआ।

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