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हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव पुनर्मतगणना के बाद रद्द

इन्द्रेश मैखुरी

हेमवती नंदन  बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर(गढ़वाल),उत्तराखंड के छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव कल 18 जनवरी  को हुई पुनर्मतगणना के बाद रद्द कर दिया गया. गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव सितंबर 2018 में हुए. इस चुनाव में अध्यक्ष पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संदीप राणा विजयी घोषित किए गए.

लेकिन चुनाव परिणाम घोषित होने के कुछ दिनों के बाद ही अध्यक्ष पद पर दूसरे नंबर पर रहे अमित प्रदाली  और उनके संगठन-जय हो- ने दावा किया कि अध्यक्ष पद पर जितना मतदान हुआ,उससे अधिक वोट गिने गए. इस दावे के साथ जय हो संगठन के साथ ही अन्य छात्र संगठनों ने अध्यक्ष पद पर पुनर्मतगणना की मांग शुरू की. इस बीच एक सूचना अधिकार आवेदन के जवाब में गढ़वाल विश्वविद्यालय के चुनाव अधिकारी द्वारा जो कुल पड़े मतों और गिने गए मतों का ब्यौरा दिया गया,वह हैरत में डालने वाला था.
आर.टी.आई. में दिये गए इस ब्यौरे के अनुसार तो हर पद पर ही कुल पड़े वोटों और गिने गए वोटों की संख्या में अंतर था. अन्य पदों पर कुल जितना मतदान हुआ,उससे कम वोट गिने गए. वहीं अध्यक्ष और सहसचिव पद पर कुल पड़े मतों से अधिक वोट गिन लिए गए और इन अधिक गिने गए मतों के आधार पर ही जीत-हार का फैसला कर दिया गया.
आर.टी.आई. में यह ब्यौरा सामने आने के बाद ही साफ हो चुका था कि छात्र संघ चुनाव में गड़बड़झाला हुआ था. लेकिन बावजूद इसके पिछले वर्ष भर से कामचलाऊ व्यवस्थाओं के हवाले चल रहे गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रशासन ने इस मसले पर टरकाऊ रवैया ही अपनाए रखा. विश्वाविद्यालय ने जन्तु विज्ञान  के प्रोफेसर नकली सिंह को मुख्य चुनाव अधिकारी बनाया था. उन्हीं की अगुवाई में    में “कम पड़े वोट,ज्यादा गिने वोट” वाला कारनामा अंजाम दिया गया.
छात्र संघ चुनाव की प्रक्रिया के दौरान उत्तरकाशी से एक छात्र नेता श्रीनगर(गढ़वाल) आया. उसने मुख्य चुनाव अधिकारी के साथ सेल्फ़ी लेनी चाही तो प्रो.एन.सिंह हत्थे से उखड़ गए और पुलिस बुलाने और मोबाइल छीनने जैसे हालातों तक उन्होंने मामले को पहुँच दिया. लेकिन आश्चर्य यह है कि जो प्रो.एन. सिंह, जो एक छात्र नेता का सेल्फी खींचना तक बर्दाश्त नहीं कर रहे थे, उन्होंने ही एक छात्र संगठन को लाभ पहुंचाने के लिए वैध मतों के साथ अवैध मत भी गिनवा दिये? प्रो.एन.सिंह का सारा कड़कपना क्या इसलिए काफ़ूर हो गया होगा क्यूंकि उक्त संगठन, राज्य और केंद्र में बैठी हुई पार्टी का छात्र संगठन है ?
बहरहाल उच्च न्यायालय नैनीताल के निर्देशों के बाद भारी पुलिस बल की मौजूदगी में पुनर्मतगणना करवाई गयी. पुनर्मतगणना में पाया गया कि कुल डाले गए वोटों की अपेक्षा 71 वोट अधिक गिने गए. इसके आधार पर विश्वविद्यालय की कार्यवाहक कुलपति प्रो.अन्नपूर्णा नौटियाल ने छात्र संघ अध्यक्ष पद पर हुए चुनाव को रद्द करने की घोषणा कर दी है.
कुलपति द्वारा चुनाव रद्द करने की घोषणा करने वाली अधिसूचना में कहा गया है कि ऐसे बैलेट पेपर पाये गए, जिनका रंग और क्रमांक संख्या, विश्वविद्यालय द्वारा छपवाए गए बैलेट पेपरों से अलग था. इस तरह देखें तो मुख्य चुनाव अधिकारी वाली कमेटी ने न केवल कुल पड़े वोटों से अधिक वोट गिने, बल्कि ऐसे वोट भी गिन लिए, जो कि विश्वविद्यालय द्वारा छपवाए गए मतपत्रों से अलग मतपत्रों पर डाले गए थे. इस पूरे घटनाक्रम के जरिये स्वतंत्र, निष्पक्ष और साफ-सुथरे चुनाव करवाने की पूरी प्रक्रिया को एक छात्र संगठन को लाभ पहुंचाने के लिए पलीता लगा दिया गया. विश्वविद्यालय द्वारा छपवाए गए मतपत्रों के अलावा अन्य मतपत्रों का पाया जाना तो बेहद गंभीर षड्यंत्र की तरफ संकेत करता है. छात्र संघ के मामूली चुनाव में फर्जी बैलेट पेपर छपवाए जाने जैसा जालसाजी पूर्ण काम करके आखिर किसका हित सधेगा ?
फर्जी मतपत्र छापना तो गंभीर अपराध है,जिसका संज्ञान न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन को लेना चाहिए बल्कि पुलिस को भी इसका संज्ञान लेकर आपराधिक  मुकदमा दर्ज करना चाहिए.
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में अभाविप फर्जी मार्क्सशीट वाले प्रत्याशी के सहारे जीती और गढ़वाल विश्वविद्यालय में इससे भी चार कदम आगे जाते हुए, वे फर्जी मतपत्रों के सहारे जीते. देश में यह आरोप लगाया जा रहा है कि ई.वी.एम. से छेड़छाड़ करके भाजपा चुनाव जीत रही है, लेकिन गढ़वाल विश्वाविद्यालय में तो उनके छात्र संगठन ने जीतने के लिए मतपत्र ही अपने छपवा दिये !
इस पूरे प्रकरण में गढ़वाल विश्वविद्यालय भी सवालों के घेरे में है. गड़बड़ी सामने आने के महीनों बाद तक इस गंभीर मामले में टालमटोल वाला रवैया अपनाया गया. कार्यवाही अंततः तब हुई,जब उच्च न्यायालय का आदेश आ गया. तो क्या गढ़वाल विश्वविद्यालय पर केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार का दबाव था ?
प्रश्न यह भी उठता है कि यदि किसी छात्र संगठन की मातृ पार्टी सत्ता में होगी तो उसे पूरी चुनावी प्रक्रिया का मखौल उड़ाते हुए, फर्जीवाड़ा करके चुनाव जीतने की छूट भी विश्वविद्यालय दे देगा ? क्या किसी विश्वविद्यालय का सम्मान और गरिमा इतनी सस्ती है कि वह किसी भी हुड़दंगी छात्र संगठन को चुनाव जिताने में सिर्फ इसलिए तिरोहित कर दी जाये क्यूंकि उस छात्र संगठन की मातृ पार्टी सत्ता में है ?

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