( हाल में दिवंगत युवा चित्रकार, कवि, रंगकर्मी, समीक्षक और कला-शिक्षक राकेश कुमार दिवाकर ने पाँच वर्ष पहले 7 सितंबर 2016 अपनी चित्रकला के बारे में ‘ मैं, मेरा समय और मेरे चित्र ‘ नाम से फेसबुक पोस्ट लिखा था। इस लेख में उन्होंने अपने समय , कला जगत की स्थिति और अपने कला कर्म को परिभाषित किया था। इस लेख के साथ उन्होंने अपने छह चित्र दिए थे। सभी चित्रों में लड़कियां हैं जिनमें हिंसक व्यवस्था उनकी उड़ान को रोक रही है लेकिन वे हर तरह की बाड़ेबंदी को तोड़ आगे बढ़ रही हैं। समकालीन जनमत उनको याद करते हुए उनका यह लेख प्रकाशित कर रहा है। सं. )
बिहार राज्य के भोजपुर जिले के संदेश प्रखंड के प्रतापपुर गांव में बचपन बीता। सन् 1978 में जन्म। गली मिट्टी की, विद्यालय मिट्टी का, खेल का मैदान मिट्टी का, घर आधा मिट्टी आधा ईट, सबसे रूचिकर खेल भी मिट्टी का। मिट्टी की गाड़ी, मिट्टी की मूर्ति।
जैसे तैसे प्रारम्भिक शिक्षा पूरी हुई । उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए नजदीकी शहर आरा प्रस्थान। आरा में कला के इंस्टीट्यूट से होते हुए कला एवं शिल्प महाविद्यालय तक पहुंच। जीवनयापन के लिए कला अध्यापन।
मेरे समय में कला सृजन कर जीवन यापन करना मेरे बस की बात नहीं थी। कला सृजन मेरा शौक रहा। यह शौक कालांतर में मेरी अभिव्यक्ति का साधन बन गया। सौन्दर्य साधक मैं भी था, सुंदरता मुझे भी भाती थी और जब मैं कभी खुश होता था , श्रृंगार रस का चित्रण किया करता था। हलांकि ऐसा मौका कम ही आता था। मेरे समय की पूंजीवादी व्यवस्था घोर विषमताओ पर आधारित थी। दुःख, पीड़ा, शोषण, अपराध, बीमारी, बदहाली मेरे आसपास भरी पड़ी थी।
दूसरी तरफ राजसत्ता धनपशुओं के साथ दमनचक्र चलाते हुए अभेद्य किले में, ऐशो आराम में मशगूल था। झूठ बोलना, झूठा वादा करना, बूथ लूटना, धमकाना, लालच देना चुनाव जीतने की मुख्य शर्त थी। मीडिया का बड़ा वर्ग चारण की भूमिका में था। बेरोजगारी, जघन्य अपराध, भ्रष्टाचार, पाखंड चरम पर था। कुल मिलाकर तमाम वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के बावजूद, जीना बहुत कठिन था और मरने के हाजार तरीके थे।
मगर ऐसा कतई नहीं था कि आशा की हर सम्भावना खत्म हो गई थी। कभी-कभी जब आसमान पूरा काला हो जाता था और धरती अंधकार में डूब जाती थी, दूर आसमान में कहीं बिजली की क्षीण सी किरण कौंधती थी। जब वह कौंधती तो शाही लश्कर दौड़ पड़ती। नागरिक अधिकार रद्द कर दिया जाता ।
क्रूर दमन के बावजूद विरोध प्रदर्शन जारी थे और घोर अंधकार में अक्सर बिजली की भांति कौंधते रहते थे।
कुल मिलाकर दुनिया में व्याप्त लाख बदसूरती के साथ ही कुछ ख़ूबसूरती भी शेष है। यही ख़ूबसूरती , यही कौंधती रौशनी, दुनिया को सुंदर बनाने की यही कशमकश, यही मानवीय अभिलाषा ,यही सुंदर स्वप्न मेरे चित्रण का आधार बना। इसको संप्रेषित करने के लिए युवा स्त्री, युवा पुरूष, बच्चो की आकृति, बकरी , बैल , गधा आदि की आकृति साइकिल , हंसिया , लाठी मध्य भूमि में शेर की आकृति, तोप, स्टाइचू ऑफ लिबर्टी, महात्मा गांधी, महात्मा बुद्ध की आकृति तथा पृष्ठभूमि में संसद भवन, उच्चतम न्यायालय की आकृति, गिरते ढहते महल किले, संस्कृति की प्रतीक अजंता एलोरा में बनी चित्र व मूर्ति आदि के माध्यम से मैने संघर्ष के, नव सृजन के सौन्दर्य बोध को संप्रेषित करने की कोशिश की है। वर्णयोजना में लाल रंग की प्रमुखता है। साथ ही सफेद व काले रंगों को मिलाकर प्राथमिक रंगो की विभिन्न छटाओ से चित्र में संघर्ष व सृजन का वातावरण निर्मित करने की कोशिश मैंने की है।
चित्रों में उड़ती चिड़िया, कल्पना की उड़ान है। मेरी आकृतियां, जड़ हो चुकी व्यवस्था रूपी तमाम चौखटे से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं। एक ख़ूबसूरत दुनिया की रचना करना चाहती है । मेरे सारे चित्र लगभग इसी विचार के इर्द-गिर्द घूमते हैं। तमाम राष्ट्रों में सरकारें मानवीय आजादी और मानवाधिकार का हनन कर रही हैं। बल पूर्वक शासन करने की कोशिश हर सरकार करती है। इसके विरोध में मेरे हर चित्र खड़े हैं
साइकिल सवार लड़कियां जैसे धार्मिक एवं राजनीतिक दोनो तरह की बाड़ेबंदी को तोड़ देना वाली हैं। हिंसक व्यवस्था के प्रतीक शेर उनकी उड़ान को रोक देना चाहते हैं।
इस उड़ान को रोकने के लिए तमाम तकनीकी विकास विध्वंसक हथियार का इस्तेमाल शासक वर्ग करता है। दुनिया की इस बदसूरती को ठीक करने के लिए दुनिया के चेहरे को ख़ूबसूरत करने के लिए, जो सपने देखे जा रहे हैं, जो संघर्ष किये जा रहे हैं , वह मेरे चित्रण के विषय बनते हैं ।
काले धन के निवेश पर आधारित समकालीन कला जगत, कलाकृति , कलाकृतियों के बाहरी रूप, तरह तरह की स्टंटबाजी के इर्द-गिर्द घूम रही है । मेर रचना कर्म इस माहौल में हस्तक्षेप है । इस रचना कर्म में मेरे साथ और मेरे जैसे कई रचनाकार हैं । ठीक उसी तरह जैसे ढेर सारे लोग इस दुनिया को ख़ूबसूरत बनाने के लिए अपना सब कुछ अर्पित कर देने को तत्पर रहते हैं।
चित्रण के अलावा कविता के माध्यम से भी मैं अपनी आकांक्षाओ को अभिव्यक्त करता हूं। मेरे चित्रों व कविता की सबसे बड़ी कमजोरी मैं यह समझता हूँ कि एक ही चित्र में या एक ही कविता में मैं अपनी हर आकांक्षा को बेसब्री से अभिव्यक्त कर देना चाहता हूँ । समकालीन भारतीय कला जगत की मुख्य धारा में मेरी शख्सियत अभी नहीं बनी है, या इसको ऐसे भी कहा जा सकता है कि समकालीन कला की नीलामियो में मेरे चित्र अभी शामिल नहीं हैं और इसके लिए मैं कोई समझौता या स्टंट बाजी करने वाला नहीं हूँ । मेरी अपनी सौन्दर्य दृष्टि है, उसी सौन्दर्य दृष्टि के तहत मेरा सम्पूर्ण सृजन है।