समकालीन जनमत
कविता

समय से मुठभेड़ करती उषा राय की कविताएं

डॉ अवंतिका सिंह

उषा राय प्रसिद्ध कहानीकार, कवि, नाटककार, और पर्यावरण प्रेमी हैं। उनका कविता संग्रह ‘ भीमा कोरे गांव और अन्य कविताएं ‘ 2023 में न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है।
कवितासंग्रह ‘ भीमा कोरेगाँव और अन्य कविताएँ ‘ को पढ़ते हुए सर्वाधिक ख़ास और महत्त्वपूर्ण बात जो मैंने पाई वह उनकी कविताओं के विषय और उनके शीर्षक हैं। उन कविताओं में प्रकृति और मनुष्य दोनों अपने विभिन्न रूपों और रंगों में उपस्थित हैं। उनमें नदी द्वीप माजुली है, महोख पक्षी है, शिरीष पेड़ है, कास के फूल हैं, तेंदुआ है, हीरा और कोयला है, आग से गुज़रती हवाएं हैं, एवरेस्ट है, मनुष्य है, देश है, विश्व है, उसका परिवेश है, उसका इतिहास है, उसका वर्तमान है, उसके संघर्ष के विभिन्न मोर्चे हैं, बच्चे हैं, पापा की परियां हैं, महिलाएं हैं, बुलडोजर है, किसान हैं, शाहीन बाग़ है, जनांदोलन हैं, दंगाई है। उनकी कविताओं के विषयों की विविधता संपूर्ण जीवन को समेटे हुए है।
कविता संग्रह भीमा कोरेगांव और अन्य कविताएं ‘की पहली कविता है ‘माजुली’। माजुली असम राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य स्थित एक द्वीप है, जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप माना जाता है। यह द्वीप असम की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। माजुली के पर्यावरण में भी बहुत विविधता है, यहां की जैव विविधता, पक्षी प्रवास और हरियाली आकर्षक हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और नदी कटाव की वजह से माजुली का आकार घट रहा है, जिससे इसके अस्तित्व को खतरा है। नदियों के किनारे विकसित सभ्यताओं और संस्कृतियों के उत्थान-पतन और सातत्य को याद करते हुए लेखिका कहती हैं-
‘माजुली मेरी कला स्थली /उच्चनाम कुलहीन बुनकर तैराक/ 
 मछुवारों को आंचल में समेटे/ नृत्य-संगीत अभिनय का दिव्य आंगन।’ 
भीमा कोरेगांव एक ऐतिहासिक स्थल है, जो महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले के पास स्थित है। यह स्थान 01 जनवरी, 1818 को हुए एक महत्वपूर्ण युद्ध के कारण प्रसिद्ध है, जिसे “भीमा कोरेगांव युद्ध” के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल दलित सैनिकों की टुकड़ी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस लड़ाई में विजय के बाद दलितों के बीच यह विश्वास बढ़ा कि वे सामाजिक और राजनीतिक रूप से उत्पीड़न से मुक्ति पा सकते हैं।
भीमा कोरेगांव युद्ध में दलित सैनिकों की याद में बनाए गए ऐतिहासिक प्रतीक स्थल पर एक जनवरी को प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में लोग श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। हमारे देश में समाज की अन्यायपूर्ण जाति-वर्ण की व्यवस्था से जन्मी छुआछूत की क्रूर और अमानवीय बुराई के विरुद्ध ‘भीमा कोरेगाँव’ युद्ध को उषा राय जी ‘अपने समय के सबसे बड़े सवाल का ज़वाब’ मानती हैं। इस युद्ध के प्रति उनके नज़रिए का अनुमान इस बात से आसानी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने कविता संग्रह का नाम इस युद्ध के नाम पर रखा है। इस युद्ध को वे ‘आत्मसम्मान से लबरेज़ लोगों’ के द्वारा लिखा गया ‘अपना घोषणापत्र’ मानती हैं। इस युद्ध में वे अठारह सौ सत्तावन की क्रांति के उत्प्रेरक बीज और एक नए भारत का सपना भी देखती हैं। अपने कविता संग्रह के शीर्षक नामा कविता ‘भीमा कोरेगाँव’ में वे कहती हैं –
 
‘ जब मुक्ति की तीव्र आकांक्षा ने/ दस्तक दी तब एक जनवरी आई /जब एक जनवरी आई तभी/ अठारह सौ सत्तावन की क्रांति की राह बनी।’ 
 हमारे देश की विशेषता विविधता में एकता और सामासिक संस्कृति में कवयित्री की अटूट निष्ठा की झलक उनकी कविता ‘कब्बन मिर्ज़ा को सुनते हुए’ में देखी जा सकती हैं। कब्बन मिर्जा एक प्रसिद्ध कवि और शायर थे, जिनकी शायरी और ग़ज़लें काफी प्रचलित हुईं। उनकी शायरी दिल को छू लेने वाली और विचारों को नई दिशा देने वाली है। उषा राय लिखती हैं –
‘ कब्बन मिर्ज़ा !! तुम्हें सुनते हुए /बस यही समझ में आया कि/   प्रेम के सिवा कोई चारा नहीं।’ 
  जीवन के मूल प्रेम और शृंगार का प्रतिनिधित्व करती उनकी कविता ‘नाभिदर्शना’ वार्तालाप की शैली में लिखी गई है। भाषा की मर्यादा, शब्दसंयम और भाव की उदात्तता अच्छी लगी। इसमें वे लिखती हैं,
  ‘ जानती हैं आप यह अद्भुत है/ पूरी देह का मध्य भाग, द्वार है/ किस चीज़ का मैंने सीधा पूछा-/ उम्मीद नहीं थी इस सवाल की उन्हे/ बोले जानता तो हूँ पर बताऊँ कैसे।’
मेडल चूमते हुए कविता में ऊषा जी ने बहादुर लड़कियों की हिम्मत और हौसले की दाद देते हुए लिखा हैं –
 ‘ पतवार मत छोड़ना मेरी नाविक/ चाहे जलजला ही क्यों न आ जाए।’
मनुस्मृति में स्त्री और शूद्रों के लिए अमानवीय विधान लिखे गए हैं। यह स्त्री हित और न्याय के विपरीत निम्न कोटि की क़िताब है।   उषा जी लिखती  हैं –
‘ सभी औरतें जान चुकी हैं कि/ मनुस्मृति दुनिया की बुरी किताबों में से एक है।’
शिरीष भारतीय उपमहाद्वीप में एक सुंदर, औषधीय और पर्यावरण के लिए लाभकारी वृक्ष है। शिरीष का वृक्ष विपरीत परिस्थिति में भी अपने सौंदर्य और आकर्षण से लोगों के मन को लुभाता हैं। शिरीष के फूल लोगों को यह सीख देते हैं कि हमें किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानना चाहिए एवं प्रतिकूल परिस्थिति में भी डटे रहना चाहिए।
कांस के फूल सफेद, रेशमी और बहुत आकर्षक होते हैं। यह पौधा खासतौर पर बरसात के मौसम में खिलता है। कांस के फूल भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखते हैं। कुछ संस्कृतियों में कांस के फूलों को शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कांस के फूल आमतौर पर स्वतंत्रता और नई शुरुआत के प्रतीक माने जाते हैं, क्योंकि ये पौधे कठिन परिस्थितियों में भी उगने की क्षमता रखते हैं। कांस के फूल कविता में –
 ‘ सर्दियों से प्रेम है उसे/ जीता है प्रेम भरा जीवन
कांस केवल फूल नही/ पूरा जंगल पूरी कायनात है।’
 ‘बीड़ी पीती औरत ‘ कविता संवेदनशील और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कुछ महिलाएं सामाजिक दबाव या परिवार के प्रभाव में बीड़ी पीती हैं, जबकि अन्य इसे मानसिक तनाव से उबरने का एक तरीका मानती हैं। उषा राय लिखती हैं, ‘बीड़ी के कश में औचक/ प्रेम की साहसिक यादों का डेरा/ जो गया वह लौट कर कहां आया।’
 तेंदुआ हमला करने में माहिर होता है और चुपचाप शिकार के नजदीक पहुंचकर तेज़ी से हमला करता है। तेंदुआ अपनी संचार शैली के लिए विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न करता है, जिसमें गुर्राना, घुरघुराना और शिकार के दौरान कुछ अन्य आवाजें शामिल हैं।
तेंदुआ ‘ कविता में इसे प्रतीक मानकर सात कविताएं लिखी गई हैं जो विभिन्न समसामयिक घटनाओं को दर्शाती हैं।
शूटर दादी के नाम से विख्यात साठ वर्षीय चंदा तोमर ने यह सिद्ध किया कि महिलाओं के लिए कोई भी क्षेत्र अकल्पनीय नहीं है। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, जहां महिलाओं को घर के कामकाज तक सीमित रखा जाता है। इस बहादुरी के जज्बे को इस कविता में प्रस्तुत किया गया है –
‘वे मूंछें ऐंठ फोटो खिंचाने के लिए बंदूक रखते/ ये दादी शूटर्स धाएं धाएं गोली मारना सीख गईं।’
सीलन, जनांदोलन, लव जेहाद, डायन, रो लो जरा,प्रेमचंद वाला साहूकार, पत्र, शाहीन बाग, बुलडोजर,तेजाब, किसान आंदोलन जैसे विषय पर लिखी गई कविताएं उषा जी की संवेदनशीलता का परिचय कराती हैं।
 यूक्रेन युद्ध ने लाखों बच्चों को अपनी ज़िंदगियाँ, घर, और परिवार खोने पर मजबूर किया है। यूक्रेन के कई हिस्सों में बमबारी, घरों का तबाह होना, और स्कूलों की बंदी के कारण बच्चों की शिक्षा और मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
युद्ध के बाद, यूक्रेनी बच्चों के लिए सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। उन्हें मानसिक और शारीरिक देखभाल की आवश्यकता है ताकि वे इस कठिन समय से उबर सकें और अपनी जिंदगी फिर से सामान्य बना सकें। युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता है ऐसा कविता- ‘यूक्रेनी बच्चे’ में भी कहा गया है –
‘इस अविवेकी मूर्खतापूर्ण युद्ध के कारण/ वह वहां पहुंच जाएगा/ जहां बदतर से बदतर जिंदगी/ उसकी प्रतीक्षा कर रही है।’
इस क़िताब की अंतिम और सबसे लंबी कविता है ‘ आग से गुजरती हवाएं’। इसमें स्त्री के लिए दिन-प्रतिदिन भयावह होते जा रहे माहौल का रूप देखने को मिलता है। हत्या, बलात्कार, अपमान, भेदभाव सभी कुछ सहती स्त्रियां कैसे इस आग से झुलसती हैं और खुद को बचा भी लेती हैं। उनमें जीवन की कुरूपता, निराशा और अँधेरा ही नहीं बल्कि सौंदर्य, उम्मीद और उजाला भी भरपूर दिखाई देता है।
उषा राय अपने इस कविता संग्रह में विपरीत परिस्थितियां होने के बाद भी जीवन को सुंदर बनाने का आह्वान करना नहीं भूलती हैं। वे केवल कविताई के लिए कविता नहीं लिखती हैं बल्कि अपनी कविताओं से वह एक बेहतर दुनिया बनाने का सपना देखती हैं, जहां समता, समानता, मानव गरिमा, न्याय और बंधुत्व की भावना हो। उनकी कविताओं से उनके सोच-विचार, उनके जीवन-दर्शन, चिंतन, सरोकार आदि की व्यापकता और गंभीरता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
इस प्रकार यह कविता संग्रह वास्तविक रूप में आज के समय का एक पुख्ता दस्तावेज़ है, जिसमें जीवन के विभिन्न आयामों को समेटती और उनसे मुठभेड़ करती कविताएं हैं, जिनको पढ़ा जाना चाहिए।।।
 (  डॉ अवंतिका सिंह,  54, दयाल फोर्ट, विष्णुपुरी 3 अलीगंज, लखनऊ, 226024 )
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