कल मौनी अमावस्या का महाकुंभ में सबसे प्रमुख स्नान है। पूरा शहर और 3700 हेक्टेयर में फैला मेला क्षेत्र चमचमाती लाइटों और वीआईपी, वीवीआईपी, आला अधिकारियों की दौड़ती- भागती गाड़ियों की रोशनी से जगर- मगर है। शहर के मुख्य मार्गो से लेकर मेला क्षेत्र में दिन-रात सफाईकर्मी माफ कीजिएगा महान सेवक के शब्दों में स्वच्छाग्रही (जैसे उन्हें रोटी के लिए कोई और पेशा चुनने का विकल्प उपलब्ध है) झाड़ू और अन्य साफ सफाई के समान लेकर मुस्तैदी से काम करते दिख रहे हैं। आप लोगों की स्मृतियों में तो होगा और भूल भी गए हों तो कुछ अखबारों- चैनलों- सोशल मीडिया ने याद दिला ही दिया होगा कि प्रधानमंत्री जी ने 2019 के दिव्य कुंभ में उनके पांव पखारे थे और सम्मान किया था।
2019 में नगर निगम का स्वच्छता पर लगभग चार करोड़ का बजट था जिसे इस बार बढ़कर 16 करोड़ से ज्यादा का कर दिया गया है। नगर निगम ने 3200 सफाई कर्मियों को तैनात किया है, बाकी के लगभग 7000 सफाईकर्मियों के लिए कंपनियों को ठेका दिया गया है। जिसमें निर्गंध जैसी अचर्चित कंपनी से लेकर सैमसंग जैसी बहुचर्चित बड़ी कंपनी भी शामिल है।
महाकुंभ शुरू होने के पहले ही दिसंबर महीने में 2019 के दिव्य कुंभ में दुख झेले मजदूरों ने काम के निर्धारित 8 घंटे, अवकाश न मिलने की स्थिति में प्रतिकर अवकाश देने, आउटसोर्स से भी लगाए गए सफाई कर्मियों के लिए श्रम विभाग द्वारा अकुशल श्रमिकों के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन 10,700 प्रतिमाह, सर्दी की जर्सी/ ट्रैकसूट, सुरक्षा किट, ईएसआईसी कार्ड (स्वास्थ्य संबंधी), वेतन पर्ची दिए जाने के लिए प्रयागराज नगर निगम कार्यालय पर एक्टू से संबद्ध नगर निगम सफाई कर्मचारी एकता मंच, इलाहाबाद के नेतृत्व में कई दिनों तक क्रमिक अनशन और धरना- प्रदर्शन किया। अंततः 28 दिसंबर 2024 को नगर निगम प्रशासन को वार्ता के लिए मजबूर होना पड़ा और सफाई कर्मियों की उपरोक्त मांगों के लिए आदेश जारी करना पड़ा। इस वार्ता में निगम प्रशासन ने सफाई कर्मियों, जो पहले नालों के किनारे सुविधाहीन नरकीय स्थितियों में जीने के लिए बाध्य थे उन्हें साफ- सुथरी जगह पर अलग से बसाने और सभी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने का वादा भी किया गया था।
आईए, अब नगर निगम परिसर से बाहर निकलकर मेला क्षेत्र तक का सफर करते हैं, जिसकी दूरी किसी भी उपलब्ध रास्ते से कम से कम 13 से 14 किलोमीटर है। अंदर फिर आप जहां तक जा सकें। संगम क्षेत्र में लेटे हनुमान के मंदिर से आगे बढ़ने पर बादशाह अकबर के किले के पीछे नगर निगम के सफाई कर्मियों की बस्ती है। इसमें सफाई कर्मी प्यारेलाल जी जिनके पांव प्रधानमंत्री जी ने पखारे थे, वह भी रहते हैं। उनके भी हाल 2019 से खराब ही हुए हैं। यहां वेतन सभी को मिल रहा है। जो संविदा पर है उन्हें 12,500 और जो आउटसोर्सिंग के जरिए आए हैं उन्हें 10,500। इस बार नाले के बजाय इन्हें टीन से घिरी हुई एक बस्ती दी गई है लेकिन न्यूनतम सुविधाएं भी नदारद है। इस बस्ती में ना उनके लिए शौचालय है न ही पीने के लिए पानी का कनेक्शन। महिलाओं के नहाने और कपड़े बदलने की जगह की बात ही छोड़िए। इसके लिए यह लोग श्रद्धालुओं के लिए बने बस्ती से दूर जन सुविधाओं पर आश्रित हैं।
यह बस्ती मुख्य संगम क्षेत्र में है इसलिए रात में रोशनी के लिए बिजली का खंभा है। उसी दिन यानी 23 जनवरी की रात मेरी मुलाकात मेला क्षेत्र में नागवासुकी मार्ग पर बख्शी बांध से नीचे की तरफ सड़क किनारे बने शौचालय के सामने बैठे पप्पू और उनके दो सहकर्मियों से हुई। जो कहीं से बीन कर लाई गई लकड़ियों को जलाकर आग तापते हुए बैठे थे। यह लोग बिजनौर से आए हैं। इनके ठेकेदार राजेंद्र हैं। महीने का 12000 इनका तय है। एक जनवरी से यह लोग ड्यूटी पर हैं लेकिन अभी तक इन्हें कोई पैसा नहीं मिला है। जबकि सप्ताह में ठेकेदार आमतौर पर सफाईकर्मियों को कुछ पैसा देते हैं, जिसे खर्चा कहा जाता है और महीने के वेतन में से उसे काट कर हिसाब कर दिया जाता है। बांध के नीचे इन लोगों की सिंगल पन्नी वाले टेंट बने हैं, जिसकी दूरी यहां बने शौचालय और पानी के कनेक्शन से 500 मीटर है। बस्ती में कोई बिजली नहीं है। बांध पर लगी लाइटों से रोशनी पड़ रही थी।
अगले दिन 24 तारीख को मैं मेला क्षेत्र में सेक्टर 6 के सामने बख्शी बांध के किनारे बनी सफाई मजदूर बस्ती में पहुंचा। यह बस्ती नाले के पास बनी है और यहां आउटसोर्स वाले निर्गंध कंपनी के करीब 150 से 200 सफाई कर्मी अपने परिवारों के साथ पन्नियों वाले टेंट में रहते हैं। बस्ती में घुसते ही एक नौजवान महिला घूरा मिट्टी सने हाथों को लिए, मेरे साथ सफाई मजदूर एकता मंच के अशोक जी को देखकर पास आती हैं और हंसते हुए बताती हैं कि चूल्हा टूट गया था तो नया चूल्हा बना रही थी। तब तक आसपास 10-12 लोग आ जाते हैं।।इनके ठेकेदार संजय नगर निवासी लल्लू हैं जिन्हें निर्गंध कंपनी ने अपने प्रतिनिधि के बतौर रखा है। यहां सभी लोग 8 जनवरी को आए हैं और 9 जनवरी से ड्यूटी कर रहे हैं।
ड्यूटी करने यह लोग यहां से करीब दो किलोमीटर दूर 17 नंबर पांटून पुल के पास जाते हैं। इनके ठेकेदार ने खर्चा के रूप में प्रति सफाई कर्मी ₹1000 अब तक दिया है । हाथरस के विष्णु अपनी पत्नी हिना और बच्चों के साथ आए हैं। वे बताते हैं- मैं यहां पहली बार आया हूं। यहां बसे सभी लोगों को 10,500 प्रति महीने के बात तय हुई है। ट्रैकसूट की बाबत पूछने पर विष्णु कंपनी की जैकेट लाकर दिखाते हैं जिस पर निर्गंध लिखा हुआ है। इस बस्ती में बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे हैं। हिना बताती हैं कि यह एक पन्नी वाला टेंट रात में ओस पड़ने के कारण चूने लगता है। हमारा कपड़ा और सामान भीग जाता है। जैसे- तैसे छोटे बच्चों को बचाते हैं।
ऐसा ही हाल बरेली की सुनीता आगरा की राजकुमारी कासगंज की रानी भी बताती हैं। यह सभी लोग भूमिहीन हैं। अपनी जगह पर मेले ठेले में साफ सफाई से लेकर खिलौने और छोटे-मोटे सामान बेचते हैं। घर के पुरुष लोगों में से कई लोग मोची का काम करते हैं। मेले की सड़क से 500 मीटर दूर बनी इस बस्ती में बिजली का एक खंभा तक नहीं है कि लोग रात में थोड़ी सी रोशनी भी पा सकें। मेरे साथ आए सफाई कर्मचारी नेता अशोक जी बताते हैं कि उन्होंने मेले के सेक्टर जेई से बात की तो उन्होंने कहा कि यहां के खंभे का सैंक्शन नहीं है। रात में यह लोग अपने मोबाइल की टॉर्च के सहारे हैं और मोबाइल मेले में चार्ज करते हैं तो 10 से ₹20 तक देना पड़ता है।
वर्ष 2019 में नाविकों के साथ-साथ सफाई कर्मियों का पांव पखार कर खुद को अवतार दिखाने वाले ‘ प्रधान सेवक ‘ ने 2024 में अपने को नॉनबायोलॉजिकल घोषित कर दिया।
इस अवधि में सत्ता के पाखंड का पहाड़ और ऊंचा होता गया है।
महाकुंभ में सड़क पर लाइट चमकाने के लिए जो प्रयागराज नगर निगम 25 करोड़ रुपए खर्च कर रहा है, उसके पास इन सफाई कर्मियों की बस्ती में बिजली का एक खंभा भी लगाने का पैसा नहीं है। अशोक जी की दुख और निराशा में डूबी आवाज मेरे कान में पड़ती है कि हम इसके लिए कुछ नहीं कर सके। अपने ही लोगों के लिए नहीं कर पाए जबकि लड़ते हैं न्याय के लिए। ( वह खुद सफाई कर्मचारी से प्रोन्नत होकर सफाई नायक हैं)।
कंपनियों की लूट
मैंने इनकी कथाएं 2019 में भी लिखी थीं फिर लिख रहा। मजदूरों ने लड़कर कुछ हासिल किया लेकिन उनके हक को लूटने के लिए राज्य और सरकार नए-नए रास्ते निकल रही है। पहले रिक्रूटिंग जमादारों को ज्यादा संख्या में सफाई कर्मियों की भर्ती के लिए दिया जाता था अब उनका हिस्सा बहुत कम करके बड़ी कंपनियों को ठेके दिए गए हैं कि वे ज्यादा बेहतर प्रबंधन करेंगे। इस बार सफाई कर्मियों को भर्ती करने का ठेका बड़ी-बड़ी कंपनियों को उनके पैसे और मेहनत को लूट लेने के लिए दे दिया गया है। विष्णु और उनके साथियों (सफाई कर्मियों) को एक जनवरी से सैमसंग जैसी बड़ी कंपनी के मातहत काम करने के लिए लाया गया।
इन मजदूरों को इलाहाबाद आने के लिए अपने जेब से पैसे खर्चने पड़े। इन लोगों को शहर के बेली रोड पर काम पर लगाया गया। कंपनी इनको न सिर्फ न्यूनतम मजदूरी से ₹1000-1200 कम यानि 9,500 पर काम करा रही थी। अवकाश या प्रतिकर अवकाश की तो बात ही जाने दीजिए, इन लोगों को वहां 8 घंटे की ड्यूटी, जो निश्चित है, उससे डबल ड्यूटी यानी कि 8 घंटे नियमित और चार घंटे का ओवर टाइम कराया जा रहा था। इसलिए जब निर्गंध के लिए लल्लू ने इनसे संपर्क किया तो यह लोग उनके साथ चले आए। इसी तरह किंग कम्पनी के मुरादाबाद से आये पिंकू और उनके सहकर्मी, मुझे अल्लापुर में सफाई करते हुए मिले। पूछने पर उन्होंने बताया, कि उन्हें भी ₹9500 ही मिल रहे हैं और कम्पनी ने सर्दी की जर्सी/ट्रैकसूट भी नहीं दिया।
‘ प्रधान सेवक ‘ ने जिनके पांव धोए उनकी ही मेहनत की लूट का इंतजाम कर उनकी कमर तोड़ देने का पूरा तंत्र ही खड़ा कर दिया गया। यही दिव्य कुंभ 2019 से सनातन गर्व के महाकुंभ पर्व 2025 की नई आत्मा है। इस घोर अंधेर को ही छिपाने के लिए जगमग करती लाइटें हैं, कुख्यात देशबेचवा कॉरपोरेट अदानी के पैसे से चल रहा भंडारा है, भव्य पंडाल हैं, रुपयों पर खिंची चली आ रही गायकों, कलाकारों, कथावाचकों की मंडलियां हैं और वीवीआईपी गाड़ियों के सायरन की चिल्लाती कर्कश आवाजें हैं, जिनके शोर में इन हजारों मजदूरों की चीख भी हम तक नहीं आती। लेकिन वह इस कथा की घूरा की तरह हैं जिनका एक चूल्हा टूटता है तो वह थकती नहीं, निराश नहीं होती, दूसरा बनाने में जुट जाती है।
नोट- लेखक की अर्धकुम्भ 2019 पर आधारित रपटों पर सम्पादित किताब, ‘दिव्य कुम्भ 2019’, नवारुण प्रकाशन, जनसत्ता अपार्टमेंट, गाजियाबाद से प्रकाशित है।
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