लखनऊ। सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित बहराइच के महराजगंज कस्बे व आसपास के गांवों का 26 अक्टूबर को दौरा कर लौटी भाकपा (माले) की पांच सदस्यीय टीम ने 27 अक्टूबर को लखनऊ में अपनी जांच रिपोर्ट जारी की। जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि बहराइच के महराजगंज कस्बे में हुई सांप्रदायिक हिंसा पूर्व नियोजित थी। पुलिस की भूमिका पर कस्बे का हर नागरिक सवाल उठा रहा है। लोगों का स्पष्ट मत है कि पुलिस व्यापक हिंसा कराने की योजना का हिस्सा थी। इसीलिए डीजे में बजने वाले भड़काऊ व अल्पसंख्यक समाज को अपमानित करने वाले गाने बजाने से नहीं रोका। न ही विसर्जन यात्रा को अब्दुल हमीद के घर और मस्जिद के बीच में रोकने व उत्तेजनापूर्ण स्थिति पैदा होने से बचाने के लिए आगे बढ़ाने में रुचि दिखाई। यही नहीं, राम गोपाल मिश्रा (अब मृतक) को अब्दुल हमीद की छत में चढ़ने, झंडा उतारने व भगवा ध्वज लहराने से भी नहीं रोका। पुलिस अगर इनमें कोई एक काम भी करती, तो उत्पातियों के मंसूबों को नाकाम किया जा सकता था।
भाकपा माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव के नेतृत्व में जांच दल ने पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, संवेदना जताई और घटना से जुड़े तथ्य जुटाए। जांच दल के के अन्य सदस्यों में भाकपा माले केंद्रीय समिति सदस्य व ऐपवा की प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण अधिकारी, ऐक्टू प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही, राणा प्रताप सिंह, राजेश साहनी, डॉ शकूर आलम व आइसा के शांतम निधि शामिल थे।
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि महराजगंज में 13 अक्टूबर की घटना को सांप्रदायिक दंगा कहना उचित नहीं है क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई। रामगोपाल मिश्रा द्वारा अब्दुल हमीद के घर की छत पर अनाधिकृत रूप से जबरन चढ़कर धार्मिक झंडे को उखाड़ने के क्रम में उनकी रेलिंग को भी गिराकर आरएसएस का झंडा लहराया गया। किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा उसको झंडा लहराते समय गोली मार दी गई। उस समय भी भीड़ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अगली सुबह राम गोपाल मिश्र के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग के लिए सड़क जाम करने के बहाने महराजगंज में जुटाई गई भीड़ स्वतः तितर-बितर हो गई, जब चंद लोगों द्वारा आगजनी और लूट की जाने लगी। अधिकांशतः अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों को क्षतिग्रस्त किया गया। एक निजी चिकित्सालय, एक बाइक शोरुम, दो दर्जन दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। कुछ दुकानों में तोड़फोड़ की गई।
इन्हीं तत्वों द्वारा वापस लौटते या भागते हुए महाराजगंज कस्बे के मुख्य बाजार के पिछले हिस्से में दो अल्पसंख्यक परिवारों की झोपड़ियों को आग लगा दी गई। इसी तरह कस्बे से दो किलोमीटर दूर कबाड़ एकत्र कर जीविका चलाने वाले एक मुस्लिम के घर में आग लगा दी गई तथा उस घर के स्वामी की पिटाई की गई। उसके बच्चों को आग में जलने से परिवार की महिलाओं ने अपने प्राण संकट में डालकर बचाया।
टीम की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने सब होने दिया। दूसरे दिन भी गांव-गांव से लोगों को महराजगंज में आने दिया गया और एकत्र होने से नहीं रोका गया। आगजनी और हिंसा करने की पूरी आजादी प्रशासन ने दी। इससे स्पष्ट है कि यह सब संगठित और सुनियोजित था।
भाकपा (माले) टीम से एक वृद्ध फल विक्रेता ने बातचीत में कहा कि पुलिस रास्ता चलते लोगों को बिना अपराध पकड़ती है। लेकिन एक व्यक्ति किसी के घर में गालियां देते, ललकारते हुए घुस रहा है, उसे नहीं रोकती। इसी से समझ लीजिए कि पुलिस और यह कारगुजारी करने वालों के बीच किस तरह की साठगांठ थी। वृद्ध ने बताया कि उन्होंने 12 दिन बाद दुकान खोली है और उनके हजारों रुपए के केले, सेब और अन्य फल सड़ गए। इसी तरह एक अन्य दुकानदार ने कहा कि आज ही दुकान खोली है। यह सब राम गोपाल मिश्रा के गांव की दुर्गा पूजा कमेटी के पदाधिकारियों, कुछ ताकतवर नेताओं और पुलिस का साझा खेल था। यहां तो हम सब दशकों से आदर के साथ एक दूसरे की यात्राएं निकलते देखते आएं हैं।
इसी तरह बहराइच से प्रतिदिन अपनी दुकानों में आने वाले कुछ स्वरोजगारी युवकों ने बातचीत में बताया कि हम सब लोग दशकों से यहां रोजगार कर रहे हैं। सब एक दूसरे का आदर-सम्मान करते रहे हैं। कुछ लोगो ने बड़ी साजिश रची थी, जिसमें वे अकेले पड़ गए। माल का तो नुकसान हो गया, किंतु कई लोगों की जान बच गई। जो खाई बनाई गई है, उसे भरने के लिए दोनों पक्षों को अपने पुराने संबंधों का इस्तेमाल कर सौहार्द्र को बढ़ावा देना होगा।
टीम ने देखा कि पूरे कस्बे में 12 दिन बाद 10 प्रतिशत ही दुकानें खुली हैं। अभी दहशत का माहौल है। अब्दुल हमीद का घर खाली है। उनके बेटे और वह जेल में हैं। जेल भेजे गए लोगों में अधिकांश मुस्लिम हैं। परचून की दुकान में बैठी बुजुर्ग महिला ने कहा कि जिन लोगों ने जीवन में चूहा तक नहीं मारा, वे सब जेल में ठूंसे जा रहे हैं।
टीम ने कहा कि राम गोपाल मिश्रा की हत्या एक रहस्य है। महराजगंज में कई लोगों की राय है कि जांच पुलिस के हाथ से लेकर किसी स्वतंत्र एजेंसी को दी जाये, तो न सिर्फ मिश्रा का भी असली कातिल पकड़ा जा सकता है, बल्कि शासन-प्रशासन की संलिप्तता का भी पर्दाफाश हो सकता है।
कुल मिलाकर यहां मुजफ्फरनगर और नूंह की तरह का दंगा कराने की योजना बनाई गई थी। पुलिस की भूमिका, स्थानीय विधायक द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान आगामी उपचुनाव में ध्रुवीकरण के लिए हिंसा तथा सामाजिक विभाजन की ओर को इशारा कर रहे हैं।
भाकपा (माले) की टीम ने घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के लिए हाई कोर्ट के सिटिंग जज की अध्यक्षता में समिति गठित करने, दोषियों को सजा देने, निर्दोषों को रिहा करने, हिंसा से प्रभावित दुकानदारों और निवासियों को उचित मुआवजा देने, उनका पुनर्वास करने, सांप्रदायिक सौहार्द्र सुनिश्चित करने और घटना की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की मांग की।