डॉ नीरज कुमार मिश्र
नई दिल्ली. ‘ लिखावट ‘ और रामानुजन कॉलेज के हिंदी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में 29 जनवरी को समकालीन कवियों का काव्य पाठ आयोजित किया गया. कार्यक्रम में आमंत्रित कवियों के साथ-साथ कालेज के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भी कविता पाठ किया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता रामानुजन कॉलेज के प्राचार्य डॉ एस पी अग्रवाल ने करते हुए कहा कि लिखावट ने कविता की जो अलख जगाने का काम किया है वो सराहनीय है.
लिखावट के संयोजक और कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने ‘ लिखावट ‘ के इतिहास और उसके होने वाले कार्यक्रम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। रामानुजन कॉलेज,हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ मधु कौशिक ने वक्तव्य में कहा कि महाविद्यालयों में जा जाकर ऐसे कार्यक्रमों को छात्रों के बीच करना बहुत ही सराहनीय साहित्यिक कर्म है। आमंत्रित कवियों का स्वागत रामानुजन कॉलेज के हिंदी विभाग के वरिष्ठ शिक्षका डॉ मीना शर्मा ने किया.
‘ लिखावट ‘ का परिचय देते हुए डॉ नीरज कुमार मिश्र ने बताया कि लिखावट कविता के प्रसार और कविता के सम्प्रेषण के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रहा है. इसी सोच के तहत लिखावट ने ‘कैंपस में कविता’ श्रृंखला की पहल की है. ‘ लिखावट’ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों-जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, राजधानी महाविद्यालय, देशबंधु महाविद्यालय, आत्माराम सनातन महाविद्यालय, मोतीलाल नेहरू (सांध्य) और दक्षिणी परिसर,दिल्ली विश्वविद्यालय में हाल ही में काव्य पाठ और परिचर्चा का आयोजन किया है.
इसके बाद काव्य पाठ का आरंभ विनोद कुमार सिन्हा द्वारा निराला की कविता ‘वर दे वीणा वादिनी’ के कर्णप्रिय सस्वर पाठ से हुआ. कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने क्रमशः ‘ ईश्वर’,’ पुतले पर गुस्सा’,’बाज़ार के खिलाफ’ और ‘रामकथा’ कविताओं के माध्यम से शहरी भारत की विडंबना का मनोवैज्ञानिक और राजनैतिक बयान प्रस्तुत किया. मिथिलेश श्रीवास्तव अपनी कविताओं को पहले आमजन के अनुभवों से जोड़ते हैं फिर उसमें अपने अनुभव के माध्यम से समाज की बड़ी समस्या को उठाते हैं.
वरिष्ठ कवि दिविक रमेश ने ‘हंसी’ कविता में हंसने के मायने को युगीन संदर्भों से जोड़कर देखा. उन्होंने इस कविता को रघुवीर सहाय को समर्पित किया.उन्होंने रघुवीर सहाय के संग्रह ‘ हँसो हँसो जल्दी हँसो ‘ को याद करते हुए कहा कि आज के समय में हँसी के भी अपने मायने लग जाते हैं. उनकी ‘उदासियाँ और माँ’ कविता ने सबको भावुक कर दिया. मानवीय संबंधों पर उनकी ‘ये कौन सी भूमि है’,’संपूर्ण यात्राएँ’,’चिड़ियाँ फिर लौटी नहीं’ जैसी अनेक कविताएँ गहरा सोचने को मजबूर करती हैं.
कवि और पत्रकार सुभाष राय ने अपनी कई कविताओं का पाठ किया. उनकी कविता ‘आज की गीता’ में आज के समय में संविधान के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा रहा है, उस पर तीखा व्यंग्य करती हुई हमें बताती हैं कि संविधान शासन तंत्र की गिरफ्त में है. आज आलम तो ये है कि अब उस पर गार्ड बैठा दिए हैं. ‘प्रेम’ कविता में प्रेम की पराकाष्ठा को दिखाया गया है. कवि बहुत संवेदनशील भावों के माध्यम से ये बताता है कि सच्चा प्रेम ह्र्दय में गूँजती महामौन की वीणा है. प्रेम होते ही पूरे आकाश में फूल खिल जाते हैं. यह कविता हमें अज्ञेय की कविता ‘मौन ही अभिव्यंजना है’ की याद दिलाती है. सुभाष राय की कविता ‘मुल्क का चेहरा’ में हमें उस कवि की चिंता साफ दिखती है जो चाहता है मुल्क का ऐसा चेहरा बने,जिसमें हर आमजन अपने आप को साफ साफ देख पाए.
वरिष्ठ पत्रकार और कवि विमल कुमार ने अपनी कविताओं में बदलते देश के प्रति चिंता जाहिर की. डिजिटल जमाने में ट्विटर पर देश चल रहा है. उनकी कविताओं में मारक तंज देखने को मिला. उपेंद्र कुमार ने ‘संविधान से बाहर एक ज़रूरी बहस’ और ‘खेल’ जैसी कविताओं द्वारा चुनावी राजनीति की विसंगति पर अपनी चिंता व्यक्त की. साथ ही,छोटी कविताओं द्वारा संबंधों और प्रेम के बदलते स्वरूपों की अदृश्य रेखा को उद्घाटित किया गया. विनोद कुमार सिन्हा ने अपनी ग़ज़लों द्वारा सभा में बैठे सभी लोगों को अपना मुरीद बना लिया. उनकी ग़ज़ल ‘दिल भी मिल जाएंगे,हाथ तो मिलाओं जरा’ को श्रोताओं ने बहुत पसंद किया.
काव्य पाठ के दूसरे चरण में रामानुजन कॉलेज के शिक्षकों और विद्यार्थियों ने अपनी कविता का पाठ किया. राजनीति विभाग के डॉ अजय कुमार ने प्रासंगिक और लंबी कविता “मैं राजनीति हूँ” का पाठ किया।पंजाबी विभाग से सिमरन सेठी ने कुछ पंजाबी कविताओं और ‘अनपढ़ माँ’ का भावुक पाठ किया। इतिहास विभाग के विकास कुमार ने अपनी कविता में स्त्री चेतना और मन के विकारों से युद्ध करने का आह्वान किया।हिंदी विभाग की प्रभारी डॉ मधु कौशिक ने प्रकृति पर केंद्रित कविता ‘ वसंत ‘ का पाठ किया.
कार्यक्रम का संचालन डॉ हिरण्य हिमकर ने किया. इस मौके पर रामानुजन कॉलेज के हिंदी विभाग के डॉ हेमलता, डॉ नवाब सिंह, डॉ अनुपम कुमार, डॉ आलोक रंजन पांडेय, डॉ उमेश झा आदि उपस्थित थे.